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RakshaVandhan

7. रक्षाबंधन विधान 601 to 700

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

रक्षाबंधन विधान

*पूजन *
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।
बार बार करता आह्वानन ।
सविनय मैं करता संस्थापन ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार सन्निधि-करण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।स्थापना।।

आग हो चली पानी पानी ।
भाग हमारे आनी जानी ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धारा नयन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।जलं।।

द्वार चन्दना खड़े विधाता ।
मेरा वन क्रन्दन से नाता ।।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धार चन्दन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।चन्दनं।।

शिला टूक अक्षत बजरंगी ।
लहरे जीवन मेरे तंगी ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार धाँ शालि-कण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।अक्षतं।।

मेंढ़क सुमन पाँत में आया ।
हाय ! न अब तक मैं ढ़क पाया ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार पुष्प नन्दन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।पुष्पं।।

पट खुल पड़े पांव सति लागा ।
सोया मेरा भाग न जागा ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दिव्य व्यंजन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।नैवेद्यं।।

ग्वाला कुन्द कुन्द बन चाला ।
छाया मन मेरे अंधियारा ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दीपक रतन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।दीपं।।

नाग बना अध-लोक भूप है ।
घर मेरे दिन भर न धूप है ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार दश गंध अन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।धूपं।।

श्रीफल ने सुन गिरी गिरा ली ।
झोली मेरी अब तक खाली ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार फल नन्द वन ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।फलं।।

जल गंधाक्षत पुष्प अनूठे ।
दीपक चरु फल सुरभी फूटे ।
आन पधारो, हृदय हमारे ।
मुझे उबारो, लाखों तारे,
स्वीकार द्रव्य अनगण ।
जयतु सप्त-शत अकंपनादिक,
विष्णु कुमार श्रमण ।।अर्घ्यं।।

विधान प्रारंभ

सप्तम वलय पूजन विधान

जिन भक्त जै ।
सम्यक्त्व जै ।
आत्म तत्त्व श्रद्धान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६०१।।
ॐ ह्रीं श्री भक्ति प्रवण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

भव पार जै ।
अविकार जै ।
कब दिवाल लग कान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६०२।।
ॐ ह्रीं श्री पूति हृदय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जश वन्त जै ।
वसु नन्द जै ।
दरश अनंत विधान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६०३।।
ॐ ह्रीं श्री पवित्र यश मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मन गुप्त जै ।
धन ! मुक्त जै ।
आतप सम्मुख भान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६०४।।
ॐ ह्रीं श्री प्रवर्धक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कुप् क्षीण जै ।
जप लीन जै ।
गौरव तीन जहान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६०५।।
ॐ ह्रीं श्री अघ मर्शक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

विश्वास जै ।
इक आश जै ।
जिन शासन पहचान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६०६।।
ॐ ह्रीं श्री आस्तिक्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

माहन्त जै ।
वासन्त जै ।
रंच न कर्म वितान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६०७।।
ॐ ह्रीं श्री धर्मवर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

क्षम वैन जै ।
नम नैन जै ।
जैन-अजैन गुमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६०८।।
ॐ ह्रीं श्री सहिष्णु मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जग ढ़ोक जै ।
मग मोख जै ।
कर्त लोक कल्याण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६०९।।
ॐ ह्रीं श्री स्तुति धर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

श्रुत प्रीत जै ।
रत नीत जै ।
सप्त भीत अवसान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६१०।।
ॐ ह्रीं श्री श्रुति धर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मत हंस जै ।
मद ध्वंस जै ।
धर्म अहिंसा शान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६११।।
ॐ ह्रीं श्री विचक्षण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मुनि मौन जै ।
धुन गौण जै ।
सुगंध सोन सुजान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६१२।।
ॐ ह्रीं श्री सार्थक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

गत राग जै ।
रत जाग जै ।
वीतराग विज्ञान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६१३।।
ॐ ह्रीं श्री अप्रमत्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृग नार जै ।
डग पार जै ।
रग रग सार पुराण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६१३।।
ॐ ह्रीं श्री अविचल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

