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श्री सिद्धचक्र मण्डल विधान

8. सिद्ध-चक्र मंडल विधान अष्टम वलय

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सिद्ध-चक्र मंडल विधान
अष्टम वलय

*श्री वर्धमान मंत्र*
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रि-सहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, वि-वाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्-भणे वा, मो-हणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अव-राजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।

नव देवता संस्तवन

प्राणों से प्यारे हैं ।
इक मात्र सहारे हैं ।।
नव-देव हमारे है ।
प्राणों से प्यारे हैं ।।

युगपत् जग जाना ।
जन-जन हित ठाना ।
अगणित गुणवाना ।
धन पुण्य पिटारे हैं ।
नव-देव हमारे है ।।१।।

सिर लोक विराजे ।
जग ढ़ोक नवाजे ।
‘बाजे’ कृत-काजे ।
भव सिन्धु किनारे हैं ।
नव-देव हमारे है ।।२।।

इक भाग विधाता ।
जिन दीक्ष प्रदाता ।
जागृत दिन राता ।
नभ जैन सितारे हैं ।
नव-देव हमारे है ।।३।।

खोलें दृग तीजा ।
हैं दृग पाकीज़ा ।
सम्यक् दृग बीजा ।
तम जग, उजियारे हैं ।
नव-देव हमारे है ।।४।।

थिर आसन माड़े ।
बरसा-तप जाड़े ।
हित श्रुत नत ठाड़े ।
अपनों से हारे हैं ।
नव-देव हमारे है ।।५।।

दश धर्म क्षमादी ।
तप शील व्रतादी ।
विधि धार समाधी ।
सुख दिव-शिव द्वारे हैं ।
नव-देव हमारे है ।।६।।

कीरत वरदानी ।
तीरथ कल्याणी ।
तीर्थक जिनवाणी ।
नुति वारे न्यारे हैं ।
नव-देव हमारे है ।।७।।

कर पे कर धारा ।
नासिका निहारा ।
विरहित श्रृंगारा ।
नीरव जयकारे हैं ।
नव-देव हमारे है ।।८।।

लहरे पचरॅंगा ।
‘गुल’ श्रावक भंगा ।
पद चिह्न निसंगा ।
भू स्वर्ग नजारे हैं ।
नव-देव हमारे है ।।९।।
ॐ ह्रीं श्री नव देवता भगवन् !
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सिद्ध-चक्र मंडल विधान की
गौरव गाथा

अष्टाह्निक में सिद्ध-चक्र का,
पाठ कर लो ।
गुरु चरणों में मैना जैसे,
आँख भर लो ॥

बिगड़ा बन जायेगा काम ।
मंजिल लिख जायेगी नाम ।
घर पहुचेंगे पहले शाम ।
बस काफी, कहना भगवन् से,
लाज रख लो ।
अष्टाह्निक में सिद्ध-चक्र का,
पाठ कर लो ॥१॥

पुत्री सुर सुन्दर इक मैना ।
नृप पहुपाल कीर्ति क्या कहना ।
लौटी कर मत शैव पढ़ाई,
‘सुर सुन्दर’ बस ‘वर-वर’ अपना ॥
अपने हाथ न अपना मक्कड़,
जाल बुन लो ।
अष्टाह्निक में सिद्ध-चक्र का,
पाठ कर लो ॥२॥

मैना पढ़ी आर्यिका माँ से ।
देखें पिता शारदा भासे ।
‘जैसे बहना ‘वर-वर’ अप‌ना,
नृप पहुपाल कहें मैना से ॥
सार्थ शब्द मर्याद मरण तक,
याद रख लो ।
अष्टाह्निक में सिद्ध-चक्र का,
पाठ कर लो ॥३॥

हम जो भाग लिखा के लाते ।
मैना कहे, जुड़ें वे नाते ।
बोले पिता भाग जश गाती,
हम भी तेरे पिता, बताते ॥
और ब्याह दी कोढ़ी, ‘होनी’,
सार्थ लिख लो ।
अष्टाह्निक में सिद्ध-चक्र का,
पाठ कर लो ॥४॥

रोती माई देख विदाई ।
आँख पिता की भी भर आई ।
मैना कहे, करो माँ जल्दी,
देनी पति को मुझे दवाई ॥
पति-सेवा भव पार लगाई,
नार ! सुन लो ।
अष्टाह्निक में सिद्ध-चक्र का,
पाठ कर लो ॥५॥

मैना चली दर्श अरिहंता ।
बैठे दिखे सन्त निर्ग्रन्था ।
अपनी राम कहानी कह दी,
वैसे अंतर्याम महन्ता ॥
हम शिशु गुरु, श्रुत, देव मात पद,
माथ रख लो ।
अष्टाह्निक में सिद्ध-चक्र का,
पाठ कर लो ॥६॥

ढारो सिद्ध-यन्त्र जलधारा ।
‘वस’ दिन कार्तिक, फाग, असाढ़ा ।
साधो सिद्ध-चक्र, जप मन्तर,
‘अ सि आ उसा’, लगा जयकारा ॥
हरस बरस बस आठ पाठ सिध-
चक्र रच लो ।
अष्टाह्निक में सिद्ध-चक्र का,
पाठ कर लो ॥७॥

करते ही प्रभु ! आप भरोसे ।
मैना आँख भरी खुशियों से ।
पति सति मैना गई सराही,
साथी कोढ़ी सातक सौ से ॥
फेंको लाठी, तिमिर मेंटने,
दीप मण लो ।
गुरु चरणों में मैना जैसे,
आँख भर लो ॥
बिगड़ा बन जायेगा काम ।
मंजिल लिख जायेगी नाम ।
घर पहुचेंगे पहले शाम ।
बस काफी, कहना भगवन् से,
लाज रख लो ।
अष्टाह्निक में सिद्ध-चक्र का,
पाठ कर लो ॥८॥

(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)

सिद्ध-चक्र मंडल विधान पूजन

जय जयकारा जय जयकारा ।
सिद्ध यंत्र को नमन हमारा ॥
आगे पीछे रेफ, मध्य सह,
बिन्दु हकारा ।
कमलाकृति-दल कर्णि पूर्व सिध,
स्वर दश चारा ॥
फिर कवर्ग, फिर चवर्ग नीचे ।
फिर टवर्ग, फिर तवर्ग पीछे ॥
फिर पवर्ग अंतस्थ-ऊष्म यूँ,
साथ अनाहत मन्तर न्यारा ।
अंत ह्रीम् बेढ्यो अति प्यारा ॥
मंत्र णमो अरिहंताणं मध,
पाँखन विस्तारा ।
सिद्ध यंत्र को नमन हमारा ।
जय जयकारा जय जयकारा ॥
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं
श्री सिद्ध यंत्र
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)

“पुष्पांजलिं क्षिपामि”

सिद्ध मंत्र आलापता,
असि-आ उसा प्रसिद्ध ।
सिद्ध यंत्र को थापता,
हित सरवारथ सिद्ध ॥
इति यन्त्रस्-थापनार्थं पुष्पांजलिं क्षिपेत्

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् ‘पूर्वर स्वर-चौदह वर्णा ॥१॥
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ
ऋ ॠ ऌ ॡ ए ऐ ओ औ अं अः
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् आग्ने-यर, वर्ण कवर्गा ॥२॥
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् दक्षिण-अर, वर्ण चवर्गा ॥३॥
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
दक्षिण-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् नैऋत्-त्यर, वर्ण टवर्गा ॥४॥
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् पश्चिम-अर, वर्ण तवर्गा ॥५॥
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् बायव्-व्यर वर्ण पवर्गा ॥६॥
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् उत्तर अंतस्थ सुवर्णा ॥७॥
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् ईशा-नर ऊष्मक वर्णा ॥८॥
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

अथ सिद्ध भक्ति कायोत्सर्ग
॥ प्राकृत पद्यानु-वाद ॥

॥ दोहा ॥
सिद्ध, ज्ञान, दर्शन-मयी,
जीव-घणा, अशरीर ।
अनाकार, साकार भी,
कुछ कम देह-अखीर ॥१॥

॥ चौपाई ॥
बंधोदय सत्-कर्म अराती ।
प्रकृति मूल-उत्तर संघाती ॥
मंगल-भूत अष्ट गुण-वन्ता ।
जल-संसार तीर अगणंता ॥२॥

सिद्धी-भूत निरंजन, नित्या ।
विकल कर्म विध-वस कृत-कृत्या ॥
सार्थ सिद्ध लोकाग्र निवासी ।
अष्टक प्रमुख शगुन गुण-राशी ॥३॥

नष्ट अष्ट मल-कर्म विशुद्धा ।
सिद्ध, बुद्ध नव-लब्धि समृद्धा ॥
शेखर-मुकुट भुवन-तिहुँ माथा ।
श्री-मद्-भट्टारक जग-त्राता ॥४॥

॥ दोहा ॥
गमना-गमन विमुक्त जे,
प्रकृति कर्म संघात ।
शाश्वत सुख संयुक्त वे,
सिद्ध विमुक्त-उपाध ॥५॥

॥ चौपाई ॥
मंगल-भूत दुभू पाताला ।
निर्मल परिणत बहती धारा ॥
दर्शन, अवगम, चारित सहिता ।
द्रव्य कर्म, नो-कर्म वि-रहिता ॥६॥

केवल दर्शन, चारित, ज्ञाना ।
निध-सम्यक्त्व, वीर्य-अप्रमाणा ॥
सूक्ष्म, अगुरुलघु, अव्या-बाधा ।
अवगाहन गुण अष्टक साधा ॥७॥

तप से सिद्ध, सिद्ध संयम से ।
नय से सिद्ध, सिद्ध अवगम से ॥
दर्शन, ज्ञान, सिद्ध आचरणा ।
हों प्रसन्न, वे तारण-तरणा ॥८॥

॥ दोहा ॥
कीना कायोत्सर्ग है,
भक्ति सिद्ध जिन नाथ ।
आलोचन उसका करूँ,
हाथ जोड़ नत माथ ॥९॥

॥ चौपाई ॥
भूषण-भू-वस, कल्मष-क्षीणा ।
चरित, ज्ञान, दर्शन समिचीना ॥
सिद्ध भूत, वर्तमान, भावी ।
नन्ता-नन्त काल अप्रभावी ॥१०॥

बुध-प्रतेक ! बुध-बोधित ! बुद्धा !।
बुध-अनेक, बुध-स्वयं ! विबुद्धा !॥
उनका पूजन, वन्दन करता ।
मन, वच, तन अभिनन्दन करता ॥११॥

कर्म क्षीण हो, दुख विलीन हो ।
संगत-साध, सुगति अधीन हो ॥
बोधि ‘निराकुल’ समाधि पाऊँ ।
धन ! जिन-गुण-सम्पद् पा जाऊँ ॥१२॥

(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)

अकृत्रिम जिनालय अर्घ्यं

आठ करोड़ लाख छप्पन ।
सन्त्यानवे हजार धन ! धन ! ॥
इक्यासी ऊपर सौ चार ।
अखर जिनालय जय जयकार ॥
ॐ ह्रीं आठ करोड़, छप्पन लाख,
सन्त्यानवे हजार, चार सौ इक्यासी
श्री अकृत्रिम जिनालयेभ्यो नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

