बाबा-हरदा
शान्ति नाथ की पूजन
मूरत अति यह न्यारी है ।
मूरत अति यह प्यारी है ।।
बाबा-हरदा शान्ति नाथ की,
मूरत अतिशय कारी है ।
यहाँ सवाली आते जो
झोली खाली आते तो
लिये न झोली खाली जाते,
मना दीवाली जाने वो ।।स्थापना।।
द्वार सवाली आये हैं ।
जल कलशे भर लाये हैं ।।
अपना लो करके करुणा,
बना कृपा-कर लो अपना ।।
द्वार सवाली आये हैं ।
घट चन्दन भर लाये हैं ।।
अपना लो करके करुणा,
बना कृपा-कर लो अपना ।।
द्वार सवाली आये हैं ।
अक्षत-थाल सजाये हैं ।।
अपना लो करके करुणा,
बना कृपा-कर लो अपना ।।
द्वार सवाली आये हैं ।
पुष्प थाल भर लाये हैं ।।
अपना लो करके करुणा,
बना कृपा-कर लो अपना ।।
द्वार सवाली आये हैं ।
चरु परात भर लाये हैं ।।
अपना लो करके करुणा,
बना कृपा-कर लो अपना ।।
द्वार सवाली आये हैं ।
दीपाली घृत लाये हैं ।।
अपना लो करके करुणा,
बना कृपा-कर लो अपना ।।
द्वार सवाली आये हैं ।
धूप-गन्ध दश लाये हैं ।।
अपना लो करके करुणा,
बना कृपा-कर लो अपना ।।
द्वार सवाली आये हैं ।
फल परात भर लाये हैं ।।
अपना लो करके करुणा,
बना कृपा-कर लो अपना ।।
द्वार सवाली आये हैं ।
द्रव्य-थाल भर लाय हैं ।।
अपना लो करके करुणा,
बना कृपा-कर लो अपना ।।
कल्याणक
सपने सोलह देखे माँ ने ।
लगा कूख आ शिशु बतियाने ।।
जन्म समय अभिषेक हुआ है ।
मानस-वृत्ति भाँति कछुआ है ।।
रतन चार-दश, नव निधि छोड़ी ।
प्रीत शिखर-गिरि-कन्दर जोड़ी ।।
कर्म चार कर दिये चूर हैं ।
केवल ज्ञानी एक सूर हैं ।।
ध्यानानल-सब कर्म जला-के ।
हुये निवासी सिद्ध शिक्षा के ।।
दोहा
दुखड़ा सुनने की कल्ला
नाम तिरे हे एक ।
और कहाँ जाऊ तुम्हीं,
सुन लो, ए ! दिल नेक ।।
नहीं विश्वास अकेला है ।
मुझे भरोसा पूरा है ।।
तुम रहते हो मेरे साथ,
ले हाथों में मेरा हाथ ।।
सूरज नहिं आने पाता,
मुझे जगाने आ जाता ।।
सत् संगत साबुन से तूँ,
रोज मुझे नहला जाता ।।
लाजो-हया आँज काजल,
देता मुझे दिटौना है ।।
दिखा आइना, करे मुझे,
सुन्दर और सलोना है ।।
ज्ञान रूप-अमृत पल पल,
अंजुली कर्ण पिलाता है ।
सब्र खिलाये, पर न कभी,
चुगली मुझे खिलाता है ।।
खेल खिलाये मुझे न कम,
जीत दिलाये हार स्वयम् ।
देख मुझे जख्मी तू चीखे,
करता अपनी आँखे नम ।।
पढ़ा मुझे कक्षा दूजी,
दृग् मेरी खोली तीजी ।
कारण तुम परिणति मेरी,
रहे सहजता रस भींजी ।।
चाँद-सितारे बीच मुझे,
दे थपकिंयाँ सुलाता है ।
सोये गई रात आधी,
रही जाग तू जाता है ।।
दोहा
जीना बिन तेरे मुझे,
नहीं गवारा देव ।
में मछली जल आप है,
रखना ध्यान सदैव ।।
चालीसा
माँ रेवा-तट सत् शिव सुन्दर ।
जहाँ गगन चुम्बी जिन मन्दर ।।
पत्थर के जिन-मन्दिर सारे ।
दूजे सूरज-चाँद-सितारे ।। 1 ।।
है बारीक-बड़ी नक्कासी ।
शिला-शिला सुर-शिल्पि तरासी ॥
शिखर-शिखर ध्वज ‘भी’ लहरायें ।
कीर्ति-जैन-शासन-की गायें ।। 2 ।।
स्तम्भ देखते-ही बनते हैं ।
देव-शिल्पि-बगलें तकते हैं ॥
बड़े-बड़े सुन्दर दरवाज़े ।
