सोलहवां रंग
सुन्दर कई रथ,
आ खड़े हुये नापने पथ ।।१।।
प्रथम बैठे सुलोचना जै,
रथ था स्वर्णमय ।।२।।
क्रमशः राजा अकम्पन,
और भी सदस्य गण ।।३।।
संगी-संगिनी,
चाली संग जै सेना चतुरंगिनी ।।४।।
सिर चढ़ न धूल बोले,
सो चाले वो होले-होले ।।५।।
आ गये छोड़ घर,
रास्ते पे सब ही दौड़ कर ।।६।।
नैन भिंजोये,
वे, सभी के सभी थे चैन जो खोये ।।७।।
हैं कहें बारी-बारी,
मत जाइये राजकुमारी |।८।।
बच्चे भी हिला हाथ अपना,
कर रहे थे मना ।।९।।
भाव विह्वल,
थे पशु-पाँखी सभी लिये दृग् जल ।।१०।।
आने तलक द्वार नगर,
लौटा न कोई घर ।।११।।
रो पड़े सब ही और एक दफा,
सरहद पा ।।१२।।
ससमाज,
हो गये खड़े वही पे काशीराज ।।१३।।
परिकर जै थम प्रथम,
चाला वह दृग् नम ।।१४।।
मुड़-मुड़ के,
दृग्-सुलोचना लौटे उड़-उड़ के ।।१५।।
हुआ आहिस्ता-आहिस्ता,
ओझल जै सदल-बल ।।१६।।
और जै-लोग बढ़े ले सर-पद्म खुश्बू,
ज्यों वायु ।।१७।।
हिंडोलना, दृग्-सुलोचना
बाबुल वहाँ, जै यहाँ ।।१८।।
जै ने दी छेड़ बात,
बिलाई माई बाबुल याद ।।१९।।
पा गज मद,
आ धरती, गिरती धूल उड़ती ।।२०।।
ढ़ाके ध्वजाएँ सूर,
कह ‘कि है ही यहाँ पे नूर ।।२१।।
सेना सिन्धु में पनडुबियाँ,
शोभें त्यों पालकिंयाँ ।।२२।।
गति ले समाँ यान,
दौड़ते ऊँट लादे सामान ।।२३।।
घोड़ों की हिन-हिनाहट,
‘कम ना थी’, चिंघाड़ हाथी ।।२४।।
माँगते हुये क्षमा,
ध्वजाएँ करें साफ आसमाँ ।।२५।।
हो जन-भूमि सें जुदा,
‘रिश्ता’-जुड़ा वन-भूमि से ।।२६।।
फलों के भार से विनीता,
थी भूमि वह पुनीता ।।२७।।
शुभ शगुन थे,
वहाँ सभी किस्म के सुमन थे ।।२८।।
अनूठे,
वहाँ थे वृक्ष सभी छोर-आसमाँ छूते ।।२९।।
दृग् से ही छुआ, ‘कि छुये जुबाँ नमी,
ऐसी मौसमी ।।३०।।
अहा ! संतरा,
विगत परिणत हहा ! मंथरा ।।३१।।
बिन वात, जो झूमें पल-पल,
वो पात..पीपल ।।३२।।
जुबाँ हकीम चाखे हर-वक्त,
वो नीम दरख्त ।।३३।।
थी वृक्ष आम आली,
दिल कोकिल जीतने वाली ।।३४।।
सरहद जो,
‘ले बढ़ा’ जटा-जूट बरगद वो ।।३५।।
किया न तोते फल कौन झूठा,
वो ‘पेरु’ अनुठा ।।३६।।
छुई-मुई,
थी जगह-जगह ही ‘जि उड़ी रुई ।।३७।।
करते गौण,
उपमाएँ सागौन न कोन-कोन ।।३८।।
छायादार,
वो दरख़्त देवदार धरा श्रृंगार ।।३९।।
गंध नासिका पर हुई खट्टी जुबाँ,
इमली वाह ।।४०।।
ले मुक्ताफल राश,
थे झुर-मुट सार्थक ‘बॉस’ ।।४१।।
थी लगा रही बेरिंयाँ,
जहाँ-तहाँ बेर ढ़ेरिंयाँ ।।४२।।
तलक जमीं आसमाँ,
कटहल नुमाँ सीढ़ियाँ ।।४३।।
रहे विचर,
पशु-पाँखी सब ही होके निडर ।।४४।।
मापें लम्बाई ही तरु,
फैला फन अहि मैं मानूँ ।।४५।।
बताये शुभ शगुन,
जा बाँये से दाये हिरण ।।४६।।
बहाने झुण्ठ गज,
खेले अंधेरा छका सूरज ।।४७।।
अंनिरखे निज नूर,
वन फैला दृग् पंख मयूर ।।४८।।
पसीने भींगा जा रहा,
लकड़िंयाँ ले बारा सींगा ।।४९।।
हूबहू तन्तु-मकड़ी कटी,
ऐसे कई केशरी ।।५०।।
सँभालता सा होश,
हार कछुये से खरगोश ।।५१।।
कछु अन्तर् छुआ,
लो कछुआ वो अन्दर हुआ ।।५२।।
गिनती…पुच्छ आगे जग कमती,
वो चमरी गो ।।५३।।
लो आपस में एक-दूजों को घेरें,
वो ढ़ेरों भेड़ें ।।५४।।
दल वानर,
दिखाता करतब दरख्तों पर ।।५५।।
होशियार वो शियार ‘हुआ-हुआ’
आलाप छुआ ।।५६।।
चालाक बड़ी लोमड़ी,
दृग् जिसकी अंगूर गढ़ी ।।५७।।
पिछले पैरों पे खड़ी,
गिलहरी साहसी बड़ी ।।५८।।
उठा गर्दन गिदगिदान,
कहे छू स्वाभिमान ।।५९।।
सहज ढ़ोता तन-पिंजरा,
हल्के पंख भँवरा ।।६०।।
बल बाहून निकली,
कोनून से निरी तितली ।।६१।।
सदाबहार,
ग्वार–पाठा समां माँ खुशगवार ।।६२।।
बो…ले आँवला,
करने मुकाबला ‘रि ओ ! आ…बला ।।६३।।
पौधा तुलसी,
करने वाला फना आलसी पना ।।६४।।
जाने कहॉं पे जाने भागें,
भरते चीते छलागें ।।६५।।
बिन डमरु था चालू,
नाँच भालू बिन घुँघरु ।।६६।।
बहाने डंक, ले तीर हाय दैय्या !
आय ततैय्या ।।६७।।
बेल पतर, मधुमेह विहर,
जामुन ऽपर ।।६८।।
भले सुदूर
वो खजूर, जो देखे रोगों को घूर ।।६९।।
आधि हो, व्याधि हो, भागे स्वयमेव,
रख दृग् सेव ।।७०।।
मोर चित् चोर,
दृग् थिरकाती पग, भाव विभोर ।।७१।।
नीड़ काकी,
ना पा, आई अण्डे छिपा कोयल बाँकी ।।७२।।
फुदकती क्या,
थिरकती ही, ता था थैय्या, गोरैय्या ।।७३।।
है क्या क्या वह…ना,
कहती सी ‘जि हूँ कुछ ‘मै…ना’ ।।७४।।
रख संयम जुबाँ,
लागा कोकिल सा कागा जवॉं ।।७५।।
पॉंत तीतर,
प्रयाण आसमान सात भीतर ।।७६।।
भावना विश्व शान्ति से ओत-प्रोत,
पाँत कपोत ।।७७।।
धौंसले,
मुख-बच्चे चिड़िया, डाले चुन चोंच लें ।।७८।।
जपते जो थे
नाम राम-राम वो नजूमी तोते ।।७९।।
सिहर तभी,
बोली सुलोचना, ए ‘जी सुनिये भी ।।८०।।
है बात क्या ?