अकृत्रिम जिन बिम्ब अर्घ्यं

कोटिक नव सौ पच्चीसा ।
लाख तिरेपन सत-बीसा ॥
हजार, नव सौ अड़तालीस ।
नुति जिन-बिम्ब अखर निशिदीस ॥
ॐ ह्रीं नौ सौ पच्चीस करोड़,
तिरेपन लाख, सत्ताईस हजार,
नव सौ अड़तालीस
श्री अकृत्रिम जिन बिम्बेभ्यो नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

अष्टम वलय पूजन

पार, लग चला आप बेड़ा ।
भँवर में है जहाज मेरा ।
ना पराया मैं भी तेरा ।
मुझे भी सिरपुर चलना है,
कहो भी क्या ? करना होगा ।
कमल सा भिन जल खिलना है,
कहो भी क्या ? करना होगा ॥
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं
सिद्ध परमेष्ठिन्
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)

रखी सिर गज-कुमार सिगड़ी ।
स्वप्न भी कहाँ आह ! निकली ।
तभी जा बँधी मुक्ति पगड़ी ।
लाज, करना गहना होगा,
विहरना जामन मरणा है ।
मुझे भी सिरपुर चलना है,
कहो भी क्या ? करना होगा ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।

श्यालिनी पैर भखे जाये ।
माथ सुकुमाल न शल लाये ।
मुक्ति राधा पिय कहलाये ।
क्षमा सबसे कहना होगा,
ताप संसार विहरना है ।
मुझे भी सिरपुर चलना है,
कहो भी क्या ? करना होगा ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।

पिंनाये तप्त लोह गहने ।
लगे पाण्डव कर्मन दहने ।
शुक्ल ध्यानानल क्या ? कहने ।
स्व-ढिग कछु…आ रहना होगा,
हाथ पद अक्षत करना है ।
मुझे भी सिरपुर चलना है,
कहो भी क्या ? करना होगा ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।

वेदना कुष्ट सनत चक्री ।
सहजता जिक्र सभा शक्री ।
देवता नत लख बेफिक्री ।
धार विधि क्या बहना होगा,
ब्रह्मचर व्रत आदरना है ।
मुझे भी सिरपुर चलना है,
कहो भी क्या ? करना होगा ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।

दैत्य मनसूबे बढ़ काले ।
देश-कुल-भूषण सह चाले ।
लखन, सिय, राम भक्त पाले ।
बनें मर…हम कहना होगा,
चाह भीतर अमि झरना है ।
मुझे भी सिरपुर चलना है,
कहो भी क्या ? करना होगा ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

अत्त बलि ब्राह्मण ने ढाया ।
नाम वत् ‘अकंप’ आचार्या ।
विक्रिया विष्णु कुँवर माया ।
ध्यान दव मद दहना होगा,
कर्म अष्टक अपहरना है ।
मुझे भी सिरपुर चलना है,
कहो भी क्या ? करना होगा ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।

पाँच सौ मुनि घानी पेले ।
धार सम-रसता दुख झेले ।
राधिका शिव होरी खेले ।
न कह, क्या ? सब सहना होगा,
जगा दीपक तम हरना है ।
मुझे भी सिरपुर चलना है,
कहो भी क्या ? करना होगा ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।

आन मुनि वृषभ शिला बैठे ।
था छिपा शत्रु आग ले के ।
‘सूर’ तप रहा माह जेठे ।
दृष्टि नासा गहना होगा,
वर निराकुल सुख वरना है ।
मुझे भी सिरपुर चलना है,
कहो भी क्या ? करना होगा ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।

जल, गंधाक्षत, पुष्प, चरु,
दीप, धूप, फल, अर्घ ।
भेंटूँ, सिद्धों सा लगूँ,
जा सीधे अपवर्ग ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

एक हजार चौबीस में से
सात सौ छियत्तर से
एक हजार चौबीस तक
अर्घ

आँख पहने लाज गहने ।
पीर पर लख लगे बहने ।
श्री-कमला-निधये नमः,
साध अष्टक कर्म दहने ॥ ७७६ ॥
ॐ नमः
कमला-निधये-स्वाहा ।

पद्म सी चारु नाभ ।
रूप-सी देह आभ ।
नक्षत्र-नाथाय नमः,
साधका मुक्ति लाभ ॥ ७७७ ॥
ॐ नमः
नक्षत्र-नाथा-यस्-स्वाहा ।

शुभ्र चाँदनी फीकी ।
प्रभा आप गुण नीकी ।
नमः श्री शुभ्रांशवे,
साध बेलि पुन पीकी ॥ ७७८ ॥
ॐ नमः
शुभ्रांशवे-स्वाहा ।

बुरा बदले, दे बूरा ।
मनोबल कर्मन चूरा ।
सौम्य भाव रताय नमः,
मंत्र मन-भावन पूरा ॥ ७७९ ॥
ॐ नमः
सौम्य-भाव-
रता-यस्-स्वाहा ।

क्यूँ कर मिटे निशानी ।
कुमुद-नाल जो पानी ।
कुमुद-बांधवाय नमः,
साध बनो सद्-ध्यानी ॥ ७८० ॥
ॐ नमः
कुमुद-बांधवा-यस्-स्वाहा ।

निमित योग पाकर ।
बन न चले पामर ।
धर्म रतये नमः,
साधो ! निशि-वासर ॥ ७८१ ॥
ॐ नमः धर्म-रतये-स्वाहा ।

सहज निराकुल परिणति न्यारी ।
सहिष्णु वस्तु स्वरूप विचारी ।
नमः आकुलता रहित जानाय,
साधो ! सुमरण पुण्य पिटारी ॥ ७८२ ॥
ॐ नमः
आकुलता-रहित-
जिना-यस्-स्वाहा ।

सिमरन पुण्य जमा ।
केवल ज्ञान रमा ।
नमः पुण्य जिनाय,
साधो ! पून-अमा ॥ ७८३ ॥
ॐ नमः
पुण्य-जिना-यस्-स्वाहा ।

पुण्य फल अरिहन्ता सुन ।
मोक्ष, पथ-निर्ग्रन्था चुन ।
पुण्य जिनेश्वराय नमः,
साध शिव वधु कंता, धुन ॥ ७८४ ॥
ॐ नमः
पुण्य-जिनेश्वरा-यस्-स्वाहा ।

धर्म एक कम नहीं ।
रंच परिश्रम नहीं ।
धर्म राजाय नमः,
सर उठाय यम नहीं ॥ ७८५ ॥
ॐ नमः
धर्म-राजा-यस्-स्वाहा ।

भोग राज सर्प फण ।
‘योग’ ताज कर्म हन ।
भोग रा-जाय नमः,
रोग गाज सुमरणन ॥ ७८६ ॥
ॐ नमः
भोग-राजा-यस्-स्वाहा ।

स्वर्ग शिव दर्शिका, आपकी देशना ।
मार्ग रत्नत्रयी सिर्फ काय-क्लेश ना ।
दर्शनग्-ज्ञान चारित्रात्म जिनाय ई,
मंत्र के जाप से, स्वर्ग जश गाय ‘री ॥ ७८७ ॥
ॐ नमः
दर्शन-ज्ञान-चारित्रात्म-
जिना-यस्-स्वाहा ।

अनेकान्त तुम वाँचा ।
भवि ! मन मयूर नाँचा ।
भूता-नन्दाय नमः,
साधो ! मन्तर साँचा ॥ ७८८ ॥
ॐ नमः
भूता-नन्दा-यस्-स्वाहा ।

गृद्धि से था मुँह फेरा ।
सिद्धि ने डाला डेरा ।
नमः सिद्धि कान्त जिनाय,
साध धन ! साँझ सवेरा ॥ ७८९ ॥
ॐ नमः
सिद्धि-कान्त-
जिना-यस्-स्वाहा ।

शक्रि माला मुरझाये ।
चक्रि जश पट्ट मिटाये ।
अक्षया-नन्दाय नम:,
साध, यम भागा आये ॥ ७९० ॥
ॐ नमः
अक्षया-नन्दा-यस्-स्वाहा ।

इन्द्र शत बड़े बड़े ।
रत विरद खड़े खड़े ।
नमः बृहतां पतये,
जप विघन अड़े, बढ़े ॥ ७९१ ॥
ॐ नमः
बृहतां-पतये-स्वाहा ।

छह छह घड़ी अमृत रस बाँटा ।
कहाँ पराया-अपना छाँटा ।
अपूर्व-देवो-पदेष्-ट्रे नमः,
साध नाव तट लागी डाँटा ॥ ७९२ ॥
ॐ नमः
अपूर्व-देवो-पदेष्-ट्रे-स्वाहा ।

तप, चरित, दर्शन, ज्ञाना ।
सिद्ध नय, संयम नाना ।
सिद्ध समूहेभ्यो नमः,
साध मन, काया, वाणा ॥ ७९३ ॥
ॐ नमः
सिद्ध-समूहेभ्यो-स्वाहा ।

शुद्ध बहते पानी ।
बुद्ध आतम ज्ञानी ।
शुद्ध बुद्धाय नमः,
जाप इक वरदानी ॥ ७९४ ॥
ॐ नमः
शुद्ध-बुद्धा-यस्-स्वाहा ।

शब्द त…म पलट लिया ।
जुड़ी साँच म…त धिया ।
तमो भेदने नमः,
साध लो जगा ‘दिया’ ॥ ७९५ ॥
ॐ नमः
तमो-भेदिने-स्वाहा ।

पहली मछली छुड़ा संभाला ।
छुड़ा मांस कौए का तारा ।
श्री धर्म मार्ग दर्शक जिनाय,
नमः साध, ले दृग जल धारा ॥ ७९६ ॥
ॐ नमः
धर्म-मार्ग-दर्शक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

वीतराग, सर्वज्ञ, हितैषी ।
वृत्ति निराकुल अपने जैसी ।
सर्व-शास्त्र निर्णायक जिनाय,
नमः न साधी, वि-मुक्ति कैसी ॥ ७९७ ॥
ॐ नमः
सर्व-शास्त्र-निर्णायक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

चार गतियाँ संसारा ।
पार रत्नत्रय धारा ।
नमः पंचम गति जिनाय,
साध इक मंत्र सहारा ॥ ७९८ ॥
ॐ नमः
पञ्चम गति-
जिना-यस्-स्वाहा ।

आप देशना पकड़ो काना ।
फिर गलती न वही दुहराना ।
श्रेष्ठ सुमति दात्रि जिनाय नमः,
साध न अबकी मुंह की खाना ॥ ७९९ ॥
ॐ नमः
श्रेष्ठ-सुमति-दात्री-
जिना-यस्-स्वाहा ।

गत थम चाली ।
मृग दीवाली ।
नमः सु-गतये,
साध निराली ॥ ८०० ॥
ॐ नमः
सुगतये-स्वाहा ।

कुछ न कहा, रख चर्या नीकी ।
वल्लरी धर्म प्रभावन सींची ।
श्रेष्ठ कल्याण कारक जिनाय,
नमः साधना आप सरीखी ॥ ८०१ ॥
ॐ नमः
श्रेष्ठ-कल्याण-कारक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

जिस चाहे हित सिसकी भरते ।
जब देखो तब हिंचकी भरते ।
परमेश्वरीय सम्पन्नाय,
नमः नाद चल फिर की भरते ॥ ८०२ ॥
ॐ नमः
परमेश्वरीय-सम्पन्ना-यस्-स्वाहा ।

बरक के थोड़ा निकसे ।
ब्रह्म पर में भी निवसे ।
नमः श्री परब्-ब्रह्मणे,
साध मन-वाणी तन से ॥ ८०३ ॥
ॐ नमः
परब्-ब्रह्मणे-स्वाहा ।