धृत धीर जै ।
अतिवीर जै ।
चीर चीर संधान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६१४।।
ॐ ह्रीं श्री धैर्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

चित् चोर जै ।
जित होड़ जै ।
दिव शिव मौड़ बखान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६१५।।
ॐ ह्रीं श्री अभिजित् मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सत् खोज जै ।
मथ ओज जै ।
पद पयोज छविमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६१६।।
ॐ ह्रीं श्री अन्वेषक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दिव ज्योत जै ।
शिव पोत जै ।
मुख दृग मोतिस्-नान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६१७।।
ॐ ह्रीं श्री दिव्य ज्योति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मन दान्त जै ।
धन ! शान्त जै ।
तन सुकांत दिनमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६१८।।
ॐ ह्रीं श्री प्रशांत कषाय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

निष्पाप जै ।
दृश छाप जै ।
नुति पद जाप विधान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६१९।।
ॐ ह्रीं श्री अनघ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सुख नन्त जै ।
निर्ग्रन्थ जै ।
इक नन्दन श्मशान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६२०।।
ॐ ह्रीं श्री केवल ज्योति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मद शून जै ।
द्यु-प्रसून जै ।
एक पून अरमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६२१।।
ॐ ह्रीं श्री अणुमान् मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

उर मात जै ।
विख्यात जै ।
स्वयं भात अर प्राण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६२२।।
ॐ ह्रीं श्री यशवंत मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जित अक्ष जै ।
व्रत दक्ष जै ।
दूज कक्ष विद्वान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६२३।।
ॐ ह्रीं श्री जयवन्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सिरमौर जै ।
उर गौर जै ।
जोड़ तोड़ कब मान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६२४।।
ॐ ह्रीं श्री महिम मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

श्रुत धाम जै ।
कृत काम जै ।
काम तमाम गुमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६२५।।
ॐ ह्रीं श्री महार्णव मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृग लाज जै ।
जग नाज जै ।
सजग स्वराज प्रयाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६२६।।
ॐ ह्रीं श्री अमिताभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

हट सोच जै ।
लट लोच जै ।
पट विमोच वन आन जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६२७।।
ॐ ह्रीं श्री संयम प्रकाश मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जल धार जै ।
तर झाड़ जै ।
खड्ग धार गत मान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६२८।।
ॐ ह्रीं श्री तप सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अक्षोभ जै ।
निर्लोभ जै ।
जल मल शोभ ! महान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६२९।।
ॐ ह्रीं श्री अक्षोभ्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अनमोल जै ।
धन ! बोल जै ।
मन अडोल, अम्लान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६३०।।
ॐ ह्रीं श्री अमृत प्रभव मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

वज देह जै ।
वैदेह जै ।
निसंदेह जिनवाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६३१।।
ॐ ह्रीं श्री वज्र कुमार मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

धन ! सीप जै ।
मण दीप जै ।
जिन समीप पुनवान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६३२।।
ॐ ह्रीं श्री मतिवर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृग पद्म जै ।
जग सद्म जै
रग छल छद्म न थान जै
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६३३।।
ॐ ह्रीं श्री वरांग मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अकलंक जै ।
मण पंक जै ।
निर्धन रंक समान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६३४।।
ॐ ह्रीं श्री अकलंक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

बलवंत जै ।
छल हन्त जै ।
सफल मंत्र नुति ध्यान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६३५।।
ॐ ह्रीं श्री बालि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृश बुद्ध जै ।
वृत शुद्ध जै ।
इक अनरुद्ध जहान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६३६।।
ॐ ह्रीं श्री रत्नायुध मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

शश चूल जै ।
वश भूल जै ।
दरश कूल जलयान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६३७।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्र चूल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सभ ज्योति जै ।
प्रभ मोति जै ।
दुर्लभ सूक्ति विधान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६३८।।
ॐ ह्रीं श्री ज्योति प्रभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मत कूर्म जै ।
सत् भूम जै ।
सतत झूम संज्ञान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६४०।।
ॐ ह्रीं श्री अतिशय मति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कच श्याह जै ।
सच शाह जै ।
चाह दाह अवसान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६४१।।
ॐ ह्रीं श्री अलक सुन्दर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अमि वाक् जै ।
नम आँख जै ।
बिन वैशाख प्रयाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६४२।।
ॐ ह्रीं श्री अमृत रसायन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