क्यों चलने लगी ठण्डी-ठण्डी ये हवा ।।८१।।
निरख ‘दे दृग्-ओट’
जै बोला कर चपल होंठ ।।८२।।
खुशिंयाँ लाने वाली जो,
गंगा नदी आने वाली वो ।।८३।।
सत्रहवां रंग
हुबहू वेणी वृद्धा भू-वन
हुआ गंगा-SSगमन ।।१।।
दुग्ध सी गौर,
नदी-गंगा नदिंयों की शिर-मौर ।।२।।
गिरि हिमवान् जो,
गाती सी उसी का यशोगान वो ।।३।।
वो ओढ़े हरी साड़ी,
थी बोले तटों की हरियाली ।।४।।
थी दोनों तटों पे हंसों की श्रृंखला,
भाँत मेखला ।।५।।
भाँत-भाँत के,
विरख नेक वहाँ फूल पात के ।।६।।
बड़े सुन्दर-प्रतीत होते,
फल चाखते तोते ।।७।।
आये नजर,
बौराये से भॅंवर कमलों पर ।।८।।
गंगा-घाट,
जै सुलोचना दोनों आ बैठे हैं साथ ।।९।।
पूछते एक-दूजे से,
बचपन गुजरा कैसे ।।१०।।
सर्वप्रथम बोली,
सुलोचना गो’री, मिश्री घोरी ।।११।।
मेरे व्यतीत बचपन श्वास,
माँ आर्यिका पास ।।१२।।
वस्त्र श्वेत,
माँ-आर्यिका कमण्डल, पीछि समेत ।।१३।।
बाहर वैसीं ‘भी’ तर,
माँ आर्यिका हंसी अवर ।।१४।।
आहार, एक बार,
माँ चाले, देख भू हाथ चार ।।१५।।
कदम रक्खे न ‘बस’ में,
‘माँ’ रक्खे जुबाँ वश में ।।१६।।
विकथा दूर कोस,
माँ जल्दी माने सो ‘आशुतोष’ ।।१७।।
दूजी कक्षा में पढ़ीं ढ़ाई आखर,
माँ दिवाकर ।।१८।।
ससूत्र सुई न घुमें,
थमाया माँ ने ‘दिया’ हमें ।।१९।।
रोज के रोज मैंने बाँधी गाँठ,
माँ सिखाती पाठ ।।२०।।
बेजुबाँ आंखों से आंसु पोंछ आना,
उत्तम क्षमा ।।२१।।
सींच आँसुओं से दरख्तों को आना,
उत्तम क्षमा ।।२२।।
बिखरे मोती फिर से पिरो आना,
उत्तम क्षमा ।।२३।।
उछली पानी मछली भिजा आना,
उत्तम क्षमा ।।२४।।
घन काले ले हवा जाये, बचाना,
उत्तम क्षमा ।।२५।।
मार के फूँक न कलिंयाँ झड़ाना,
उत्तम क्षमा ।।२६।।
जा-के न कान दीवारों से लगाना,
उत्तम क्षमा ।।२७।।
आँख जा-के न दरारों से टिकाना,
उत्तम क्षमा ।।२८।।
लगा के माँ का चश्मा, ‘देखना जहाँ’
उत्तम क्षमा ।।२९।।
सर भींगते किसी के छाता छाना,
उत्तम क्षमा ।।३०।।
तारीफ देख और पंख लगाना,
उत्तम क्षमा ।।३१।।
झूठ भी किसी का दिल न दुखाना,
उत्तम क्षमा ।।३२।।
पन-संयत गवाती,
ना…गिन आ पिटारे जाती ।।३३।।
पा आस-पास काला कालर,
न्यारा आता उभर ।।३४।।
है बड़े वाले,
रोग बिना बुलाये न आने वाले ।।३५।।
आटे में नोन जैसा बोलते,
साधो मिश्री घोलते ।।३६।।
अपने पन के लिये,
हाँ…अपने मनके लिये ।।३७।।
भाई बहना
देखो…ना कह रहा स्वयम् ‘डर-ना’ ।।३८।।
करते,
काम सब, डर-डर-के क्यों न डरते ।।३९।।
जुुड़ा बुजुर्गों से रिश्ता,
डर ‘कि…ले अपना रस्ता ।।४०।।
अरमां डर, चुक जाते,
लड़ने जो रुक जाते ।।४१।।
हम जागे,
‘के कदम उल्टे, डर के डर भागे ।।४२।।
डरपोक है डर बड़ा,
‘रे बस तू हो जा खड़ा ।।४३।।
हवा महल,
डर की न इसके सिवा-शकल ।।४४।।
लहर जैसे,
आ… घरोंदें रेत दे…खो डर वैसे ।।४५।।
अँगूठा, दिखा दो,
दिखा दो-जहाँ न डर सा झूठा ।।४६।।
और आता न जाता,
डर को सिर्फ डराना आता ।।४७।।
डर जाता है,
बेमौत, वो जीते जी मर जाता है ।।४८।।
डर निस्सार,
पानी के बुलबुलों में कुछ सार ।।४९।।
डरना मना है,
डग आगे डर के सपना है ।।५०।।
‘रे क्या डरना अंधेरे से,
जो ‘दिया’ लो ना जगा उसे ।।५१।।
कर नजर अंदाज,
ना…राज पे हर का राज ।।५२।।
कर नजर अंदाज,
हर साध…ना पायें साज ।।५३।।
गोट बैठाने की टोन,
छूजिओ, या हूजिओ, मौन ।।५४।।
काँटे हों मग,
तो आहिस्ता-आहिस्ता रखना पग ।।५५।।
आत्म प्रशंसा से,
‘बचना’ हिंसा से जिन वचना ।।५६।।
बोला करते झूठ,
किस्मत उन-की जाती रूठ ।।५७।।
बाहर से ही गो ‘री,
करता सिद्ध करना चोरी ।।५८।।
दिलाने पे भी गुस्सा,
न करे गुस्सा कौन उस-सा ।।५९।।
जिसे न पाये गुमान छू,
वो जाये आसमान छू ।।६०।।
पहुॅंचा हुआ वो,
दे कभी किसी को न बद्दुआ जो ।।६१।।
पाये जो भूल, भूल-दूजों की,
उस सा दूजा नहीं ।।६२।।
धी मोटी, शब्द कोष मोटा,
यूँ शब्द कोष अनूठा ।।६३।।
वाणी में घोल तो मिठास,
न बुला किसी को पास ।।६४।।
कौन कितना अपना,
चेहरे की खुशी दे बता ।।६५।।
चढ़े कभी न जिसका पारा,
जाये वो पा किनारा ।।६६।।
ईर्ष्या जिसकी अनुचरी,
न दूजी उस सी परी ।।६७।।
सीख ‘ना’ जाने सिखाना,
मेल-जोल वा से बढ़ा ‘ना’ ।।६८।।
है लेते बचा बहस से,
दे बता क…हानी किस्से ।।६९।।
ज्यादा न बोला करो
अमोल, मुट्ठी न खोला करो ।।७०।।
मुश्किलों से न अकेले झूझना,
जा माँ से पूछना ।।७१।।
‘जमा…ना’ लगा कान सुन आये,
ले मजा सुनाये ।।७२।।
लोग वैद्य न बाबर्ची,
भुर्खें जख्मों पे नोन मिर्ची ।।७३।।
नदी कहना,
तट बीच रहना, लज्जा गहना ।।७४।।
भरी काँटों से राहें,
संभल हमें ही चलना हैं ।।७५।।
करे सजग,
अंधेरा सँभल के रखाये पग ।।७६।।
चिंटिया,
उस पार मत हिम्मत हार बिटिया ।।७७।।
तलक आज
चन्द्रमा दाग, ‘छू…न’ गलत काज ।।७८।।
नो-कर्म मत बनना,
बने तन ढ़क रखना ।।७९।।
बह…ना
ढ़क तन रखना, कौन नहीं अपना ।।८०।।
लाडो ! काजल तो बहाना,
बलाएँ माँ को भगाना ।।८१।।
चुनना वस्त्र वो,
रक्खे तन ‘और’ मन स्वस्थ्य जो ।।८२।।
है बन्धन में रक्षा,
रक्षा-बंधन दे हमें शिक्षा ।।८३।।
पहला शर्ट-बटन बनना,
न हद लाँघना ।।८४।।
कहाँ कॉंटे न बहिन,
पादत्राण लो ना पहिन ।।८५।।
मानना बात,
जीत चुकी ‘होती’ माँ, खा चुकी मात ।।८६।।
देख के धीरे चलते,