स्वभाव धर्म प्रकाशा ।
अष्टक कर्म विनाशा ।
नमः कर्मारि जिताय,
साधो ! भर उल्लासा ॥ ८०४ ॥
ॐ नमः
कर्मारि-जिते-स्वाहा ।

स्वयं आतम को पहिचाना ।
विश्व बोला त्रिभुवन जाना ।
सर्व शास्त्रज्ञ जिनाय नमः,
अलावा आत्म क्या पुराणा ॥ ८०५ ॥
ॐ नमः
सर्व-शास्त्रज्ञ-
जिना-यस्-स्वाहा ।

दो चार साध्य गणना ।
तन आप सार्थ लखना ।
नमः सुलक्षण जिनाय,
जाप हित समाधि मरणा ॥ ८०६ ॥
ॐ नमः
शुभ-लक्षण
जिना-यस्-स्वाहा ।

सिर्फ सीखना चाहे कोई ।
खड़े पसारे बाहें दोई ।
नमः श्री सर्व बोध सत्त्वाय,
मन्तर साध निराकुल होई ॥ ८०७ ॥
ॐ नमः
सर्व-बोध-
सत्त्वा-यस्-स्वाहा ।

दिये भी लेते ना ।
दुख दर्द देते ना ।
निर्विकल्-पाय नमः,
सिद्ध गौरव जैना ॥ ८०८ ॥
ॐ नमः
निर्विकल्पा-यस्-स्वाहा ।

सार्थ प…ढ़ाई कक्षा दूजी ।
दया, क्षमा, समता की पूँजी ।
नमः अद्-द्वि-तीय बोध जिनाय,
यूँहि न सुर-लहरी नभ गूँजी ॥ ८०९ ॥
ॐ नमः
अद्वितीय-बोध-
जिना-यस्-स्वाहा ।

राह हो काँटों की ।
उठा लेते गोदी ।
लोक पालाय नमः,
साध स्वर्गिक मोखी ॥ ८१० ॥
ॐ नमः
लोक-पाला-यस्-स्वाहा ।

था प्रयास पहले से ही ।
निस्संदेही देह विदेही ।
नमः आत्म रस रत जिनाय ई,
मंत्र साध भवि ! निस्पृह नेही ॥ ८११ ॥
ॐ नमः
आत्म-रस-रत-
जिना-यस्-स्वाहा ।

‘मैं हूँ ना’ बोला ।
दर्द भक्त घोला ।
नमः शान्ति दात्रे,
मन्तर अनमोला ॥ ८१२ ॥
ॐ नमः
शान्ति-दात्रे-स्वाहा ।

जले न, मनमानी आगी ।
गले न पानी बढ़-भागी ।
नमः अभेद्या-छेद्य जिनाय,
साध मन बनने वैरागी ॥ ८१३ ॥
ॐ नमः
अभेद्या-छेद्य
जिना-यस्-स्वाहा ।

पंचस्-कंध-देहमय आतम ।
झूठ न पूर्व-विदिद, श्रुत आगम ।
श्री पंचस्-कंधे-मयात्म-दृशे,
नमः न साधी, छाया मातम ॥ ८१४ ॥
ॐ नमः
पंचस्-कंधे-
मयात्म-दृशे-स्वाहा ।

शुद्ध बुद्ध में एक स्वरुपी ।
चिन्मय, चिदानंद चिद्रूपी ।
मंत्र साध भूतार्थ भावना,
सिद्धाय नमः ज्ञातृ-अरूपी ॥ ८१५ ॥
ॐ नमः
भूतार्थ-भावना-
सिद्धा-यस्-स्वाहा ।

चार मुख दीख पड़े हैं ।
और हित चीख पड़े हैं ।
नमः चतुरानन जिनाय,
साधक अभीक बड़े हैं ॥ ८१६ ॥
ॐ नमः
चतुरानन-जिना-यस्-स्वाहा ।

गत लोभ भयाशा ।
सत बोल प्रकाशा ।
नमः सत्य-वक्त्रे,
जप और जरा सा ॥ ८१७ ॥
ॐ नमः
सत्य-वक्त्रे-स्वाहा ।

रज चिपक न पाई ।
तिल-नेह विदाई ।
निरास्रवाय नमः
जप पुनि दुहराई ॥ ८१८ ॥
ॐ नमः
निरास्रवा-यस्-स्वाहा ।

चार भूमिका चौ अनुयोगा ।
दे चाले उपदेश नियोगा ।
नमः चतुर्-भूमिक शा-सनाय,
झोरी भक्त ज्ञान नीरोगा ॥ ८१९ ॥
ॐ नमः
चतुर्-भूमिक-
शा-सना-यस्-स्वाहा ।

एक बाद ‘दूजा’ ।
सिद्ध नाद गूँजा ।
नमः अन्वयाय,
साध साध पूजा ॥ ८२० ॥
ॐ नमः
अन्वया-यस्-स्वाहा ।

भावना समाधी फल पाया ।
मरण पण्डित-पण्डित भाया ।
नमः समाधि निमग्न जिनाय,
स्वर्ग बन भगत भगत आया ॥ ८२१ ॥
ॐ नमः
समाधि निमग्न
जिना-यस्-स्वाहा ।

पाल महाव्रत भूम देवता ।
सिद्ध आज, लें झूम देवता ।
नमः लोक-भाल तिलक जिनाय,
साध पीछे हुजूम देवता ॥ ८२२ ॥
ॐ नमः
लोक-भाल-तिलक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

मति ख़रग़ोश हटाई ।
कछुआ बुद्धि जगाई ।
तुच्छ भाव भिदे नमः,
‘साध’ गुणा फल दाई ॥ ८२३ ॥
ॐ नमः
तुच्छ-भाव-भिदे-स्वाहा ।

झलकी द्रव्य कतार ।
नासा भार किनार ।
नमः षट् द्रव्य दृशे,
तीजी दृग् दृग् चार ॥ ८२४ ॥
ॐ नमः
षट्-द्रव्य-दृशे-स्वाहा ।

दूसरा पहलू रख कोरा ।
लिया तुमने सिक्का दौड़ा ।
नमः सकल वस्तु विज्ञात्रे,
साध रग दौड़े लहु धौरा ॥ ८२५ ॥
ॐ नमः
सकल-वस्तु-
विज्ञात्रे-स्वाहा ।

पुण्य पाप मिल तत्त्व समस्ता ।
नव पदार्थ वादन अभ्यस्ता ।
नमः समस्त पदार्थ वादिने,
साध काय, मन, वचन प्रशस्ता ॥ ८२६ ॥
ॐ नमः
समस्त-पदार्थ-
वादिने-स्वाहा ।

‘मात्र प्रदेश’ काल बिन पंचा ।
अस्तिकाय विद् आप विरंचा ।
पंचास्तिकाय बोधक जिनाय,
नमः साध विगलित त्रुटि रंचा ॥ ८२७ ॥
ॐ नमः
पञ्चास्तिकाय-बोधक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

मति आदिक जे ज्ञान समूचे ।
तिन अध्यक्ष आप नभ गूँजे ।
नमः श्री ज्ञानाध्यक्ष जिनाय,
साध मंत्र बीजाक्षर दूजे ॥ ८२८ ॥
ॐ नमः
ज्ञानाध्यक्ष-
जिना-यस्-स्वाहा ।

काल, स्वभाव, कर्म, नियति वा ।
पुरुषारथ समवाय प्रदीवा ।
नमः समवाय सार्थक जिनाय,
साध साध सुमरण संजीवा ॥ ८२९ ॥
ॐ नमः
समवाय-सार्थक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

‘आप भक्ति बस’ भक्त सहाई ।
शिख के गुरु, शिशु की सब माई ।
नमः भक्तैक-साधक-धर्माय,
साध साध लो, साध भलाई ॥ ८३० ॥
ॐ नमः
भक्तैक-साधक-
धर्मा-यस्-स्वाहा ।

अमरित से मीठे गुण सारे ।
अहा ! चाँदनी बढ़ छव न्यारे ।
नमः निरवशेष-गुणामृताय,
जपत विपत लग चले किनारे ॥ ८३१ ॥
ॐ नमः
निरवशेष-
गुणामृता-यस्-स्वाहा ।

त्रेसठ और तीन सौ फिरके ।
अबकी तजे, न देखा मुड़ के ।
श्री सांख्यादि पक्ष विध्वंसक,
जिनाय नमः साध मन मनके ॥ ८३२ ॥
ॐ नमः
सांख्यादि-पक्ष-
विध्वंसक-जिना-यस्-स्वाहा ।

हाँ ! परखा पर को ।
ना पकड़ा पर को ।
नमः समीक्षकाय,
साध बने ‘पर खो’ ॥ ८३३ ॥
ॐ नमः
समीक्षकाय-जिना-यस्-स्वाहा ।

आदि पुरुषार्थ अराधा ।
पुरुषार्थ अंतिम साधा ।
आदि पुरुष जिनाय नमः,
साध हित सुख निर्बाधा ॥ ८३४ ॥
ॐ नमः
आदि-पुरुष-
जिना-यस्-स्वाहा ।

द्रव्य जीव जड़, आस्रव, बंधा ।
संवर, निर्जर, मोक्ष-अबंधा ।
नमः समस्त द्रव्य वे-दकाय,
साध छोड़ सब गौरख धंधा ॥ ८३५ ॥
ॐ नमः
समस्त-द्रव्य-
वे-दका-यस्-स्वाहा ।

छुपा आपसे रहता कब है ।
आप ज्ञान में झलका सब है ।
श्री व्यक्ता-व्यक्तग्-ज्ञान विदे,
नमः साधना बस करतब है ॥ ८३६ ॥
ॐ नमः
व्यक्ताव्यक्त-
ज्ञान-विदे-स्वाहा ।

भेद-ज्ञान, दर्शन उपयोगा ।
जगत सर्व कल्याण नियोगा ।
श्री ज्ञान चैतन्य भेद दृशे,
नमः साधना विगलित शोगा ॥ ८३७ ॥
ॐ नमः
ज्ञान-चैतन्य-
भेद-दृशे-स्वाहा ।

दूर न अपने से कस्तूरी ।
थमते ही मृग आशा पूरी ।
स्व संवेदन-ज्ञान वादिने,
साध साथ ले अशीष सूरी ॥ ८३८ ॥
ॐ नमः
स्वसंवेदन-
ज्ञान-वादिने-स्वाहा ।

उत्सव छाया ।
नगरी में समव-शरण आया ।
पास बुलाकर ।
वैर भुला कर ।
सिंह ने मृग छौना दुलराया ।
श्री समव-शरणद्-द्वादश-सभा ।
पतये नमः साध गुम माया ॥ ८३९ ॥
ॐ नमः
समवशरण-द्वादश-
सभा-पतये-स्वाहा ।

अक्ष, अनक्ष, प्रमाण ।
आगम तृतिय पिछान ।
त्रिप्-प्रमाणाय नमः,
साध आत्म कल्याण ॥ ८४० ॥
ॐ नमः
त्रिप्-प्रमाणा-यस्-स्वाहा ।

अक्ष-कल था इन्द्रिय ज्ञाना ।
अक्ष-आतम से अब जाना ।
नमः अध्यक्षप्-प्रमाणाय,
साध सर लगे आस‌माना ॥ ८४१ ॥
ॐ नमः
अध्यक्षप्-
प्रमाणा-यस्-स्वाहा ।