प्रिय हार जै ।
हिय न्यार जै ।
तिय दृग चार न मान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६४३।।
ॐ ह्रीं श्री कनक रथ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

गौरक्ष जै ।
निष्पक्ष जै ।
जश निरक्ष वरदान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६४४।।
ॐ ह्रीं श्री गोवर्धन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अरि जीत जै ।
गुरु प्रीत जै ।
पुरु विनीत निर्मान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६४५।।
ॐ ह्रीं श्री गौतम मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सुख डूब जै ।
दुख ऊब जै ।
शश नख अजूब थान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६४६।।
ॐ ह्रीं श्री आर्यनंदि मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

आशीष जै ।
भावीश जै ।
चार-बीस गुण गान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५७।।
ॐ ह्रीं श्री कृपाचार्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कृप वन्त जै ।
कुप् हन्त जै ।
जप तप मंत्र पुरान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५८।।
ॐ ह्रीं श्री कृप वर्मा मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

नभ नन्द जै ।
सभ चन्द्र जै ।
अलभ सुगंध विमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६४९।।
ॐ ह्रीं श्री गगन नंदन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मन चैन जै ।
जिन वैन जै ।
दिवस रैन सद्-ध्यान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५०।।
ॐ ह्रीं श्री महानंद मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृढ़ चित्त जै ।
अप्रमत्त जै ।
विरत वित्त धनवान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५१।।
ॐ ह्रीं श्री दृढ़वर्मा मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

गुण सिंध जै ।
पुन इन्द्र जै ।
सगुन अनन्त वितान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५२।।
ॐ ह्रीं श्री सर्व समुद्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कृत कृत्य जै ।
रग नित्य जै ।
सुभग सत्य व्याख्यान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५३।।
ॐ ह्रीं श्री भगदत्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अनगार जै ।
मनहार जै ।
नयन धार अप्रमाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५४।।
ॐ ह्रीं श्री अनगार मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

वृत नाभ जै ।
अमिताभ जै ।
गज वत् स्वाभिमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५६।।
ॐ ह्रीं श्री मदन सुन्दर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सरताज जै ।
सुर साज जै ।
उर विराज आह्वान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५७।।
ॐ ह्रीं श्री रत्न शेखर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

शिव रूप जै ।
दिव तूप जै ।
निब अनूप संस्थान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५८।।
ॐ ह्रीं श्री शिवसुन्दर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

वन वास जै ।
जिन दास जै ।
बिन प्रयास तट यान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६५९।।
ॐ ह्रीं श्री जिनदास मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

हन रोष जै ।
सन्तोष जै ।
माया, मोष, न मान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६६०।।
ॐ ह्रीं श्री लक्ष्मीधर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

चित चित्त जै ।
पथ सत्य जै ।
ज्ञान वृत श्रद्धान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६६१।।
ॐ ह्रीं श्री अनुवर्ती मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अघ दूर जै ।
जग नूर जै ।
चूर चूर अभिमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६६२।।
ॐ ह्रीं श्री अघ विमुक्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सुत धर्म जै ।
सद्-कर्म जै ।
सुरत शर्म शिव थान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६६३।।
ॐ ह्रीं श्री धर्मपुत्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अभिनन्द जै ।
नहिं निन्द जै ।
गंध सुगंध समान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६६४।।
ॐ ह्रीं श्री अनिन्दित मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

वश शोक जै ।
जश लोक जै ।
दरश मोख, वरदान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६६५।।
ॐ ह्रीं श्री अनिन्द्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सत्-निष्ठ जै ।
परमेष्ठ जै ।
हट विशिष्ट गुणवान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६६६।।
ॐ ह्रीं श्री सत्य निष्ठ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

गिर् दक्ष जै ।
अर कक्ष जै ।
अखर रक्ष हनमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६६७।।
ॐ ह्रीं श्री दक्ष वाक् मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

