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श्री सिद्धचक्र मण्डल विधान

4. सिद्ध-चक्र मंडल विधान चतुर्थ वलय

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सिद्ध-चक्र मंडल विधान
चतुर्थ वलय

*श्री वर्धमान मंत्र*
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रि-सहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, वि-वाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्-भणे वा, मो-हणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अव-राजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।

नव देवता संस्तवन

नव देवों के वन्दन से ।
हम छूटें भव बन्धन से ।।

धन नन्त चतुष्टय रीझे ।
चउ कर्म घातिया झीजे ।
पा लिये सुलोचन तीजे ।
अरिहन्तों के सुमरण से ।
जुड़ चलें अन्त सु…मरण से ।।१।।

अर कछु…आ भीतर जागे ।
वसु कर्म छोड़ रण भागे ।
जा समय एक शिव लागे ।
सिद्धों के गुण कीर्तन से ।
छूटें पन परिवर्तन से ।।२।।

दीक्षा दैगम्बर देते ।
नौका भक्तों की खेते ।
हाथों का श्रीफल लेते ।
आचार्यों के अर्चन से ।
जुड़ चलें पुण्य अर्जन से ।।३।।

चल ग्रन्थालय कहलाते ।
परहित ठाडे छा छाते ।
जागृति से गहरे नाते ।
श्रुत-वन्तों की पूजन से ।
जुड़ते जश खुशबू धन से ।।४।।

फिर ध्यान ज्ञान रत लागी ।
फिर ज्ञान ध्यान बढ़भागी ।
रत्नत्-त्रय परिणति जागी ।
सन्तन चरणस्-परसन से ।
जुड़ते सम्यक्-दर्शन से ।।५।।

मानव सेवा से जुड़ना ।
छल-छिद्र कुटेव बिछड़ना ।
जलना न किसी से कुढ़ना ।
जिन दया धर्म पालन से ।
बच निकलें दुख दारुण से ।।६।।

इक बोधि समाधि निधाना ।
क्या वस्तु स्वरूप पिछाना ? ।
यम, संयम, नियम विधाना ।
सद्-ग्रन्थ पठन पाठन से ।
जुड़ते तीजी आंखन से ।‌।७।।

दृग टिका नासिका राखी ।
अंतर्मुख मुद्रा जाकी ।
सत् शिव सुन्दर लट बांकी ।
जिन प्रतिमा के दर्शन से ।
छूटें निकाच कर्मन से ।।८।।

पचरंग लहर लहराये ।
घंटा जयनाद सुहाये ।
रथ मोक्ष दूज जग छाये ।
जिन मंदिर लख नयनन से ।
बचते गति पशु नरकन से ।।९।।
ॐ ह्रीं श्री नव देवता भगवन् !
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

शील व्रत की महिमा

बीतती अमावसी रैना ।
भींजते अश्रु ख़ुशी नैना ॥
सिद्ध-चक्र मंडल विधान रच,
पत राखी मैना ।
शील व्रत महिमा क्या कहना ? ॥

पुत्रियाँ दो इक सुर सुंदर ।
सुन्दरी मैना मुख चन्दर ॥
पिता पहुपाल नाम राणा ।
प्रजापत, दयाल, बलवाना ॥
शैव गुरु सुर सुन्दरी पढ़ी ।
ब्याह मनचाहा रचा चली ॥
आर्यिका पास पढ़ी जाके ।
खड़ी मैना सविनय आके ॥
कहा पिता ने चुनो, चुने ज्यों,
अपना वर बहना ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान रच,
पत राखी मैना ॥ ०१ ॥

बोलती मैना सुन्दर तब ।
नार कुलवन्त वरे वर कब ॥
खोज लायेंगे आप जिसे ।
पिंना दूँगी वरमाल उसे ॥
बनें जोड़ी ऊपर सुनते ।
व्यर्थ हम दम्भ-मान चुनते ॥
भाग में जो लिक्खा लाये ।
सामने शनैः शनैः आये ॥
हमें चाहिये राखे जिस विध,
विधि तिस विध रहना ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान रच,
पत राखी मैना ॥ ०२ ॥

पिता क्रोधित होकर बोले ।
कहे क्या जरा तोल तो ले ॥
हमारे टुकड़ों पर पलती ।
भाग कीरत गाती फिरती ॥
अभी भी वक्त बात मानो ।
डोर दो टूक, न यूँ तानो ॥
काल पछतायेगी ‘री सुन ।
लाउँगा मैं चाहे ‘जी’ चुन ॥
और ब्याह वर कोढ़ि चाह घृत,
नृप मथते फैना ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान रच,
पत राखी मैना ॥ ०३ ॥

चली मैना पति घर जल्दी ।
लगाने घावों में हल्दी ॥
गई जिन मंदिर देख मुनी ।
वन्दना मुनि सिर टेक चुनी ॥
पाँव जल आँख धुला चाली ।
बात कब मुनि छुपने वाली ॥
आप मुख फिर भी कहती है ।
मात चुप कब तक रहती है ॥
आँख ढुलक मोती कहते मुनि,
कह मत, सब सहना ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान रच,
पत राखी मैना ॥ ०४ ॥

पाठ श्री सिद्ध-चक्र साधो ।
आठ दिन ब्रम-चर आराधो ॥
धार जल सिद्ध यंत्र कीजो ।
हाथ प्रभु गंधोदक लीजो ॥
चढ़ा‌ना माथे पति कोढ़ी ।
सुमर नुति मन्तर बेजोड़ी ॥
मास कार्तिक, फागुन, साढा ।
‘वस’ बरस साधो जयकारा ॥
मनोकामना होगी पूरी,
संशय मत गहना ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान रच,
पत राखी मैना ॥ ०५ ॥

हाथ गंधोदक ले मैना ।
माथ पति धारे नम नैना ॥
दूर दिन, पलक न झाँपी है ।
क्रूर करमन ली हाँपी है ॥
रूप-सी कामदेव काया ।
सफाया हुआ कुष्ठ, माया ॥
सात सौ कोढ़ी खुश सारे ।
चांद श्रीपाल सभी तारे ॥
सति मैना सुन्दरी चाँदनी,
धन्य गगन जैना ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान रच,
पत राखी मैना ॥
बीतती अमावसी रैना ।
भींजते अश्रु ख़ुशी नैना ॥
शील व्रत महिमा क्या कहना ? ॥ ०६ ॥

“पुष्पांजलिं क्षिपामि”

सिद्ध-चक्र मंडल विधान पूजन

जय जयकारा जय जयकारा ।
सिद्ध यंत्र को नमन हमारा ॥
आगे पीछे रेफ, मध्य सह,
बिन्दु हकारा ।
कमलाकृति-दल कर्णि पूर्व सिध,
स्वर दश चारा ॥
फिर कवर्ग, फिर चवर्ग नीचे ।
फिर टवर्ग, फिर तवर्ग पीछे ॥
फिर पवर्ग अंतस्थ-ऊष्म यूँ,
साथ अनाहत मन्तर न्यारा ।
अंत ह्रीम् बेढ्यो अति प्यारा ॥
मंत्र णमो अरिहंताणं मध,
पाँखन विस्तारा ।
सिद्ध यंत्र को नमन हमारा ।
जय जयकारा जय जयकारा ॥
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं
श्री सिद्ध यंत्र
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)

सिद्ध मंत्र आलापता,
असि-आ उसा प्रसिद्ध ।
सिद्ध यंत्र को थापता,
हित सरवारथ सिद्ध ॥
( इति यन्त्रस्-थापनार्थं पुष्पांजलिं क्षिपेत् )

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् ‘पूर्वर स्वर-चौदह वर्णा ॥१॥
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ
ऋ ॠ ऌ ॡ ए ऐ ओ औ अं अः
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् आग्ने-यर, वर्ण कवर्गा ॥२॥
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् दक्षिण-अर, वर्ण चवर्गा ॥३॥
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
दक्षिण-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् नैऋत्-त्यर, वर्ण टवर्गा ॥४॥
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् पश्चिम-अर, वर्ण तवर्गा ॥५॥
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् बायव्-व्यर वर्ण पवर्गा ॥६॥
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् उत्तर अंतस्थ सुवर्णा ॥७॥
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् ईशा-नर ऊष्मक वर्णा ॥८॥
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

अथ सिद्ध भक्ति कायोत्सर्ग
॥ प्राकृत पद्यानु-वाद ॥

॥ दोहा ॥
सिद्ध, ज्ञान, दर्शन-मयी,
जीव-घणा, अशरीर ।
अनाकार, साकार भी,
कुछ कम देह-अखीर ॥१॥

॥ चौपाई ॥
बंधोदय सत्-कर्म अराती ।
प्रकृति मूल-उत्तर संघाती ॥
मंगल-भूत अष्ट गुण-वन्ता ।
जल-संसार तीर अगणंता ॥२॥

सिद्धी-भूत निरंजन, नित्या ।
विकल कर्म विध-वस कृत-कृत्या ॥
सार्थ सिद्ध लोकाग्र निवासी ।
अष्टक प्रमुख शगुन गुण-राशी ॥३॥

नष्ट अष्ट मल-कर्म विशुद्धा ।
सिद्ध, बुद्ध नव-लब्धि समृद्धा ॥
शेखर-मुकुट भुवन-तिहुँ माथा ।
श्री-मद्-भट्टारक जग-त्राता ॥४॥

॥ दोहा ॥
गमना-गमन विमुक्त जे,
प्रकृति कर्म संघात ।
शाश्वत सुख संयुक्त वे,
सिद्ध विमुक्त-उपाध ॥५॥

॥ चौपाई ॥
मंगल-भूत दुभू पाताला ।
निर्मल परिणत बहती धारा ॥
दर्शन, अवगम, चारित सहिता ।
द्रव्य कर्म, नो-कर्म वि-रहिता ॥६॥

केवल दर्शन, चारित, ज्ञाना ।
निध-सम्यक्त्व, वीर्य-अप्रमाणा ॥
सूक्ष्म, अगुरुलघु, अव्या-बाधा ।
अवगाहन गुण अष्टक साधा ॥७॥

तप से सिद्ध, सिद्ध संयम से ।
नय से सिद्ध, सिद्ध अवगम से ॥
दर्शन, ज्ञान, सिद्ध आचरणा ।
हों प्रसन्न, वे तारण-तरणा ॥८॥

॥ दोहा ॥
कीना कायोत्सर्ग है,
भक्ति सिद्ध जिन नाथ ।
आलोचन उसका करूँ,
हाथ जोड़ नत माथ ॥९॥

॥ चौपाई ॥
भूषण-भू-वस, कल्मष-क्षीणा ।
चरित, ज्ञान, दर्शन समिचीना ॥
सिद्ध भूत, वर्तमान, भावी ।
नन्ता-नन्त काल अप्रभावी ॥१०॥

