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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -144

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
आप इतने बड़े-बड़े काम करते हैं,
बड़े बाबा को फूल सा उठा के ले आये,
नव निर्मित पाषाण के जिनालय में,
जोरों से चलती हवा पश्चिमी,
उसे अपने निश्वास मात्र उलटे पैर लौटा दिया, हथकरघा के बुझते दीप में,
फिर से लौं टिमटिमा सकी,
आपकी कृपा से,
भारत प्रतिभा…रत बने,
इसके लिये छेड़ी मुहीम,
अपने-आपमें में अनूठी है,
प्रतिस्थली नारी कल्याण के लिये उठाया गया
एक मजबूत कदम है आपका,
लेकिन भगवन् !
इतना कुछ होने पर भी,
आपको छोटे बाबा कह करके पुकारते हैं
सो क्या कारण है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
हओ…
पूछ ऊपर करके,
बिच्छू का किरदार सर ऊपर धर-करके
आसमान को टिकाये फिरता है
लगा करके अपने पीछे अनेक काम’ना
गिरगिट के जैसा सिर उठाए फिरता हूँ
और क्या कहती,
कामना पे कामना,
हुआ पूरा ‘एक’ काम ना
ये तो सिर झुकाने की बात है
मृग की भाँती,
‘भाग रहा हूँ’
जग की भाँती
बन रहा लेते गुरु पंच परम नाम ना
ये तो सिर झुकाने की बात है
कह रहा था जगत् ‘रहना जगत’
किंतु, परन्तु उलझा हूँ
‘काम-बड़े’ कोई तीर थोड़े ही मार लिया
टेढ़ी खीर भी नहीं, ‘काम बड़े’ बनाना
सदलगा गांव की छोटी से छोटी जानती है
जाने मति परिणति मेरी,
क्योंकर नहीं मानती है
सांझ होने से पहले,
समेटना भी पड़ती है दुकान फैली,
अब तक अंधेरे में गया,
पाप गर्तों में उठता गिरता उसके पास
लेकर उसकी उड़ाई चादर अपनी नादानिंयों के कारण करके मैली
ये जो मैंने अपने हिस्से में ‘मैं ली’
सचमुच उस ही के कारण मैली ये मेरी थैली
उससे रीती कर सकूँ,
यही कामना है,
और बाबा यानि ‘कि वाह वाह
तो वह तो बड़े बाबा के साथ ही फबती है
छोटों के साथ लग करके तो,
बच्चों के लिए जैसे
सांत्वना पुरस्कार देकर प्रोत्साहित करते है
वैसी ही है,
सपने में भी मैं सच्ची न मान लूँ
यही कामना है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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