उन्हें पड़े हीरे मिलते ।।८७।।
कुछ होता न सब कुछ बर्बाद,
रखना याद ।।८८।।
प्रात का प्रात
‘पाप लो करा माफ’ रात का रात ।।८९।।
छुट-पुट भी लिये संकल्प,
करें फुर्र विकल्प ।।९०।।
सुना,
सँवारे जिन्दगी, सादगी लो बना अपना ।।९१।।
न्याय देने में खरी,
सुना दिल की कचहरी ।।९२।।
समर्पण की बोली,
जाने बोलना काली भी गो’ री ।।९३।।
देखा देखी से,
रहे सार्थक ‘बच्ची’ फेका-फेकी से ।।९४।।
नादी से नारी के नाम,
सलीके से करना काम ।।९५।।
हार में जीत लेवे देख,
ना ‘री न खोवे विवेक ।।९६।।
पता… खा हवा के झोके,
मजबूत हैं होते पौधे ।।९७।।
सँभल चलें,
बच्चिंयाँ न साजिशे-पहल करें ।।९८।।
जमा…ना झाड़ चने चढ़ा,
ले मजा, हो दूर खड़ा ।।९९।।
बेईमानी पे,
नारी सदा से भारी मनमानी पे ।।१००।।
सार्थक नाम कन्या,
सोचने से, है यहाँ क्या नया ? ।।१०१।।
रहते लड़ के,
किन्तु लड़की न लड़ती कभी ।।१०२।।
सार्थक नाम गौ’री,
सीधी साधी सी दूसरी गो ही ।।१०३।।
निकलते ही काँटा,
दरद लगे करने ‘टाटा’ ।।१०४।।
‘निशाँ-कील’
पा शाम भी न दीवाल में तबदील ।।१०५।।
क्या रोना रोना,
स्वप्न जिन्हें, खुलते ही आँख खोना ।।१०६।।
बुरे स्वप्न ले क्या जाते,
फ्री ‘हॉरर-फिल्म’ दिखाते ।।१०७।।
डरना मत,
स्वप्न होती ही कब है हकीकत ।।१०८।।
सही हमेशा होते हम ही,
होता ऐसा कम ही ।।१०९।।
जानें हम…
न खिलाने की, खाने की चीज शरम ।।११०।।
रक्खो हार से प्रीत,
भेंटें सदा न पाँसे जीत ।।१११।।
गिर-गिर के खड़े होना पड़े,
यूँ ही हों ना बड़े ।।११२।।
अठारहवां रंग
कुछ कहने तैयार
जै-कुमार, अबकी बार ।।१।।
पाया दृग् ज्ञान मोति मैं सीप,
गुरु-कुल समीप ।।२।।
दृग् सजल,
थे श्री ‘गुरु-कुल’ मिला के निराकुल ।।३।।
बीन ‘लक’री’ लाते,
‘हम’ चैन की बीन बजाते ।।४।।
भरते छान के पानी,
पहुँचाते कूप जीवानी ।।५।।
कपड़ा साफ किया,
पानी नाली में न जाने दिया ।।६।।
याद करके हम सुनाते,
गुरु जी जो पढ़ाते ।।७।।
क्या न दिया,
गुरु ने दे दीया, दे सब तो दिया ।।८।।
पल बिदाई,
गुरु जी ने पते की बात बताई ।।९।।
जै हाई क्यूँ, न ‘कि हाईकू
यानि ‘कि हाई क्वालिटी ।।१०।।
पानी यूँ ही न बहाना,
बड़े हो, क्या बच्चों में आना ।।११।।
पानी यूँ ही न बहाना,
सूखें पौधें, जा… सींच आ…ना ।।१२।।
पानी यूँ ही न बहाना,
हिसाब जा वहाँ बताना ।।१३।।
पानी यूँ ही न बहाना,
प्यासी गौ…लो सुन बुलाना ।।१४।।
दिखाये बड़ी-बड़ी सूरज आँखें,
आ पानी राखें ।।१५।।
पानी का कौन सिवा हमारे,
बनें आ रखवारे ।।१६।।
‘के न हो गर्मी में, मारा-मारी कल,
आ…राखें जल ।।१७।।
करवट से,
सोना जै, वो भी बाँयी करवट से ।।१८।।
प्राणायाम को भी निकालना वक्त,
रहने स्वस्थ्य ।।१९।।
रोज सुबह-सुबह,
हल्की कर लो जुबां यह ।।२०।।
करो मसाज मसूड़ों की,
अंगुली से हल्की-हल्की ।।२१।।
नर्म नाखून, बना लो, नहाने के
‘बाद’ खाने के ।।२२।।
अच्छे से बालों को सुखा,
आयें… तो न जायें ‘जूँ’ सखा ।।२३।।
चाहिये आँख नहलानी,
अंजुली-हाथ ले पानी ।।२४।।
वक्त धोते, लो लख,
हो गंदे ज़्यादा कॉलर-कफ ।।२५।।
नाजुक कान,
डालो कान कुछ तो रक्खो ध्यान ।।२६।।
भिंजाना मुख अपने कौर,
भिंजा के मुख और ।।२७।।
बोर लो,
‘लाला-रस’ नीचे हलक फिर कौर लो ।।२८।।
बुरी आदत,
करके चप-चप जै खाना मत ।।२९।।
जमा नाखूनों पे हो जाये रज ना,
ध्यान रखना ।।३०।।
कोहनी खेल न होली पाय,
करो कुछ उपाय ।।३१।।
कुमार,
होंठों पर जीभ फेरते न बार-बार ।।३२।।
अंगुलिंयाँ न चटकानी,
आदत हा ! बचकानी ।।३३।।
आ रोग जो दे दखल,
‘जै’ भोजन लीजो बदल ।।३४।।
शीतल ‘वस्त्र-लपेट’
दर्द कैसा भी देता मेंट ।।३५।।
जै खोल मुट्ठी हाथ,
मत दिखाना किसी को आँख ।।३६।।
जै उठाकर,
‘रखना पैर’ न ‘कि घिसटाकर ।।३७।।
जंभाई छींक आई जो,
हाथ मुँह पे लगाई लो ।।३८।।
कामचोर वो,
एड़िंयों पे करते नहीं गौर जो ।।३९।।
दीवाल के भी होते कान,
रहना ‘जै’ सावधान ।।४०।।
जै सँभलना,
न अपने मुँ मियां मिट्ठू बनना ।।४१।।
अपने सा ही जीव वो,
क्यूँ बुझाना किसी दीव को ।।४२।।
तोड़ आना न यकीन,
न रखना भावना-हीन ।।४३।।
मत करना भूल,
यूँ ही तोड़ लूँ ‘कि पात-फूल ।।४४।।
हमेशा रक्खो नजर,
जै बटन तीसरे पर ।।४५।।
सुन लीजिये,
फास्ट फूड या स्वास्थ्य, चुन लीजिये ।।४६।।
लजीज भले लगते,
फास्ट फूड पर ठगते ।।४७।।
मुँह लगाना मत,
फास्ट फूड लें छीन सेहत ।।४८।।
जोड़ न रिश्ता,
‘फास्ट फूड से’ कहो फूट वो रस्ता ।।४९।।
आज की खबर,
फास्ट फूड धीमे जहर ।।५०।।
व…र…ग…र
र…ग… र…व अगर, तो कहो नो, नो, नो ।।५१।।
डुबोया ‘कि जा डबा,
क्या सँभालेगा वो बिस्किट हो ।।५२।।
अण्डे ले आँसू आकार,
खोई खोजें माँ दर-द्वार ।।५३।।
दूध सम्पूर्ण आहार,
पा लो दिन में एक बार ।।५४।।
बात तरीके इस करो पेश,
‘कि लगे न ठेश ।।५५।।
सुर अक्षरों में मोतियन वास,
कर अभ्यास ।।५६।।
गत बेताबी,
मेहनत गुलाबी, सेहत चाबी ।।५७।।
नफरत जै सिक्का खोटा,
ले हर-कोई दे लौटा ।।५८।।
तलक आज,
लौटी ही लौटी गाली समेत ब्याज ।।५९।।
वैसे के वैसे, ‘आ लौटते वचन’
हिंडोलने से ।।६०।।
पहले कद देख लेना,
कदम फिर उठाना ।।६१।।
शत्रु एक भी नहीं कम,
चींटी ले हाथी ले दम ।।६२।।
दोस्त जितने भी,
दुनिया-बहुत बड़ी, कम ही ।।६३।।
मान सी. आई. डी.