बुध-प्रतेक ! बुध-बोधित ! बुद्धा !।
बुध-अनेक, बुध-स्वयं ! विबुद्धा !॥
उनका पूजन, वन्दन करता ।
मन, वच, तन अभिनन्दन करता ॥११॥

कर्म क्षीण हो, दुख विलीन हो ।
संगत-साध, सुगति अधीन हो ॥
बोधि ‘निराकुल’ समाधि पाऊँ ।
धन ! जिन-गुण-सम्पद् पा जाऊँ ॥१२॥ 

“पुष्पांजलिं क्षिपामि”

अकृत्रिम जिनालय अर्घ्यं

आठ करोड़ लाख छप्पन ।
सन्त्यानवे हजार धन ! धन ! ॥
इक्यासी ऊपर सौ चार ।
अखर जिनालय जय जयकार ॥
ॐ ह्रीं आठ करोड़, छप्पन लाख,
सन्त्यानवे हजार, चार सौ इक्यासी
श्री अकृत्रिम जिनालयेभ्यो नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

अकृत्रिम जिन बिम्ब अर्घ्यं

कोटिक नव सौ पच्चीसा ।
लाख तिरेपन सत-बीसा ॥
हजार, नव सौ अड़तालीस ।
नुति जिन-बिम्ब अखर निशिदीस ॥
ॐ ह्रीं नौ सौ पच्चीस करोड़,
तिरेपन लाख, सत्ताईस हजार,
नव सौ अड़तालीस
श्री अकृत्रिम जिन बिम्बेभ्यो नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

चतुर्थ वलय पूजन विधान

कहती मैना रानी है ।
यजन सिद्ध वरदानी है ॥
थे हमार स्वामी कोढ़ी ।

कर्म निकाचित बेजोड़ी ॥
कामदेव से बढ़ सुन्दर ।
जिनवर सिद्ध शिला मंदर ॥
गीली आँख, हाथ जोड़ी ।
भागा दुख यमपुर दौड़ी ॥
चल न सकी मनमानी है ।
सारी दुनिया छानी है ॥
यजन सिद्ध वरदानी है ।
कहती मैना रानी है ॥
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)

राख नहीं पाता पानी ।
जब तब बन चालूँ मानी ॥
आप प्रमाणी कहलाये ।
तर आये, भीतर आये ॥
तभी लिये आया पानी ।
सम्भलूँ अब न बनूँ मानी ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।

क्यूँ ना बना फिरूँ किस्सा ।
मन भर करता हूँ गुस्सा ॥
गुस्सा पी सकते हैं सुन ।
चुना न, सिर्फ़ लिया तुम गुन ॥
लाया चन्दन तभी घिसा ।
भागे पग उल्टे गुस्सा ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा ।

क्यूँ न कहाऊँ संसारी ।
खूब करूँ मायाचारी ॥
भूखे कहाँ हंस मानस ।
दी तुम भगती बगुला नश ॥
लाया तभी धान शाली ।
अब न करूँ मायाचारी ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।

खींचे क्यूँ न कुगत नीचे ।
लालच-लोभ पड़े पीछे ॥
विषयाशा न बढ़ाई है ।
बस आ शान बढ़ाई है ॥
व्यंजन लिये अमृत सींचे ।
छोड़ूँ लोभ दूर पीछे ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।

क्यूँ न जुड़े आफत नाता ।
नजरें कब संभाल पाता ॥
आँख नाक पे तुम राखी ।
‘साख नाक’ बगलें झाँकी ॥
लाया पुष्प पारिजाता ।
नजरें नाक कि रख पाता ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

क्यूँ खुल पड़े कर्म ताले ।
खेलूँ खेल खून वाले ॥
पर हित नम तुम आँखें हैं ।
बाँध न सकीं सलाखें हैं ॥
लाये तभी दीप बाले ।
रोकूँ खेल खून वाले ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।

पार कहाँ नैय्या रेता ? ।
फिर फिर झूठ रिझा लेता ॥
सत् शिव सुन्दर अपनाया ।
लक्ष्य भाग-दौड़ा आया ॥
सविनय तभी धूप खेता ।
होय कि झूठ रिझा लेता ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।

क्यूँ कर मिले मुझे रस्ता ।
चोरी से गहरा रिश्ता ॥
‘औ-गुन’ सार्थ तुम्हें लागे ।
गुन, चुन बैठे, नित जागे ॥
लाये तभी दाख-पिस्ता ।
याद शेष चोरी रिश्ता ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।

प्रभु क्यों करें छतर छाया ।
फंसा हुआ झाँसे माया ॥
तुम हित छाँव, धूप खाई ।
शिव गौरी दौड़ी आई ॥
तभी द्रव्य सबरी लाया ।
फंसा सकूँ झाँसे माया ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

चौसठ मूल गुण अर्घ

जपत सिद्ध अनन्त भय क्षय ।
निरत श्री अरिहंत जय जय ॥
सूर पाठि महंत जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥

घातिया चौ कर्म घाते ।
धन ! चतुष्टय नन्त नाते ॥
सींझ चाली सिद्धि सारीं ।
रीझ चालीं रिद्धि न्यारीं ॥
जय जिणाणं णमो जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ १ ॥
ॐ णमो
जिणाणं स्वाहा ।

कब लड़े विधि, हार मानी ।
हाथ प्रतिफल अवधि ज्ञानी ॥
विद् पदारथ रूपि सारे ।
यूँ न मत औरन नजारे ॥
णमो ओही जिणाणं जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ २ ॥
ॐ णमो
ओहि जिणाणं स्वाहा ।

चरित निर्मल गंग धारा ।
पटल परमावधि उघारा ॥
विद् पदारथ रूपि सारे ।
टके चूनर पुण्य तारे ॥
जिणाणं परमोहि जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३ ॥
ॐ णमो
परमोहि जिणाणं स्वाहा ।

मन, वचन, तन मौन साधा ।
आन सर्वावधि अराधा ॥
विद् पदारथ रूपि सारे ।
महोत्सव दिव देव द्वारे ॥
जिणाणं सव्वोहि जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ४ ॥
ॐ णमो
सव्वोहि जिणाणं स्वाहा ।

मूलगुण निर्दोष पाले ।
नन्त वधि ! विधि खुले ताले ॥
विद् पदारथ रूपि सारे ।
तीन जग तुम इक सहारे ॥
जिणाणं नन्तोहि जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ५ ॥
ॐ णमो
अणंतोहि जिणाणं स्वाहा ।

कोष्ठ-कोठे धान रक्षा ।
श्वास लौटे ज्ञान रक्षा ॥
मान आज्ञा जैन वाणी ।
ज्ञान आ…ज्ञा नैन पानी ॥
कोट्ठ बुद्धीणं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ६ ॥
ॐ णमो
कोट्ठ बुद्धीणं स्वाहा ।

बीज छोटा, बड़ा झाड़ा ।
पार छिन में श्रुत अपारा ॥
संग तज बहि रन्तरंगा ।
नाम सार्थक अन…तरंगा ॥
बीज बुद्धीणं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ७ ॥
ॐ णमो
बीज बुद्धीणं स्वाहा ।

पढ़ा केवल पद अकेला ।
घाट-श्रुत, विघटा अँधेरा ॥
ज्ञान फिर फिर ध्यान करना ।
क्षमा धरना, दया करुणा ॥
पदनु-सारीणं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ८ ॥
ॐ णमो
पदानु-सारीणं स्वाहा ।

शब्द भिन-भिन सेन चक्री ।
कर्ण गत, नत नैन शक्री ॥
क्षमा माँगी, क्षमा कीनी ।
सातिशय निध जमा कीनी ॥
सभिन सोदाणं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ९ ॥
ॐ णमो
संभिण्ण सोदाराणं स्वाहा ।

बिन गुरु के ज्ञान पाया ।
हन गुरूर गुमान-माया ॥
विनय देव अराध्य इनका ।
सिवा इन शिव राज्य किनका ॥
सयं बुद्धाणं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ १० ॥
ॐ णमो
सयं बुद्धाणं स्वाहा

नूर द्यु बेदाग ध्याँ ‘रे ।
सूर पूरब जाग चाले ॥
वैर भाव कहाँ किसी से ।
भाव मैत्री इक सभी से ॥
बुद्ध पत्तेयं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ११ ॥
ॐ णमो
पत्तेय बुद्धाणं स्वाहा ।

पा निमित्त तुरत विरागी ।
अहा ! परिणति सदा जागी ॥
निकल भागी जलन मन से ।
लगन लागी विजन वन से ॥
बोहि बुद्धाणं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ १२ ॥
ॐ णमो
बोहिय बुद्धाणं स्वाहा ।

छुपाई हम बात मन में ।
जान लेते आप छिन में ॥
आप पढ़ लें खूब चेहरा ।
ज्ञान हट कुछ रखें गहरा ॥
उजु मदीणं णमो जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ १३ ॥
ॐ णमो
उजु मदीणं स्वाहा ।

छुपाई मन, बात बाँकी ।
आपने कर प्रकट राखी ॥
आप पढ़ लें खूब चेहरा ।
भाँत माँ अनुभव सुनहरा ॥
जय विउल मदिणं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ १४ ॥
ॐ णमो
विउल मदीणं स्वाहा ।

देवियॉं आपके खड़ीं हैं ।
नाक से कब दृग हटीं हैं ॥
पूर्व दश विद्यानु-वादा ।
रह निराकुल-सहज साधा ॥
दस पुविणं णमो जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ १५ ॥
ॐ णमो
दस पुव्वियाणं स्वाहा ।

विध जुगल तज संग सारा ।
कण्ठ गत सब अंग बारा ॥
जा निकल घर झांक आयें ।
मन न करता चुगल खायें ॥
णमो चउ-दस पुवीणं जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ १६ ॥
ॐ णमो
चोद्-दस पुव्वियाणं स्वाहा ।

तलस्-पर्शी ज्ञान रिश्ता ।
ज्योति-षादिक सिद्ध हस्ता ॥
बस न सिर्फ पता थमाते ।
लगे हाथ पते लगाते ॥
निमित अट्-ठंगं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ १७ ॥
ॐ णमो
अट्ठंगं महा निमित कुसलाणं स्वाहा ।

नाम अणिमा आद ऋद्धि ।
योग-तप स्वयमेव सिद्धि ॥
पर इन्हें कब भनक पड़ती ।
कथा विष्णु कुमार कहती ॥
वियुव इड्-ढीणं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ १८ ॥
ॐ णमो
विउव्वण इड्-ढी पत्ताणं स्वाहा ।

तन्तु जल भू गमन होता ।
जीव राशि न मरण होता ॥
मन न भारी सिर न भारी ।
दौड़ धूप जु बढ़ विसारी ॥
णमो विज्जा हरण रिध जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ १९ ॥
ॐ णमो
विज्जा हराणं स्वाहा ।

