सवाल
आचार्य भगवन् !
एक दिन आपके प्रवचनांश पढ़ रहा था
दिखाई दिया लिक्खा,
‘के जड़ सार्थक नाम रखती है
जिस तरफ जर यानि ‘कि सम्पति छुपी रहती है
उसी तरफ बढ़ती है जड़
तो भगवन् !
एकेन्द्रिय जड़ की ये परिणति है तो
हम चेतन भी यदि,
धन के पीछे दौड़ें, तो जायज ही है ना
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
भाई
सुनो तो
करो न जल्दी
जब जड़, जड़ के पीछे दीवानी है
तो हम यदि चेतन हैं, तो चेतन के पीछे पड़ें
तब तो जड़ से कुछ सीख ली मानी जायेगी
वरना हम भी जड़…धी सिद्ध होंगे
धसा जा रहा पाताल में
जलधि
सुनो करो ना, जल्दी
विरद जलद आसमाँ छू रहा है
लगा लो
खूब ढ़ेर लगा लो
दिन-रात एक करके
मार-करके
हाथ पैर खूब
बखूब ढ़ेर लगा लो
वैसे, कोई नया कीर्तिमान नहीं रच रहे हम
चींटी भी अपने वजन से
कई गुणा बोझ काँधे ले
एक बड़ा सा ढ़ेर लगाती है
और दीवाल का किनारा छोड़ कर
अचानक किसी के भी पैर ने नीचे आ
दम तोड़ कर ढ़ेर हो जाती है
एक दिन ढ़ेर हमें भी होना है
बस इतनी रियायत
हमारे साथ वर्ती जाती है
‘के हमें कोई जूती
अपने नीचे नहीं दबाती है
हा ! मुआ ये काल
हुआ अब तलक किसका साथी है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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