सिद्ध-चक्र मंडल विधान
द्वितीय वलय
*श्री वर्धमान मंत्र*
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रि-सहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, वि-वाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्-भणे वा, मो-हणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अव-राजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
नव देवता संस्तवन
तट भव खेवा ।
रट नव देवा ।
हट पुन जेबा ।
जयतु जयतु नव-देव सदैवा ।।
हित उपदेशा ।
गत रत-द्वेषा ।
विदित अशेषा ।
जयतु जयतु अरिहन्त जिनेशा ।।१।।
कर्म निकन्दा ।
शिव वधु कन्ता ।
गुण अगणन्ता ।
जयतु जयतु जय सिद्ध अनन्ता ।।२।।
जाग प्रदाता ।
राग विधाता ।
दाग न नाता ।
जयतु सूर जय भाग विधाता ।।३।।
चल विद्यालै ।
चरित हिमालै ।
नन्त गुणालै ।
जयतु जयतु आचार्य सदा जै ।।४।।
पाणन पात्री ।
पांवन यात्री ।
दामन मात्री ।
जयतु सन्त दृग श्रावण भाद्री ।।५।।
विवेक हंसा ।
और प्रशंसा ।
विवाद ध्वंसा ।
जयतु जयतु जिन धर्म अहिंसा ।।६।।
ज्योत समाना ।
गोद प्रधाना ।
बोध निधाना ।
जयतु जयतु जिन वेद पुराणा ।।७।।
विरत कलत्रा ।
विरहित वस्त्रा ।
अस्त्र न शस्त्रा ।
जयतु चैत्य जिन भाव प्रशस्ता ।।८।।
जश निकलंका ।
सम धनि रंका ।
सुदृग निशंका ।
जय जयतु जिन धाम असंखा ।।९।।
ॐ ह्रीं श्री नव देवता भगवन् !
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सिद्ध-चक्र की महिमा
सिद्ध-चक्र मंडल विधान की,
महिमा बड़ी महान ।
काया कोढ़ी पति, सति मैना,
सुन्दर स्वर्ण समान ॥
जश जिनका दश दिश् में गाजा ।
थे पहुपाल नाम इक राजा ॥
इक सुर ‘सुन्दर’ मैना दूजी ।
‘दुहिता’ सार्थ अनोखी पूँजी ॥
सुर सुन्दर मत-शैव पढ़ाई ।
आ, मनचाहा वर परणाई ॥
पास आर्यिका माँ पढ़ मैना ।
पिता समीप खड़ी नत नैना ॥
पिता कह रहे सार्थ नाम ‘वर’,
वरो दिया वरदान ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान की,
महिमा बड़ी महान ॥ ०१ ॥
मैना बोली, अहो ! पिता जी ।
‘आप ब्याह दो’ हूँ मैं राजी ॥
लेख भाग कब पलटी खाये ।
पंक्ती हरिक जिनागम गाये ॥
बड़ी कृतघ्न, भाग जश गाती ।
छेद करे, पातर जिस खाती ॥
कहें पिता, जा मान अभी भी ।
ज्यादा हट ना भली कभी भी ॥
वरना पीछे पछतायेगी,
सुन बच्ची नादान ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान की,
महिमा बड़ी महान ॥ ०२ ॥
फूटा कोढ़, राज्य दे काका ।
आ श्री पाल बाग पद राखा ॥
नृप पहुपाल पूंछते उससे ।
आप कौन ? आये किस दिश् से ॥
पूर्व पाप ने मुझे सताया ।
पीछे भाग भागता आया ॥
बिटिया ‘भाग-वादि’ यह कोढ़ी ।
राम मिलाई बढ़िया जोड़ी ॥
और ब्याह कर, खेद करे नृप,
कर्म बड़ा बलवान ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान की,
महिमा बड़ी महान ॥ ०३ ॥
मैना कहे, पिता ओ ! माता ।
तुम निमित्त, बोया वो काटा ॥
और न पति सुन सकूँ बुराई ।
माई ! कर दो जल्द बिदाई ॥
घर जा, धोकर घाव भरूँगी ।
पति सेवा वै-तरण तरूँगी ॥
पति न कोढ़ि, भट कोटि हमारे ।