जिनमें चित्र-विचित्र विराजे ॥ 3 ॥
दिखे पीठ कछुएँ की जैसी ।
दिव्य-देहरी कुछ-कुछ वैसी ।।
फर्श द्वीप नन्दीश्वर जैसा ।
लगे-बहा पानी-सा पैसा ॥ 4 ॥
गुम्बद-चाबी रखी अनूॅंठी ।
साथ नगीने-भाँत अंगूठी ।।
बात कहें क्या गर्भ-गृहों की ।
रंगत अद्भुत बड़ी अनोखी ॥ 5 ॥
सूर्य रूप-धर कई चमकता ।
भामण्डल कुछ ऐसा लगता ।।
चौषठ-चौषठ चॅंवर अनोखे ।
मूँगा-मणि-माणिक रत्नों के ॥ 6 ॥
कहते जगत्-तीन इक स्वामी ।
शोंभे छत्र-तीन अभिरामी ।।
हरने वाले मन जन-जन-के ।
सिंहासन है वरन-वरन के ॥ 7 ॥
रखीं सलीके से मन-हारीं ।
मंगल-द्रव्य चाँद से प्यारीं ।।
घण्टे कहीं न ऐसे दूजे ।
नाद-दूर-तक जिनका गूँजे ॥ 8 ॥
हत-करघा से बना हुआ है ।
दिव्य चॅंदोवा तना हुआ है ।।
अन्तर् अन्धर हरने-वाली ।
गो-घृत वाली दिव्य दिवाली ॥ 9 ॥
आज स्वर्ग शिव-इक जहाज हैं ।
सभी विराजे ग्रन्थ राज हैं ।।
करते यजन नाच-के गा-के ।
देव साथ परिकर निज ला-के ॥ 10 ॥
साढ़े पाँच कोटि-सन्यासी ।
हुये यहीं से शिव अधिशासी ।।
नदी किनारे ध्यान लगा के ।
खोया आत्म-राम निज पा-के ॥ 11 ॥
यहीं नदी से निकलीं प्रतिमा ।
सुर-गुरु जिन कह सकें न महिमा ।।
जब निकलीं तब देव पधारे ।
जब निकलीं तब बजे नगाड़े ॥ 12 ॥
हिरण गया बांये से दायां ।
जब निकलीं तब उत्सव छाया ।।
दिखी पिलाती अमरित गैय्या ।
जब निकली तक छाई छैय्या ॥ 13 ॥
खबर कान जिन-जिन तक आई ।
नदी-कछारे दौड़ लगाई ।।
देखी प्रतिमा रहे देखते ।
टेके घुटने, माथ टेकते ॥ 14 ॥
बड़ा विशाल समुन्नत माथा ।
गाता धर्म अहिंसा गाथा ।।
बाँकी भ्रू धनुषीं अल्बेलीं ।
दूँज चाँद की सखा सहेलीं ॥ 15 ॥
कमल झील से नेन सलोने ।
नैना-मृग, आगे जिन-बोने ।।
नासा चम्पक सी देखो-ना ।
उसपे-दृष्टि सुहागे-सोना ॥ 16 ॥
भाँति बिम्ब फल अधर अनूठे ।
दल-उत्पल आगे-जिन झूठे ।।
ग्रीवा शंखावर्त सरीखी ।
सुन्दर चिबुक अनोखी नीकी ॥ 17 ॥
चेहरे हास मन्द-मृदु खेले ।
गोल कपोल बड़े अलबेले ।।
कर्ण लोल छूते-से काँधे ।
काँधे कद-पर्वत-आराधे ॥ 18 ॥
अँधियारे जग एक उजाला ।
हृदय-थान श्री वत्स निराला ।।
पद्मासन मुद्रा अति प्यारी ।
प्रति-मा प्रतिमा अतिशय कारी ॥ 19 ॥
गाँव-गाँव प्रभु-दर्श-तृषातुर ।
पाँव-पाॅंव ले जाने आतुर ।।
पर-प्रभु-तीन, गाँव कई सारे ।
लड़-भिड़-कर आखिर जब हारे ॥ 20 ॥
किया सभी ने एक फैसला ।
रख गाड़ी में इन्हें दो चला ।।
बिन सवार, नन्दी ले जाके ।
ग्राम रुकेंगे, जिस भी आके ॥ 21 ॥
वहाँ बनेगा मन्दिर न्यारा ।
होगा तीर्थ धाम-वह प्यारा ।।
तीनों प्रतिमाएँ चल दीनी ।
केशर बरसे झीनी-झीनी ॥ 22 ॥
बाजा कौन नहीं तब बाजा ।
तलक यहाँ बादल भी गाजा ।।
बाजे ढ़ोल, नगाड़े बाजे ।
भाँत-भाँत इक-तारे बाजे ॥ 23 ॥
ढ़पली बाजी, तुरही बाजी ।
मार-रही झांझर भी बाजी ।।
एक तान मुरली ने छेड़ी ।
आई शहनाई-लो दौड़ी ॥ 24 ॥
रिम-झिम रिम-झिम बुंदिया आईं ।
जुवाँ-वृद्ध-बालक मन-भाईं ।।
झूम-झूम-झुक नाचें सारे ।
