चालीसा बाबा विद्वास
चन्दा बाबा
‘विश्वास धाम’
पूजन
कौन हमारा,आप अलावा ।
देेव-देव प्रभु चन्दा बाबा ।।
भक्त बुलाते, आको भगवन् ।
उलझी,सुलझा जाओ उलझन ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
कलशे भर लाये हैं जल के ।
धार लगा दृग् मेरे छलके ।।
पाद-मूल में मुझे बिठा लो ।
पथ में काँटे, गोद उठा लो ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भर लाये घट घिस संदल के ।
धार लगा दृग् मेरे छलके ।।
पाद-मूल में मुझे बिठा लो ।
पथ में काँटे, गोद उठा लो ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय संसारताय विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।
भर लाये परात तण्डुल के ।
धार लगा दृग् मेरे छलके ।।
पाद-मूल में मुझे बिठा लो ।
पथ में काँटे, गोद उठा लो ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।।
पिटार भर लाये हैं गुल के ।
धार लगा दृग् मेरे छलके ।।
पाद-मूल में मुझे बिठा लो ।
पथ में काँटे, गोद उठा लो ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।।
घृत चरु लाये आये चल के ।
धार लगा दृग् मेरे छलके ।।
पाद-मूल में मुझे बिठा लो ।
पथ में काँटे, गोद उठा लो ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
लिये दिये घी-गायन-गिर के ।
धार लगा दृग् मेरे छलके ।।
पाद-मूल में मुझे बिठा लो ।
पथ में काँटे, गोद उठा लो ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।
सुगन्ध लाये कुण्ड अनल के ।
धार लगा दृग् मेरे छलके ।।
पाद-मूल में मुझे बिठा लो ।
पथ में काँटे, गोद उठा लो ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।
थाल बड़े लाये श्री फल के ।
धार लगा दृग् मेरे छलके ।।
पाद-मूल में मुझे बिठा लो ।
पथ में काँटे, गोद उठा लो ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा।।
लाये चोखे द्रव्य न हलके ।
धार लगा दृग् मेरे छलके ।।
पाद-मूल में मुझे बिठा लो ।
पथ में काँटे, गोद उठा लो ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
कल्याणक-अर्घ
गर्भ पूर्व से रत्ना बरसे ।
बरसा देव, पाय नर हरसे ।।
सोलह स्वप्न दिखा के माँ को ।
बोले हम आये माँ जागो ।।
ॐ ह्रीं चैत्र कृृष्ण पंचम्यां गर्भ-कल्याणक-प्राप्ताय श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
बजी बधाई नृप आँगन में।
आज प्रभु भू-मानव जनमे ।
पलक मात्र सौधर्म पधारा ।
ऊपर शीष मेरु की धारा ।।
ॐ ह्रीं पौष्य कृष्ण एकादश्यां जन्म कल्याणक प्राप्ताय श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
बैठे रहे न भाग भरोसे ।
शीघ्र छके विष से विषयों से ।।
अम्बर आडम्बर तज दीना ।
आ वन में कच लुंचन कीना।।