टूट लड़ने था आया ।
लाड़ला बन शरमाया ।
नमः स्याद्वाद वादिने,
भार क्या ? नाक हटाया ॥ ८४२ ॥
ॐ नमः
स्याद्वाद-वादिने-स्वाहा ।

कह सभी को क्षमा ।
कर सभी को क्षमा ।
पीस रात कब, उठा चले पारे ।
जग जगमग सारे ।
क्षेत्रज्ञाय नमः,
जप वारे न्यारे ॥ ८४३ ॥
ॐ नमः
क्षेत्रज्ञा-यस्-स्वाहा ।

कोयला बनता हीरा ।
मोति मुख सीपी नीरा ।
नमः शुद्धात्म जिनाय,
साध लाखन भव तीरा ॥ ८४४ ॥
ॐ नमः
शुद्धात्मजिना-यस्-स्वाहा ।

राख परिणति जल क्षीरी ।
सिन्धु भव धारा चीरी ।
नमः पुरुषात्म जिनाय,
साध पुरुषार्थ अखीरी ॥ ८४५ ॥
ॐ नमः
पुरुषात्म-जिना-यस्-स्वाहा ।

नरपत झिरा नयन ।
खड़ा अरहत शरण ।
नराधिपाय नमः,
साध सतपथ चरण ॥ ८४६ ॥
ॐ नमः
नराधिपा-यस्-स्वाहा ।

आवरण दर्शन ज्ञान हटा ।
शुद्ध चेतन स्वरूप प्रकटा ।
नमः निरावरण चे-तनाय,
‘साध’ पाने निज देश पता ॥ ८४७ ॥
ॐ नमः
निरावरण
चे-तना-यस्-स्वाहा ।

लगा ले चालें पीछे ।
मोक्ष ले चालें खींचे ।
नमः मोक्ष रूप जिनाय,
साध ले आँखें मींचे ॥ ८४८ ॥
ॐ नमः
मोक्ष रूप
जिना-यस्-स्वाहा ।

पीछे कहाँ किसी के ।
नीचे कहाँ किसी के ।
नमः अकृत्-त्रिम जिनाय,
साधो बनके ‘भी’ के ॥ ८४९ ॥
ॐ नमः
अकृत्रिम-
जिना-यस्-स्वाहा ।

गुण न नाम धारी ।
रत्न गुण पिटारी ।
नमः निर्गुणाय,
‘साध’ रीत न्यारी ॥ ८५० ॥
ॐ नमः
निर्गुणा-यस्-स्वाहा ।

अक्ष मन ! हारी ।
खोज-कर थारी ।
नमः अमूर्ताय,
साध दृग-धारी ॥ ८५१ ॥
ॐ नमः
अमूर्ता-यस्-स्वाहा ।

रमा-समोशरणा ।
क्षमा और करुणा ।
नमः रमा पतये,
अमा ! रमो फिर ना ॥ ८५२ ॥
ॐ नमः
रमा-पतये-स्वाहा ।

कण कण तुम तीरथ ।
मन मन तुम मूरत ।
नमः सर्व-गताय,
धन ! धन ! तुम कीरत ॥ ८५३ ॥
ॐ नमः
सर्व-गता-यस्-स्वाहा ।

भोग नियोग धन ! ।
योग निरोध-पन ।
अक्रियाय नमः,
जोग प्रयोग मन ! ॥ ८५४ ॥
ॐ नमः
अक्रिया-यस्-स्वाहा ।

बिना कहे आये हैं ।
‘सुर’ मन को भाये हैं ।
नमः देवेष्ट जिनाय,
सुर दिश् दश छाये हैं ॥ ८५५ ॥
ॐ नमः
देवेष्ट-जिना-यस्-स्वाहा ।

रीझें न प्रशंसा से ।
खीझें कब निन्दा से ।
नमो नमः तटस्-थाय,
जल मीन से न प्यासे ॥ ८५६ ॥
ॐ नमः
तटस्-था-यस्-स्वाहा ।

हुआ कूट नापना तुम ।
हाथ पैर मारना गुम ।
नमो नमः कूटस्-थाय,
साधना कल्प नाम द्रुम ॥ ८५७ ॥
ॐ नमः
कूटस्-था-यस्-स्वाहा ।

शून नाता ।
पून ज्ञाता ।
नमः ज्ञात्रे,
दून दाता ॥ ८५८ ॥
ॐ नमः
ज्ञात्रे-स्वाहा ।

फसल रोक-टोक तब ।
वपन नोंक-झोंक जब ।
निराबाधाय नमः,
सजल धोक धोक नब ॥ ८५९ ॥
ॐ नमः
निरबाधा-यस्-स्वाहा ।

नीर व्यर्थ, प्यास ना ।
दवा व्यर्थ, काँस ना ।
निराभावाय नमः,
साध, व्यर्थ वासना ॥ ८६० ॥
ॐ नमः
निराभावा-यस्-स्वाहा ।

भार लेके ही नहीं चले ।
और बढ़ते लख नहीं जले ।
नमः भव वारिधि-पा-रगाय,
पार कब तक क्यों ? नहीं मिले ॥ ८६१ ॥
ॐ नमः
भव-वारिधि-
पा-रका-यस्-स्वाहा ।

पटा पुरा कर्जा साथी ! ।
नया न खर्चा, घट माटी ।
बंध-मोक्ष रहिताय नमः,
साध खोल आँखन पाटी ॥ ८६२ ॥
ॐ नमः
बन्ध-मोक्ष-
रहिता-यस्-स्वाहा ।

सौख निराकुल लगन लगाई ।
शिव-राधिका लगन वचवाई ।
मोक्ष साधनप्-प्रधान जिनाय,
नमः साध अन्तस् हुलसाई ॥ ८६३ ॥
ॐ नमः
मोक्ष-साधनप्-
प्रधान-जिना-यस्-स्वाहा ।

रोग दी दवाई दब जाते ।
कर्म-खाज बढ़ चले, खुजाते ।
कर्मव्-व्याधि-विनाशक जिनाय,
नमः साध जश सुर-गण गाते ॥ ८६४ ॥
ॐ नमः
कर्मव्-व्याधि-वि-नाशक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

देर विभाव कहाँ टिकता ।
जोड़ चले स्वभाव रिश्ता ।
निजस्-स्वभावस्-थित जिनाय,
नमः डूब साधो भक्ता ॥ ८६५ ॥
ॐ नमः
निजस्-स्व-भावस्-थित-
जिना-यस्-स्वाहा ।

राहु खग्रास न कर पाया ।
झाँप ना सका मेघ आया ।
निरावरण सूर्य जिनाय नमः,
साध, निर्दइ कुछ यम-राया ॥ ८६६ ॥
ॐ नमः
निरावरण-सूर्य-
जिना-यस्-स्वाहा ।

मूढ़ पन मूड़ न राखा ।
रूढ़ धन ! स्वभाव झाँका ।
नमः स्वरूप रूढ़ जिनाय,
साधका बाल न बाँका ॥ ८६७ ॥
ॐ नमः
स्वरूप-आरूढ-
जिना-यस्-स्वाहा ।

धार विधि बह लेते ।
निराकुल रह लेते ।
नमः प्रकृतिप्-प्रियाय,
न कहते सह लेते ॥ ८६८ ॥
ॐ नमः
प्रकृतिप्-प्राप्ता-यस्-स्वाहा ।

पाप मति चित् चारों खाने ।
पुण्य-दीवा कब परवाने ।
नमः विशुद्ध-सन्मति-जिनाय,
साध आ मनुआ शिव पाने ॥ ८६९ ॥
ॐ नमः
विशुद्ध-सन्मति-
जिना-यस्-स्वाहा ।

धूल बिन, सूरज जैसे ।
भिन्न जल नीरज वैसे ।
नमः शुद्ध-रूप-जिनाय,
साध सार्थ नाम ‘पय’…से ॥ ८७० ॥
ॐ नमः
शुद्ध-रूप-
जिना-यस्-स्वाहा ।

स्वयं दीक्षा लीना ।
आद्य ज्ञानी चीह्ना ।
आद्य-वेदसे नमः,
साध आलस क्षीणा ॥ ८७१ ॥
ॐ नमः
आद्य-वेदसे-स्वाहा ।

सिर उतार दामा ।
प्रकृति हाथ थामा ।
नमः निर्-वि-कृ-तये,
साधो निष्कामा ॥ ८७२ ॥
ॐ नमः
निर्-वि-कृ-तये-स्वाहा ।

पूर्व भाँत-जुगनू चमके ।
छक्के छुड़ा दिये तम के ।
मिथ्या-तिमिर-वि-नाशकाय,
नमः पार बेड़ा रम के ॥ ८७३ ॥
ॐ नमः
मिथ्या-तिमिर-
वि-ना-शका-यस्-स्वाहा ।

दृष्टि नासिका रखी ।
ख्यात नजर पारखी ।
नमः मीमां-सकाय,
साध कला पार की ॥ ८७४ ॥
ॐ नमः
मीमां-सका-यस्-स्वाहा ।

सव्वे सिद्धा हु शुद्ध नया ।
साध, सिद्ध-अस्ति कर्म क्षया ।
नमो नमः अस्ति-सर्वज्ञाय,
साध अनुकम्प, करुणा, दया ॥ ८७५ ॥
ॐ नमः
अस्ति-सर्वज्ञा-यस्-स्वाहा ।

सुई न पाती घुम ।
सूत्र कीमती तुम ।
श्रुत-पूज्याय नमः,
साधो साथ कुटुम ॥ ८७६ ॥
ॐ नमः
श्रुत-पूज्या-यस्-स्वाहा ।

सदा निराकुलता ।
विदा मान-वत्ता ।
नमः सदोत्-सवाय,
साधो मानवता ॥ ८७७ ॥
ॐ नमः
सदोत्-सवा-यस्-स्वाहा ।

मन इन्द्रिय पग लौटाये ।
पता न आप लगा पाये ।
परोक्षग्-ज्ञाना-गम्याय,
नमः साध ‘के तम छाये ॥ ८७८ ॥
ॐ नमः
परोक्षग्-ज्ञाना-
गम्या-यस्-स्वाहा ।

कहता पग पग-बाधा ।
सब सधता ‘कर’ साधा ।
इष्ट-पा-ठकाय नमः,
अंग अंग सिख…लाता ॥ ८७९ ॥
ॐ नमः
इष्ट-पा-ठका-यस्-स्वाहा ।

खड़ग फेंक रख ढाल चले ।
शत्रु काल के गाल चले ।
नमः सिद्ध-कर्मक्-क्षयाय,
साध काल ‘के दाल गले ॥ ८८० ॥
ॐ नमः
सिद्ध-कर्मक्-
क्षया-यस्-स्वाहा ।

गत एकान्त, विनय, विपरीता ।
गत संशय, अज्ञान, विनीता ! ।
मिथ्या-मत-नि-वा-रकाय नमः,
साध न काट पाप गत फीता ॥ ८८१ ॥
ॐ नमः
मिथ्या-मत-
नि-वा-रका-यस्-स्वाहा ।

अक्ष यानि आतम के द्वारा ।
जग प्रत्यक्ष दीखता सारा ।
प्रत्यक्षैकप्-प्रमाणाय नमः,
साधो जुड़‌ने शाश्वत धारा ॥ ८८२ ॥
ॐ नमः
प्रत्यक्षैकप्-
प्रमाणा-यस्-स्वाहा ।