हाथ जंघा पर लगाना ।
जा पहुँचते जहाँ जाना ॥
व्यर्थ आवागमन बचते ।
बढ़ कदम इति…हास रचते ॥
चा-रणाणं णमो जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ २० ॥
ॐ णमो
चा-रणाणं स्वाहा ।

उठा रखते चरण कब हैं ।
गमन करते गगन जब हैं ॥
मनु गगन से टूट तारा ।
भाग वशि भवि गृह पधारा ॥
रिध णमो नभ गामीणं जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ २१ ॥
ॐ णमो
आगास गामीणं स्वाहा ।

कौन टिकता आप आगे ।
‘सूर’ देखे, तिमिर भागे ॥
लगन जो ‘भी माँ’ लगाई ।
आप दुश्-शासन विदाई ॥
रिध परामर्शं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ २२ ॥
ॐ णमो
परा-मर्शाणं स्वाहा ।

आश जिस आशीष देते ।
आ सुरग सुर नाव खेते ॥
भला कर सकते बुरा भी ।
पर बुरा न करें कदापी ॥
णमो आशी विषाणं जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ २३ ॥
ॐ णमो
आसी विसाणं स्वाहा ।

आश जिस दृष्टि उठाते ।
लाज सुर आकर बचाते ॥
भला कर सकते बुरा भी ।
पर भला करते सदा ही ॥
णमो दृष्टी विषाणं जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ २४ ॥
ॐ णमो
दिट्ठि विसाणं स्वाहा ।

अनशना-दिक तप तपे हैं ।
मेरु अविचल कब कँपे हैं ॥
उग्र तप तापस अनोखे ।
पारखी इक त्रि-रत्नों के ॥
रिध णमो तप उग्र जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त भय क्षय ॥ २५ ॥
ॐ णमो
उग्ग तवाणं स्वाहा ।

पुनः बेला, चुना तेला ।
माथ सूरज सा उजेला ॥
आ रही वर्गणा दूजी ।
त्याग तप जयकार गूँजी ॥
रिध णमो तप दीप्त जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ २६ ॥
ॐ णमो
दित्त तवाणं स्वाहा ।

विनय मोक्ष दुवार साधें ।
छटे तप भीतर अराधें ॥
निराकुलता हाथ लागी ।
कषायों की शमित आगी ॥
रिध णमो तप तप्त जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ २७ ॥
ॐ णमो
तत्त तवाणं स्वाहा ।

सींह निष्क्रीडित लुभाये ।
चिर खड़े तन बिन डुलाये ॥
बेल लिपटीं, नाग रेंगे ।
क्यूँ न हम तुम नाम लेंगे ॥
रिध णमो तप महा जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥२८ ॥
ॐ णमो
महा तवाणं स्वाहा ।

खड़े चौपथ रात जाड़े ।
ग्रीष्म सम्मुख सूर ठाड़े ॥
हवा, बिजुरी, मेघ धारा ।
चला-कर तरु-तल निहारा ॥
रिध णमो तप घोर जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ २९ ॥
ॐ णमो
घोर तवाणं स्वाहा ।

उपस्थित उपसर्ग घोरा ।
तदपि आसन कहाँ डोला ॥
और दृढ संकल्प लेते ।
धन ! परीक्षा अग्नि देते ॥
रिध णमो तप पराक्रम जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३० ॥
ॐ णमो
घोर परक्कमाणं स्वाहा ।

आ तिलोत्तम करे केली ।
सिर्फ ना रम्भा अकेली ॥
उर्वशी आई रिझाने ।
विनत सब लागीं ठिकाने ॥
रिध णमो तप घोर गुण जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३१ ॥
ॐ णमो
घोर गुणाणं स्वाहा ।

ऊर्ध्व रेता ! अक्ष जेता ! ।
गण्य नेता ! पुण्य क्रेता ! ॥
भ्रम विडारी ! ब्रम विहारी ! ।
नम्र भारी ! उम्र बाली ! ॥
रिध णमो तप ब्रह्म-चर जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३२ ॥
ॐ णमो
घोर गुण बंभ यारीणं स्वाहा ।

पर्श मुनि कर बहे पवना ।
रोग पायें देर थम ना ॥
विष विषम से विषम उतरे ।
मौत मुँह हित-ग्राहि निकले ॥
णमो आमर्-शौ-षधी जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३३ ॥
ॐ णमो
आमो-सहि-पत्ताणं स्वाहा ।

यहाँ तक कफ आद छू के ।
रामबाण यथा न चूके ॥
दवा बिन हो रोग दूरी ।
छाँव-द्रुम, ना गुम ततूरी ? ॥
णमो खेलौ-षधी जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३४ ॥
ॐ णमो
खेलो सहि पत्ताणं स्वाहा ।

कण पसेव, छुआ, पड़ा भू ।
रोग जाँ-लेबा हुआ छू ॥
तप प्रभाव बड़ा अनूठा ।
लेख विध हो चले झूठा ॥
णमो जल्लौ-षधी जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३५ ॥
ॐ णमो
जल्लो सहि पत्ताणं स्वाहा ।

केश नख पद रज सभी ही ।
नाम दूजे औ-षधी ही ॥
माथ से ज्यों ही चढ़ाते ।
रोग भागें तोड़ नाते ॥
णमो सर्वौ-षधी जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३६ ॥
ॐ णमो
सव्वो सहि पत्ताणं स्वाहा ।

एक अन्तर्-मुहूरत में ।
मन प्रवेशे सकल श्रुत में ॥
मन तरंगें मार लीनी ।
हेत पर दृग धार कीनी ॥
णमो रिध मण बलीणं जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३७ ॥
ॐ णमो
मण बलीणं स्वाहा ।

लगा अन्तर्-मुहूरत है ।
पाठ सब, कब बचा श्रुत है ॥
मन तरंगें मार लीनी ।
स्वप्न भी खुशियाँ न छीनी ॥
णमो रिध वच बलीणं जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३८ ॥
ॐ णमो
वचि बलीणं स्वाहा ।

लगा प्रतिमा योग बैठे ।
दूर पक्ष, न मास लेटे ॥
धूप खा, दे रहे छाया ।
अर्थ न…फरत समझ आया ॥
णमो काया बलीणं जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ३९ ॥
ॐ णमो
काय बलीणं स्वाहा ।

हाथ में ज्यों नीर आता ।
क्षीर में झट पलट जाता ॥
जल बना लें दुग्ध जैसे ।
जड़ बना लें बुद्ध वैसे ॥
क्षीर स्रावी रिध णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ४० ॥
ॐ णमो
खीर सवीणं स्वाहा ।

हाथ में ज्यों उदक आता ।
शीघ्र घृत में पलट जाता ॥
कब रहा घी तलहटी में ।
श्रमण सिरमण ! बोल धीमे ॥
घिरत स्रावी रिध णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ४१ ॥
ॐ णमो
सप्पि सवीणं स्वाहा ।

हाथ में ज्यों अन्न आता ।
बन अनन्य सुमधुर जाता ॥
देख मीठा जुबाँ गीली ।
और पीडा दृग पनीली ॥
मधुस्-स्रावी रिध णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ४२ ॥
ॐ णमो
महु सवीणं स्वाहा ।

हाथ में ज्यों अशन आता ।
अमृत में झट पलट जाता ॥
अमृत चेहरे ला खुशी दे ।
हार, जीते सरल सीधे ! ॥
अमृत स्रावी रिध णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ४३ ॥
ॐ णमो
अमिय सवीणं स्वाहा ।

जिस महानस ऋषि पधारे ।
सेन चक्री जीम चाले ॥
माँ अकृत पुण धन्य साधो ।
पुण्य निशि वासर अराधो ॥
णमो रिध अक्षीण जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ४४ ॥
ॐ णमो
अक्खीण महा णसाणं स्वाहा ।

धन ! चरित धर वर्धमाना ।
स्वप्न भी न प्रमाद ठाणा ॥
धीर ! वीर ! गभीर एका ।
धन ! चरण गज नाम रेखा ॥
भयवदो महावीर जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ४५ ॥
ॐ णमो
वड्ढमाणाणं स्वाहा ।

पाप पच्चीसों कषायें ।
मार कर अरिहन कहायें ॥
झाड़ माखी पंख उड़ती ।
छुये अम्बर, छोड़ धरती ॥
णमो अरिहन जिणाणं जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ४६ ॥
ॐ णमो
अरिहंत सिद्धाणं स्वाहा ।

ज्ञान केवल सिद्ध भावा ।
जा टिकी थल सिद्ध नावा ॥
द्रव्य संज्ञक सिद्ध सारे ।
दें लगा नौका किनारे ॥
सव्व सिद्धाणं णमो जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ४७ ॥
ॐ णमो
लोए सव्व सिद्धाणं स्वाहा ।

सात भय इक पास नाहीं ।
‘वीर’ सर स्वात्मा-वगाहीं ॥
मान-ज्ञान प्रमाण थारा ।
जैन नभ तुम धुरुव तारा ॥
वड्ढमाणं णमो जय जय ।
जपत सिद्ध अनन्त, भय क्षय ॥ ४८ ॥
ॐ णमो
भयवदो महदि महावीर
वड्ढमाण बुद्धि रिसीणं स्वाहा ।

सिद्ध जय जय सिद्ध जय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥

मन, वच, काया रोक ।
सहज पा लिया मोख ।
सौख्य निराकुल लोक ।
ढोक, हित अरि कर्म क्षय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ४९ ॥
ॐ णमो
जोग सिद्धाणं स्वाहा ।

कर स्वातम अब ध्येय ।
विश्व चराचर ज्ञेय ।
शिव, तज दिव पाथेय ।
जेय अरि, हित रत विनय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ५० ॥
ॐ णमो
ज्झेय सिद्धाणं स्वाहा ।

पहुंचे सिद्ध निकेत ।
पहुँचेंगे शिव खेत ।
भावी सिद्ध समेत ।
देत सविनय ढोक द्वय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ५१ ॥
ॐ णमो
सव्व सिद्धाणं स्वाहा ।

पढ़ें स्वस्ति निष्काम ।
सार्थ ‘जगत’ त्रिक शाम ।
सु…मरण आतम राम ।
काम इक कल्याण तय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ५२ ॥
ॐ णमो
सत्थि सिद्धाणं स्वाहा ।

विगत द्वेष, गत राग ।
पूजें सुर नर नाग ।
चाँद एक बेदाग ।
‘भाग’ विनत चिराग अय ! ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ५३ ॥
ॐ णमो
अर्हद् सिद्धाणं स्वाहा ।

नन्त चतुष्टय साध ।
नन्त चतुष्क विघात ।
सन्त ! अरिष्ट विधात ! ॥
नाथ ! नुति हित मद विलय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ५४ ॥
ॐ णमो
सिद्ध सिद्धाणं स्वाहा ।