ॐ ह्रीं पौष-कृष्ण-एकादश्यां दीक्षा कल्याणक प्राप्ताय श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्म घाति जैसे ही विघटे ।
सहसा नंत चतुष्टय प्रकटे ।।
नामनुरूप लगा सम-शरणा ।
वैर छोड़ बैठे सिंह हिरणा ।।
ॐ ह्रीं फाल्गुुन-कृष्ण-सप्तम्यां ज्ञान-कल्याणक प्राप्ताय श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
समोशरण से बाहर आये ।
ध्यान अगन में कर्य जलाये ।।
अश्रु विमुक्ति राधिका पोंछे ।
समय मात्र में शिव जा पहुँचे ।।
ॐ ह्रीं फाल्गुन-शुक्ल-सप्तम्यां मोक्ष-कल्याणक प्राप्ताय श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
दोहा
विद्वासा सिध-तीर्थ के,
चन्दा प्रभु भगवान्,
लाज भक्त की राखते,
आ करते गुण गान ।।
भव सागर तारण तरणा ।
चन्दा बाबा सम-शरणा ।।
बाबा कमल विराजे हैं ।
नत राजे महराजे हैं ।।
चमके सूरज सा माथा ।
धनुष भ्रू सहोदर नाता ।।
कर-तलिंयाँ, पग-तलियाँ भी ।
भाँत सरोज न अँखिंयाँ ही ।।
कर्ण लागते काँधे से ।
अधर बिम्ब फल के जैसे ।।
चम्पक सी नासा प्यारी ।
अंग-अंग छव मनहारी ।।
बैठे तर अशोक तर आ ।
धन ! अशोक-तर पा किरपा ।।
आसन काँधे लागे हैं ।
भाग सिंहों के जागे हैं।।
सात सात भव आईना ।
अर भा-मण्डल घाँई न ।।
झालर मणि-माणिक झूमें ।
सर पर अधर छतर घूमें ।।
गन्धोदक बरसा कम ना ।
मन्द-मन्द बहती पवना ।।
बरसा पहुपन लासानी ।
दुन्दुभि देव दिव्य वाणी ।।
चौषट चँवर अमर ढ़ोरें ।
कर्म कलंक अमिट घोरें ।।
सभा भरीं बारा-बारा ।
त्रिभुवन इक साँचा द्वारा ।।
कान लगा सुनते दुखड़ा ।
सुनते, बने काम बिगड़ा ।।
श्री फल एक चढ़ाना है ।
पग निर्बाध बढ़ाना है ।।
मोहन-धूल न पड़े गले ।
काल-सर्प इक योग टले ।।
सुबहो साँझ दिया बाती ।
छू-मन्तर साढ़े साती ।।
प्रीत लगाई की सेवा ।
रोग विदाई जाँ लेवा ।।
कौन सितारे गिन पाया ।
मौन हमारे मन भाया ।।
शिशु मैं हुई भूल काफी ।
प्रभु कृपया दे दो माफी ।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र-प्रभ जिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
दोहा
देर हमारी ओर से,
प्रभु तो दया निधान ।
बिन मांगे इतना दिया,
कह दे जो अरमान ।।
चालीसा
दोहा
सुमरण श्री भगवान् का,
शरण एक कलि-काल ।
आ कुछ समय निकाल के,
नर-भव करें निहाल ।।
चौपाई
प्रभ चन्दा सुरखी विद्वासा ।
संकट-चूर, पूर-अभिलाषा ।।
प्रभ चन्दा मूरत मनहारी ।
विहर-अमंगल, मंगल-कारी ॥१॥
प्रतिमा वर्ण सफेद निराला ।
दर्श मात्र दृग् भरे उजाला ।।
ताताँ लगा न रहता यों ही ।
प्रभु चन्दा सुनते दुखिंयों की ॥२॥
प्रभु चन्दा हैं माँ के जैसे ।
कब माँ को प्यारे हैं पैसे ।।
क्या गरीब क्या पैसे वाला ।
बाबा को हर बच्चा प्यारा ॥३॥
रिश्तों में रिश्ता माँ बेटा ।
रहे मास-नव पूरे जेठा ।।
सिर्फ समझती माँ बच्चे को ।
लगा लगन बाबा से देखो ॥४॥
