“अद्भुत परीक्षा”
एक सम्राट था, जीवन शाम के नजदीक हो चला था, और उत्तराधीकारी कोई था नहीं । उसे बड़ी चिंता रहती थी, ‘कि प्रजा का मेरे जाने के बाद क्या होगा । एक रात यही सब सोचते-सोचते सोया । स्वप्न में एक दिव्य-ज्योति ने आ करके उसके कान में कुछ बुदबुदाया, राजन् के चेहरे पर मुस्कान खेलने लगी । उठते ही राजन् ने मंत्रियों को बुला करके, एक मुनादी गाँव-गाँव में पीटने की बात रखी, ‘कि राजधानी में एक जलसा मनाया जा रहा है ।
इसमें सभी सादर आमंत्रित हैं, व्यापारी वर्ग विशेष रूप से । और यहाँ जो भी सामान बिक्री के लिये आयेगा, उसमें से आधे दाम राज-खजाने से दिये जायेंगें । यानि ‘कि आधे दामों में सौदे होंगें । सभी को 10 बाय 10 की दुकानें खोलने की जगह दी जायेगी, यदि किसी को कम लगे तो, मन माफिक जगह ले सकता है । हर दुकान में मानो दूसरा ही सूरज हो इतनी रोशनी दिन-भर रहेगी । वातानुकूलित वातावरण रहेगा । बस गुजारिश इतनी सी है ‘कि सूर्य के डूबते ही बजने वाले बिगुल के साथ ही फैलाई दुकानें समेट लेनी हैं, जो नहीं समेट पायेगा, उतना सब माल राज-खजाने का हो जायेगा ।
मुनादी सुनते ही, ग्राहक और दुकानदार सभी ने कल सुबह से ही राजधानी पहुँचने की ठान ली । जितना ला सकते थे, आसामी माल-असबाब ऊँटों पे, घोड़ों पे, गाड़ियों पे, लाद-लाद के भोर से पहले रखने लगे, शायद ही हो किसी के 10 बाय 10 की दुकान फैलाई हो, सभी ने बेहिसाब दुकान जमाई, यह सोचकर ‘कि दुकान शब्द खुदबखुद कहता है दुका…न रक्खो, ‘माल दिखेगा, तो बिकेगा’, दुकानें सूरज की धूप न आ जा सके इस तरह बनाई गई थीं, सूरज भू-रज भी संतप्त नहीं कर पा रहा था, दूर देश से ऐसे फुहारों का इन्तजाम किया गया था । सभी आसामी दुकान समेटना सूर्य अस्त के साथ ही, इस बात को छोड़कर और सभी तरफ से निश्चिन्त थे । इसीलिये सभी ने अन्दर तो सूरज आ नहीं रहा था इसीलिये पता लग सके, ‘कि सूरज डूबने में कितनी देर है इसका इन्तजाम रखा था, किसी ने दुकान के बाहर काँच लगा रक्खा था, जिसमें सूर्य का प्रतिबिम्ब पड़ रहा था । तो किसी ने कोपर में पानी भरकर रखा था जिसमें सूर्य बिम्ब पड़ रहा था । कोई-कोई व्यक्ति बार-बार बाहर आ देख रहा था । हर दुकान के सामने एक-एक संतरी खड़ा हिसाब लगा रहा था, ‘कि कितना आधा दाम राज-खजाने से देना है,
मेले में इतनी भीड़ थी, ‘कि पैर तक रखने की जगह नहीं थी, न जाने कब दिन चढ़ा और ढ़लने की ओर आ गया, किसी को पता ही नहीं चला, और तभी अचानक न जाने कहाँ से और बड़े-बड़े ग्राहक आने लगे, खन-खन कलदारों की थैलिंयाँ ले करके, और कहने लगे, ये भी दे दो, वो भी दे दो, बस फिर क्या था, सभी दुकानदारों ने बेशुद होके पैसों पे नज़र टिकाई, और दुकान समेटना है, यह ध्यान नहीं रख पाये । तभी बिगुल बज पड़ा, सभी मुँह खोल करके ‘ओ’ कह करके रह गये ।
अभी तक जो सैनिक हिसाब लगा रहे थे, अब वे दुकानदारों के हाथ पकड़ करके कहने लगे, चलिये दुकान से बाहर निकलिये, जो पोटली बन्द हो चुकी है, वो आपकी और फैला हुआ माल राज-खजाने में जायेगा । कई दुकानदार समझदार थे, एक तो पोटली ही नहीं खोल रहा था, एक-एक सामान निकालता और नीलामी लगा रहा था, ‘कि समेटना ही न पड़े सामान, लेकिन वह भी ठगा सा रह गया, जब बिगुल बजी, तब सामान हाथ में था, और गाँठ बाँधनी रह गई थी । सभी आसामिंयों का कुछ न कुछ सामान जब्ती हुआ । फिर भी सभी खुश थे, ‘कि घाटा किसी को भी नहीं लगा ।
इन्हीं के बीचों-बीच एक ऐसा भी नौजवान था, जो अपनी बुजुर्ग-दादी के साथ आया था, नाम था उसका सहजू, जिसके मम्मी-पापा बचपन में ही चल वसे थे, दादी ने पाल-पोस के बड़ा किया था, यह बड़ा ही संतोषी था, जहाँ सभी दुकानदार अपना परिवार दुकान पर बैठाले थे, वही यह दादी से कहता है, अम्मा ! बाहर खड़े होकर आप ग्राहकों की आवभगत कीजिये, और सूरज डूबने न पाये, इकतिला कर दीजिये, हमें राजा की आज्ञा सर्वोपरी है, धन तो बाद की बात है, कभी और कमा लेंगें । दादी के ही संस्कार थे, जो बच्चा पश्चिमी-हवा से बचा था, सीधा-साधा नेक-दिल इंसान था । जहाँ सभी दुकानदार ‘क्लोज’ कह करके भी कह रहे थे
‘कि…लो… जा, वहाँ इस नौजवान ने सब माल-असबाब समेट कर दादी को, दिन रहते ही, घर पर भेज दिया था ।
अब राजा की सवारी निकलती है, सभी दुखी भी थे, खुश भी थे, थोड़ी सी असावधानी से पोटली की पोटली हाथ से जाती देखकर, अन्दर ही अन्दर रो रहे थे, और जितना लाभ आज तक नहीं हुआ, उतनी आमदनी देख खुश भी हो रहे थे । यह नौजवाँ भी अभिवादन करता हुआ राजा को नमस्कार करता है, राजा स्वयं हाथी से उतरकर उसे गले से लगा होते हैं ।सारे आसामी खेद मुद्रा में देखते से रह जाते हैं । मंत्रियों को बुला करके राजा अपना राज-मुकुट उस नौजवान के सिर पर रख देते हैं, और राज-तिलक करके स्वयं दीक्षित हो जाता हैं।
बिलकुल यही सब कुछ, अपने जीवन में भी घटित हो रहा है, कर्म राजा है, घर परिवार फैला हुआ सामान है, यदि समेट लिया, जीवन साँझ होने से पहले तो राजा बनेंगें, वरना….चार-गति चौरासी-लाख योनिंयों के दुख-सुख हाथ लगेंगे,
सो जानवी ।
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