पाथ अमल परमात्म ।
साध निकल परमात्म ।
हाथ सकल परमात्म ।
आत्म हित नुति उर सदय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ५५ ॥
ॐ णमो
परमप्प सिद्धाणं स्वाहा ।

जगत् सृष्टि सब बुद्ध ।
नियत दृष्टि सब शुद्ध ।
परमेष्टी अब सिद्ध ।
सिद्ध जब ‘हरि-दय’ हृदय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ५६ ॥
ॐ णमो
परम सिद्धाणं स्वाहा ।

परमागम संपाठ ।
पाहुन यम अरि आठ ।
शिव मंदिर सम्राट ।
घाट भव जल माथ नय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ५७ ॥
ॐ णमो
परमग्ग सिद्धाणं स्वाहा ।

अंधकार अवसान ।
भानस्-फुरायमान ।
सूरज केवल ज्ञान ।
ठाण-यम तम मोह मय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ५८ ॥
ॐ णमो
पयास सिद्धाणं स्वाहा ।

स्व-स्वारथ यम भूम ।
पीछे देव हुजूम ।
मची शिवालय झूम ।
धूम उड़ती सप्त भय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ५९ ॥
ॐ णमो
सयंभू सिद्धाणं स्वाहा ।

ब्रह्म अखण्डित मेर ।
पाप विखण्डित ढेर ।
सभा विमण्डित भेर ।
शेर मृग सँग वैर लय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ६० ॥
ॐ णमो
बंभ सिद्धाणं स्वाहा ।

सुन, ‘गुन’ गुन गुणमाल ।
भूषित त्रिभुवन भाल ।
शाश्वत अनंत काल ।
लाल दृग कर ले प्रलय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ६१ ॥
ॐ णमो
अणंत गुण सिद्धाणं स्वाहा ।

‘प’ परमातम ईश ।
रम रच पच निशि दीस ।
हन्त अनंत खबीस ।
शीष ‘जग’ जग बाल वय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ६२ ॥
ॐ णमो
परमाणंत गुण सिद्धाणं स्वाहा ।

सार्थ नाम ‘इति’-हास ।
जड़ संयोग विनाश ।
शिखर लोक आवास ।
काश तज पाऊँ विषय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ६३ ॥
ॐ णमो
लोयग्ग वासि सिद्धाणं स्वाहा ।

काल अनादि अनंत ।
क्षरण न, सदा वसंत ।
मोक्ष राधिका कंत ।
पंथ बुध पानीय पय ।
सिद्ध जय जय सिद्ध जय ॥ ६४ ॥
ॐ णमो
अणाइ णिहण सिद्धाणं स्वाहा ।

महा अर्घ

क्या चाँदी, क्या सोना ।
सब चीज यहाँ खोना ।
तुम गये जहाँ भगवन्,
उस देश बुला लो ना ॥

लाया मैं जल, चन्दन ।
अक्षत कण, गुल नन्दन ।
चरु, दीप, धूप, श्री फल,
आया मैं हित सुमरण ॥
लाया मैं जल नयनन ।
तुम गये जहाँ भगवन्,
उस देश बुला लो ना ।
सब चीज यहाँ खोना ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

अष्टम वलय के
चार सौ छियत्तर से
छह सौ पचास तक
अर्घ

एक आराध्य जगत के तुम ।
आश विश्वास भगत के तुम ।
नमः श्री परमध्-ध्येय-जिनाय,
निकाचित पाप जगत के गुम ॥ ४७६ ॥
ॐ नमः
परमध्-ध्येय-
जिना-यस्-स्वाहा ।

ताप दुख-पीर जगत धुनते ।
आप दृग नीर रखत सुनते ।
नमः श्री जगत्-ताप-हराय,
जप सुख तीर रखत, चुनते ॥ ४७७ ॥
ॐ नमः
जगत्-ताप-
हरा-यस्-स्वाहा ।

मोहा चित् चउ कोना ।
लोहा पा…रस सोना ।
नमः मोहारि-जिताय,
सुमरण भाँत न भौना ॥ ४७८ ॥
ॐ नमः
मोहारि-जिता-यस्-स्वाहा ।

जगत जितने सबके स्वामी ।
भगत मृत्युञ्जय शिव-गामी ।
नमः त्रिजगत्-परमेश्वराय,
जपत सिध कतार आगामी ॥ ४७९ ॥
ॐ नमः
त्रिजगत्-
परमेश्वरा-यस्-स्वाहा ।

चरण हृदय-जगती ।
भुवन निरत भगती ।
विश्-श्वासिने नमः,
जपत विनय झिरती ॥ ४८० ॥
ॐ नमः
विश्वासिने-स्वाहा ।

भूत प्राणी जन अधिशासी ।
सूत्र वाणी जिन गुण राशी ।
नमः श्री विश्व-भूते-शाय,
साध रख पत कल शिव-वासी ॥ ४८१ ॥
ॐ नमः
विश्व-भूतेशा-यस्-स्वाहा ।

विभव अनूठा ।
अर्णव झूठा ।
नमः वि-भवाय,
नुभव अछूता ॥ ४८२ ॥
ॐ नमः
वि-भवा-यस्-स्वाहा ।

अंक आपका सिमरन ।
शून छाप कारज अन ।
नमः त्रि-भुवनेश्-श्वराय,
साध, न व्यथा गवा क्षण ॥ ४९३ ॥
ॐ नमः
त्रि-भुवनेश्वरा-यस्-स्वाहा ।

फैला बाहें रखना ।
आंखें गंगा, जमना ।
नमः त्रिजग-दुर्लभाय,
साध राख मन-श्रमणा ॥ ४८४ ॥
ॐ नमः
त्रि-जग-दुर्लभा-यस्-स्वाहा ।

अभ्युदय सुर लोक ।
निःश्रेयस फिर मोख ।
नमः अभ्युदयाय,
साध निराकुल सौख ॥ ४८५ ॥
ॐ नमः
अभ्युदा-यस्-स्वाहा ।

छोड़ो और नाम भी काफी ।
देखा ! रूह पाप की काँपी ।
नमः त्रि-जगन्-मंगलो-दयाय,
साध निरंजन अंजन-पापी ॥ ४८६ ॥
ॐ नमः त्रि-जगन्-
मंगलो-दया-यस्-स्वाहा ।

धर्म चक्र आयुध ले चाले ।
मिथ्या-मत नत मस्तक सारे ।
नमः श्री धर्म चक्रा-युधाय,
साध, बाध थमती यम द्वारे ॥ ४८७ ॥
ॐ नमः
धर्म-चक्रा-युधा-यस्-स्वाहा ।

मति सद्या-तत्काला ।
जाता-जन्मा बाला ।
सद्यो-जाताय नमः,
साधो साँझ त्रिकाला ॥ ४८८ ॥
ॐ नमः
सद्यो-जाता-यस्-स्वाहा ।

मंग यानी उमंग लाते ।
अहम् ममकार तुम-गलाते ।
नमः त्रि-लोक मंगलाय,
साध मंगल कतार पाते ॥ ४८९ ॥
ॐ नमः
त्रि-लोक-मंगला-यस्-स्वाहा ।

भेद भाव शून ।
वेद भाव ऊन ।
नमः अवेदाय,
‘रे स्वभाव पून ॥ ४९० ॥
ॐ नमः
अवेदा-यस्-स्वाहा ।

रोके न किसी से जाते ।
धोखे ना कभी खिलाते ।
नमः श्री अप्-प्रति-घाताय,
जप जाप पाप मुरझाते ॥ ४९१ ॥
ॐ नमः
अप्-प्रति-घाता-यस्-स्वाहा ।

पिण्ड घन ! न खण्डन ।
दश मुण्डन मण्डन ।
अच्छे-द्याय नमः,
साध मरण पण्डन ॥ ४९२ ॥
ॐ नमः
अच्-छेद्या-यस्-स्वाहा ।

हेरत दृग नाक ।
मेर सदृश साख ।
दृढी-यसे नमः,
फेर लाज राख ॥ ४९३ ॥
ॐ नमः
दृढ़ीयसे-स्वाहा ।

अभय मुद्रा विलसे ।
गुण समुद्रा खुद से ।
नमः अभयं-कराय,
जप प्रबुद्धा हरषे ॥ ४९४ ॥
ॐ नमः
अभयङ्-करा-यस्-स्वाहा ।

भोग ज्ञान राधिका ।
हान रोग-व्याधि का ।
महा-भोगाय नमः,
योग-पथ समाधि का ॥ ४९५ ॥
ॐ नमः
महाभोगा-यस्-स्वाहा ।

भान आग, दाग शश ।
बस तुम बेदाग जश ।
निरौ-पम्-म्याय नमः,
साध साध जाग बस ॥ ४९६ ॥
ॐ नमः
निरौ-पम्या-यस्-स्वाहा ।

फिर ब्रम-चर्य, क्षमा प्रथमा ।
एक नहीं दश दश धरमा ।
धर्म साम्राज्य ना-यकाय,
नमः साध दिव-शिव-शरमा ॥ ४९७ ॥
ॐ नमः
धर्म-साम्राज्य-
ना-यका-यस्-स्वाहा ।

पुरुष, नपुंसक, तिया न वेदा ।
माया, मान न विस्मय, खेदा ।
श्री श्री निर्-वेदप्-प्रवृत्-त्याय,
नमः साध पल कर्मन छेदा ॥ ४९८ ॥
ॐ नमः
निर्-वेदप्-
प्रवृत्-त्या-यस्-स्वाहा ।

योग अष्टक आराधा ।
भोग विषयन पग-बाधा ।
नमः श्री संपूर्ण योगिने,
मनोरथ पूरण साधा ॥ ४९९ ॥
ॐ नमः
संपूर्ण-योगिने-स्वाहा ।

आ-लौकान्-तिक की बढ़-बारी ।
धन्य ! धन ! क्षपक श्रेणी माड़ी ।
नमः समा-रोहण-तत्पराय,
सुमरण साध बने त्रिपुरारी ॥ ५०० ॥
ॐ नमः
समा-रोहण-
तत्परा-यस्-स्वाहा ।

एक तिहार सहजता थाती ।
तुम्हें निराकुलता इक भाती ।
नमः श्री सहज-सिद्ध-रूपाय,
जपत मुकत-पुर-राधा साथी ॥ ५०१ ॥
ॐ नमः
सहज-सिद्ध-रूपा-यस्-स्वाहा ।

विदाई कर ममता ।
समाई उर समता ।
नमः सामा-यिकाय,
साध जितना बनता ॥ ५०२ ॥
ॐ नमः
सामा-यिका-यस्-स्वाहा ।

अन्वर्थ कायरता ।
हन व्यर्थ काय…रता ।
नमः निष्-प्र-मादाय,
परमार्थ आय रटा ॥ ५०३ ॥
ॐ नमः
निष्प्रमादा-यस्-स्वाहा ।