मानसी आई. डी. जै संभल के ।।६४।।
राज छोड़,
लो कहीं भी जोड़, शब्द नीति बेजोड़ ।।६५।।
‘मान… स’
वस चुका, अबकी वसा माँ-नस-नस ।।६६।।
मल द्वार,
न सिर्फ नौ, नव नव रास्ते विकार ।।६७।।
‘अ’…पढ़,
छूती न टेशन, रहते जो अटेंशन ।।६८।।
फर्सी सलामी और,
और सर्प सी सलामी और ।।६९।।
कपूर रक्खा क्या खुला,
वगैर फूँके फुँक चला ।।७०।।
‘किस्से’ किससे क्या कहना,
गहना साधो ! सहना ।।७१।।
चाहत जाने लगती,
‘कि राहत आने लगती ।।७२।।
पेट भरके पेटी, ऊँट सुस्ताये,
तू काहे धाये ।।७३।।
मिट्ठू मिठुआ बोले,
होले होले न किसका हो ले ।।७४।।
तुम यूँ ही क्यों खाते जा रहे,
‘धोखा’ खाने की कहे ।।७५।।
कर रोशन ‘दिया’
अपन पन-मलिन छिया ।।७६।।
एक अंगुली दर्दे-दौर,
न जाने अंगुली और ।।७७।।
पता… कलंक पुत्र इन्दु,
धो सके न पिता सिन्धु ।।७८।।
धन्य पुन !
दें लहरें फेंक मोती, हंस ले चुन ।।७९।।
माखिंयाँ सवा ‘शेर’
उड़ाते देर, ‘उडते तोते’ ।।८०।।
मुआफी,
बड़े-बड़े तप से कद में ऊँची काफी ।।८१।।
कहना क्षमा पहले आता,
बाद में नमो नमः ।।८२।।
मिस बारिश,
ए ! जै, आकाश भेजे, दिश् दिश् वारिश ।।८३।।
जैं घड़ी-घड़ी डोलती,
और टिक-टिक बोलती ।।८४।।
बढ़ता दिन पे दिन,
बेटों तक पहुॅंचता ऋण ।।८५।।
आपसी ताल-मेल,
करे काम ज्यों मशीन तेल ।।८६।।
अंधेरे बिन
क्या कीमत चाँद की लो देख दिन ।।८७।।
कल के टाँको से नेक,
लगा टांका आज का एक ।।८८।।
गहरे बढ़ा,
तभी रह पा रहा, दरख़्त खड़ा ।।८९।।
दिन दो दफा वक्त सही,
दे..बता बिगड़ी घड़ी ।।९०।।
समस्या लो अलविदा,
सोचते ही कुछ जुदा ।।९१।।
दरख़्त कुछ कुछ है जाते,
ल…फ, फ…ल जो आते ।।९२।।
ओ सुनो होश जिसका यार है,
वो होशियार है ।।९३।।
हूँ जिसे मोह…न वही,
और काई मोहन नहीं ।।९४।।
काँधे भलाई के,
चढ़ आती, पॉंव न बुराई के ।।९५।।
है गुरुओं में आती,
सीखो तो सुई भी ‘सिख’लाती ।।९६।।
जादू अदब का,
गजब का, दिल जीते सबका ।।९७।।
प्यादे पीछे न लें कदम,
‘सत्-रंज’ में और हम ।।९८।।
न हड़बड़ी, न गड़बड़ी,
चुप्पी जादुई छड़ी ।।९९।।
कुटिया छोटी छोटा ‘जी
न ऐसा ही, सीपी में मोती ।।१००।।
किसने कहाँ ? नहीं चुकता,
कर्ज निभा तो फर्ज ।।१०१।।
न होना भाव विह्वल,
ढ़ेरों हल छुपाये कल ।।१०२।।
अपन बनाते,
मन सहकार से सरकार ।।१०३।।
निपर लेंगे सबसे, मत डरो,
उत्तर रखो ।।१०४।।
निकल खोटे मुखोटे से,
मान लो ना हैं छोटे से ।।१०५।।
वो गिर ‘गिट’ उठा रहा सर,
तू झुका रहा क्यूँ ।।१०६।।
रहवासी ओ ! घर मिट्टी,
कितनी ठण्ड़ी दो मुट्ठी ।।१०७।।
भले झूठ पे लगे सच्ची है,
खुशफहमी अच्छी है ।।१०८।।
खाना चुगली बुरा है,
बूरा है खा जाना चुगली ।।१०९।।
दे मिला चाल, ‘के चाल घड़ी,
शिक्षा जादुई छड़ी ।।११०।।
बड़भाग
‘गो’ हिस्से शब्द गॉड (God) दो तिहाई भाग ।।१११।।
फिर एकाध दफा बोलो,
पहले दो दफा तोलो ।।११२।।
न खुले ताला तो चुने दूजी चाबी,
न ‘कि बेताबी ।।११३।।
मनवा पेजों की दीवाली,
रिफिल हो चली खाली ।।११४।।
पौधे छू पाने आसमां चल पड़े,
तू न क्यूँ बढ़े ।।११५।।
मिले अकेले न कभी,
बाँस ‘वॉस’ है कहा तभी ।।११६।।
‘रे चाँद दोज,
कोट काँधो पे ‘रक्खा’ कँधे पे बोझ ।।११७।।
रखें आपात कालीन एक,
भले टायर ‘नेक’ ।।११८।।
उतनी चीजों के ‘मालिक-कसम’
गुलाम हम ।।११९।।
दी ‘जी’ ‘जुबाँ’ न ‘बोन’,
सख्ती वाली न अपना टोन ।।१२०।।
खुद ही कह रही ‘गलती’
बस मैं, ‘मैं’ बल थी ।।१२१।।
मटर-गस्ती बिना,
‘मटर दाने’ नेक समाने ।।१२२।।
कहे पलट सा…ह…स,
स…ह…सा मैं होऊँ प्रकट ।।१२३।।
गम करते कम,
दोस्त सुकून करते दून ।।१२४।।
ले जा अकेले में भूलें बताता,
वो दोस्तों में आता ।।१२५।।
किया ‘कि पक्का इरादा,
काम हुआ समझो आधा ।।१२६।।
थम’ना भाव खाती हैं,
चीजें फिर ठाव पाती हैं ।।१२७।।
ढ़ाई अखर से
पोथी, अनोखी, न ‘कि ‘कवर’ से ।।१२८।।
स्नेह रिसता रहता,
तभी तक रिश्ता रहता ।।१२९।।
सरीखा फाक खीरा,
जन दुर्जन प्यार… व्यापार ।।१३०।।
बुदबुदाये ‘हट’
ए नादाँ जर्रा पीछे को हट ।।१३१।।
न दे दिखाई
पीठ, आँख अपनी, बुराई ‘भाई’ ।।१३२।।
काले से गो’रे होते,
बादल ज्यों ज्यों लुटाते जल ।।१३३।।
पवित्रता का पता,
तेल की धार, आप दे बता ।।१३४।।
जुबाँ पे आया
न कहीं और से, था जिया समाया ।।१३५।।
कहो सच्चाई ना,
लो झलका वैसे जैसे आईना ।।१३६।।
सच सच में अनूठा,
अंगुलिंयाँ उठाये झूठा ।।१३७।।
सच कड़वे होते,
बोले नहीं ‘कि उड़ते तोते ।।१३८।।
बड़े करीब करिश्मा,