साधु दिगम्बर तारण हारे ॥
जा उनसे पूंछगी सविनय,
कर्म निकाच निदान ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान की,
महिमा बड़ी महान ॥ ०४ ॥
भोले संत दिगम्बर बोले ।
अंतस् सिमरन सिद्ध भिंजो ले ॥
पर्व नाम अष्टानिक न्यारा ।
सिद्ध-यंत्र पर कर जल धारा ॥
पति के माथे उसे चढ़ाना ।
मंतर महा सुमरते जाना ॥
कार्तिक, फाग, असाढ़ अखीरी ।
आठ दिवस, ले आँख पनीली ॥
रख श्रद्धा विश्वास बरस ‘वस’,
पा प्रतिफल मनमान ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान की,
महिमा बड़ी महान ॥ ०५ ॥
दूर बरस ‘वस’, दिवस न पूरा ।
हुआ स्वप्न साकार अधूरा ॥
कहे, प्रभो ! मैं आप भरोसे ।
मैना आँख भरी खुशियों से ॥
कामदेव सी कंचन काया ।
कोढ़ रोग का हुआ सफाया ॥
स्वस्थ्य, सात सौ कोढ़ी सारे ।
गूँजे सति मैना जयकारे ॥
देव, शास्त्र, गुरु मंगल,
उत्तम, शरणा तीन जहान ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान की,
महिमा बड़ी महान ॥
काया कोढ़ी पति, सति मैना,
सुन्दर स्वर्ण समान ।
सिद्ध-चक्र मंडल विधान की,
महिमा बड़ी महान ॥ ०६ ॥
“पुष्पांजलिं क्षिपामि”
सिद्ध-चक्र मंडल विधान पूजन
जय जयकारा जय जयकारा ।
सिद्ध यंत्र को नमन हमारा ॥
आगे पीछे रेफ, मध्य सह,
बिन्दु हकारा ।
कमलाकृति-दल कर्णि पूर्व सिध,
स्वर दश चारा ॥
फिर कवर्ग, फिर चवर्ग नीचे ।
फिर टवर्ग, फिर तवर्ग पीछे ॥
फिर पवर्ग अंतस्थ-ऊष्म यूँ,
साथ अनाहत मन्तर न्यारा ।
अंत ह्रीम् बेढ्यो अति प्यारा ॥
मंत्र णमो अरिहंताणं मध,
पाँखन विस्तारा ।
सिद्ध यंत्र को नमन हमारा ।
जय जयकारा जय जयकारा ॥
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं
श्री सिद्ध यंत्र
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
सिद्ध मंत्र आलापता,
असि-आ उसा प्रसिद्ध ।
सिद्ध यंत्र को थापता,
हित सरवारथ सिद्ध ॥
इति यन्त्रस्-थापनार्थं पुष्पांजलिं क्षिपेत्
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् ‘पूर्वर स्वर-चौदह वर्णा ॥१॥
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ
ऋ ॠ ऌ ॡ ए ऐ ओ औ अं अः
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् आग्ने-यर, वर्ण कवर्गा ॥२॥
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् दक्षिण-अर, वर्ण चवर्गा ॥३॥
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
दक्षिण-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् नैऋत्-त्यर, वर्ण टवर्गा ॥४॥
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् पश्चिम-अर, वर्ण तवर्गा ॥५॥
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् बायव्-व्यर वर्ण पवर्गा ॥६॥
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् उत्तर अंतस्थ सुवर्णा ॥७॥
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजूँ स्वर्गा ।
हित अपवर्गा ।
दिश् ईशा-नर ऊष्मक वर्णा ॥८॥
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अनाहत पराक्रमाय सिद्धाधिपतये नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अथ सिद्ध भक्ति कायोत्सर्ग