कृत-कृत्य जिया ।
ध्रुव सत्य धिया ।
अकृताय नमः,
रट नित्य हिया ! ॥ ५०४ ॥
ॐ नमः
अकृता-यस्-स्वाहा ।

कर समाप्त दुराशय ।
आप्त ! प्राप्त सदाशय ।
परम-भावाय नमः,
जप स्वभाव सदा जय ॥ ५०५ ॥
ॐ नमः
परम-भावा-यस्-स्वाहा ।

तुम प्रधान लोक ।
गुम गुमान मोख ।
नमः प्र-धानाय,
अप्-प्रमाण धोक ॥ ५०६ ॥
ॐ नमः
प्रधाना-यस्-स्वाहा ।

सिर्फ न शुद्धातम जाना ।
साथ परमातम पहचाना ।
नमः स्व-भास-पर-भा-सनाय,
साध सुख निराकुल सुजाना ॥ ५०७ ॥
ॐ नमः स्वभास-
पर-भा-सना-यस्-स्वाहा ।

योग मन शोध वचन, काया ।
योग फिर निरोध शिव पाया ।
नमः प्राणा-याम-चरणाय,
साध टिकती न देह माया ॥ ५०८ ॥
ॐ नमः
प्राणा-याम-
चरणा-यस्-स्वाहा ।

इन्द्रिय विष-विषयन मुँह मोड़ा ।
आतम संयम बाना ओढ़ा ।
शुद्धप्-प्रत्या-हाराय नमः,
निध अष्टांग योग अनमोला ॥ ५०९ ॥
ॐ नमः
शुद्धप्-प्रत्या-
हारा-यस्-स्वाहा ।

हवाला रस…ना ना ।
न घिर…ना ‘सुख-काना’ ।
जितेन्-द्रियाय नमः,
साध, डूबे भाना ॥ ५१० ॥
ॐ नमः
जितेन्द्रिया-यस्-स्वाहा ।

सिद्ध आसना, बुद्ध धारणा ।
सार्थ वास…ना, साध साधना ।
नमः श्री धा-रणा-धीश्वराय,
साध साध मन ! गत विराधना ॥ ५११ ॥
ॐ नमः
धारणा-धीश्वरा-यस्-स्वाहा ।

आर्त ध्यान से रीते तुम ।
रौद्र ध्यान भय-भीते तुम ।
धर्मध्-ध्यान निष्ठाय नमः,
धर्म ध्यान से तीते तुम ॥ ५१२ ॥
ॐ नमः
धर्मध्-ध्यान-
निष्ठा-यस्-स्वाहा ।

विभज आधी, व्याधी ।
स्रज समाधी साधी ।
नमः समाधि-राजे,
तज उपाधी आदी ॥ ५१३ ॥
ॐ नमः
समाधिराजे-स्वाहा ।

अन्तर्-मुख मुद्रा खुद बोले ।
भो ! भीतर पैठे, हो भोले ।
नमस्-फुरित सम-रसी भावाय,
रम, मन सम-रस भाव भिंजो लो ॥ ५१४ ॥
ॐ नमः
स्फुरित-सम-रसी-
भावा-यस्-स्वाहा ।

ज्योति ज्योति में यथा समाई ।
तथा समाई सिध सिध भाई ।
नमः एकी-भाव-नय-रूपाय,
साधक बाधक तत्त्व विदाई ॥ ५१५ ॥
ॐ नमः
एकी-भाव-नय-
रूपा-यस्-स्वाहा ।

गाँठ उर खोली खाली ।
गाँठ सर छोड़ी छाड़ी ।
नमः निर्ग्रन्थ-नाथाय,
पाठ कर गो, धी काली ॥ ५१६ ॥
ॐ नमः
निर्ग्रन्थ-नाथा-यस्-स्वाहा ।

वाक्, मनस्, काया ।
राख जश कमाया ।
योगीन्द्राय नमः,
साध विटप छाया ॥ ५१७ ॥
ॐ नमः
योगीन्द्रा-यस्-स्वाहा ।

बुद्ध सिद्धा ।
सिद्ध रिद्धा ।
ऋषये नमः,
सिद्ध श्रद्धा ॥ ५१८ ॥
ॐ नमः
ऋषये-स्वाहा ।

धव यानि पती ।
खुद भाँति यती ।
सा-धवे नमः,
छव सरस्…वती ॥ ५१९ ॥
ॐ नमः
सा-धवे-स्वाहा ।

जतन भाया ।
नगन काया ।
पतये नमः,
शरण आया ॥ ५२० ॥
ॐ नमः
पतये-स्वाहा ।

मौन कब ना ।
गौण तब ना ।
मुनये नमः,
जोन अब ना ॥ ५२१ ॥
ॐ नमः
मुनये-स्वाहा ।

दृग चौंषठ धार ।
रिध चौंषठ न्यार ।
महर्-षिणे नमः,
सिध चौखट द्वार ॥ ५२२ ॥
ॐ नमः
महर्षिणे-स्वाहा ।

वायु पाछी अनूठ तुम ।
साधु आधार भूत तुम ।
साधु-धौरे-याय नमः,
राहु परछाई रूठ गुम ॥ ५२३ ॥
ॐ नमः
साधु-धौरेया-यस्-स्वाहा ।

‘इस…लोक’ यति कीमत ।
जश मोख यति की मत ।
यती नाथाय नमः,
वश सौख यती कीरत ॥ ५२४ ॥
ॐ नमः
यति-नाथा-यस्-स्वाहा ।

मुनि-गण तारा सम ।
तुम चन्दा पूनम ।
मुनीश्वराय नमः,
मनरथ-पूरण रम ॥ ५२५ ॥
ॐ नमः
मुनीश्वरा-यस्-स्वाहा ।

मन बच्चे माफिक ।
खुद के खुद मालिक ।
नमः महा मुनये,
मन्त्र इक प्रमाणिक ॥ ५२६ ॥
ॐ नमः
महा-मुनये-स्वाहा ।

और क्या सुहाग सोना ।
छोड़ घर नुराग मौना ।
नमः श्री महा मौनिने,
साध, कर कृत अर गौणा ॥ ५२७ ॥
ॐ नमः
महा-मौनिने-स्वाहा ।

ध्यान ध्यान से किया ।
हान मान ले ‘दिया’ ।
महा-ध्यानिने नमः,
कान-थान से हिया ॥ ५२८ ॥
ॐ नमः
महा-ध्यानिने-स्वाहा ।

लाखन रेखा जुड़ ।
बाद न देखा मुड़ ।
नमः महा-व्रतिने,
जप, न पलेक बिछुड़ ॥ ५२९ ॥
ॐ नमः
महा-व्रतिने-स्वाहा ।

दो सुन लीं, चाले ।
मन न भाव काले ।
महा क्षमाय नमः,
साध खुले ताले ॥ ५३० ॥
ॐ नमः
महा-क्षमा-यस्-स्वाहा ।

वचन आप जिम शीतल ।
चंद्र न चन्दन हिम जल ।
महा शी-तलाय नमः,
‘राख प्रीत अमि’ पल पल ॥ ५३१ ॥
ॐ नमः
महा-शीतला-यस्-स्वाहा ।

उत्सुकता छोड़ दी ।
मत सुक्ता जोड़ धी ।
महा शान्ताय नमः,
रत मुक्ता-छोर की ॥ ५३२ ॥
ॐ नमः
महा-शान्ता-यस्-स्वाहा ।

उत्-उत्कृष्ट दया ।
अरि भट अष्ट क्षया ।
महो-दयाय नमः,
साध न बन्ध नया ॥ ५३३ ॥
ॐ नमः
महो-दया-यस्-स्वाहा ।

रज क्यों चिपक चले ।
स्नेह न पड़ा गले ।
निर्-लेपाय नमः,
साध पल भर भले ॥ ५३४ ॥
ॐ नमः
निर्लेपा-यस्-स्वाहा ।

केवल ज्योति जगी ।
लाग न भ्रांति लगी ।
निर्-भ्रांताय नमः,
साध कुबुद्धि भगी ॥ ५३५ ॥
ॐ नमः
निर्-भ्रांता-यस्-स्वाहा ।

दूध प्रशान्त मलाई ।
सुनकर कदम ब‌ढ़ाई ।
प्रशान्ताय नमो नमः,
चुन निध दौड़ी आई ॥ ५३६ ॥
ॐ नमः
प्रशान्ता-यस्-स्वाहा ।

सभा आप सी बारा ।
वैर आपसी हारा ।
धर्माध्यक्षाय नमः,
श्रावक श्रमण सहारा ॥ ५३७ ॥
ॐ नमः
धर्माध्यक्षा-यस्-स्वाहा ।

चेहरे ना चेहरे ।
दया केत लहरे ।
दयाध्-ध्वजाय नमः,
साध उतर गहरे ॥ ५३८ ॥
ॐ नमः
दयाध्-ध्वजा-यस्-स्वाहा ।

ब्रह्म ज्ञान हो चला ।
भ्रम गुमान खो चला ।
ब्रह्म योनये नमः,
रम, जहान खोखला ॥ ५३९ ॥
ॐ नमः
ब्रह्म-योनये-स्वाहा ।

स्वयं ही जाग चले ।
द्वेष ना राग पले ।
स्वयं बुद्धाय नमः,
रम, तम चिराग तले ॥ ५४० ॥
ॐ नमः
स्वयं-बुद्धा-यस्-स्वाहा ।

मल रागादि विनाश ।
निर्मल आत्म प्रकाश ।
पूतात्-मने नमः,
साध सिद्ध गुण राश ॥ ५४१ ॥
ॐ नमः
पूतात्मने-स्वाहा ।

पढ़ अखर ढ़ाई ।
पूरण पढ़ाई ।
स्नातकाय नमः,
साधो सहाई ॥ ५४२ ॥
ॐ नमः
स्नातका-यस्-स्वाहा ।

सुना, पानी राखो ।
गुना, मद-माया खो ।
अमद-भावाय नमः,
साध अमरित चाखो ॥ ५४३ ॥
ॐ नमः
अमद-भावा-यस्-स्वाहा ।

ऐश्वर्य समव-शरणी ।
पनडु‌बिया वैतरणी ।
पर-मैश्-श्वर्याय नमः,
मन ! साध चल सुमरणी ॥ ५४४ ॥
ॐ नमः
पर-मैश्वर्या-यस्-स्वाहा ।

है कहे खपा मत…सर ।
दे उत्तर न, अनुत्तर ।
वीत मत्सराय नमः,
साधो बनता मन्तर ॥ ५४५ ॥
ॐ नमः
वीत-मत्सरा-यस्-स्वाहा ।

धर्म मर्म साधा ।
चर्म न आराधा ।
मर्म-वृषाय नमः,
साध मेंट बाधा ॥ ५४६ ॥
ॐ नमः
धर्म-वृषा-यस्-स्वाहा ।

