सवाल
आचार्य भगवन् !
कलश करने की,
धारा करने की क्यों कहते रहते हैं,
ऐसा क्या है गंधादक में ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
भाई गंधोदक,
गंदो…लक धो डालता है
पाने मुक्ति रा…धा
धा…रा श्रीजी की किया करो रोज
‘कि खिल खुलने को ज्यों ही सरोज
धा यानि ‘कि धारती ‘रा’ यानि ‘कि
समशरण लक्ष्मी-रमा
अब भाई ऐसी वैसी थोड़े ही धारा करिश्मा
श्रेणिक महाराज
आज का दिन कैसे निकाले
‘के परिणाम बने रहे गो’रे
भगवान् उवाच
कलशा ढ़ारो ‘रे
कल-सा ढ़ारो ‘रे
ऐसे वैसे थोड़े ही न
भगवान् नाम चीन
अरहन पद्म प्रभ
भगवन् चन्द्र प्रभ छोड़
एक और बेजोड़
नाम पा…र…स
स…र…प चीन
सूरज आग
चन्द्रमा दाग
पर्वत पाथर
खारा सागर
हीरा कड़ा
चन्दन कड़वा
श्याह कोयलिया
अँधेरा तले दिया
दुनिया का दिल जीत लाया
पर ‘सोना’ रञ्च भी न पा पाया
सुगंध
बल्कि बड़ी आसानी से पा गया ‘गंध’ उदक
आ… छूते श्री जी-अभिषेक…
नित्य, नियमित, सदैव
दया बेजोड़ ‘भगवन्’
जगह फाँसी, लगा फाँसी ही देते छोड़
सो…
‘जी’ लगाकर बैठे हैं श्री से
आ…उसे लगाते श्री जी से
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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