सवाल
आचार्य भगवन् !
कागज-कलम आपके कर कमलों का
इतना प्यार-दुलार पाते हैं
‘के थोड़ी इनमें ईर्ष्या सी होने लगती है
इन के पास ऐसा क्या है भगवन् ?
जो आपका मन मोह लेते हैं ये दोनों ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
काग…ज
एकाक्ष पक्षपात से हट के है कागज
का…गज
मोति, दाँत से बढ़ के है कागज
पलटते ही आखर
जग…का
वसुधैव कुटुम्बकं की सद्भावना से
भरता है कागज
और तो और
कहा गया ‘पन्ना’ इसे
ध्यान से सुनना सखे !
कलम की बात
कल…मा
मा यानि ‘कि नहीं,
मतलब सीधा सादा है
‘के कल है नहीं किसी के हाथ
सो आज राख
राखो साख
‘के लिखा गया आखर ढ़ाई भी
हो कल…माँ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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