सुदूर संजोगा ।
सम वियोग योगा ।
अक्षोभाय नमः,
जपत मिटत रोगा ॥ ५४७ ॥
ॐ नमः
अक्षोभा-यस्-स्वाहा ।

ढाल ले हाथों में अबकी ।
द्वार यम करम, आश कब की ।
नमः श्री महा विधि-खण्डाय,
साध, मन-काम पूर्ण सब की ॥ ५४८ ॥
ॐ नमः
महा-विधि-
खण्डा-यस्-स्वाहा ।

अब जनमना फिर ना ।
फूटा अमृत झिरना ।
अमृतोद्-भवाय नमः,
साध विसरा घिरणा ॥ ५४९ ॥
ॐ नमः
अमृतोद्भवा-यस्-स्वाहा ।

आप नाम क्या लिया ।
बस मकाम पा लिया ।
मंत्र मूर्तये नमः,
साध शाम साथिया ॥ ५५० ॥
ॐ नमः
मन्त्र-मूर्तये-स्वाहा ।

जात विरोधी वैर भुला के ।
बैठे सभ सम-शरणा आके ।
नमः निर्-वैर-सौम्य भावाय,
रट तट कोने कोने झाँके ॥ ५५१ ॥
ॐ नमः निर्-वैर-
सौम्य-भावा-यस्-स्वाहा ।

न इन्द्रिय आधीन ।
सुख ना पराधीन ।
नमः स्व-तंत्राय,
साध संध्या तीन ॥ ५५२ ॥
ॐ नमः
स्व-तन्त्रा-यस्-स्वाहा ।

ब्रह्म शुद्धातम देखा ।
दृष्टि न इत उत फेंका ।
ब्रह्म सं-भवाय नमः,
साध न उलाँघ रेखा ॥ ५५३ ॥
ॐ नमः
ब्रह्म-संभवा-यस्-स्वाहा ।

अपेक्षा राखी ना ।
उपेक्षा झाँकी ना ।
नमः सुप्-प्रसन्नाय,
जपे जा अक्षीणा ॥ ५५४ ॥
ॐ नमः
सुप्-प्रसन्ना-यस्-स्वाहा ।

शशि भा से न्यारे ।
गुण सींझे सारे ।
गुणां-बुधये नमः,
लो साध सकारे ॥ ५५५ ॥
ॐ नमः
गुणां-बुधये-स्वाहा ।

पुण्य-पाप संसार बढ़ाता ।
तोड़ लिया दोनों से नाता ।
पुण्य पाप निरो-धकाय नमः,
साध, न जब तक दिव-शिव आता ॥ ५५६ ॥
ॐ नमः
पुण्य-पाप-
निरोधका-यस्-स्वाहा ।

सुर, नर, नाग अगम्य गुणाबल ।
सूक्ष्म रूप लख भरा दृगा जल ।
श्री महा-गम्य-सूक्ष्म-रूपाय,
नमः साध बेला ‘कि चलाचल ॥ ५५७ ॥
ॐ नमः
महा-गम्य-
सूक्ष्म-रूपा-यस्-स्वाहा ।

कोट से आत्म घिरा ।
सन्ध न प्रवेश जरा ।
सु-गुप्तात्-मने नमः,
साध मन साध त्वरा ॥ ५५८ ॥
ॐ नमः
सु-गुप्तात्मने-स्वाहा ।

सिद्ध आतम चोखी ।
बुद्ध आगम मोखी ।
सिद्धात्मने नमः,
शुद्ध-भा, तम रोकी ॥ ५५९ ॥
ॐ नमः
सिद्धात्मने-स्वाहा ।

धन्य ! विप्लव सुदूर ।
छाँव तुम, जग ततूर ।
निरुपप्-प्ल-वाय नमः,
साध साधते सूर ॥ ५६० ॥
ॐ नमः
निरुपप्-प्ल-वा-यस्-स्वाहा ।

तप तप ज्ञान अनंत ।
उदर्क-प्रतिफल, अन्त ।
महो-दर्-काय नमः,
साध साध अरिहन्त ॥ ५६१ ॥
ॐ नमः
महो-दर्का-यस्-स्वाहा ।

बैठ भरोसे काल ।
कब पंडुबिया पार ।
महो-पायाय नमः,
साध उपाय निहाल ॥ ५६२ ॥
ॐ नमः
महो-पाया-यस्-स्वाहा ।

भक्त थारे सुर, नर, नागा ।
भाग सेवा-कर गणि जागा ।
नमः श्री जगत्-पिता-महाय,
साध श्रुत जिनवर अनुरागा ॥ ५६३ ॥
ॐ नमः
जगत्-पिता-महा-यस्-स्वाहा ।

और को गाँव गाँव घूमे ।
और तो पाँव पाँव घूमे ।
नमः श्री महा-का-रुणि-काय,
साध प्रत्येक जिया झूमे ॥ ५६४ ॥
ॐ नमः
महा-का-रुणिका-यस्-स्वाहा ।

मौलिक शुद्ध गुणी ।
सेवक बुद्ध गणी ।
शुद्ध-गुणाय नम:,
साध नासा अणी ॥ ५६५ ॥
ॐ नमः
शुद्ध-गुणा-यस्-स्वाहा ।

सुन केका अहि छूटत चन्दन ।
पद वन्दन तुम टूटत बन्धन ।
नमः महा-क्लेश-नि-वा-रणाय,
साधो मन्तर मूरत क्षण क्षण ॥ ५६६ ॥
ॐ नमः
महा-क्लेश-
नि-वा-रणा-यस्-स्वाहा ।

तिष्णा ठुकराई ।
शुचिता ढिग आई ।
महा-शु-चये नमः,
दिव शिव ठकुराई ॥ ५६७ ॥
ॐ नमः
महा-शु-चये-स्वाहा ।

भोग त्यागे ।
रोग भागे ।
अरुजे नमः,
‘योग’ जागे ॥ ५६८ ॥
ॐ नमः
अरुजे-स्वाहा ।

शिकन न चेहरे पर ।
सदा मिलते भीतर ।
सदा-योगाय नमः,
नेक तट, रट मन्तर ॥ ५६९ ॥
ॐ नमः
सदा-योगा-यस्-स्वाहा ।

चखें स्वामृत पल पल ।
रखें कर ऊपर कर ।
सदा-भोगाय नमः,
नेक तट, रट मन्तर ॥ ५७० ॥
ॐ नमः
सदा-भोगा-यस्-स्वाहा ।

धीरज-धर नामी ।
नीरज अनुगामी ।
महा-धृतये नमः,
‘री अन्तर्यामी ॥ ५७१ ॥
ॐ नमः
सदा-धृतये-स्वाहा ।

पापन परम उदासीना ।
पावन परमातम लीना ।
पर-मौदा-सीनाय नमः,
भा…वन सहज, न बन दीना ॥ ५७२ ॥
ॐ नमः
पर-मौदा-सीना-यस्-स्वाहा ।

सिद्ध पहले, फिर ध्रुव तारा ।
टूट कर तारा गिर चाला ।
सदा शाश्वताय नमो नमः,
साध ‘री बहना विधि धारा ॥ ५७३ ॥
ॐ नमः
शाश्वता-यस्-स्वाहा ।

एक सत्य-वादी ।
गिर, न उठे वादी ।
सत्याशने नमः,
नाद सार्थ नादी ॥ ५७४ ॥
ॐ नमः
सत्याशने-स्वाहा ।

भरा कान्ति से माथा ।
जुड़ा शान्ति से नाता ।
शान्ति-ना-यकाय नमः,
भ्रान्ति मृत्यु जामाता ॥ ५७५ ॥
ॐ नमः
शान्ति-ना-यका-यस्-स्वाहा ।

सार्थक केवल गूँजे ।
विद्यालय ही दूजे ।
अपूर्व-विद्याय नमः,
क्यूँ ना त्रिभुवन पूजे ॥ ५७६ ॥
ॐ नमः
अपूर्व-विद्या-यस्-स्वाहा ।

योग अष्टांग आराधा ।
नया अब स्वांग न साधा ।
नमः योगग्-ज्ञा-यकाय,
साध पग बाँधो बाधा ॥ ५७७ ॥
ॐ नमः
योग-ज्ञा-यका-यस्-स्वाहा ।

धरम करुणा मूरत तुम ।
परम शरणा तीरथ तुम ।
नमः श्री धर्म मूर्तये,
भरम हरणा ! कीरत तुम ॥ ५७८ ॥
ॐ नमः
धर्म-मूर्तये-स्वाहा ।

देह श्रुत ! विदेह हो ।
द्वेष, द्रोह, नेह खो ।
धर्म-देहाय नमः,
या…द, द…या गेह भो ! ॥ ५७९ ॥
ॐ नमः
धर्म-देहा-यस्-स्वाहा ।

स्वाभिमान रखते ।
और हित सिसकते ।
ब्रह्मे-शाय नमः,
साध मोख दिखते ॥ ५८० ॥
ॐ नमः
ब्रह्मे-शा-यस्-स्वाहा ।

था किया जो भी करना ।
पा ‘दिया’ बोधी करुणा ।
परम-कृत-कृत्याय नमः,
साथिया मोखी शरणा ॥ ५८१ ॥
ॐ नमः
कृत-कृत्या-यस्-स्वाहा ।

निज भाँत अनोखे तुम ।
न खिलाते धोखे तुम ।
श्री गुणात्-मकाय नमः,
घन पिण्ड गुणों के तुम ॥ ५८२ ॥
ॐ नमः
गुणात्मका-यस्-स्वाहा ।

आवरण छद्म ज्ञान विघटा ।
आभरण ज्ञान भान प्रकटा ।
निरावरण गुणप्-प्रकाशाय,
नमः साधो मन्तर सुभटा ! ॥ ५८३ ॥
ॐ नमः
निरा-वरण-गुणप्-
प्रकाशा-यस्-स्वाहा ।

पलक कब झँप पाई ।
समय इक शिवराई ।
निर्-निमेषाय नमः,
रत, विपत टल जाई ॥ ५८४ ॥
ॐ नमः
निर्-निमेषा-यस्-स्वाहा ।

छिद्र रहित नावा ।
सॉंझ पूर्व गाँवा ।
निरास्-स्रवाय नमः,
जप मन…तर छावा ॥ ५८५ ॥
ॐ नमः
निराश्रवा-यस्-स्वाहा ।

भाँत कछु…आ छुप रहते ।
धीर कम्बल तुप रहते ।
महा-ब्रह्म-पतये नमः,
जपो मन ! क्यूँ चुप रहते ॥ ५८६ ॥
ॐ नमः
महा-ब्रह्म-पतये-स्वाहा ।