घूम-घूम-रुक नाचें सारे ॥ 25 ॥
नाचें कोई एक-पैर-पर ।
नाचें दोई, बैर छोड़-कर ।।
कोई दे-दे ताली नाचे ।
कोई लिये दिवाली नाचे ॥ 26 ॥
ध्वज ले जैन नाचता कोई ।
स्वर-ले जैन वाँचता कोई ।।
लहरे जुबाँ मन्त्र नवकारा ।
गूॅंजे-तलक-दूर जयकारा ॥ 27 ॥
गाड़ी इक नेमावर ठहरी ।
गूॅंज-उठी जय-हो सुर लहरी ।।
देव-देव परमेश्वर जिसमें ।
बाबा आदि जिनेश्वर जिसमे ॥ 28 ॥
पूरण करने वाले मंशा ।
सार्थ-वाह-रथ-एक अहिंसा ।।
निशि मावस जग, भोर-उजाले ।
तीन तीन जग इक रखवाले ॥ 29 ॥
लाज भक्त हर रखने वाले ।
ताज भक्त-सर रखने वाले ।।
हाथ मुकाम थमाने वाले ।
बिगड़े-काम बनाने वाले वाले ॥ 30 ॥
और गाड़ियाँ दो बढ़ चाली ।
और-और दिश् में मुड़ चाली ।।
खाते-गाँव रुकी इक आके ।
दूजी ठहरी, हरदा जाके ॥ 31 ॥
कच्छप चिह्न बड़ा मन-हारी ।
खाते-गाँव धन्य नर-नारी ।।
अश्रु-खुशी-के पा दृग् भींजे ।
मुनि-सुव्रत-जिन जिन-पे रीझे ॥ 32 ॥
सहज-सरल, जो भोले-भाले ।
सीधे-सादे बड़े निराले ।।
श्रावक ऐसे ही हरदा-के ।
दया हृदय से जिनके झाँके ॥ 33 ॥
लाजवन्ती लख-लाज लजाये ।
गुल मुस्कान इन्हीं से पाये ।।
रीझे जिन-पे शान्ति-जिनेशा ।
रहें न जिन-के भक्त परेशाँ ॥ 34 ॥
रहे लगा भक्तों का ताँता ।
उर-दयाल ये आप बताता ।।
यहाँ माँगना नहीं जरूरी ।
मन्नत हो जाती है पूरी ॥ 35 ॥
यहाँ आँसु दो, ले जो छलका ।
मन उसका हो जाता हल्का ।।
दृढ़-सम्यक्-दर्शन इक जरिया ।
इन्हें देख छू स्याह-नजरिया ॥ 36 ॥
झाँके बगलें सभी बलाएँ ।
बाबा क्या इक नजर उठाएँ ।।
छाॅंव हाथ क्या बाबा आती ।
दर-किनार हो बाधा जाती ॥ 37 ॥
पाप आज के या-हों कल के ।
आप दर्श-से रहें पिघल के ।।
गुस्सा पग उलटा रख लेता ।
मुखड़ा बस इनका लख लेता ॥ 38 ॥
छल फरेब टिक देर न पाये ।
लोभ यहाँ आ मुँह की खाये ।।
गुम हो जाता गुमाँ कही-पे ।
हो जीवन खुशनुमा यही पे ॥ 39 ॥
गिनें…गिने जा सकें सितारे ।
दिखे न पे जश-आप किनारे ।।
बना हाथ सो श्री फल अपने ।
लूँ विराम, संपूरो सपने ॥ 40 ।।
दोहा
सभी तीन जिन-बिम्ब ये,
अपने जैसे एक ।
अश्रु किसी की आँख में,
अब तक सके न देख ॥
आरती
हरदा वाले बाबा का दरबार,
एक साँचा है ।
जिसने नँचाया संसार,
वो कर्म नाँचा है ।
उतारते ही आरती इक बार ।
हरदा वाले बाबा का दरबार,
एक साँचा है ।
जिसने नँचाया संसार,
वो कर्म नाँचा है ।
आँखों में मोती लेके ।
हाथों में ज्योति लेके ।।
उतारते ही आरती एक बार ।
हरदा वाले बाबा का दरबार,
एक साँचा है ।
जिसने नँचाया संसार,
वो कर्म नाँचा है ।
पाँवों में घुँघरु लेके ।
भावों में खुशबू लेके ।।
उतारते ही आरती इक बार ।
हरदा वाले बाबा का दरबार,
एक साँचा है ।
जिसने नँचाया संसार,
वो कर्म नाँचा है ।
रोम-रोम पुलकन लेके ।
सौम्य-सोम मुनि मन लेके ।।
उतारते ही आरती इक बार ।
हरदा वाले बाबा का दरबार,
एक साँचा है ।
जिसने नँचाया संसार,
वो कर्म नाँचा है ।
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