उतारते ही दिखे चश्मा ।।१३९।।
गैर झगड़े,
देख सन्दूक एक ढ़ेर कपड़े ।।१४०।।
भले और न जले,
तीली माचिस जले पहले ।।१४१।।
सरवर से मगर,
है मगर से सरवर ।।१४२।।
यूँ तो हिलाना पैर बुरा,
गोद में बच्चा तो बूरा ।।१४३।।
आसान छूना आसमान,
बस छू ना आश, मान ।।१४४।।
‘ब्लैक’ बोर्ड हो चला खुद,
करने औरों को बुध ।।१४५।।
खल का छोड़ संग,
पा गया तेल उत्तम अंग ।।१४६।।
मत पत्थर ऊपर लुढ़काना,
पानी बचाना ।।१४७।।
हाथ वक्त भी कुछ छोड़ो,
ले लाठी पीछे न दौड़ो ।।१४८।।
टूट जाई
‘कि छड़ी खूब झुकाई, आहिस्ता भाई ।।१४९।।
नख भी हड्डी एक,
चबाते वक्त साधो विवेक ।।१५०।।
पिघलने के लिये होता गुमान,
बर्फ समान ।।१५१।।
आधे अधूरे सच,
आ बनाते ‘भी’ के लिये जज ।।१५२।।
पानी में धूल कीचड़,
पानी से ही धुले कीचड़ ।।१५३।।
घास अलावा,
राम भरोसे कुछ न होने वाला ।।१५४।।
‘रे वापसी की गुंजाईश थोड़ी भी,
कमजोरी ही ।।१५५।।
कुरूप जड़ें लाई सुन्दर फल,
न जाना भूल ।।१५६।।
कहता, कल कल करता जल,
जो मैं तो कल ।।१५७।।
मीठी इतनी हिन्दी,
रक्खा ‘कि मुंह निकला आहा ।।१५८।।
जो आया तैश, जवानी में,
लो गई भैंस पानी में ।।१५९।।
मज़ाक कुछ और ना,
झूठ मिस सच बोलना ।।१६०।।
किसी को गढ़ गई
पुस्तक, खुद उखड़ गई ।।१६१।।
जल न आँखों में,
और बनना है, एक लाखों में ।।१६२।।
सभी काजल कोठरी ही तो वसे,
किस पे हँसे ।।१६३।।
आदत बुरी,
कर दे एक दिन हालत बुरी ।।१६४।।
परिन्दे,
पंजों से, आ सिकंजे जाते जुबां से वन्दे ।।१६५।।
खरीदने दें आईना नहीं,
वहीं गुरु जी सही ।।१६६।।
गुल खिलाने नये,
मुरझा गुल पुराने गये ।।१६७।।
शश पर्वत चढ़ना,
तो तीक पे मत चढ़ना ।।१६८।।
खरोच चोंच पा नारियल,
तोता रोता ही रोता ।।१६९।।
बहुत कुछ करता पड़े गुम हमें,
ग्रुप में ।।१७०।।
है जादू घड़ी में,
कभी तेज, चालती कभी धीमे ।।१७१।।
तितली कली कह चली,
न भली गली चुगली ।।१७२।।
अच्छे बच्चे,
हो नोज या आई, रक्खें रोज सफाई ।।१७३।।
जो बच्चे,
बिन मैल, रक्खे अपने नेल, वा अच्छे ।।१७४।।
आया फकीर तकलीफ़ लेने,
न ‘कि भीख, दे दो ।।१७५।।
पानी खाकर,
साधो जिन्दगानी भोजन पीकर ।।१७६।।
समझा किसी को इतर-सा,
कि-लो आ जन्मी ईर्ष्या ।।१७७।।
न करो आँखें चार,
वस्तुएँ नेक पहलूदार ।।१७८।।
सशर्त पाना होता,
हाथ जो उसे गवाना होता ।।१७९।।
जाने दिखाना राह खूब,
कहना ‘जि वाह खूब ।।१८०।।
पुल बाँधे जो प्रशंसा के,
रहे वो मंजिल पाके ।।१८१।।
मेहनत न जाये खाली,
मनाये सीप दिवाली ।।१८२।।
कौन आग का दरिया पार,
घोड़े मोम सवार ।।१८३।।
कर लें आग आह्वान,
संगठित किरणें भान ।।१८४।।
हूँ सही मैं ही, इस पचड़े,
‘पड़ा’ ढ़ेर कचड़े ।।१८५।।
मशालची,
दे रोशनी, अंधेरे में रहे, बाल भी ।।१८६।।
आईना साफ साफ रहता,
साफ साफ कहता ।।१८७।।
भीतर ‘आई ना’,
घटना बाहर घटी, यूँ जी…ना ।।१८८।।
जमा…ना
झूठ सफेद, अरे सच कड़वा माना ।।१८९।।
उठे जनाजा काँधा देता,
जीते जी बाँधा जमा… ना ।।१९०।।
करुणा भज नासमझ,
भजन हुआ समझ ।।१९१।।
झट छका दे चलना,
तट लगा दे टहलना ।।१९२।।
घर कर लो ये सीख,
मैं जैसा हूँ, वैसा हूँ ठीक ।।१९३।।
बाद में खोता आचरण,
पहले होता मरण ।।१९४।।
न जूझ
हुआ बाद बादल बाज, छू सूझबूझ ।।१९५।।
न चालबाजी घर जो,
नेक एक बाजीगर वो ।।१९६।।
जहाँ उसकी मुट्ठी में,
पी जिसने क्षमा घुट्टी में ।।१९७।।
चलते वक्त आवाज का आना,
जै अच्छा न माना ।।१९८।।
न बोलो ‘ज्यादा’ सुनो,
दिये सो मुख एक कान दो ।।१९९।।
‘देख’ सपने,
कर सके पै कोई एक अपने ।।२००।।
कर सँभल कर जै क्लिक जरा,
मन केमरा ।।२०१।।
न छुपा आप गहल,
जै कहके मन चपल ।।२०२।।
ले जाने वाला दवाखाना,
जै दबा-दबा के खाना ।।२०३।।
आया खींचना, आप कान
आसान ‘कि हुआ ध्यान ।।२०४।।
बाधक भावी भूत ध्यान में,
जिओ वर्तमान में ।।२०५।।
जो ध्यान देने लगता,
उसे ध्यान देने लगता ।।२०६।।
गौर से देखो,
दीवाल पे दिखेंगे, चित्र अनेकों ।।२०७।।
दीवाल खोज काँधो-सर,
आराधो रोज ईश्वर ।।२०८।।
ध्यान में, आना अपने मकान में,
ऽहो कब न हो ।।२०९।।
न लगे तो लो बदल दिशा,
ध्यान ऐनटीने सा ।।२१०।।
ध्यान के बारे में,
सिवा बकवास क्या बक पास ।।२११।।
सोने लेटना,
होता वैसा ध्यान में खोने बैठना ।।२१२।।
धी यानी बुद्धि को, मिल जाना यान,
और क्या ध्यान ।।२१३।।
कोई जी’वन में लाये अन्तर,
तो अपना अन्तर् ।।२१४।।
छिया जिया
ज्यों ज्यों न…र…म
म…र…ण छिया अन्छिया ।।२१५।।
