सवाल
आचार्य भगवन् !
‘अतिथि देवो भव’
ऐसा आप ही कहते है
और भगवान् आगुंतकों के साथ आप थोड़ी
सी भी व्यवहारिकता नहीं निभाते हैं
‘कि और कुछ नहीं
तो बैठने के लिए ही कह दें ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
हाँ, कह तो रहे हैं आप बात लाजमी
पर जो जमीं
हम स्वयम् किराये से लिये रहते है
उसे दूसरे सज्जन को भी किराये पर
दे सकते हैं क्या ?
मैं पूछ रहा हूॅं आपसे
सुनते हैं,
राजाज्ञा उलंघन का दोष सामने आता है
जिसे दूसरी प्रतिमा जो व्रत नाम से चर्चित है
उसे स्वीकारने वाला ग्रहस्थ सन्त भी
किये, किये तो अनाचार हो चलेगा
बग़ैर किये इस अपराध की दिवस और रात्रि में
नव कोटित: आलोचना करता है
और सुनिये,
यदि बैठने के लिए कहूँगा,
तो होगी साथ साथ हाजिर प्रतिपक्षी क्रिया,
उठने के लिए भी कहूँगा,
फिर किसी से देर बैठने के लिए कहूँगा
तो किसी से जल्दी उठने के लिए भी कहूॅंगा
सो अब बन्दर बाँट आ धमकेगी
हॉं…हॉं…मानता हूँ
मन का और बन्दर का एक है
घुल-मिल जायेंगे,
लेकिन बाँट को
कहाँ रक्खूॅंगा
और कहाँ एक बार,
दिन में
बजते नेक बार बारा
जो बाँट से मिलके,
थोड़े कुछ ये उठे पर्वत हैं हाथ के
सपाट कर देगा
सो राख लेने दीजिए लाज मुझे
‘के तलक श्वासों का दीप बुझे
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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