सवाल
आचार्य भगवन् !
देेखते है,
हर बार आचार्य ज्ञान-सागर जी महाराज के
समाधि दिवस पर, आप गुरुदेव को कुछ न कुछ चेतन सुमन समर्पित करते हैं ।
सो भगवन् ! माँ गुरु मति नाम देके आपने,
अपने गुरुदेव को
आर्यिका-कृति-पहली समर्पित की,
समझ में आता है,
लेकिन मुनिराज कृति-पहली,
श्री समय सागर जी को भी,
क्या गुरुदेव के लिए
समर्पित करने वाला नाम दिया है,
यदि हाँ, तो छुपा कर रक्खा है,
पता दीजिये भगवन् बता दीजिये भगवन्
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिए,
मेरा है ही क्या ?
मैं भी तो उन्हीं का
क्या समय
नियम
योग
सुधा’दी’
मैं तैयार हूँ उन्हीं के ऊपर
करने न्योछावर वो अष्टम वसुधा भी
वैसे बड़ा प्यारा शब्द है ‘मत’
ये शब्द तम शब्द के अक्षर पलटते ही बनता है,
मिथ्यातम को मत यानि ‘कि मना करने वाला
ऐसा शख्स,
जो प्रकाश में आता नहीं है
और न ही प्रकाश में आने की चाहत रखता है
बस प्रकाश बाँटता रहता है
वह परम गुरुदेव के अलावा
और दूसरा कोई नहीं है
और समयसार, नियमसार, योगसार,
सभी परमागम हैं
समय, नियम, योग धारण करने वाले भगवन्
और उनके सार के लिए बतलाने वाले आगम
अब गुरु के प्रति श्रद्धा सुमन चढ़ाने की बारी थी
तो मैंने नहीं,
ये तो पूर्वाचार्यों का ही नजरिया है
‘के सार के अक्षर पलट ‘ग’ गुरु बीजाक्षर स्वरूप पूर्व बिठाया सो नया शब्द बना
गर… सा
अब छोटे ‘उ’ की मात्रा चढ़ाते ही
खुल पड़ता है राज
गुरु…सा
यूँ-ही जारी रखिए अविरल कृपा बरसा
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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