गत क्रुद्ध जै ।
प्रतिबुद्ध जै ।
सच वच सिद्ध प्रमाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६६८।।
ॐ ह्रीं श्री कुशाग्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अनभूति जै ।
जिन सूत्र जै ।
धन्य कलदूत वाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६६९।।
ॐ ह्रीं श्री महा विभूत मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

शश सौम्य जै ।
जश व्योम जै ।
हरष ओम जप ध्यान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६७०।।
ॐ ह्रीं श्री सुसौम्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

रवि भाल जै ।
नव बाल जै ।
निर्विकार मन वाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६७१।।
ॐ ह्रीं श्री ओजस्वी मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

ऊर्जस्व जै ।
तेजस्व जै ।
गत राजस्व विधान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६७२।।
ॐ ह्रीं श्री ऊर्जस्व मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

गिर कंध जै ।
स्वर छंद जै ।
मधुर मंद मुस्कान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६७३।।
ॐ ह्रीं श्री ऊर्यन्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

एकाग्र जै ।
वैराग्य जै ।
सुर अगम्य गुणगान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६७४।।
ॐ ह्रीं श्री एकाग्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

प्रभ गंग जै ।
निःसंग जै ।
हत तरंग मनमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६७५।।
ॐ ह्रीं श्री विमलप्रभ मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

स्वानंद जै ।
हा ! बंध जै ।
श्रुतस्-कंध अनुपान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६७६।।
ॐ ह्रीं श्री स्वरूपानंद मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

बुध नन्त जै ।
सुध वन्त जै ।
सुविध पंथ अब शान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६७७।।
ॐ ह्रीं श्री विद्यानंद मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

ब्रम नन्द जै ।
यम अन्त जै ।
तिमिर हन्त श्रुत ज्ञान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६७८।।
ॐ ह्रीं श्री ब्रह्मानंद मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

चिद्रूप जै ।
चित् नूप जै ।
विजित धूप पाषाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६७९।।
ॐ ह्रीं श्री चिन्मयानंद मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृग नीर जै ।
गंभीर जै ।
अलग धीर बलवान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६८०।।
ॐ ह्रीं श्री करुणा सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

निकलंक जै ।
इक अंक जै ।
पद पंकज छविमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६८१।।
ॐ ह्रीं श्री निकलंक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

श्रुत माथ जै ।
व्रत हाथ जै ।
सुमत नाथ बुत ध्यान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६८२।।
ॐ ह्रीं श्री सम्यक्त्व भूषण मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मृदु पंख जै ।
गल शंख जै ।
दृग पंकज, भुज कान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६८३।।
ॐ ह्रीं श्री ललितांग मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मनमोह जै ।
हन मोह जै ।
नयन मोह छविमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६८४।।
ॐ ह्रीं श्री मदन कीर्ति मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मन भाव जै ।
वन छाँव जै ।
शरण नाव जिनवाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६८५।।
ॐ ह्रीं श्री मनोभाव मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

रव नन्द जै ।
नव गंध जै ।
छव चन्दन पुनवान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६८६।।
ॐ ह्रीं श्री छव चन्दन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

रवि तेज जै ।
भुवि सेज जै ।
दिव सहेज शिवयान नै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६८७।।
ॐ ह्रीं श्री सूर्यकान्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

शश कान्त जै ।
विश्रान्त जै ।
आद्योपान्त सुजान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६८८।।
ॐ ह्रीं श्री चन्द्रकान्त मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

वज आँख जै ।
दृग नाक जै ।
त्रिजग साख कल्याण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६८९।।
ॐ ह्रीं श्री वज्र लोचन मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृग जेय जै ।
जग श्रेय जै ।
सजग ध्येय गतिमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९०।।
ॐ ह्रीं श्री श्रेयांस सगार मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

क्षिति पाल जै ।
यति बाल जै ।
छाँव दार, बिरवान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९१।।
ॐ ह्रीं श्री क्षितिपाल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जोगिन्द जै ।
गोविन्द जै ।
भजो संध्य नित प्राणि जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९२।।
ॐ ह्रीं श्री योगेन्द्र मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

