सवाल
आचार्य भगवन् !
माँ श्री मन्ति बतातीं थीं
‘कि पीलु, गिनी, तोता, मरि, ने कभी नवजात अवस्था से ही,
दूध पानी के लिये,
रो… धोकर माँग नहीं रक्खी,
दिन हो या रात,
तो भगवन् !
सुबह तक आपके भूख प्यास नहीं लगाती थी
सच,
आपकी साधना बचपन से ही चोटी की रही,
धन्य है आप ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो तो,
यदि कोई गाड़ी
मंजिल तलक
अरुक, अथक
तेल पानी माँगे बगैर
दे करा सैर
तो गाड़ी की नहीं,
गाड़ी वाले की खूबी
सो मानता हूँ,
माँ श्री मन्ती और पिता मल्लप्पा जी
दोनों ही अद्भुत साधक थे
चूँकि पाठक थे कक्षा दूजी
था अबोध मैं
धन्य…
रहा जन्मों का पुण्य
जो नियति द्वारा भेजा गया था
इन ग्रहस्थ सति सन्तों की गोद में
इन्होंने बैठा रखा मुझे अपनी पलकों पे
मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ते थे पल…को ये शुक्रगुजार हूँ इनका में
कर्जदार हूँ इनका
बस भगवन् से यही अरज
‘के मुझसे पहले,
मंजिल इन्हें मिले
सकल न सही,
पर शकल तो चुके करज
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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