तत्त्व विद् आप अनूठे ।
‘नयन’ तुम कहाँ अछूते ।
सुनय-तत्त्वग्-ज्ञाय नमः,
साध, भव भव तुष कूटे ॥ ५८७ ॥
ॐ नमः
सुनय-तत्त्व-ज्ञा-यस्-स्वाहा ।

ज्ञान सूर तुम ।
मिथ्यातम गुम ।
सूरये नमः,
रट कल्पद्-द्रुम ॥ ५८८ ॥
ॐ नमः
सूरये-स्वाहा ।

तत्त्व साथ ठाना ।
सत्त्व स्व पिछाना ।
तत्त्वग्-ज्ञाय नमः,
साध साध बाना ॥ ५८९ ॥
ॐ नमः
तत्त्वज्ञा-यस्-स्वाहा ।

मैत्र-भाव धार के ।
भेद-भाव टाल के ।
महा-मित्राय नमः,
पात्र नाव पार के ॥ ५९० ॥
ॐ नमः
महा-मित्रा-यस्-स्वाहा ।

जला रहा जल अंगारा ।
बुरा न लगा गुनहगारा ।
साम्य-भाव-धारक-जिनाय,
नमः साध मुद्रा-बाला ॥ ५९१ ॥
ॐ नमः
साम्य-भाव-धारक-
जिना-यस्-स्वाहा ।

बन्द हो चला बंध खाता ।
जुड़ा अनटूट नन्द नाता ।
नमः प्रक्षीण-बन्धाय,
साध वन-नन्द पुष्प पाँता ॥ ५९२ ॥
ॐ नमः
प्रक्षीण-बंधा-यस्-स्वाहा ।

बाजीं दो चूरी ।
राग-द्वेष दूरी ।
निर्-द्वन्द्वाय नमः,
साध आश पूरी ॥ ५९३ ॥
ॐ नमः
निर्-द्वन्द्वा-यस्-स्वाहा ।

चेहरे पढ़ना आया ।
गहरे बढ़ना भाया ।
जिनस्-ना-तकाय नमः,
साध बाँध पग माया ॥ ५९४ ॥
ॐ नमः
जिनस्-ना-तका-यस्-स्वाहा ।

अंग सब रूठे ।
रंग सब झूठे ।
अनंगाय नमः,
संग सब छूटे ॥ ५९५ ॥
ॐ नमः
अनङ्-गा-यस्-स्वाहा ।

धन ! निर्-वाण हुये ।
पन निर्वाण छुये ।
निर्वाणाय नमः,
धुन निर्वाण अये ! ॥ ५९६ ॥
ॐ नमः
निर्वाणा-यस्-स्वाहा ।

भाँत सागर गुण ।
पाँत नागर पुन ।
सा-गराय नमः
साध सादर धुन ॥ ५९७ ॥
ॐ नमः
सागरा-यस्-स्वाहा ।

ग्रीष्म, शीत, सावना ।
दूर व्रत विराधना ।
नमः महा-सा-धवे,
साध धन्य ! साधना ॥ ५९८ ॥
ॐ नमः
महा-साधवे-स्वाहा ।

हत प्रभ शश लेखा ।
शित प्रभ अभिलेखा !
वि-मला-भाय नमः,
रत, प्रभ जश नेका ॥ ५९९ ॥
ॐ नमः
वि-मला-भा-यस्-स्वाहा ।

माटी कर्म गली ।
तुमड़ी तैर चली ।
शुद्धात्-मने नमः,
साधो ! घड़ी घड़ी ॥ ६०० ॥
ॐ नमः
शुद्धात्मने-स्वाहा ।

नन्त श्री धारी ।
धन्य ! बलिहारी ।
नमः श्री धराय,
नन्द श्री वारी ॥ ६०१ ॥
ॐ नमः
श्रीधरा-यस्-स्वाहा ।

दत्त चित्त साधना ।
सत्य-पथ उपासना ।
दन्त-नाथाय नमः,
साध वाक्, वपु, मना ॥ ६०२ ॥
ॐ नमः
दन्त-नाथा-यस्-स्वाहा ।

किसी से जलन नहीं ।
हँसी से लगन नहीं ।
अमल-भा-वाय नम:,
खुशी से रटन मही ॥ ६०३ ॥
ॐ नमः
अमला-भावा-यस्-स्वाहा ।

सब उद्‌-धरण निरे ।
मिसरी करण घुरे ।
उद्‌-धरणाय नम:,
हित उद्धार जुड़े ॥ ६०४ ॥
ॐ नमः
उद्धरणा-यस्-स्वाहा ।

जार ध्यानाग्नि रखी ।
हार जठराग्नि चखी ।
अग्नि-देवाय नमः,
न्यार देवाग्नि सखी ! ॥ ६०५ ॥
ॐ नमः
अग्नि-देवा-यस्-स्वाहा ।

जी, दिया जीने ।
नैन वश कीने ।
नमः संयमाय,
रट, तट सफीने ॥ ६०६ ॥
ॐ नमः
संयमा-यस्-स्वाहा ।

शिव कल्…यान ।
दिव सोपान ।
नमः शिवाय,
जप धर ध्यान ॥ ६०७ ॥
ॐ नमः
शिवा-यस्-स्वाहा ।

पुष्प नन्दन अंजुल ।
दृश्य चन्दन मंजुल ।
नमः पुष्पांजलये,
साध अगणन अंगुल ॥ ६०८ ॥
ॐ नमः
पुष्पां-जलये-स्वाहा ।

कब बने कल के ।
बन चले हल्के ।
नमः शिव गुणाय,
क्यूँ न जग झलके ॥ ६०९ ॥
ॐ नमः
शिव-गुणा-यस्-स्वाहा ।

उत्सुकता कभी न रखते ।
व्रत हित उत्साह निरखते ।
नमः पर-मोत्साह-जिनाय,
जप बिन, अब तलक विलखते ॥ ६१० ॥
ॐ नमः
पर-मोत्साह-
जिना-यस्-स्वाहा ।

आतम जानी ।
आगम वाणी ।
ज्ञानाय नमः,
आ…रम प्राणी ! ॥ ६११ ॥
ॐ नमः
ज्ञाना-यस्-स्वाहा ।

सार्थ ‘भी-तर’ ईश्वर ।
हाथ ई…स्वर ऊपर ।
नमः परमेश्वराय,
साध धी-वर भूपर ॥ ६१२ ॥
ॐ नमः
परमेश्वरा-यस्-स्वाहा ।

विमल अमल परिणत ।
सजल, सकल अरि-हत ।
वि-मलेशाय नमः,
रट, पल पल हरि-पथ ॥ ६१३ ॥
ॐ नमः
वि-मलेशा-यस्-स्वाहा ।

वश में मन आया ।
जश त्रिभुवन छाया ।
यशो-धराय नमः,
बढ़ पारस माया ॥ ६१४ ॥
ॐ नमः
यशोधरा-यस्-स्वाहा ।

कृष्णा गो ‘री ।
तिष्णा छोड़ी ।
नमः कृष्णाय,
दिश् ना जोड़ी ॥ ६१५ ॥
ॐ नमः
कृष्णा-यस्-स्वाहा ।

हान-वाण खोटी ।
भान ज्ञान ज्योती ।
ज्ञान-मतये नमः,
स्वाभिमान मोती ॥ ६१६ ॥
ॐ नमः
ज्ञान-मतये-स्वाहा ।

बुद्ध-ज्ञान खुद सा ।
विशुद्ध अद्‌भुत सा ।
शुद्ध-मतये नमः,
साधो ! बन बुत सा ॥ ६१७ ॥
ॐ नमः
शुद्ध-मतये-स्वाहा ।

परिणाम भद्र ।
त्रिक् शाम कद्र ।
भद्राय नमः,
जप स्वाम-अद्र ! ॥ ६१८ ॥
ॐ नमः
भद्रा-यस्-स्वाहा ।

माँगे दे देते ।
लड़ने कब बैठे ।
शांति-जिनाय नमः,
बढ़ भीतर पैठे ॥ ६१९ ॥
ॐ नमः
शान्ति-जिना-यस्-स्वाहा ।

वृष-धर्म-अवध ।
वश कर्म विरद ।
वृ-षभाय नमः,
शिव शर्म जपत ॥ ६२० ॥
ॐ नमः
वृषभा-यस्-स्वाहा ।

अजित कषाया ।
अभिजित माया ।
नमः अजिताय,
सिमरत छाया ॥ ६२१ ॥
ॐ नमः
अजिता-यस्-स्वाहा ।

असंभव संभव ।
शगुन गुण अर्णव ।
नमः सं-भवाय,
भक्ति जल जग ‘दव’ ॥ ६२२ ॥
ॐ नमः
संभवा-यस्-स्वाहा ।

नन्द-आनन्द मयी ।
गन्ध-दुर्गन्ध जयी ।
नमः अभिनन्दाय,
धन ! सदा बन्ध क्षयी ॥ ६२३ ॥
ॐ नमः
अभि-नन्दना-यस्-स्वाहा ।

सुमत सगाई ।
कुमत विदाई ।
नमः सु-मतये,
जपत बधाई ॥ ६२४ ॥
ॐ नमः
सुमतये-स्वाहा ।

छिन्न कल फिकर माथ ।
भिन्न जल कमल भाँत ।
नमः पद्मप्-प्र-भाय,
धन्य ! पल सजल साध ! ॥ ६२५ ॥
ॐ नमः
पद्मप्-प्रभा-यस्-स्वाहा ।

पार्श्व अपने सा ।
पार्स मण ऐसा ।
नमः सु-पार्श्वाय,
सपर्श हमेशा ॥ ६२६ ॥
ॐ नमः
सु-पार्श्वा-यस्-स्वाहा ।

मनहार मुखड़ा शश ।
हरतार दुखड़ा जश ।
नमः चन्द्रप्-प्र-भाय,
दृग चार सुखदा रस ॥ ६२७ ॥
ॐ नमः
चन्द्रप्-प्रभा-यस्-स्वाहा ।

हार कवलाहारा ।
पुष्प दन्तिन्‌ माला ।
पुष्प-दन्ताय नमः,
तिरि-शूल प्रतिकारा ॥ ६२८ ॥
ॐ नमः
पुष्प-दन्ता-यस्-स्वाहा ।

भव दाह न नाम निशानी ।
कल्याणी शीतल वाणी ।
श्री शीतल-नाथाय नमः,
साधो भर लोचन पानी ॥ ६२९ ॥
ॐ नमः
शीतल-नाथा-यस्-स्वाहा ।

श्रेय कल्याण विधाता ! ।
ध्येय निर्वाण प्रदाता ! ।
नमः श्रेयांस-नाथाय,
जेय हो मान, रिझाता ॥ ६३० ॥
ॐ नमः
श्रेयांश-नाथा-यस्-स्वाहा ।