बिन बिचौलिये पण्डा, काजी ।
बाबा जनन्त देने राजी ।।
मनन्त रखने की बस देरी ।
दिश्-दिश् गूँज उठे जय-भेरी ॥५॥
काले-काले बादल छाये ।
दुख बरसात न होने पाये ।।
बाबा कृपा हवा बन आती ।
दुख के मेघ उड़ा ले जाती ॥६॥
देख बिछे राहों में काँटे ।
बाबा अपनी गोद उठाते ।।
तिनके तोड़ें और बलाएँ ।
सिर अपने ले ही लें माएँ ॥७॥
ताप पाप संताप सताते ।
बाबा बन बदली आ जाते ।।
छा लेते तरुवर सा छाता ।
शत्रु देखता-मुँह, रह जाता ॥८॥
लगती ठोकर, गिर नहिं पाते ।
बाबा थामें-बीच, बताते ।।
सिर्फ न दीप थमा जाते हैं ।
साथ-साथ चलते आते है ॥९॥
बाबा हाथ लगे क्या माटी ।
बन मटकी सर-माथ सुहाती ।।
पानी कीच बनाती कल थी ।
प्यास बुझाती किस्मत पलटी ॥१०॥
कात कपास भाँज के पोनी ।
अनहोनी को कर दें होनी ।।
जा नभ से बतयाती डोरी ।
बाबा कृपा न थोड़ी-मोड़ी ॥११॥
काँच आईना करना आता ।
बाँस मुरलिया जुड़ता नाता ।।
बाबा ना ऐसे वैसे हैं ।
कैसे ? बस अपने जैसे हैं ॥१२॥
ढ़ेर पाप पर्वत का लागा ।
कर्म सतायें बगैर नाँगा ।।
बाबा कृपा वज्र बन आये ।
पर्वत पाप समूह मिटाये ॥१३॥
आँख तरेरे साढ़े साती ।
राह दूर तक नजर न आती ।।
बाबा दृष्टि उठा दें थोड़ी ।
मंजिल आती दौड़ी-दौड़ी ॥१४॥
काल सर्प इक योग सताये ।
रह रह ढ़ाये-कहर, रुलाये ।।
बाबा सिर क्या ढ़ारी धारा ।
गम हो जाता, यम को प्यारा ॥१५॥
ढ़ाये अत्त ऊपरी बाधा ।
मन्तर-मूठ निशाना साधा ।।
रज प्रभु-पाद-माथ क्या लागी ।
दुष्ट शक्ति पग-उल्टे भागी ॥१६॥
चैन न रैन करार न दिन में ।
दाह वेदना ऐसी तन में ।।
ज्योत अखण्ड बालनी घी की ।
छवि रोगों की पड़ती फीकी ॥१७॥
रिश्ते तो आते अनगिनती ।
बनते बनते बात बिगड़ती ।।
बस आना है नैना सीले ।
दिखें हाथ बच्चों के पीले ॥१८॥
टुकाँ धकेले भी ना चलती ।
जाने ली पाँसे कब पलटी ।।
जय बाबा विद्वास जपा बस ।
मनी दीवाली, मिटी अमावस ॥१९॥
करके एक रात दिन बच्चे ।
अंक नहीं ला पाते अच्छे ।।
‘प्रभु विद्वास जयतु’ जप मंत्रा ।
सरसुति आप विराजें कण्ठा ॥२०॥
करें भलाई, मिले बुराई ।
और न कोई दुश्मन भाई ।।
निरखा क्या बाबा का द्वारा ।
हो आपस में भाई-चारा ॥२१॥
जाने चीज कहाँ पे खोई ।
अश्रु न आते बस, मन रोई ।।
आना, इक नारियल चढ़ाना ।
रहे खुशी का नहीं ठिकाना ॥२२॥
अब-तक गुजरी भली, न जाने ।
अब क्या होगा वृद्ध-कहाने ।।
चिंता ऐसी और फितूरी ।
बना रखे भक्तों से दूरी ॥२३॥
करूँ न कुछ, बस बैठा खाऊँ ।
क्यूँ न खुद-कशी कर मर जाऊँ ।।
बस बाबा से मिल क्या आयें ।
ऐसे पाप विचार पलायें ॥२४॥
जाँ लेवा दुर्घटना विघटी ।
जीवन चलती फिरती मिट्टी ।।
बस आ जाना पता पूछते ।
बाबा मुर्दे जान फूँकते ॥२५॥
मन प्रश्नों में प्रश्न उठाये ।
उत्तर समय मूक बन जाये ।।
नग्न दिगम्बर देखें मुद्रा ।
आप लगें तर प्रश्न समुद्रा ॥२६॥