द्रव्य कहाँ गुम रहा ।
दीप बुझे तम रहा ।
अस्ति-मुक्ताय नमः,
जिया ! तुम्हें नम रहा ॥ ८८३ ॥
ॐ नमः
अस्ति-मुक्ता-यस्-स्वाहा ।

श्रुत गुरु-गंभीरा ।
अपहर भव पीरा ।
नमः गुरुश्-श्रुतये,
साधो धर धीरा ८८४ ॥
ॐ नमः
गुरुश्-श्रुतये-स्वाहा ।

नीर क्षीर सा घुला मिला ।
सुना ‘भूल’ दी भूल भुला ।
नमः त्रि-लोक-नाथाय,
मन..तर, भीतर अमृत झला ॥ ८८५ ॥
ॐ नमः
त्रि-लोक-
नाथा-यस्-स्वाहा ।

आम का वृक्ष आम देता ।
कौन खेता नौका रेता ।
स्वस्-स्व-भावा-विरुद्ध-जिनाय,
साध परिणाम राख श्वेता ॥ ८८६ ॥
ॐ नमः
स्वस्-स्व-भावा-विरुद्ध-
जिना-यस्-स्वाहा ।

बीचों बीच पराग ।
लख भर चाले जाग ।
नमः श्री-ब्रह्म-विदे,
साधो जगा चिराग ॥ ८८७ ॥
ॐ नमः
ब्रह्म-विदे-स्वाहा ।

सार्थक सब…दा चिन्तन धारा ।
‘वर…हम’ भाव द्वैत खो, पारा ।
नमः शब्दा-द्वैतब्-ब्रह्मणे,
साध छॉंव तारा…दिनतारा ॥ ८८८ ॥
ॐ नमः
शब्दा-द्वैतब्-
ब्रह्मणे-स्वाहा ।

स्थूल फिर सूक्ष्म पाप त्यागे ।
सूक्ष्म साम्पराय बढ़ आगे ।
सूक्ष्म-तत्वप्-प्रकाश-जिनाय,
नमः बस-समय मोक्ष लागे ॥ ८८९ ॥
ॐ नमः
सूक्ष्म-तत्वप्-प्रकाश-
जिना-यस्-स्वाहा ।

मत भेद कई, मन भेद कई ।
चुप रहे, पता न कौन सही ।
पाखण्ड-खण्डकाय नमः
पा ज्ञान पते की बात कही ॥ ८९० ॥
ॐ नमः
पाखण्ड-
खण्डका-यस्-स्वाहा ।

नयाधीन सद्‌-ग्रन्थ ।
प्रणयन किया सुपंथ ।
नमः नयाधीनजे,
विघ्न विनाशक मंत्र ॥ ८९१ ॥
ॐ नमः
नयाधीनजे-स्वाहा ।

ज्ञान तत्काला ।
निर्वाण धारा ।
नमः अन्त-कृते,
मंत्र बढ़ न्यारा ॥ ८९२ ॥
ॐ नमः
अन्त-कृते-स्वाहा ।

बाहुबल तीरा ।
भव जलधि नीरा ।
नमः पारकृते,
साध बल वीरा ॥ ८९३ ॥
ॐ नमः
पारकृते-स्वाहा ।

धीर प्रीत जुड़ चाली ।
तीर लगे, दीवाली ।
नमः तीरप्-प्राप्ताय,
मन्तर बढ़ उपकारी ॥ ८९४ ॥
ॐ नमः
तीरप्-प्राप्ता-यस्-स्वाहा ।

घूमे ले समशरणा ।
साध और हित करना ।
नमः परहितस्-थिताय,
मन्तर तारण तरणा ॥ ८९५ ॥
ॐ नमः
परहितस्-
थिता-यस्-स्वाहा ।

ज्ञान सुदर्शन नेत्र दूसरा ।
शिव मग में वृत नेत्र तीसरा ।
नमः रत्नत्रय-नेत्र-जिनाय,
मन्तर विहर जन्म मृत्यु जरा ॥ ८९६ ॥
ॐ नमः
रत्नत्रय-नेत्र-
जिना-यस्-स्वाहा ।

शुद्ध तिष्णा परिहारी ।
बुद्ध कृष्णा मति टारी ।
नमः शुद्ध-बुद्ध-जिनाय,
मन्तर अतिशय कारी ॥ ८९७ ॥
ॐ नमः
शुद्ध-बुद्ध-
जिना-यस्-स्वाहा ।

मति श्रुत वधि मन पर्य समाये ।
नन्त ज्ञान गज पाँव कहाये ।
नमः ज्ञान कर्म समुच्-चयिने,
मन्त्र जपो भव मानव पाये ॥ ८९८ ॥
ॐ नमः
ज्ञान कर्म
समुच्-चयिने-स्वाहा ।

भाग से अधिक न फलता ।
भाग में, भागत मिलता ।
नमः नित्य-तृप्त-जिनाय,
जाग मैं, जपत सफलता ॥ ८९९ ॥
ॐ नमः
नित्य-तृप्त-
जिना-यस्-स्वाहा ।

आप सिमरण निर्मल पानी ।
नाम न पाप मल निशानी ।
पाप-मल-नि-वारक-जिनाय,
नमः साधो नित्प्रति प्राणी ! ॥ ९०० ॥
ॐ नमः
पाप-मल-नि-वारक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

ज्ञान घन खूब रटा घोंटा ।
पूर्ण अभिलाष मिटा टोटा ।
निरावरण-ज्ञान-घन-जिनाय,
नमः जप विहर भाव खोटा ॥ ९०१ ॥
ॐ नमः
निरावरण-ज्ञान-घन-
जिना-यस्-स्वाहा ।

सॅंभाले मन, वच काया ।
योग निरोध, शिवराया ।
नमः उच्छिन्न योगाय,
साध मन ! ततूर छाया ॥ ९०२ ॥
ॐ नमः
उच्छिन्न योगा-यस्-स्वाहा ।

किलो चालीस मनिक योगा ।
पालड़ी उठ चली अयोगा ।
योग-कृत-निर्-लेपाय नमः,
साध गत दुख प्रद संयोगा ॥ ९०३ ॥
ॐ नमः
योग-कृत-
निर्-लेपा-यस्-स्वाहा ।

योग काय, मन, वचन विडारा ।
आतम आतम में रम चाला ।
स्वस्-थल-याग-रत-जिनाय नमः,
मन्तर जपत मिटत भव ज्वाला ॥ ९०४ ॥
ॐ नमः
स्वस्-थल-याग-रत-
जिना-यस्-स्वाहा ।

देख ग्रीष्म ऋत दोपहरी ।
चढ़ गिरि साँस भरी गहरी ।
गिरि-संयोग-जिनाय नमः,
जप बन आप आप पहरी ॥ ९०५ ॥
ॐ नमः
गिरि-संयोग-
जिना-यस्-स्वाहा ।

सूक्ष्म भी हिला रहे न काया ।
सूक्ष्म काय योगा पल आया ।
सूक्ष्मी-कृत-वपुः क्रियाय नमः,
जप बिन, विरथा नृभव गवाया ॥ ९०६ ॥
ॐ नमः
सूक्ष्मी-कृत-वपुः
क्रिया-यस्-स्वाहा ।

चपल न करें सूक्ष्म भी वाणी ।
सूक्ष्म वाक् योगा लासानी ।
सूक्ष्म-वाक्-मित-योगाय नमः,
तर मन्तर भवि ! समरस-सानी ॥ ९०७ ॥
ॐ नमः
सूक्ष्म-वाक्-मित-
योगा-यस्-स्वाहा ।

खाया भले, न दिया धोखा ।
सोना पड़ आगी चोखा ।
निष्कर्म-शुद्धात्म-जिनाय,
नमः साध न दूर मोखा ॥ ९०८ ॥
ॐ नमः
निष्कर्म-शुद्धात्म-
जिना-यस्-स्वाहा ।

भूत-प्राणी ‘पानी आतम’ ।
आप ने पा ली शुद्धातम ।
भूता-भिव्-व्यक्त-चेतनाय,
नमः जप अपहर मिथ्यातम ॥ ९०९ ॥
ॐ नमः
भूता-भिव्-व्यक्त-
चेतना-यस्-स्वाहा ।

धरम पानी, तुम मछली ।
परम रजधानी पगड़ी ।
नमः धर्म-रास-जिनाय,
साध अंगुली फिर अगली ॥ ९१० ॥
ॐ नमः
धर्म-रास-
जिना-यस्-स्वाहा ।

जीव तन गिना जुदा ।
दीव मण तमा विदा ।
परम-हंसाय नमः,
साध मन ! साध सदा ॥ ९११ ॥
ॐ नमः
परम-हंसा-यस्-स्वाहा ।

समिति, गुप्ति, व्रत चारित ।
परिषह जय संपादित ।
नमः परम-संवराय,
जप अनुमत, कृत, कारित ॥ ९१२ ॥
ॐ नमः
परम-संवरा-यस्-स्वाहा ।

नेह अम्बर ना तब ।
देह अम्बर ना अब ।
निरावरणाय नमः,
गेह मन..‌‌.तर ना कब ॥ ९१३ ॥
ॐ नमः
निरावरणा-यस्-स्वाहा ।

धर्म दशेक जुड़े तब ।
कर्म निषेक झरे सब ।
परम-निर्जराय नमः,
शर्म-शिवेक निरे अब ॥ ९१४ ॥
ॐ नमः
परम-निर्जरा-यस्-स्वाहा ।

दृष्टि भर सिर्फ देख लो तुम ।
कष्ट-दुख पीड़ा संकट गुम ।
नमः प्रज्वलित‌प्-प्रभावाय,
मंत्र साधो न बैठ गुमसुम ॥ ९१५ ॥
ॐ नमः
प्रज्वलित‌प्-
प्रभावा-यस्-स्वाहा ।

मन प्रशस्त रखना आया ।
भागा अरि समेट माया ।
समस्त-कर्मक्-क्षय-जिनाय
नमः साध बनता भाया ॥ ९१६ ॥
ॐ नमः
समस्त-कर्मक्-क्षय-
जिना-यस्-स्वाहा ।

नामे यत्न सफलता है ।
काय…रता कायरता है ।
नमः कर्म-विस्फोटकाय,
धन्य ! जाप जो करता है ॥ ९१७ ॥
ॐ नमः
कर्म-विस्फोटका-यस्-स्वाहा ।

कारण क्रोध मिला फिर भी ।
बोध न खोया रत सुर…भी ।
अनन्त-वीर्य-जिनाय नमः,
जप, चलना उसके घर भी ॥ ९१८ ॥
ॐ नमः
अनन्त-वीर्य-
जिना-यस्-स्वाहा ।

उतारे चेहरे से चेहरे ।
पैठ चाले भीतर गहरे ।
एकाकार-रसा-स्वादाय,
नमः लो साध केत लहरे ॥ ९१९ ॥
ॐ नमः
एकाकार-रसा-
स्वादा-यस्-स्वाहा ।

पर्श, रूप, रस, गंध विलसता ।
विश्व ज्ञान में आप झलकता ।
विश्वाकार-रसा-कुलिताय,
नमः साध भव जल तट दिखता ॥ ९२० ॥
ॐ नमः
विश्वाकार-रसा-
कुलिता-यस्-स्वाहा ।