वासव यानी इन्द ।
जजे चरणा-रविन्द ।
नमः वासु-पूज्याय,
आश, पार भव-सिन्ध ॥ ६३१ ॥
ॐ नमः
वासु-पूज्या-यस्-स्वाहा ।

अनबन काम तमाम ।
अमल विमल परिणाम ।
नमः विमल-नाथाय,
जप मृग दौड़ विराम ॥ ६३२ ॥
ॐ नमः
विमल-नाथा-यस्-स्वाहा ।

नन्त चतुष्टय धारी ।
गुण अनंत अधिकारी ।
अनंत-नाथाय नमः,
बसन्त याद तिहारी ॥ ६३३ ॥
ॐ नमः
अनन्त-नाथा-यस्-स्वाहा ।

दया धर्म धार के ।
गाँठ सर उतार के ।
धर्म-नाथाय नमः,
पात्र जन्म पार के ॥ ६३४ ॥
ॐ नमः
धर्म-नाथा-यस्-स्वाहा ।

भ्रान्ति-हर ! त्राता ! तुम ।
कान्ति-धर ! ज्ञाता ! तुम ।
शान्ति-नाथाय नमः,
शान्ति वर-दाता ! तुम ॥ ६३५ ॥
ॐ नमः
शान्ति-नाथा-यस्-स्वाहा ।

कुन्थ जीवाद रक्ष ।
कुन्द पुष्पाद पक्ष ।
कुन्थु-नाथाय नमः,
नन्द निर्-बाध लक्ष ॥ ६३६ ॥
ॐ नमः
कुन्थु-नाथा-यस्-स्वाहा ।

कब अरि आँसे हैं ।
तब हरि भासे हैं ।
अर-नाथाय नमः,
सब अरि नाशे हैं ॥ ६३७ ॥
ॐ नमः
अर-नाथा-यस्-स्वाहा ।

द्रोह-शल्ल रीत के ।
मोह-मल्ल जीत के ।
मल्लि-नाथाय नमः,
पात्र मुक्ति प्रीत के ॥ ६३८ ॥
ॐ नमः
मल्लि-नाथा-यस्-स्वाहा ।

महाव्रत पाये हैं ।
दोष कब भाये हैं ।
मुनि सुव्-व्रताय नमः,
साध हरषाये हैं ॥ ६३९ ॥
ॐ नमः
मुनि-सुव्रता-यस्-स्वाहा ।

उखड़ा वट-नमते ।
हिल…ना सुन थमते ।
नमि-नाथाय नमः,
आ पल भर रमते ॥ ६४० ॥
ॐ नमः
नमि-नाथा-यस्-स्वाहा ।

नेम-धुरा धरम धर ।
क्षेम त्वरा ! भरम हर ।
नेमि-नाथाय नमः
प्रेम-निरा रम…सुमर ॥ ६४१ ॥
ॐ नमः
नेमि-नाथा-यस्-स्वाहा ।

सुना पा…रस बढ़ते ।
बन निरालस वसते ।
पार्श्व-नाथाय नमः,
साध रोते हँसते ॥ ६४२ ॥
ॐ नमः
पार्श्व-नाथा-यस्-स्वाहा ।

वर्ध वि-वर्धमाना ।
मान-केवल ज्ञाना ।
वर्धमानाय नमः,
साध, रख श्रद्धाना ॥ ६४३ ॥
ॐ नमः
वर्द्धमाना-यस्-स्वाहा ।

जीत नैना नारी ।
भीत सेना हारी ।
महावीराय नमः,
रीत जैना न्यारी ॥ ६४४ ॥
ॐ नमः
महावीरा-यस्-स्वाहा ।

शत्रु पुराने ।
चित् चउ खाने ।
नमः वीराय,
रट, तट पाने ॥ ६४५ ॥
ॐ नमः वीरा-यस्-स्वाहा ।

हंस मत रीझी ।
खुली दृग तीजी ।
नमः सन्मतये,
जुबाँ जप भींजी ॥ ६४६ ॥
ॐ नमः
सन्मतये-स्वाहा ।

आपका बढ़ा कदम ।
देव रच चले पदम ।
महा पद्माय नमः,
जपो बनता दृग नम ॥ ६४७ ॥
ॐ नमः
महा-पद्मा-यस्-स्वाहा ।

इक सुर सुर सारे ।
कहें आप म्हारे ।
सुर देवाय नमः,
साध, यम पुकारे ॥ ६४८ ॥
ॐ नमः
सुर-देवा-यस्-स्वाहा ।

समव-शरण सभा ।
तन कञ्चन प्रभा ।
नमः सुप्-प्र-भाय,
गूँज भवन नभा ॥ ६४९ ॥
ॐ नमः
सुप्-प्रभा-यस्-स्वाहा ।

सूर स्वयं दमके ।
काँच धूप चमके ।
स्वयं प्रभाय नमः,
जश अनूप रम के ॥ ६५० ॥
ॐ नमः
स्वयं-प्रभा-यस्-स्वाहा ।

महा अर्घ

वन्दे तद्‌-गुण लब्-धये ।
जल, गंधाक्षत, फुलझड़ी ।
थाली घृत व्यंजन भरी ।
दीवा, सुरभी, फल नये ।
भेंटूँ चरण सिद्ध भगवन् ।
वन्दे तद्‌-गुण लब्-धये ।
हेत अखीर समाध मरण ।
पूजूँ चरण सिद्ध भगवन् ।
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

जाप
असि आ उसा
नमः
(मंत्र का 108 जाप करें।)

जयमाला

सोन पाथर सोना जैसे ।
जोन पामर खोना वैसे ॥
न दुर्गण, गुण अगणंता जै ।
जयतु जय सिद्ध अनंता जै ॥ ०१ ॥

जीव कृत कर्मन फल पाता ।
कर्म क्षय, जुड़े मोक्ष नाता ॥
पुनः कब कर्मन फन्दा जै ।
जयतु जय सिद्ध अनंता जै ॥ ०२ ॥

ज्ञान, दृग, संयम तलवारी ।
कर्म परिपाट काट सारी ॥
लब्धि नव विभव समन्ता जै ।
जयतु जय सिद्ध अनंता जै ॥ ०३ ॥

जगत् जाना, युगपत् देखा ।
सतत् सुख अबाध अभिलेखा ॥
ज्योति बढ़ सूरज चन्दा जै ।
जयतु जय सिद्ध अनंता जै ॥ ०४ ॥

गमन ऊरध स्वभाव चूँकी ।
समय-इक छुये सिद्ध भूमि ॥
न फिरना नन्त वसंता जै ।
जयतु जय सिद्ध अनंता जै ॥ ०५ ॥

देह अंतिम किंचित न्यूना ।
सत्य, शिव, सुंदर दिव यूँ ना ॥
अमूरत खुद मानिन्दा जै ।
जयतु जय सिद्ध अनंता जै ॥ ०६ ॥

अठारह औ-गुण छूट चले ।
सहज सुख झरने फूट चले ॥
भूत-भव-नव भगवन्ता जै ।
जयतु जय सिद्ध अनंता जै ॥ ०७ ॥

व्यर्थ औषध, न रोग पीडा ।
व्यर्थ औ सब, न भोग-क्रीड़ा ॥
और क्या ? स्वर्ण सुगंधा जै ।
जयतु जय सिद्ध अनंता जै ॥ ०८ ॥

सिद्ध नय, चारित, अवगम से ।
सिद्ध तप, दर्शन, संयम से ॥
स्वाम शिव-धाम समन्ता जै ।
जयतु जय सिद्ध अनंता जै ॥ ०९ ॥

दुक्ख क्षय, कर्मों का क्षय हो ।
समाधी मरण रतन त्रय हो ॥
लाभ निधि शगुन जिनंदा जै ।
जयतु जय सिद्ध अनंता जै ॥ १० ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट् ‌
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

*श्री सरसुति-मंत्र*

ॐ ह्रीम्
अर्हन् मुख कमल-वासिनि
पापात्म क्षयंकरि
श्रुत-ज्ञान
ज्वाला सहस्र प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति !
मत् पापम् हन हन दह दह
क्षाम् क्षीम् क्षूम क्षौम् क्षः
क्षीरवर-धवले
अ-मृत-संभवे
वम् वम् हूम् फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

*विसर्जन पाठ*
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।१।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।२।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।३।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।४।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
=दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
कृपा ‘निराकुल’ आपकी,
बनी रहे निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)

आरती

आओ भक्ता आओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।
दीवा घृत भर लाओ ‘रे ।
सिद्ध चक्र मण्डल विधान की ।
सिद्ध यन्त्र करुणा निधान की ।।
आरति कर हरषाओ ‘रे ।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।।

दुखियारिन रानी मैना ।
चैन-करार न दिन-रैना ।
देख-देख पति की पीड़ा,
बस ढोले पानी नैना ।।१।।

जा पहुंची जिन मन्दरिया ।
दिखे साधु जिन मन-दरिया ।
मिल चाला कोई अपना,
झल चाला नयनन दरिया ।।२।।

अपना पुण्य करो गाढ़ा ।
मुनि बोले अशीष म्हारा ।
धारा सिद्ध-यंत्र ढारो
कार्तिक, फागुन, आसाढ़ा ।।३।।

आया पर्व अठाई है ।
पूजन सिद्ध रचाई है ।
गन्धोदक ले सिर माथे,
कर्म निकाच विदाई है ।।४।।

पापोदय पलटी खाया ।
काम-देव कंचन काया ।
गूँजा ‘सति मैना सुन्दर’,
धरती-अम्बर जयकारा ।।५।।

मोती नयन झिराओ ‘रे ।
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ‘रे ।
मिलकर कीरति गाओ ‘रे ।
सिद्ध चक्र मण्डल विधान की ।
सिद्ध यन्त्र करुणा निधान की ।।
आरति कर हरषाओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।६।। 

सर्व-विघ्न-शान्ति मंत्र

नमोर्-ऽहते भग-वते
प्र(क्)-क्षी-णाशेष दोष कल्-मषाय
दिव्य तेजो मूर्-तये
श्री शान्ति-नाथाय शान्ति-कराय
सर्व विघ्न(प्) प्र-णा-शनाय
सर्व रोगाप मृत्यु वि-ना-शनाय
सर्व पर कृच्-छु(द्)-द्रो-प(द्)-द्रव वि-ना-शनाय
सर्वा-रिष्ट शान्ति-कराय
ॐ ह्राम् ह्रीम् ह्रूम् ह्रौम् ह्रः
अ, सि, आ, उ, सा नमः
मम सर्व विघ्न शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्व रोगाप-मृत्यु शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्व पर कृच्-
छु(द्)-द्रो-प(द्)-द्रव शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्वा-रिष्ट-शान्तिम्
कुरु कुरु
मे तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु
ते तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु 
ते मे तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु
स्वाहा, स्वाहा, स्वाहा

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