॥ प्राकृत पद्यानु-वाद ॥
॥ दोहा ॥
सिद्ध, ज्ञान, दर्शन-मयी,
जीव-घणा, अशरीर ।
अनाकार, साकार भी,
कुछ कम देह-अखीर ॥१॥
॥ चौपाई ॥
बंधोदय सत्-कर्म अराती ।
प्रकृति मूल-उत्तर संघाती ॥
मंगल-भूत अष्ट गुण-वन्ता ।
जल-संसार तीर अगणंता ॥२॥
सिद्धी-भूत निरंजन, नित्या ।
विकल कर्म विध-वस कृत-कृत्या ॥
सार्थ सिद्ध लोकाग्र निवासी ।
अष्टक प्रमुख शगुन गुण-राशी ॥३॥
नष्ट अष्ट मल-कर्म विशुद्धा ।
सिद्ध, बुद्ध नव-लब्धि समृद्धा ॥
शेखर-मुकुट भुवन-तिहुँ माथा ।
श्री-मद्-भट्टारक जग-त्राता ॥४॥
॥ दोहा ॥
गमना-गमन विमुक्त जे,
प्रकृति कर्म संघात ।
शाश्वत सुख संयुक्त वे,
सिद्ध विमुक्त-उपाध ॥५॥
॥ चौपाई ॥
मंगल-भूत दुभू पाताला ।
निर्मल परिणत बहती धारा ॥
दर्शन, अवगम, चारित सहिता ।
द्रव्य कर्म, नो-कर्म वि-रहिता ॥६॥
केवल दर्शन, चारित, ज्ञाना ।
निध-सम्यक्त्व, वीर्य-अप्रमाणा ॥
सूक्ष्म, अगुरुलघु, अव्या-बाधा ।
अवगाहन गुण अष्टक साधा ॥७॥
तप से सिद्ध, सिद्ध संयम से ।
नय से सिद्ध, सिद्ध अवगम से ॥
दर्शन, ज्ञान, सिद्ध आचरणा ।
हों प्रसन्न, वे तारण-तरणा ॥८॥
॥ दोहा ॥
कीना कायोत्सर्ग है,
भक्ति सिद्ध जिन नाथ ।
आलोचन उसका करूँ,
हाथ जोड़ नत माथ ॥९॥
॥ चौपाई ॥
भूषण-भू-वस, कल्मष-क्षीणा ।
चरित, ज्ञान, दर्शन समिचीना ॥
सिद्ध भूत, वर्तमान, भावी ।
नन्ता-नन्त काल अप्रभावी ॥१०॥
बुध-प्रतेक ! बुध-बोधित ! बुद्धा !।
बुध-अनेक, बुध-स्वयं ! विबुद्धा !॥
उनका पूजन, वन्दन करता ।
मन, वच, तन अभिनन्दन करता ॥११॥
कर्म क्षीण हो, दुख विलीन हो ।
संगत-साध, सुगति अधीन हो ॥
बोधि ‘निराकुल’ समाधि पाऊँ ।
धन ! जिन-गुण-सम्पद् पा जाऊँ ॥१२॥
“पुष्पांजलिं क्षिपामि”
अकृत्रिम जिनालय अर्घ्यं
आठ करोड़ लाख छप्पन ।
सन्त्यानवे हजार धन ! धन ! ॥
इक्यासी ऊपर सौ चार ।
अखर जिनालय जय जयकार ॥
ॐ ह्रीं आठ करोड़, छप्पन लाख,
सन्त्यानवे हजार, चार सौ इक्यासी
श्री अकृत्रिम जिनालयेभ्यो नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अकृत्रिम जिन बिम्ब अर्घ्यं
कोटिक नव सौ पच्चीसा ।
लाख तिरेपन सत-बीसा ॥
हजार, नव सौ अड़तालीस ।
नुति जिन-बिम्ब अखर निशिदीस ॥
ॐ ह्रीं नौ सौ पच्चीस करोड़,
तिरेपन लाख, सत्ताईस हजार,
नव सौ अड़तालीस
श्री अकृत्रिम जिन बिम्बेभ्यो नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
द्वितीय वलय पूजन विधान
सिद्धोसी बुद्धोसी लोरी ।
थी माँ ने जो रग रग घोरी ।
नाक रखी माँ, नाक रखी क्या ?,
आँख, रीझ चाली दिव गोरी ॥
और हल्के बन चले हैं ।
‘गौर दिल के’ वन चले हैं ॥
क्यूँ न रीझे मुक्ति राधा ।
छोड़ सब, जब एक साधा ॥
नाम भक्तों में लिखा दो ।
राह मुझको भी दिखा दो ॥
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं
सिद्ध परमेष्ठिन्
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
छिद्र भरे, फिर बढ़ता पानी ।
जीव स्वभाव नादि नादानी ।
और, छिद्र ढकते जाना यह,
कला तुम्हें न पड़ी सिखानी ॥