नेकी बर्ष अनेकी ।
जीवित, जो तुमने की ।
नमः सदा-जीविताय,
जपूँ बघार न शेखी ॥ ९२१ ॥
ॐ नमः
सदा-जीविता-यस्-स्वाहा ।

जगत भलाई ।
अमृत कहाई ।
नमः अमृताय,
जपत सहाई ॥ ९२२ ॥
ॐ नमः
अमृता-यस्-स्वाहा ।

राग विदाई ।
जाग सुहाई ।
नमः जाग्रते,
फाग बधाई ॥ ९२३ ॥
ॐ नमः
जाग्रते-स्वाहा ।

पलक ना झाँपी ।
अगुरु, क्यों हाँपी ।
नमः असुप्ताय,
माँग ली माँफी ॥ ९२४ ॥
ॐ नमः
असुप्ता-यस्-स्वाहा ।

‘मर…याद’ सार्थ राखी है ।
कब रुचि ताँका-झाँकी है ।
स्वप्-प्रमाणस्-थिताय नमः,
रम आश कहाँ बाकी है ॥ ९२५ ॥
ॐ नमः
स्वप्-प्रमाणस्-
थिता-यस्-स्वाहा ।

न लेना, देना ना ।
हा ! लाल नैना ना ।
विष बुझे वैना ना ।
नमः निरा-कुलिताय,
जप बिना जैना ना ॥ ९२६ ॥
ॐ नमः
निरा-कुलिता-यस्-स्वाहा ।

मन, वचन, काया ।
वशभूत माया ।
नमः अयोगिने,
साध छत छाया ॥ ९२७ ॥
ॐ नमः
अयोगिने-स्वाहा ।

पाल मूल-गुण निरतिचार सब ।
हित उत्तर-गुण बढ़े, रुके कब ।
नमः चतु-रशीति-लक्ष-गुणाय,
रम, आ चले जल्द पल अब-तब ॥ ९२८ ॥
ॐ नमः
चतु-रशीति-लक्ष-
गुणा-यस्-स्वाहा ।

‘अ’-‘यान’ ईषत् ।
गुण बखान पथ ।
नमः अगुणाय,
‘आन…बान-मत’ ॥ ९२९ ॥
ॐ नमः
अगुणा-यस्-स्वाहा ।

अगुरुलघु गुण-इक पर्याया ।
अनंता-नंत धुन बताया ।
अनन्ता-नन्त-पर्यायाय,
नमः साधा भव तट आया ॥ ९३० ॥
ॐ नमः
अनन्ता-नन्त-
पर्याया-यस्-स्वाहा ।

काँचुल पहले विष त्यागा ।
जश मंजुल आया भागा ।
पूर्व-संस्कार-ना-शकाय,
नमः साध पौरुष जागा ॥ ९३१ ॥
ॐ नमः
पूर्व-संस्कार-
ना-शका-यस्-स्वाहा ।

वृद्धि चतुष्टय अनंत पाई ।
फिर फिर और विशुद्धि बढ़ाई ।
श्री अनन्त-चतुष्टय-वृद्धाय,
नमः साध मन कलुष विदाई ॥ ९३२ ॥
ॐ नमः
श्री-अनन्त-चतुष्टय-
वृद्धा-यस्-स्वाहा ।

बोल घोल मिसरी ।
फीके वच पिक-‘री ।
प्रिय-वचनाय नमः,
रट हट पथ मकड़ी ॥ ९३३ ॥
ॐ नमः
प्रिय-वचना-यस्-स्वाहा ।

जिह्वा सहस्र हारा ।
करके वर्णन थारा ।
निर्-वचनीयाय नमः,
मन्तर सुख करतारा ॥ ९३४ ॥
ॐ नमः
निर्-वचनीया-यस्-स्वाहा ।

शीष श्रीफल ना ।
ईश त्रिभुवना ।
नमः अनीशाय,
दीस-निश भजना ॥ ९३५ ॥
ॐ नमः
अनीशा-यस्-स्वाहा ।

केवली समुद्‌घात पल ।
पैर विष्णु कुमार नकल ।
अनणु पर्यायाय नमः,
जपो दिन रात दृग सजल ॥ ९३६ ॥
ॐ नमः
अनणु पर्याया-यस्-स्वाहा ।

आन उर्वशी ।
थान सुर वसी ।
नमस्-थेयसे,
तान प्रद खुशी ॥ ९३७ ॥
ॐ नमः
स्थेयसे-स्वाहा ।

प्र-प्रकृष्ठ इष्ट ।
संतुष्ट शिष्ट ।
प्रेष्ठाय नमः,
विनष्ट अरिष्ट ॥ ९३८ ॥
ॐ नमः
प्रेष्ठा-यस्-स्वाहा ।

जरा जर्रा ना ।
न जमा जमाना ।
स्थिर-जिनाय नमः
निर्जरा थाना ॥ ९३९ ॥
ॐ नमः
स्थिर-जिना-यस्-स्वाहा ।

देर न तैरे, डूबा साधा ।
लौटे ले मुक्ता निर्बाधा ।
नमः निजात्म-तत्त्व-निष्ठाय,
दे अभीष्ट मन्तर आराधा ॥ ९४० ॥
ॐ नमः
निजात्म-तत्त्व-
निष्ठा-यस्-स्वाहा ।

सुना भावना भव-हारी ।
चुना भावना हित-कारी ।
श्रेष्ठ-भाव-धारक-जिनाय,
नम: मंत्र वैभव-शाली ॥ ९४१ ॥
ॐ नमः
श्रेष्ठ-भाव-धारक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

अब-तब जागे ।
जा शिव लागे ।
ज्येष्ठाय नमः,
सबसे आगे ॥ ९४२ ॥
ॐ नमः
ज्येष्ठा-यस्-स्वाहा ।

धन ! प्रदेश निष्कंप जिना ।
द्रव्य वा भाव कर्म बिना ।
निष्-कंपप्-प्रदेश जिनाय,
नमः साध, ले काम बना ॥ ९४३ ॥
ॐ नमः
निष्-कंपप्-प्रदेश
जिना-यस्-स्वाहा ।

उत्तम क्षमादि करके आगे ।
गुण अनंत सागर कम लागे ।
नमः उत्तमक्-क्षमादि-गुणाब्धि-
जिनाय जप मनके बढ़भागे ॥ ९४४ ॥
ॐ नमः
उत्तमक्-क्षमादि-गुणाब्धि-
जिना-यस्-स्वाहा ।

आचरण जिसका चोखा ।
चरण अराधने जोगा ।
नमः पूज्य-पाद-जिनाय,
सौभाग्य मंत्र सँजोगा ॥ ९४५ ॥
ॐ नमः
पूज्य-पाद-
जिना-यस्-स्वाहा ।

साँचे स्वा…रथ चढ़, बढ़ चाले ।
गुण परमारथ रींझे सारे ।
नमः परमार्थ-गुण-निधानाय,
साध विसार भाव मन काले ॥ ९४६ ॥
ॐ नमः
परमार्थ-गुण-
निधाना-यस्-स्वाहा ।

हार पीछे जो लागी ।
तजा व्यवहार, विरागी ! ।
नमः व्यवहार-सुप्ताय,
मन्त्र साधक बढ़भागी ॥ ९४७ ॥
ॐ नमः
व्यवहार-सुप्ता-यस्-स्वाहा ।

लगा न रखे मुखोटे ।
कर्म चोर मुड़ लौटे ।
नमः अति-जा-गरु-काय,
ले पतंग क्यूँ गोटे ॥ ९४८ ॥
ॐ नमः
अति-जा-गरु-
का-यस्-स्वाहा ।

होड़ से हट ठाड़े ।
नत गिराने वाले ।
नमः अति-सुस्-थिताय,
मनस् आ जश गा ले ॥ ९४९ ॥
ॐ नमः
अति-सुस्-थिता-यस्-स्वाहा ।

पूरब में सूरज क्या आये ।
दिश् दिश् छब फीकी कर जाये ।
नमः उदितोदित-माहात्-म्याय,
साधक सौख्य निराकुल पाये ॥ ९५० ॥
ॐ नमः
उदितोदित-
माहात्-म्या-यस्-स्वाहा ।

यदवा तदवा न ज्ञान धारा ।
ज्ञान न टुकड़े टुकड़े वाला ।
तत्व‌ग्-ज्ञानानुकूल-जिनाय,
नमः ज्ञान अनुकूल निराला ॥ ९५१ ॥
ॐ नमः
तत्व‌ग्-ज्ञानानुकूल-
जिना-यस्-स्वाहा ।

द्रुम पना-हटी हन ।
गुम बनावटी पन ।
नमः अकृत्रिमाय,
कुमकुम अटवी धन ! ॥ ९५२ ॥
ॐ नमः
अकृत्रिमा-यस्-स्वाहा ।

क्षितिज छोर छूटा जश ।
सु…मरण बढ़ मण पारस ।
नमः अमेय-महिम्ने,
मन्तर खुद जैसा बस ॥ ९५३ ॥
ॐ नमः
अमेय-महिम्ने-स्वाहा ।

लाभ से बचकर निकले ।
अलोलुप शुचितर विरले ।
नमः अत्यन्त-शुद्धाय,
साध, कटते अघ पिछले ॥ ९५४ ॥
ॐ नमः
अत्यन्त-शुद्धा-यस्-स्वाहा ।

सत्पथ पहला कदम भरा ।
आन सिद्धि ने स्वयं-वरा ।
नमः सिद्धिस्-स्वयं-वराय,
मंत्र विहर यम, जनम, जरा ॥ ९५५ ॥
ॐ नमः
सिद्धिस्-स्वयं-
वरा-यस्-स्वाहा ।

सिद्धि हाथ में कई ।
सिद्ध बात ना नई ।
सिद्धानु-जाय नमः,
साध, काल निरदई ॥ ९५६ ॥
ॐ नमः
सिद्धानु-जा-यस्-स्वाहा ।

चरित सम दर्शन, ज्ञाना ।
मोक्ष मारग इक माना ।
नमः शिव-पुरी-पंथाय,
धन्य ! पथ दूब हटाना ॥ ९५७ ॥
ॐ नमः
शिव-पुरी-पंथा-यस्-स्वाहा ।

फूँक फूँक राखा डग डग ।
रत्न राशि से गुण झगझग ।
अनंत-गुण-समूह-जिनाय,
नमः न वसा कौन रग रग ॥ ९५८ ॥
ॐ नमः
अनंत-गुण-समूह-
जिना-यस्-स्वाहा ।

लगते ही आत्म समाधी ।
खो चाली आधी-व्याधी ।
पर-उपाधि-निग्रह-कारक,
जिनाय नमः रट अनादी ॥ ९५९ ॥
ॐ नमः
पर-उपाधि-निग्रह-कारक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

णमो सिद्धाणं बोला ।
उतार राजसी चोला ।
नमः स्वयं-सिद्ध-जिनाय,
मोक्ष दृढ़ कपाट खोला ॥ ९६० ॥
ॐ नमः
स्वयं-सिद्ध-
जिना-यस्-स्वाहा ।

प्रश्न के बने न, बन हल के ।
कौन खोजे ? हल्के फुल्के ।
इन्द्रियागम्य-जिनाय नमः,
साध गुम स्वयं पाप कल के ॥ ९६१ ॥
ॐ नमः
इन्द्रियागम्य-
जिना-यस्-स्वाहा ।

कषाया कृश काया ।
स्वयं अपनी छाया ।
आत्म-पुष्टाय नमः,
साध विनष्ट माया ॥ ९६२ ॥
ॐ नमः
आत्म-पुष्टा-यस्-स्वाहा ।