शम क्रोध जै ।
संबोध जै ।
धरम शोध संस्थान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९३।।
ॐ ह्रीं श्री आत्मबोध मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अविकल्प जै ।
संकल्प जै ।
अन्तर् जल्प प्रयाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९४।।
ॐ ह्रीं श्री महाशय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

हित सर्व जै ।
गत गर्व जै ।
धर्ता स्वर्ग विमान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९५।।
ॐ ह्रीं श्री सर्व हिंतकर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृग दूज जै ।
नभ गूंज जै ।
जग जग पूज प्रधान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९६।।
ॐ ह्रीं श्री वासव पूज्य मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मल जल्ल जै ।
ज्वल शल्ल जै,
सजल मल्ल रजधान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९६।।
ॐ ह्रीं श्री मल्लि सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

गत शोक जै ।
रथ मोख जै ।
सतत ढोक सम्मान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९७।।
ॐ ह्रीं श्री व्यतीत शोक मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कर पात्र जै ।
पद यात्र जै ।
अग्र पाँत निर्वाण जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९८।।
ॐ ह्रीं श्री निर्वाण सागर मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अकषाय जै ।
वश काय जै ।
कल जिनराय विधान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।६९९।।
ॐ ह्रीं श्री निष्कषाय मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

बेजोड़ जै ।
कुल और जै ।
सौख्य ‘निराकुल’ थान जै ।
धरती के भगवान् जै ।
करुणा दया निधान जै ।।७००।।
ॐ ह्रीं श्री सुकुल मुनिन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

॥ जयमाला ॥

महिमा रक्षा बंधन पर्व अपार ।
जयतु सप्त शत, मुनि जय विष्णु कुमार ।।

नगरी उज्जैनी रजधानी ।
नृप श्री-वर्मा, श्रीमति रानी ।।
नमुचि, वृहस्पति, बलि प्रहलादा ।
मंत्रि मंत्रणा मद आमादा ।।
सप्त शतक मुनि सहित पधारे ।
सूर अकम्पन तारण हारे ।।
देख भक्त जन आना जाना ।
राजा ने भी जाना ठाना ।।
रोक खड़े मंत्री चारों के चार ।
लो पीछे, जब चलने नृप तैयार ।।१।।

राजा ने दी ढोक सभी को ।
ध्यान मग्न थे चूँकि सभी वो ।।
तभी न आशीर्वाद नवाजा ।
वृत्ति निरीह प्रभावित राजा ।।
झुके न, मंत्री अड़े खड़े हैं ।
बोले, ये सब मूर्ख निरे हैं ।।
पहले ही चित चारों खाने ।
लाज बचायें, मौन बहाने ।।
चलो यहाँ से चलें शीघ्र सरकार ।
समय कीमती यूँ ही व्यर्थ निछार ।।२।।

देख मार्ग में आते मुनि को ।
मंत्रि लगे छेड़ने उनको ।।
बैल पेट भरकर आ चाला ।
भैंस बराबर अक्षर काला ।।
उत्तर दे चाले तपाक से ।
मुनि श्रुत सागर सार्थ आप से ।।
वाद विवाद मंत्रि गण हारे ।
गूंजे दया धर्म जयकारे ।।
साँच कहावत नीचे ऊंट पहाड़ ।
नजर चुरा मंत्री गण नौ दो ग्यार ।।३।।

मुनि ने गुरु से सब कह डाला ।
गुरु ने कहा, सुनो यति बाला ।।
आती आपद के पग बांधो ।
प्रतिमा-योग वहीं जा साधो ।।
ठाना कहर संघ पर ढ़ाना ।
निकले मंत्री लिये कृपाणा ।।
देख सामने अपना वैरी ।
किया प्रहार, न कीनी देरी ।।
कीलित सभी, खड़े बुत से लाचार ।
नृप ने सुबह देश से दिये निकाल ।।४।।

पहुंच हस्तिनापुर अब मंत्री ।
खड़े पद्म नृप सेवक पंक्ति ।।
सिंहबल नाम शत्रु नृप पदमा ।
ला बलि खड़ा किया नृप कदमा ।।
खुश होकर नृप बोले बलि से ।
मांगो मनचाहा वर मुझ से ।।
बलि बोला, मम दृग पथ गामी ! ।
समझें उसे धरोहर स्वामी ! ।।
हुआ अकम्पन सूर ससंघ विहार ।
कभी हस्तिनापुर लख वर्षा काल ।।५।।