नीर गंगा मिल न पाया ।
लिये पानी आँख आया ॥
यही जो स्वीकार इसको ।
लगा दो उस पार मुझको ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
घिसा उन्हीं हाथों में चन्दन ।
महक छोड़, करता अभिनन्दन ।
गुस्सा पिया, आप गम खाई,
पुरा झड़ा, नव हुआ न बन्धन ॥
मलय चन्दन ले न आया ।
हृदय वन्दन हेत लाया ॥
कर इसे स्वीकार स्वामी ।
बना लो श्रुत पार-गामी ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।
दी उतार तुष सँग ललाई ।
बगुला पना न अक्षत भाई ।
जश मानस पा हंस बने तुम,
रंच न भाई मीन बुराई ॥
मिल न पाये अछत दाने ।
छेड़ता हूँ विरद तानें ॥
कर कृपा, लो इन्हें अपना ।
‘अर’ बना लो मुझे अपना ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
नाम ‘सुमन’ सार्थक कर डाला ।
साथ शूल रह, हृदय-विशाला ! ।
झाँका अपने गिरेबान में,
कहा न दुश्मन दिल का काला ॥
सुमन उपवन खिल न पाये ।
ले सु…मन अन्वर्थ आये ॥
लो इसे स्वीकार भगवन् ।
वच समर्पित और तन-मन ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
आटे ने घी गुड़ से मिल के ।
पूर लिये सपने मंजिल के ।
देख विघ्न निश भी उर पंकज,
आप न मुरझाया फिर खिल के ॥
दूर छप्पन भोग इक ना ।
मान आया तुम्हें अपना ॥
टूक ना विश्वास होवे ।
हृदय छुप छुप के न रोवे ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
दीप-माल तिल तिल जल चाली ।
स्याही रात बना उजियाली ।
‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’,
बात न बस कानों में डाली ॥
मिल न पाया दिया माटी ।
माँ दिये संस्कार थाती ॥
लाज उसकी बचे आया ।
बना श्री फल हाथ लाया ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
ले जा भले कोन इक छोड़ी ।
कह दे धूप, कौन ? बेजोड़ी ।
आप लकीर बढ़ाने तुमने,
कभी स्वप्न भी रबर न घोरी ॥
धूप खोजी मिल न पाई ।
चिर जो तुमसे लौ लगाई ॥
वही लाई है, धका के ।
नत विनत में खड़ा आ के ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
डाली झुक चाली फल आये ।
कब तरु ने अपने फल खाये ।
‘मर हम मरहम बनें’ गीत गा,
तुमने मिट, पर काम बनाये ॥
एक फल ना हाथ आया ।
भक्ति श्रद्धा साथ लाया ॥
चुन इसे, लो बना चेरा ।
तुम सिवा कोई न मेरा ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
छोड़ी सबने थारी-म्हारी ।
अर्घ कह चली दुनिया सारी ।
दूर न पद अनर्घ अब तुमसे,
सहज निराकुल ! ओ ! त्रिपुरारी ॥
जल न अक्षत, फल न चन्दन ।
दीप, धूप न पुष्प, व्यंजन ॥
भाव बस भीने बटोरे ।
चला आया द्वार तोरे ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
सोलह मूल गुण अर्घ
चक्षु-दर्श, अचक्षु-दर्शन ।
अवधि, केवल-दर्श निरसन ॥
निद्र, निद्रा-निद्र, प्रचला ।
स्त्यान-गृद्धि, प्रचल-प्रचला ॥
कर्म प्रकृति प्रभेद घाती ।
नन्त-दर्शन अमिट थाती ॥
सिद्ध सिमरण कर हमारी ।
रहेगी झोरी न खाली ॥
है मुझे विश्वास पूरा,
मनेगी हो ‘री दिवाली ।
दूसरे सब काम छोड़ी ।
पूजते आ सखी ओ ‘री ॥ ०१ ॥
ॐ नमः अनन्त-
दर्शना-यस्-स्वाहा ।