नासा पे रख आँख पनीली ।
हृदय प्रवेश संधि ही कीली ।
नमो नमः अष्टादश सहस्र-
शीलेश्वराय साध अखीरी ॥ ९६३ ॥
ॐ नमः
अष्टादश सहस्र-
शीलेश्वरा-यस्-स्वाहा ।

भव भव पुण्य बटोरा ।
हार, न तोड़ा डोरा ।
नमः पुण्य-संकुलाय,
साध साध मन कोरा ॥ ९६४ ॥
ॐ नमः
पुण्य-संकुला-यस्-स्वाहा ।

रात-दिन जागे ।
त्याग में आगे ।
व्रताग्राय नमः,
साध बिन नाँगे ॥ ९६५ ॥
ॐ नमः
व्रताग्रा-यस्-स्वाहा ।

तैरना छोड़ शास्त्र ज्ञाना ।
डूब ली साध शुक्ल ध्याना ।
परम-शुक्लध्-ध्यानिने नमः,
साध, लो साध जिसे पाना ॥ ९६६ ॥
ॐ नमः
परम-शुक्लध्-
ध्यानिने-स्वाहा ।

अमरित धार झिराई घट घट ।
सुर, नर, नाग पी चले गट गट ।
नमः संसार-समुद्र-तारक-,
जिनाय मन्तर बनता रट भट ! ॥ ९६७ ॥
ॐ नमः
संसार-समुद्र-तारक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

क्षिप्र-शीघ्रगामी ।
समय मोक्ष धामी ।
क्षेपिष्टाय नमः,
इक अन्तर्यामी ॥ ९६८ ॥
ॐ नमः
क्षेपिष्टा-यस्-स्वाहा ।

हृश्व पाँच अक्षर पढ़ पाते ।
गुणस्थान ऊपर उठ जाते ।
पंच-लघ्वक्-क्षरस्-थितये,
नमो नमः जप आ गुण गाते ॥ ९६९ ॥
ॐ नमः
पंच-लघ्वक्-
क्षरस्-थितये-स्वाहा ।

शेष जब तलक प्रकृति तेरा ।
भले तीर्थक न पार बेड़ा ।
नमः त्रयोदशप्-प्रकृतिस्-थिति-
विना-शकाय ‘फेरा’ घेरा ॥ ९७० ॥
ॐ नमः
त्रयोदशप्-प्रकृतिस्-थिति-
विना-शका-यस्-स्वाहा ।

‘ज्ञान घन मैं’ रट लागी ।
ज्ञान चिन्मय बढ़-भागी ।
नमः अच्छेद्य-जिनाय,
अगम जल, मारुत, आगी ॥ ९७१ ॥
ॐ नमः
अच्छेद्य-जिना-यस्-स्वाहा ।

विध तेरह चरित्र निराले ।
सविध आपने सयत्न पाले ।
त्रयोदश-चारित्र-पूर्णताय,
नमः अखर इक शरण सहारे ॥ ९७२ ॥
ॐ नमः
त्रयोदश-चारित्र-
पूर्णता-यस्-स्वाहा ।

दर्श सम्यक्-दर्शन दाता ।
‘पर्स-मन’ कोलाहल घाता ।
नमः श्री-शिव-दात्री-जिनाय,
मंत्र जप भक्त आत्म ज्ञाता ॥ ९७३ ॥
ॐ नमः
श्री-शिव-दात्री-
जिना-यस्-स्वाहा ।

आई तिलोत्तमा ।
जाई, माथ नमा ।
नमः अजय-जिनाय,
पार, मन जप रमा ॥ ९७४ ॥
ॐ नमः
अजय-जिना-यस्-स्वाहा ।

अम्बर गूँजा ।
और न दूजा ।
नमः याज्याय,
सुर-गण पूजा ॥ ९७५ ॥
ॐ नमः
याज्या-यस्-स्वाहा ।

धन ! रतन करण्डक तुम हो ।
पर पीर देख दृग नम हो ।
नमः अनर्घ्य-परिग्-ग्रहाय
रम पाप भावना गुम हो ॥ ९७६ ॥
ॐ नमः
अनर्घ्य-परिग्-
ग्रहा-यस्-स्वाहा ।

ले जल, नौका खेते ।
ले फल, मोखा देते ।
अनर्घ्य-हे-तवे नमः,
ले जप, मौका रहते ॥ ९७७ ॥
ॐ नमः
अनर्घ्य-हे-तवे-स्वाहा ।

गाली इक क़व्वाली ।
वन इक चार-दिवारी ।
नमः परम-निष्पृहाय,
साधो साँझ दुपारी ॥ ९७८ ॥
ॐ नमः
परम-निष्पृहा-यस्-स्वाहा ।

‘बाल’ पर की न दया थोड़ी ।
और तो पञ्च मुष्ठि ओ ‘री ।
अत्यन्त-निर्मोहाय नमः,
साध, आती शिव वधु दौड़ी ॥ ९७९ ॥
ॐ नमः
अत्यन्त-
निर्मोहा-यस्-स्वाहा ।

शिष्य खुद गुरु भी ।
विश्व दृग् सुर…भी ।
नमः अशिष्याय,
जाप रत सुर भी ॥ ९८० ॥
ॐ नमः
अशिष्या-यस्-स्वाहा ।।

कब अपना नाक अगारे ।
सब सपना पीठ पछारे ।
पर-संबंध-वि-ना-शकाय,
नमः अखर कुछ न्यारे ॥ ९८१ ॥
ॐ नमः
पर-संबंध-
वि-ना-शका-यस्-स्वाहा ।

लोरि माँ शिक्षा ।
साक्षि सिध दीक्षा ।
नमः अदीक्षाय,
मन्त्र निध रक्षा ॥ ९८२ ॥
ॐ नमः
अदीक्षा-यस्-स्वाहा ।

खड़े बनाने बिगड़ी ।
थाम ले चलें अंगुली ।
नमः त्रि-भुवन-पूज्याय,
साध ! हाथ शिव पगड़ी ॥ ९८३ ॥
ॐ नमः
त्रि-भुवन-
पूज्या-यस्-स्वाहा ।

साथिया बनाते ना ।
‘सर’ बोझ बढ़ाते ना ।
नमः श्री अदीक्षकाय,
डाँटें इक छाँटें ना ॥ ९८४ ॥
ॐ नमः
अदीक्षकाय-स्वाहा ।

लोक हित साधा ।
मोख आराधा ।
नमः अक्षयाय,
धोक नत माथा ॥ ९८५ ॥
ॐ नमः
अक्षया-यस्-स्वाहा ।

साथ ना गौरी ।
गाँठ ना डोरी ।
नमः अगम्याय,
संध ना थोड़ी ॥ ९८६ ॥
ॐ नमः
अगम्या-यस्-स्वाहा ।

पर्श जो पाना ।
दर्श सोपाना ।
नमः अगम-काय,
न आना जाना ॥ ९८७ ॥
ॐ नमः
अगम-का-यस्-स्वाहा ।

बिरहम अवस्था ।
अरम छद्मस्था ।
नमः अरम्याय,
जैनम् व्यवस्था ॥ ९८८ ॥
ॐ नमः
अरम्या-यस्-स्वाहा ।

यम अगम गहरे मीना ।
जग बरस शंखा जीना ।
नमः निजात्म-सुस्-थिताय,
साध जग तीन अधीना ॥ ९८९ ॥
ॐ नमः
निजात्म-
सुस्-थिता-यस्-स्वाहा ।

प्रश्न साठ हज्जारा ।
न्यारी उत्तर माला ।
नमः ज्ञान-निर्भराय,
महिमा जाप विशाला ॥ ९९० ॥
ॐ नमः
ज्ञान-निर्भरा-यस्-स्वाहा ।

खाज खुजा के हिरण चली ।
माथ न दिखती शिकन पड़ी ।
नमः महा-योगीश्वराय,
पाँत योगी जन चरण खड़ी ॥ ९९१ ॥
ॐ नमः
महा-योगीश्वरा-यस्-स्वाहा ।

हेम निखरा अगना ।
सार्थ रतना रत…ना ।
द्रव्य-शुद्धाय-नमः,
मूरत क्षमा, करुणा ॥ ९९२ ॥
ॐ नमः
द्रव्य-शुद्धा-यस्-स्वाहा ।

नेह से खाली ।
देह बढ़ चाली ।
नमः अदेहाय,
मेह दृग प्याली ॥ ९९३ ॥
ॐ नमः
अदेहा-यस्-स्वाहा ।

कर्म बीजा झुलसे ।
फसल न जन्म फिर से ।
नमः अपूनर्-भवाय,
साध मनुआ हरषे ॥ ९९४ ॥
ॐ नमः
अपूनर्-भवा-यस्-स्वाहा ।

सार्थ मति श्रुत ‘अवधी’ ।
मन: पर्यय कब धी ।
नमः ज्ञानेक-विदे,
ज्ञान केवल अब की ॥ ९९५ ॥
ॐ नमः
ज्ञानेक-विदे-स्वाहा ।

शब्द निधन बोला ।
जीव धन अमोला ।
जीव-धनाय नमः,
रमा, न जीव डोला ॥ ९९६ ॥
ॐ नमः
जीव-धना-यस्-स्वाहा ।

मंजिल पा ली ।
मंजुल आली ।
नमः सिद्धाय,
मंगलकारी ॥ ९९७ ॥
ॐ नमः
सिद्धा-यस्-स्वाहा ।

दीप लौ भागे ऊपर ।
थमे जा लोक शिखर पर ।
नमः लोकाग्रस्-थिताय,
न फिर के आना भूपर ॥ ९९८ ॥
ॐ नमः
लोकाग्रस्-
थिता-यस्-स्वाहा ।

तारकन गिनती हो सकती ।
आप गुण गिन प्रज्ञा थकती ।
अनंतानंता-गुणाय नमः,
नाद पाताल, गगन, धरती ॥ ९९९ ॥
ॐ नमः
अनंतानंता-
गुणा-यस्-स्वाहा ।

होड़ की माया ना ।
और की छाया ना ।
आत्म-रूपाय नमः,
किन्होंने गाया ना ॥ १००० ॥
ॐ नमः
आत्म-रूपा-यस्-स्वाहा ।

रुख मुख तुम जोड़ा ।
जात वैर छोड़ा ।
महा-क्षमाय नमः
दौड़ा लहु धौरा ॥ १००१ ॥
ॐ नमः
महा-क्षमा-यस्-स्वाहा ।

स्वभाव लगन लागी ।
विभाव ज्वलन-आगी ।
महा-शीलाय नमः,
तनाव-तपन भागी ॥ १००२ ॥
ॐ नमः
महा-शीला-यस्-स्वाहा ।

बुराई दिखती ना ।
भलाई रुकती ना ।
महा-शान्ताय नमः,
विदाई धिक् तीना ॥ १००३ ॥
ॐ नमः
महा-शान्ता-यस्-स्वाहा ।

ब्रह्म, हरि, हर मन्मथ झाँसे ।
आप जागृत कैसे फाँसे ? ।
अनंत-वीर्यात्-मकाय नमः,
मंत्र यह अखर किसे आँसे ॥ १००४ ॥
ॐ नमः
अनंत-वीर्यात्-
मका-यस्-स्वाहा ।

