=चालीसा भारत=
शेर नहीं भारत है गैय्या ।
बनकर गाय लगी तट नैय्या ।।
करता कभी न पहल लड़ाई ।
सिद्ध पढ़ाई, आखर-ढ़ाई ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
आँख-नीर लख पीर पराई ।।1।।
करके एक सवाया देता ।
और नाव काकी सा खेता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सतजुग, जुग-द्वापर, जुग त्रेता ।।2।।
विश्व गुरु दुनिया ने बोला ।
यूँ ही कहा न होगा भोला ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
नख शिख रंग बसन्ती चोला ।।3।।
सुबह शगुन चिड़िया सा चहके ।
सुबह सुमन बगिया सा महके ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सिन्धु मिले नदिया सा बह के ।।4।।
एक देवता लेख पुराणा ।
नेक देवता एक ठिकाना ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
जाने भव-बैतरण तराना ।।5।।
वसुधा कुटुम भावना भाता ।
न निश दिवस भी सुधा झिराता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
तज स्वारथ, कर्त्तव्य निभाता ।।6।।
नदी दूध घी, सोन चिरैय्या ।
मही मरण लय-पौन खिवैय्या ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
घनी बरगदी मीठी छैय्या ।।7।।
कामधेन ऋषि मुनि परिपाटी ।
गगन न सदन, रहे जुड़ माटी ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
चश्मा किसी, किसी की लाठी ।।8।।
नाम श्याम तिल चेहरे गोरे ।
कर निन्दा-पर रबर न घोरे ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
पड़े न फिरके तोरे-मोरे ।।9।।
सीधा साधा, भोला भाला ।
स्याह शरबरी धुरुव सितारा ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
स्वर्ग नजारा, पवर्ग द्वारा ।।10।।
जैसा बाहर भीतर वैसा ।
स्वाभिमान पहले, फिर पैसा ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
हाथ मिलाने खड़ा हमेशा ।।11।।
वृत्ति गोचरी सन्तन प्यारी ।
गो धूली बेला मन हारी ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सुखी, गो-मुखी जप बलिहारी ।।12।।
भूल चूक पर क्षमा मॅंगाता ।
फूँक फूँक कर कदम उठाता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
टूक टूक, पर काम बनाता ।।13।।
नहीं मचाता छीना-झपटी ।
कह न सका है कोई कपटी ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
ऊपर दूध तैरती पपटी ।।14।।
नाम मात्र न पैना नख है ।
मन नव जनमे शिशु माफिक है ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
वचन काय मन से सात्विक है ।।15।।
निशि जल्दी सपनों से भींजे ।
उठ सूरज की चादर खींचे ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
पिछलग्गू बन लगे न पीछे ।।16।।
खाना मोटा, मोटा पहने ।
पहने लाज शरम के गहने ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
भी’तर लखन रेख क्या कहने ।।17।।
बिष-किट’ को ना हाथ लगाता ।
‘विष-ले-री’ सुन पीछे आता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
नहीं स्वप्न भी बिस्-की नाता ।।18।।
सुने ‘पाप-सी’ हट जाता है ।
‘मैं-रण्डा’ सुन कट जाता है ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सुन ‘थम-सब’ झट-थम जाता है ।।19।।
मैंगी ‘पड़े न मॅंहगी’ डरता।
सुने बेक-री पीछे हटता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
फास्ट न, फूड पास्ट मुख करता ।।20।।
सर माथे सर पंच फैसला ।
भीतर आँख, बुलन्द हौंसला ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
निकले ‘पर’ तज दिया घौंसला ।।21।।
पुष्ट पृष्ठ-पल डील-डौल से ।
‘कोश दूर’ मण्डूक तोल से ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
‘बचे न राख’ सुदूर खौल से ।।22।।
मान लक्ष-मन रेख न लाँघे ।
समझ हाथ तौहीन न माँगे ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
चले बुजुर्गों को कर आगे ।।23।।
कहे राम फिर पहले सीता ।
आसाँ सी परिभाषा गीता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
खा लेता गम, गुस्सा पीता ।।24।।
खोले फेर चाबिंयाँ ताले ।
‘जिओ और जीने दो’ पाले ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
मकड़ हस्र लख चुने न जाले ।।25।।
मजा तीन दो पाँच न लेता ।
बस रामायण वॉंच न लेता ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
आँख दिखाने काँच न लेता ।।26।।
रखे सहजता जितनी बनती ।
सिंह मुख खोल सीखता गिनती ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
परहित करे हृदय से विनती ।।27।।
‘लायर’ अर्थ समझ, सरपंचा ।
इक ऊपर इक चौदह कंचा ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सत्, सुन्दर, शिव, विष्णु, विरंचा ।।28।।
पर-सेवा सुगंध हाथों में ।
करुणा झील शान्त आँखों में ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
अनेकान्त झलके बातों में ।।29।।
पहिन लजाये मलमल ढ़ाका ।
अतिथि खिलाये, करके फाका ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
साँझ चुकाये, लेके जाका ।।30।।
न्याय, लिये दृग्-मूँद तराजू ।
श्रवण कुमार, पिता-माँ बाजू ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
दाने मूॅंगफली इक काजू ।।31।।
जाने भी’तर नाक निधी है ।
चले न चालें, चाल सधी है ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
सहज मान्य अभिलेख विधी है ।।32।।
लक्ष्य भेदते चित्रित काना ।
ताना एक दूसरा बाना ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
वचन निभाने मर-मिट जाना ।।33।।
पर्वत एक नाम गोवर्धन ।
नाम गुपाल गुसाईं भगवन् ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
जन जन मनहर गुशीर्ष चन्दन ।।34।।
गोपुर द्वार बड़े फबते हैं ।
गो खुर बतलाते रस्ते हैं ।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
Go…तम गौतम ज्यों रटते हैं ।।35।।
गोरख-धन्धे दूर दूर है ।
धन्धा गो-रख दूर-दूर है ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
भूमि गोचरी नूर सूर है ।।36।।
गोमुख बही धार गंगा माँ ।
गो पर्याय सप्त भंगा माँ ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
गो रस पान पहलवाँ गामा ।।37।।
प्रायश्चित गोदान अहिंसा ।
श्रुत वत्सल गो वत्स प्रशंसा ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
गोपि, गोप अध्यातम हंसा ।।38।।
जन्नते-सुकूँ माँ गोदी में ।
सुनता ऊँचा, बोले धीमे ।।
बिलकुल गो जैसा है भारत ।
तर अगुलियाँ सभी गो-घी में ।।39।।
कहूॅं कहाँ तक छोर न आता ।
आते-आते क्षितिज छकाता ।।
‘सहज-निराकुल’ गो सा भारत ।
कहते-कहते मौन सुहाता ।।40।।
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