थे हम ‘मनके’,
जाने हुये कब मोतियन के ।।२१६।।
समर्पण का फल,
आया खिलाने सूर्य कमल ।।२१७।।
पड़ा बादलों को रोना,
समर्पण धरा देखो ना ।।२१८।।
वजह अहम्,
छोटी छोटी बातें दे कर गरम ।।२१९।।
वजह अहम्,
हुआ घर जमाई मेहमां गम ।।२२०।।
वजह अहम्,
जो कर सके न हम करीब अर्हम् ।।२२१।।
जाते बदल,
वक्त के साथ-साथ प्रश्नों के हल ।।२२२।।
उन्नीसवां रंग
जग सूर्य के लिये हुआ जगाना,
भाँति रोजाना ।।१।।
की जै ने रात्रि पापों की आलोचना,
ससुलोचना ।।२।।
हथेली मिला के,
है किये दर्शन सिद्ध शिला के ।।३।।
पोर चौबीस,
विराजे प्रत्येक पे तीर्थक ईश ।।४।।
और हथेली आँख पास ला,
रख थोड़ा फासला ।।५।।
पोराग्र रख नजर,
पाता-दर्श प्रतिमा ऽपर ।।६।।
अब खो जाता है,
घड़ी-दो स्वयं का ही हो जाता है ।।७।।
हाथ मलके,
पश्चात् लगाता आँखों पे हल्के-हल्के ।।८।।
साथ ही साथ,
एक-गहरी साँस करता हाथ ।।९।।
करता स्नान वो,
आ मंदिर छुये ‘कि भगवान् को ।।१०।।
निखार दिया,
खास एक दास ने श्रंगार किया ।।११।।
बुनके अभी-अभी आये जो,
वस्त्र पहराये वो ।।१२।।
मुकुट,
सोने बनाया पहराया हार अद्भुत ।।१३।।
जिसमें द्रव्य आठों हैं,
थमाया वो थाल हाथों में ।।१४।।
और तैयार हुआ चलने को जै,
लो जिनालय ।।१५।।
जी बाग-बाग हुआ था,
पंचरंगी देख पताका ।।१६।।
विराजमान रत्नन,
‘देव’-गृह था सुवरण ।।१७।।
उतारना क्या ?
पादत्राण के बिना ही था जै आया ।।१८।।
प्रासुक जल से सबसे पहले,
पाँव प्रक्षाले ।।१९।।
“सिर ढ़कना बंधन न,
यही तो सही वन्दना” ।।२०।।
वहीं लिखा था,
पै सिर ढ़क रखा था सो व्यथा था |।२१।।
छुई देहरी,
त्यों उमंग से भर गई देह भी ।।२२।।
निःसही तीन बार,
कहता हुआ देहरी पार ।।२३।।
दर्पण,
लगा था, लगाता उसमें देख चन्दन ।।२४।।
विराजमान
प्रतिमा सामने ही अर्हन् भगवान् |।२५।।
कटनी तीन,
ऊपर प्रभुवर छतरी तीन ।।२६।।
रहे ढुर,
चौ-सठ चँवर लिये चित्रित-सुर ।।२७।।
चन्दर मुख जिनवर,
तारे-से मोती छतर ।।२८।।
मंगल अष्ट-दरब,
शोभें, खोवें अष्ट गरव ।।२९।।
दूसरा सूर,
भामण्डल करता अंधेरा दूर ।।३०।।
रत्न खचित,
सिंहासन चित्-चोर स्वर्ण रचित ।।३१।।
कल्प विरछा,
पीछे चित्रित सुर-पुष्प बरसा ।।३२।।
प्रतीक दिव्य-धुनि,
चित्रित पीछे देव-दुन्दुभी ।।३३।।
जा पीछे हाथ श्री फल बना,
खड़े जै-सुलोचना ।।३४।।
टिकाये ले जा के दृग्-अनूठे,
श्री-जी पग अँगूठे ।।३५।।
और छू पाने आचरण,
श्री जी के छूता चरण ।।३६।।
प्रक्षालता श्री जी कर हस्त,
हत-करघा-वस्त्र ।।३७।।
स्वर्ण कलशे,
थामें जै ने हाथों में भर जल से ।।३८।।
अब प्रारंभ जलाभिषेक,
जैसा ग्रन्थाभिलेख ।।३९।।
धारा जर्रा भी न टूटी,
चली शान्ति-धारा अनूठी ।।४०।।
माथे लगाया,
गन्धोदक आनन्द अपूर्व पाया ।।४१।।
और करने लगा आरतिया,
ले हाथों में दिया ।।४२।।
अब अर्चना,
प्रभु करते शुरु जै सुलोचना ।।४३।।
जी सूना सूना,
कर दो आकर श्री जी सोना सोना ।।४४।।
दो वर्षा कृपा,
ऐसा-वैसा, जैसा भी हूँ, हूँ आपका ।।४५।।
न अकेले ही आये,
साथ-साथ आँसू भी लाये ।।४६।।
कृपया कर लीजिये आप,
आप सा ही निष्पाप ।।४७।।
श्री चरणों में,
अपने अपनों में रख लो हमें ।।४८।।
बीच भँवर,
नैय्या, मेरे खिवैय्या दो पार कर ।।४९।।
पा सकूँ आप पाँवन रज,
यही एक अरज ।।५०।।
होवे छू शाम ना,
बिन सुमरण प्रभु कामना ।।५१।।
हट हमारी गुस्ताखी की,
आदत थारी माफी की ।।५२।।
दे-बता लगा ताँता,
दिल दुखाना न तुम्हें आता ।।५३।।
भगवान् आप दर्श,
खुशनुमा माँ समान स्पर्श ।।५४।।
गल्तियाँ क्षमा करें माँ,
फिर आप तो परमात्मा ।।५५।।
लो हाथों-हाथ,
किया जिन सहस्र नाम का पाठ ।।५६।।
किया सद्ग्रन्थ पारायण,
करके एकाग्र मन ।।५७।।
शारदे सार दे,
नजर गांधारी माँ निहार दे ।।५८।।
शारदे सार दे,
पीर पारावार से उबार दे ।।५९।।
शारदे सार दे,
पंक दुर्विचार से निकार दे ।।६०।।
शारदे सार दे,
डाल झोली मेरी चाँद चार दे ।।६१।।
शारदे सार दे,
जी, जुबां, नजर, माँ बुहार दे ।।६२।।
शारदे सार दे,
धागे-प्रेम कहीं न उभार दे ।।६३।।
शारदे सार दे,
दौड़े भागे मन ललकार दे ।।६४।।
शारदे सार दे,
नाक चढ़ा भार माँ उतार दे ।।६५।।
शारदे सार दे,
नाम राम पल आर-पार दे ।।६६।।
सत्य में, शिव में, सुन्दर मैं,
सच में, ‘मंगल-मै’ ।।६७।।
नाक रखने वाली,
मिली है नाक मुझे निराली ।।६८।।
मेरी जुबाँ न याद,
था लिया कब चुगली स्वाद ।।६९।।
रहता मेरे होठों पर,
ओंकार आठों पहर ।।७०।।
शगुन,