आगे ‘और’ धका ।
लोक अलोक दिखा ।
लोकज्ञाय नमः,
मन..तर सार्थ सखा ॥ १०५ ॥
ॐ नमः
लोकज्ञा-यस्-स्वाहा ।

वास…ना अन्वर्था ।
आवरण अब विरथा ।
निरा-वरणाय नमः,
साध साँची सरधा ॥ १००६ ॥
ॐ नमः
निरा-वरणा-यस्-स्वाहा ।

ध्या के गुण थारे ।
यति बारे न्यारे ।
ध्येय-गुणाय नमः,
रम साँचे द्वारे ॥ १००७ ॥
ॐ नमः
ध्येय-गुणा-यस्-स्वाहा ।

भीतरी झिर फूटी ।
बात भो…जन झूठी ।
अशन-दग्धाय नमः,
साध दुर्मति छूटी ॥ १००८ ॥
ॐ नमः
अशन-दग्धा-यस्-स्वाहा ।

नाम दिन मण सूरा ।
चन्द्रमा निशि नूरा ।
नमः त्रिलोक-मणये,
प्रकाशित जग पूरा ॥ १००९ ॥
ॐ नमः
त्रिलोक-मणये-स्वाहा ।

ज्ञान दृग सुख वीरज नन्ता ।
आदि इन ले गुण अगणंता ।
अनंत-गुणप्-प्राप्ताय नमः,
बनें अरिहंत साध सन्ता ॥ १०१० ॥
ॐ नमः
अनंत-गुणप्-
प्राप्ता-यस्-स्वाहा ।

पीछे पर न पड़े ।
बन परमात्म खड़े ।
परमात्मने नमः,
आखर मधुर बड़े ॥ १०११ ॥
ॐ नमः
परमात्मने-स्वाहा ।

कर किनार गृद्धि ।
लग कतार ऋद्धि ।
नमः महा-ऋषये,
जप उचार सिद्धि ॥ १०१२ ॥
ॐ नमः
महा-ऋषये-स्वाहा ।

आगत, नागत वर्तमाँ,
जयंत सिद्ध अनंत ।
अनंत-सिद्धभ्यो नमः,
रटत रटत भव अन्त ॥ १०१३ ॥
ॐ नमः
अनंत-
सिद्धभ्यो-स्वाहा ।

पड़े न ही पीछे ।
पढ़े न, ‘भी’ खीसे ।
अक्षोभाय नमः,
बढ़ न मन्त्र ई से ॥ १०१४ ॥
ॐ नमः
अक्षोभा-यस्-स्वाहा ।

बिना वैशाखी चाले ।
निराकुल भोले भाले ।
नमः स्वयं-बुद्ध-जिनाय,
साक्ष सिध वस्त्र उतारे ॥ १०१५ ॥
ॐ नमः
स्वयं-बुद्ध-
जिना-यस्-स्वाहा ।

नाक का भार उतारा है ।
अथक नासाग्र निहारा है ।
निरावरणग्-ज्ञानाय नमः,
विश्व युगपत् दिख चाला है ॥ १०१६ ॥
ॐ नमः
निरावरणग्-
ज्ञाना-यस्-स्वाहा ।

भाव मत्सर आदरना ।
स्वयं को बौना कहना ।
वीत-मत्सराय नमः,
साध क्या कहना, सहना ॥ १०१७ ॥
ॐ नमः
वीत-मत्सरा-यस्-स्वाहा ।

अणु समान झलके संसारा ।
ज्ञान अनन्त नन्त गुणकारा ।
नमः अनन्तानन्त-ज्ञानाय,
साध रोक इंद्रिय व्यापारा ॥ १०१८ ॥
ॐ नमः
अनन्तानन्त-
ज्ञाना-यस्-स्वाहा ।

हस्त रेखा सा जग दीखे ।
नेत्र तीजे खुद सरीखे ।
अनंतानत-दर्शनाय,
नमः रट मनुआ नौसीखे ॥ १०१९ ॥
ॐ नमः
अनंतानत-
दर्शना-यस्-स्वाहा ।

मन भारी रखना छोड़ा ।
हल्का पन आया दौड़ा ।
लोक-शिखर-वासिने नमः,
सुमर विसर तोरा-मोरा ॥ १०२० ॥
ॐ नमः
लोक-शिखर-
वासिने-स्वाहा ।

पहल नाहिं कीनी है ।
सफल विधि चीनी है ।
सुगुप्तात्-मने नमः,
सजल निधि छीनी है ॥ १०२१ ॥
ॐ नमः
सुगुप्तात्-मने-स्वाहा ।

आँख चंचलता खोई ।
साख ना यूँ जग दोई ।
नमः परम-पूतात्मने,
साध मंतर थिर होई ॥ १०२२ ॥
ॐ नमः
परम-पूतात्मने-स्वाहा ।

श्री फल एक चढ़ाया है ।
मनमाना फल पाया है ।
महा-मंगलात्मक-जिनाय,
नमः नाद नभ छाया है ॥ १०२३ ॥
ॐ नमः
महा-मंगलात्मक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

औ…गुण सार्थ नाम ओ ‘री ।
प्रकटित स्व-गुण, शाम कोरी ।
पूर्णस्-स्व-गुण-जिनाय नमः,
सुमरो और काम छोड़ी ॥ १०२४ ॥
ॐ नमः
पूर्णस्-स्व-गुण-
जिना-यस्-स्वाहा ।

महा अर्घ

वन्दे तद्‌-गुण लब्-धये ।
जल, गंधाक्षत, फुलझड़ी ।
थाली घृत व्यंजन भरी ।
दीवा, सुरभी, फल नये ।
भेंटूँ चरण सिद्ध भगवन् ।
वन्दे तद्‌-गुण लब्-धये ।
हेत अखीर समाध मरण ।
पूजूँ चरण सिद्ध भगवन् ।
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

जाप
असि आ उसा
नमः
(मंत्र का 108 जाप करें।)

जयमाला

उपादान ज्यों मिले सलोना ।
पाहन स्वर्ण बन चले सोना ।
सिद्ध सिद्धि त्यों कर्म हान से,
लाभ शुद्ध आतम का होना ॥ ०१ ॥

जनन, नाश, थिर स्वभाव वाला ।
तन प्रमाण, जुत स्वगुण निराला ।
जानन-देखन-हार अन्यथा,
साध्य समान पुष्प नभ माला ॥ ०२ ॥

अन्तर् बहिर हेत अवतरणा ।
सम दृक्, सम अवगम, सम चरणा ।
शस्त्र इन्हीं से विहॅंस पाप, वह
परम-आतमन् जगदा-भरणा ॥ ०३ ॥

करते हुये स्वामि-पन कर में ।
रमते हुये आत्म निज घर में ।
करते हुये ज्योति पर हत-प्रभ,
हुये सुशोभित त्रिभुवन भर में ॥ ०४ ॥

हुआ आत्म गुण विभव साथ में ।
ऊर्-ध्वग हुआ स्वभाव हाथ में ।
फिर क्या, जा पहुँचे श्री भगवन्,
लोक-माथ इक समय मात्र में ॥ ०५ ॥

हेत अन्य आकार शून हैं ।
देह अखीरी तनिक न्यून हैं ।
अद्भुत हैं, दैदीप्यमान हैं,
मूरत ज्ञान, अमूर्त ,पून हैं ॥ ०६ ॥

सिद्ध परम सुख अतिशय-कारी ।
आत्मो-पादानज-अविकारी ।
घटन-बढ़न विरहित स्वाभाविक,
वीत-बाध विस्तृत अति-भारी ॥ ०७ ॥

क्षुद्-तृष नहिं, क्या अर्थ अशन से ।
शुचि मतलब क्या, गन्ध सुमन से ।
हुआ अभाव अहा ! निद्रादिक,
लेन-देन क्या मृदुल शयन से ॥ ०८ ॥

नय, तप, संयम सिद्ध विधाता ।
सिद्ध ज्ञान, दृक्, वृत, विख्याता ।
भूत, भविष्यत, सिद्ध वर्तमाँ,
तिन स्वरूप पाने थुति गाता ॥ ०९ ॥ 

सिद्ध अनन्त करूँ सुमरण भो ।
लाभ-रतन-त्रय, सुगति गमन हो ।
क्षय दुख, नाश कर्म, गुण अरहत्-
सम्पद वरण, समाधि मरण हो ॥ १० ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

*श्री सरसुति-मंत्र*

ॐ ह्रीम्
अर्हन् मुख कमल-वासिनि
पापात्म क्षयंकरि
श्रुत-ज्ञान
ज्वाला सहस्र प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति !
मत् पापम् हन हन दह दह
क्षाम् क्षीम् क्षूम् क्षौम् क्षः
क्षीरवर-धवले
अ-मृत-संभवे
वम् वम् हूम् फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

*विसर्जन पाठ*
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।। १ ।।

धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।। २ ।।

अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।। ३ ।।

बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।। ४ ।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
=दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
कृपा ‘निराकुल’ आपकी,
बनी रहे निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)

आरती

आओ भक्ता आओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।
दीवा घृत भर लाओ ‘रे ।
सिद्ध चक्र मण्डल विधान की ।
सिद्ध यन्त्र करुणा निधान की ।।
आरति कर हरषाओ ‘रे ।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।।

दुखियारिन रानी मैना ।
चैन-करार न दिन-रैना ।
देख-देख पति की पीड़ा,
बस ढोले पानी नैना ।। १ ।।

जा पहुंची जिन मन्दरिया ।
दिखे साधु जिन मन-दरिया ।
मिल चाला कोई अपना,
झल चाला नयनन दरिया ।। २ ।।

अपना पुण्य करो गाढ़ा ।
मुनि बोले अशीष म्हारा ।
धारा सिद्ध-यंत्र ढारो,
कार्तिक, फागुन, आसाढ़ा ।। ३ ।।

आया पर्व अठाई है ।
पूजन सिद्ध रचाई है ।
गन्धोदक ले सिर माथे,
कर्म निकाच विदाई है ।। ४ ।।

पापोदय पलटी खाया ।
काम-देव कंचन काया ।
गूँजा ‘सति मैना सुन्दर’,
धरती-अम्बर जयकारा ।। ५ ।।

मोती नयन झिराओ ‘रे ।
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ‘रे ।
मिलकर कीरति गाओ ‘रे ।
सिद्ध चक्र मण्डल विधान की ।
सिद्ध यन्त्र करुणा निधान की ।।
आरति कर हरषाओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।। ६ ।। 

सर्व-विघ्न-शान्ति मंत्र

नमोर्-ऽहते भग-वते
प्र(क्)-क्षी-णाशेष दोष कल्-मषाय
दिव्य तेजो मूर्-तये
श्री शान्ति-नाथाय शान्ति-कराय
सर्व विघ्न(प्) प्र-णा-शनाय
सर्व रोगाप मृत्यु वि-ना-शनाय
सर्व पर कृच्-छु(द्)-द्रो-प(द्)-द्रव वि-ना-शनाय
सर्वा-रिष्ट शान्ति-कराय
ॐ ह्राम् ह्रीम् ह्रूम् ह्रौम् ह्रः
अ, सि, आ, उ, सा नमः
मम सर्व विघ्न शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्व रोगाप-मृत्यु शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्व पर कृच्-
छु(द्)-द्रो-प(द्)-द्रव शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्वा-रिष्ट-शान्तिम्
कुरु कुरु
मे तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु
ते तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु 
ते मे तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु
स्वाहा, स्वाहा, स्वाहा

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