सवाल
आचार्य भगवन् !
गुरुणां-गुरु ज्ञान सागर जी को,
जब अपना आचार्य पद बोझ लगने लगा था
तब उन्होंने आपसे “दक्षिणा लाके दो”
सुनते हैं,
ऐसा कहा था
तब आपने क्या प्रतिक्रिया प्रदर्शित की थी
किसकी आँखों में आँसू थे
क्या आचार्य ज्ञान सागर जी की आँखें भी
डबडबा आई थी ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
तलक देर
मेरे कानों में गूंजता रहा
दक्षिणा लाके दो…
दक्षिणा लाके दो…
दक्षिणा लाके दो…
फिर सुध-बुध लाने कहा
मैंने
दक्षिण से आके
आपके लिये
अपने आप के लिये,
तो सुपुर्द कर ही रक्खा है
अब आपको मेरे पास ऐसा,
और क्या दिक्खा है
‘के जिसे आप ला कर देने के लिये कह रहे हैं
तब भगवन् बोले थे,
‘के लॉकर नहीं चाहिये
आप आकर मेरा पद सँभालिये
तो मैंने कहा
फिर भी सँभाला जा सकता है
अंगद
पद
‘अन-गद’
मेरे बस की न बात
और लगी आँखों से झिर लग बरसात
मेरा पलड़ा देख के भारी
गुरुदेव की आँखों ने कमान संभाली
जल कण जुड़ने लगे
आँख सीपी से मोती बिछुड़ने लगे
मैंने पहला ही मोती अंजुल में किया
मानो शपथ उठाने जल ही लिया
हारा मैं,
जीते गुरु जी
रहें जीते गुरु जी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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