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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -48

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
माँ तो आँखों में पानी भरे ही रखती है
उसे आपने दैगम्बरी दीक्षा,
मैं लेना चाहता हूँ,
यह कैसे बतलाया था
भगवन् !
कृपया बताईये कैसे मनाया था
माँ का दिल तो बड़ा ही नाजुक होता है
चक्कर खाकर जमीन पर गिर गई होगी वो तो
होश में आकर फिर के
फिरके-विरह के व्यूह से घिर गई होगी वो तो ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ
दूसरी कक्षा में सबसे पहला दाखिला,
उसी का था
मदालसा का ‘किसा’
कानों के रास्ते से,
जा सीधा दिल में,
कुछ धस के था वसा
और मनाने में लगती देर ना
बस फेरना
आखर मा…ता…जी
जी…ता…माँ
सो मैंने कहा,
आखरी दूसरी माँ रुला रहा हूँ
तेरे ही गर्भ में लिया प्रण निभा रहा हूँ
साफ करने जा रहा हूँ रास्ता
‘आगे चल के’
तुझे भी ले चलूँगा
मुझे तेरे प्यार-दुलार का वास्ता
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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