कान मेरे हैं लेते सुन, भीतरी धुन ।।७१।।
कभी छूती न दिखीं गुनाहे-राहें,
मेरी निगाहें ।।७२।।
विष औरों के होगा,
दाँतों में, मेरे वसे न धोखा ।।७३।।
मेरे नाखूनों में पता,
चाँद पूनो वाला दिखता ।।७४।।
बस पंजों पे मुझे खड़े होना,
हो आकाश बौना ।।७५।।
लाली के बिना,
होंठ मेरे ने जमा रंग अपना ।।७६।।
मेरे दिल की धड़कन,
ले चाले घड़ी का फन ।।७७।।
लाजो शरम राखें,
ये मेरी बड़ी नम सी आँखें ।।७८।।
जादू सा हुआ है,
जरा मेरा गुस्सा, छू सा हुआ है ।।७९।।
बैठूँ ‘कि लग चाले ध्यान मेरा,
है शुकर तेरा ।।८०।।
बद्तमीजी से,
मन मेरा करे न बात किसी से ।।८१।।
अंगुलिंयों पे न नाँचना आया,
न मैंने नचाया ।।८२।।
हिचकीं अच्छी हैं,
यादें किसी ने तो सँजो रक्खी हैं ।।८३।।
लाता खुशिंयों के दर-दर खत जो,
दरख़्त वो ।।८४।।
कषाय मेरी होने लगी शमन,
कृपा भगवन् ।।८५।।
चुभे न मुझे किसी का फनाफन,
कृपा भगवन् ।।८६।।
मुझे किसी से होती नहीं जलन,
कृपा भगवन् ।।८७।।
रोज की भाँत,
वो बिताते पल दो ध्यान के साथ ।।८८।।
दिन हाट का,
दुकान सराफे की है सामायिक ।।८९।।
समाया इक भीतर,
बाहर, ‘म सा’ माया इक ।।९०।।
जी खोला ध्यान से पहले राज,
‘कि हो चुके काज ।।९१।।
डली नोकार नमक डली,
बेली पाप गली ।।९२।।
धूप में छैय्या,
‘महामन्त्र…नोकार’ ध्रुव तरैय्या ।।९३।।
शुभ सगुन,
‘महामन्त्र…नोकार’ समाँ साबुन ।।९४।।
पाप-विहर,
‘महामन्त्र…नोकार’ दूजा रबर ।।९५।।
जि सुब्हो-सुब्हो,
‘महामन्त्र…नोकार’ छुवा शुभ हो ।।९६।।
भगाये डर,
‘महामन्त्र…नोकार’ पठाये-घर ।।९७।।
पारस मणी,
‘महामन्त्र…नोकार’ पास माँ खड़ी ।।९८।।
जादुई छड़ी,
‘महामन्त्र…नोकार’ साधे बिगड़ी ।।९९।।
अच्छा बखत,
‘महामन्त्र…नोकार’ दे बरकत ।।१००।।
ठण्डी में धूप,
‘महामन्त्र…नोकार’ प्यासे को कूप ।।१०१।।
भींगा दया से,
‘महामन्त्र…नोकार’ हीरा तरासे ।।१०२।।
शिव शिविका,
‘महामन्त्र…नोकार’ रथ-दिवि का ।।१०३।।
दाहिने-तिल,
‘महामन्त्र…नोकार’ दरिया-दिल ।।१०४।।
चोर अञ्जन,
‘महामन्त्र…नोकार’ छू निरञ्जन ।।१०५।।
है अपनों में आता,
‘मन्त्र नो-कार’ बर्षा में छाता ।।१०६।।
बुंदिया स्वाती सीप,
‘मन्त्र नो-कार’ घी-बाती दीप ।।१०७।।
जारे से भींच दृग्,
सतरंगी नूर देखा ध्यान में ।।१०८।।
आँखें खुली भी न, मिली-जुली भी न
रक्खी ध्यान में ।।१०९।।
न हटे हटे, होंठ न सटे सटे,
रक्खे ध्यान में ।।११०।।
जुदा न फिदा, अंगुली अंगूठे को,
रक्खा ध्यान में ।।१११।।
मुट्टी करके बन्द,
सुनते ध्वनि नब्ज सानन्द ।।११२।।
मंत्र पढ़के,
गिनती पढ़ते, यूँ जाते बढ़ते ।।११३।।
लगा के कान सुना,
पढ़ जो रहे थे मंत्र चुना ।।११४।।
नाखूँ प्रतिमा पद्मासन,
देखते टिका नयन ।।११५।।
ले श्वास,
बड़ा मन्तर ‘कुछ पढ़ा’ छोड़ उश्वास ।।११६।।
नसों में,
‘छुपे पढ़े मंत्र-अखर हाथ केशों में ।।११७।।
क्रमश: आँखों को मूँद जर्रा-सा,
थे देखें वे नासा ।।११८।।
ले भिन्न-भिन्न कभी,
मंत्र जपते थे वे एक ही ।।११९।।
बिन्दु नौ रखे,
पढ़ नौकार मिला साथिये रचे ।।१२०।।
निरखे अ. सि. आ. उ. सा बने,
सिर काँधे घुटने ।।१२१।।
अरिहंताणं णमो लिक्खा,
ले रंग बाल सूर्य का ।।१२२।।
‘सव्व सिद्धाणं णमो’ लिक्खा,
ले रंग पूर्ण चन्द्रमा ।।१२३।।
‘आइरियाणं णमो’ लिखा,
ले रंग शुद्ध स्वर्ण का ।।१२४।।
‘उवज्झायाणं णमो’ लिक्खा,
ले रंग कण्ठ मोर का ।।१२५।।
‘सव्व साहूणं णमो’ लिक्खा,
ले रंग बर्षा-मेघ का ।।१२६।।
दी रेल अ, सि, सा झण्डी हरी,
बना माथ पटरी ।।१२७।।
सप्रेम,
पूछी जा एकेक अंग से कुशल-क्षेम ।।१२८।।
बिन वैशाखी,
तलक देर जुबाँ हवा में राखी ।।१२९।।
स्लेट माथे,
ले मन पेंसिल, लिक्खे मंत्र-महा थे ।।१३०।।
सजग देर तक,
झॅंपी, न रहे झॅंपा पलक ।।१३१।।
करते जाते हथेली-घंटी टन,
कह ‘जै-अर्हन्’ ।।१३२।।
लिक्खा ‘सिद्धेभ्यः नमः’
सर्वांग शिला सिद्ध-सी जहाँ ।।१३३।।
गाया जै अर्हन्-अर्हन्
सुर-ताल लेके धड़कन ।।१३४।।
नयन झील,
देखे अखर महा मंत्र सलील ।।१३५।।
हाथों से नब्ज थाम,
सुनी मन पे लगा लगाम ।।१३६।।
चाँद-सितारों भरा,
आसमाँ मूँद के दृग्, दृग् धरा ।।१३७।।
होंठों को कुछ उठाया,
देर ‘फिर के’ न बिठाया ।।१३८।।
बैठ मानस-रथ,
सहज कर आये तीरथ ।।१३९।।
मन ही मन कर विक्रिया,
दान आहार दिया ।।१४०।।
तारों से लिक्खे मंत्र अखर,
स्लेट आकाश कर ।।१४१।।
की दिग्-वन्दना,
कराके अपराध क्षमा अपना ।।१४२।।
लौटे ले पुण्य अमोल,
यूँ अःसही-अ:सही बोल ।।१४३।।