बलि ने नृप वर याद दिलाया ।
सात दिवस का राज मँगाया ।।
घेर संघ जूठन फिकवाई ।
गला रुधा, यूँ धुंआ कराई ।।
दूर न जब तक यह उपसर्गा ।
साध खड़े मुनि कायोत्सर्गा ।।
अवधि ज्ञान दृग दिया दिखाई ।
शिख ढ़िग विष्णु कुमार पठाई ।
सुन रिध विक्रियधर उपसर्ग निवार ।
हेत परीक्षा मुनि दी बाहु पसार ।।६।।

बलि से बोले विष्णु कुमारा ।
क्या बिगाड़ते साधु तुम्हारा ।।
क्यों ये पाप कार्य करते हो ।
क्या उससे भी ना डरते हो ।।
बलि बोला, ये राज हमारा ।
छोड़ इसे, यह करें विहारा ।।
ऋषि बोले, यह जा नहीं सकते ।
जगह एक बरसात ठहरते ।।
अच्छा सुनो करो इतना उपकार ।
भूमि तीन डग दे दो, बनो उदार ।।७।।

बलि बोला, ना ज्यादा दूँगा ।
बाद खबर इन सबकी लूँगा ।।
फिर क्या ? विष्णु कुंवर हुंकारे ।
बढ़ ज्योतिस्-मण्डल छू चाले ।।
डग पहले सुमेर गिर नाका ।
दूज मानुषोत्तर गिर राखा ।।
डग तीजा नभ में लहराये ।
नर, सुर, नाग धरा थर्राये ।।
निरत भक्ति सौधर्म साथ परिवार ।
मुनि सकोचि विक्रिय सुन धुन रिध-धार ।।८।।

क्षमा संघ से बलि ने मांगी ।
‘धर्म वृद्धि’ कह चले विरागी ।।
श्रावक मुनि पड़गा हरषाये ।
नवधा भक्ति अहार कराये ।।
रक्षा बंधन पर्व मनाया ।
जश मुनि विष्णु कुमार बढ़ाया ।।
हित प्रायश्चित ऋषि बढ़ चाले ।
कर्म सभी ध्यानानल जारे ।।
समय मात्र परिणाई शिवपुर नार ।
लागी सौख्य ‘निराकुल’ अविरल धार ।।९।।

दोहा
यह रक्षा बंधन कथा,
पढ़ें सुन जे जीव ।
उनके जीवन में जगे,
सम्यक् ज्ञान प्रदीव ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

*विसर्जन पाठ*
अंजन को पार किया ।
चंदन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।

धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।

अगनी ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।

बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।
( निम्न श्लोक पढ़कर
विसर्जन करना चाहिये )

*दोहा*
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
कृपा ‘निराकुल’ आपकी,
बनी रहे निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)

।।आरति।।

आरती विष्णु कुमार श्रमण ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।

आरती पहली धन समता ।
नीर बहता जोगी रमता ।।
मंत्रि बलि आद अत्त ढ़ाया ।
संघ न माथ शिकन लाया ।।
लेख कृत पूरब किया सहन ।

सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।

आरती दूजी धन शक्ती ।
नाग, नर, देव करें भक्ती ।।
कौन इनसे ऊँचा जग में ।
नाप ली धरती दो डग में ।।
निकट गुरु खड़े हित प्रतिक्रमण ।

सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।

आरती तीजी धन करुणा ।
हिरण सिंह बैठे सम शरणा ।।
क्षमा माँगी, दृग नम कीनी ।
ढोक बलि आदि मंत्रि दीनी ।।
‘निराकुल’ सुख आशीष वचन ।

सिर्फ न सांझ सांझ निश दिन ।
आरती विष्णु कुमार श्रमण ।।
धरूँ मैं दृग अनगिन मोती ।
करूँ ले घृत अनबुझ ज्योती ।।

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