आय अठन्नी, खर्च रुपैय्या ।
डग-मग डोले जीवन नैय्या ।।
केवल श्रद्धा-सुन चढ़ावा ।
जेब छलकती भर दें बाबा ॥२७॥
तलवे घिसे लगाते फेरी ।
न्याय मिला न कोट कचेरी ।।
मुख अब करना बाबा द्वारे ।
निकलेंगे मुख जय-जय-कारे ॥२८॥
करते यहाँ, वहाँ प्रण टूटे ।
नशा छोड़ते, जीवन रूठे ।।
सिर्फ देहरी छूना आके ।
छूटे नशा, फिरें ना आँखें ॥२९॥
धू-धू कर घर-खलिहाँ जलते ।
उड़ आ चिनगारी के लगते ।।
छिड़का मंत्र नाम-तुम पानी ।
अग्नि समानी, हुई न हानी ॥३०॥
झूठा नाम किसी ने फाँसा ।
दूर-दूर तक दिखे न आशा ।।
बाबा नाम फरते मनका ।
दिखे चोर दाड़ी में तिनका ॥३१॥
लाठी किसी भक्त का चश्मा ।
दर बाबा का करे करिश्मा ।।
एक बार बस चल-कर आना ।
उठे न फिर विकल्प घर जाना ॥३२॥
छोड़े, विष फुस्कार बहाने ।
घेर मेर फन अपना ताने ।।
ऐसा सर्प सिर्फ प्रभु जपते ।
निरखे वामी कँपते-कँपते ॥३३॥
ढ़ेर भिनभिनाती मधुमाखी ।
करें दूर से ताकाँ-झाँकी ।।
बाल न कर पायेंगी बाँका ।
नाम जुबाँ पर प्रभु जो राखा ॥३४॥
रस्ते रस्ते वृक्ष उखाड़े ।
पागल हो हाथी चिंघाड़े ।।
‘बाबा’ लिये नाम के आगे ।
दुम दावे वन तरफी भागे ॥३५॥
हवा हिमानी ओला पानी ।
नाव बीच मँझधार पुरानी ।।
प्रभु विद्वास सहाय जपा ज्यों ।
बेड़ा पार, हुई किरपा त्यों ॥३६॥
दूर दूर तक अटवी सूनी ।
झपटे सिंह ले पञ्चे खूनी ॥
होता तेरा नाम सहाई ।
सिंह देता जा माँद दिखाई ॥३७॥
हुआ बादलों का फट पड़ना ।
छुआ जवाँ भी, जुबाँ पलटना ।।
जपा जाप जय प्रभु विद्वासा ।
भरने लगे गाँव फिर श्वासा ॥३८॥
स्याह अँधेरा साहस तोड़े ।
सूना-पन खाने को दौड़े ।।
जय बाबा विद्वास सुमरना ।
कदम कदम बढ़ना मत डरना ॥३९॥
ऐसा मेरा बाबा वैसा ।
सूरज दीप दिखाने जैसा ।।
लूँ विराम सो शीष झुका के ।
आता हूँ बाबा अब जा के ॥४०॥
दोहा
आप सिवा कोई नहीं,
मेरा तीनहिं लोक ।
जाते जाते दे रहा,
बाबा फिर के ढ़ोक ।।
आरती
हम भक्तों के काशी काबा ।
देव-देव प्रभु चन्दा बाबा ।।
घी लाये गिर गैय्या माई ।
बाति भाँज कपास बनाई ।।
आरत मिटें, आरती करते ।
ज्योत अखण्ड तभी प्रकटाई ।।
कौन हमारा आप अलावा ।
देव-देव प्रभु चन्दा बाबा ।।
पहली आरति गरभ उतारूँ ।
बरसा रतन, गरभ दुख टारूँ ।।
दूूसरी आरति जनम उताऊँ ।
मेरू न्हवन, जनम दुख टारूँ ।।
तीसरी आरति त्याग उताऊँ ।
वन आगमन, राग निरवारूँ ।।
चौथी आरति ज्ञान उताऊँ ।
अर सम शरण, गुमान निवारूँ ।।
पाँचवीं आरति मोक्ष उताऊँ ।
आप भाँत कल मोक्ष पधारूँ ।।
हम भक्तों के काशी काबा ।
देव-देव प्रभु चन्दा बाबा ।।
घी लाये गिर गैय्या माई ।
बाति भाँज कपास बनाई ।।
आरत मिटें, आरती करते ।
ज्योत अखण्ड तभी प्रकटाई ।।
कौन हमारा आप अलावा ।
देव-देव प्रभु चन्दा बाबा ।।
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