बीसवां रंग
अब दर्शन के लिये,
चक्री पास जै चल दिये ।।१।।
दीखी अयोध्या नगरी,
दूसरी ही अलका-पुरी ।।२।।
‘विचित्र’ द्वार,
सार्थ साथ गो-शेर पाये आहार ।।३।।
‘अ, सि, आ, उ, सा’
था लिक्खा,
मुख्य द्वार ‘जय जिनेद्रा’ ।।४।।
गैय्या-मैय्या
थी हर घर के आगे बछिया-गैय्या ।।५।।
थे पत्थरों के सभी के घर-द्वार,
नक्कासी-दार ।।६।।
थी पचरंगी ध्वजाएँ,
घर-घर क्या बतलाएँ ।।७।।
हतकरघा,
था एकेक अम्बर चल चरखा ।।८।।
मधुर जल धारा,
कूप सुन्दर सा कछवारा ।।९।।
था कहाँ-कहाँ ना
पंछी ‘इंतजाम ए आव-दाना’ ।।१०।।
रुकते सन्त महान,
आ उद्यान, भेंटते ज्ञान ।।११।।
नगर वधु शाला,
न वधशाला, न मधुशाला ।।१२।।
औषद्यालय थे,
जगह-जगह विद्यालय थे ।।१३।।
राज भवन,
था एक बीचोंबीच सभा सदन ।।१४।।
विराजमान,
जिसमें छः खण्ड़ों के एक प्रधान ।।१५।।
भरत,
नाम जिनके कारण ही देश भारत ।।१६।।
जात-पात से,
चक्री-भरत दूर पक्ष-पात से ।।१७।।
माँगने वाला बस माँगे,
रहें ये देने में आगे ।।१८।।
इंसा करने वाला पूरण मंशा,
‘जि न इन-सा ।।१९।।
इनको खूब आता,
लगा दूसरों को आना छाता ।।२०।।
नरम दिल,
इंसा नहीं इनसा रहम दिल ।।२१।।
सुनते
सभी को अपने अपनों में, ये चुनते ।।२२।।
जा भीतर के,
‘अये ! हो जाते हैं ये’ आ बाहर के ।।२३।।
भले सदन में,
सदन नहीं पै रहे इनमें |।२४।।
फैलाना बाहें आदत,
इबादत, दिखाना राहें ।।२५।।
दुख-दरद कर देते छू,
दूजे ही कल्पतरु ।।२६।।
भुलाते ना,
‘जी’ शरणार्थिन कभी भी दुखाते ना ।।२७।।
देते रहते छैय्या,
‘औरन’ नैय्या खेते रहते ।।२८।।
जै दृग् चकोर,
देखे सतत शशि भरत ओर ।।२९।।
माँगे भरत पाँव पद्म क्षमा,
जै भाल चन्द्रमा ।।३०।।
जै को इनेश,
उठाता चन्द्रमा को जैसे दिनेश ।।३१।।
और गले से है लेता लगा,
भाव आत्मीय जगा ।।३२।।
द्यु-तरु-पात हाथ,
उनसे उठा कर जै माथ ।।३३।।
मुख,
तलक-पलक अपलक लखता छक ।।३४।।
तदनन्तर,
प्रसन्न मन देता आसन-अर ।।३५।।
आसीन हुआ,
जै चक्री पग-जुग दृग् मीन छुआ ।।३६।।
जै आज भूले कैसे राह,
पूछते जहाँपनाह ।।३७।।
दीजे माफी,
न यही, और भी बन पड़ी गुस्ताखी ।।३८।।
स्वल्प स्वारथ वशी,
कराई आप पुत्र की हँसी ।।३९।।
किया मैंने ‘गो’ को फना,
पाने जर्रा-सा गोरोचना ।।४०।।
समाँ चन्द्रमा, कलंक कराला,
न धुलने वाला ।।४१।।
वचन जल धारा,
लो छोड़ी गई चक्री के द्वारा ।।४२।।
अर्क-कीर्ति थे अपराधी,
आप न सुलोचना ही ।।४३।।
सूर पतन,
हुआ न रुका निशि शशि मिलन ।।४४।।
जीता सत्य ही हमेशा,
देखा खूब सुना भी ऐसा ।।४५।।
डूबता आप,
डुबाना पड़े फोड़ न घड़ा पाप ।।४६।।
गैरों को गड्डा खोदे,
गिरे वो खुद आ मुख ओंधे ।।४७।।
नुछिन,
फाँसे मकरी जाल उसी खुदेक दिन ।।४८।।
फिर भी आप दें क्षमा दान,
उसे नादान जान ।।४९।।
उसकी ओर से,
क्षमा चाहता मैं हाथ जोड़ के ।।५०।।
कहता हुआ ना… ना… नाथ,
रखता जै कान हाथ ।।५१।।
डबडबाता
दृग्-जुग, गला उस का भर आता ।।५२।।
कहता आप तो दीजिये शरणा,
कर करुणा ।।५३।।
आशीष आप अपना,
रक्खें बना यही कामना ।।५४।।
खबर, रक्खे रहें, नज़र
‘जि यूँ ही हम पर ।।५५।।
गुणानुवाद,
करता और और जै जोड़ हाथ ।।५६।।
तदनन्तर,
माँगता विहार की आज्ञा दृग्-तर ।।५७।।
कहा हो रहे होंगे सभी अधीर,
गंगा के तीर ।।५८।।
और आ गया वहाँ,
था जहाँ सारा उसका जहाँ ।।५९।।
रोमांच वाला तन,
लिये जै भाव-विभोर मन ।।६०।।
जाना सभी ने आप-आप,
चक्री ने किया मुआफ ।।६१।।
समाँ दीवाली सा पावन,
हो चला समाँ सावन ।।६२।।
रंगो-गुलाल उड़ी माफिक होली,
सँजी रंगोली ।।६३।।
पग थिरक रहे,
किसके न दृग् मटक रहे ।।६४।।
थे बाजे वाद्य यंत्र सारे,
न सिर्फ ढ़ोल नगाड़े ।।६५।।
जल विहार का मन बना,
चाले जै सुलोचना ।।६६।।
उतरे ही थे जल में
पड़े दोनों ‘कि मुश्किल में ।।६७।।
बढ़ने लगा जल,
पाये संभल भी न संभल ।।६८।।
दोनों फिसले,
और सुदूर गये बहते चले ।।६९।।
सुलोचना जै,
माला फेरी तुरन्त, ‘जै अरिहन्त’ ।।७०।।
आ एक देवी ने तभी,
दूर-किया विघन सभी ।।७१।।
और करती निशंक जै,
अपना दे परिचय ।।७२।।
किया मुझ पे नागिन वार,
पल-वन विहार ।।७३।।
सुलोचना ने किया उपकार,
दे मंत्र नौकार ।।७४।।
अमर देवी,
मैं, ‘मरके हुई’ वो अवर देवी ।।७५।।
वही आप से रुष्ट हो,
हा ! आई थी देने कष्ट को ।।७६।।
मुझसे डर,
चली वो गई लगा पॉंवन ‘पर’ ।।७७
और चाहती आज्ञा मैं भी,
दीजिये भूलों की माफी ।।७८
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