मन प्रधाना, अक्ष नाना ।
जन्य मति वा सुरुत ज्ञाना ॥
एक देश प्रतक्ष ख्याता ।
अवधि, मन-पर्यय विघाता ॥
ज्ञान नंत सयत्न पाया ।
हास मुख वधु-मुक्ति छाया ॥
सिद्ध सुमरण कर हमारी ।
रहेगी झोरी न खाली ॥
है मुझे पूरा भरोसा,
मनेगी हो ‘री दिवाली ।
दूसरे सब काम छोड़ी ।
पूजते आ सखी ओ ‘री ॥ ०२ ॥
ॐ नमः अनन्त-
ज्ञाना-यस्-स्वाहा ।
घात कर दानान्-तराया ।
लाभ अरि यम दर पठाया ॥
भोग फिर उपभोग भाई ।
रहस वीरज धरासाई ॥
नन्त वीरज अतुलनीया ।
हाथ अनबुझ रतन दीया ॥
सिद्ध सुमरण कर हमारी ।
रहेगी झोरी न खाली ॥
आश है विश्वास मुझको,
मनेगी हो ‘री दिवाली ।
दूसरे सब काम छोड़ी ।
पूजते आ सखी ओ ‘री ॥ ०३ ॥
ॐ नमः अतुल-
वीर्या-यस्-स्वाहा ।
मिश्र, मिथ्या, प्रकृति-सम्यक् ।
चरित-मोह विनाश भरसक ॥
नन्त-बंध, अप्रत्याख्याना ।
चार संज्वल, प्रत्याख्याना ॥
पुन, नपुंसक, तिय, जुगुप्सा ।
रति, अरति, भय, शोक, हास्या ॥
सुख अनंत अबाध झोरी ।
खुश बड़ी शिव-पुरी गोरी ॥
सिद्ध सुमरण कर हमारी ।
रहेगी झोरी न खाली ॥
और मन कह रहा मेरा,
मनेगी हो ‘री दिवाली ।
दूसरे सब काम छोड़ी ।
पूजते आ सखी ओ ‘री ॥ ०४ ॥
ॐ नमः अनन्त-
सुखा-यस्-स्वाहा ।
हा ! मिथ्यात्व निगड़ बेड़ी ।
सम दरश शिव प्रथम पैड़ी ॥
एक उपशम नाम सम्यक् ।
देर ज़्यादा सकें ना रख ॥
और क्षायोपशम पुकारा ।
दोष हा ! चल, मल, अगाढ़ा ॥
आप क्षायिक दर्श पाँता ।
नंत गुण फिर लगा ताँता ॥
सिद्ध सुमरण कर हमारी ।
रहेगी झोरी न खाली ॥
कई बारी कहा माँ ने,
मनेगी हो ‘री दिवाली ।
दूसरे सब काम छोड़ी ।
पूजते आ सखी ओ ‘री ॥ ०५ ॥
ॐ नमः अनन्त-
सम्यक्-त्वा-यस्-स्वाहा ।
जाति, गति, संघात, बन्धन ।
शरीरांगो-पांग, संहनन ॥
पर्श, रस, निर्माण, संस्थां ।
आनुपूर्व्या, वर्ण, गंधा ॥
अगुरुलघु, आतप, उछासा ।
स्वपर-घात, उद्योत नाशा ॥
त्रस, सुभग, शुभ, तन-प्रतेका ।
सूक्ष्म, सुस्वर, स्थिरा-देया ॥
कीर्ति-यश, पर्याप्त वामा ।
गति-विहायस, तीर्थ नामा ॥
घात प्रकृति अशेष माया ।
नन्त गुण सूक्ष्मत्व जाया ॥
सिद्ध सुमरण कर हमारी ।
रहेगी झोरी न खाली ॥
वेद, शास्त्र, पुराण कहते,
मनेगी हो ‘री दिवाली ।
दूसरे सब काम छोड़ी ।
पूजते आ सखी ओ ‘री ॥ ०६ ॥
ॐ नमः
अनन्त-सूक्ष्मत्वा-यस्-स्वाहा ।
अर असाता वेदनीया ।
इतर साता वेदनीया ॥
दुविध वेदन कर्म क्षीणा ।
सुविध चेतन धर्म लीना ॥
धन्य ! अव्या-बाध गुणमय ।
चिच्-चिदा-नन्दैक चिन्मय ॥
सुख निराकुल हाथ लागा ।
भाग सिरपुर-राध जागा ॥
सिद्ध सुमरण कर हमारी ।
रहेगी झोरी न खाली ॥
सभा शच-पत साँच खोले,
मनेगी हो ‘री दिवाली ।
दूसरे सब काम छोड़ी ।
पूजते आ सखी ओ ‘री ॥ ०७ ॥
ॐ नमः
अव्या-बाधा-यस्-स्वाहा ।
गति नरक से पिण्ड छूटा ।
गमन गति तिर्यंच झूठा ॥
देव गति अब गमन नाहीं ।
गति मनुज आगमन नाहीं ॥
शगुन अवगाहन निराला ।
हनन आयुष कर्म धारा ॥
सिद्ध सुमरण कर हमारी ।
रहेगी झोरी न खाली ॥
वचन दैगम्बर न झूठे,
मनेगी हो ‘री दिवाली ।
दूसरे सब काम छोड़ी ।
पूजते आ सखी ओ ‘री ॥ ०८ ॥
ॐ नमः
अव-गा-हना-यस्-स्वाहा ।
अगणत ! प्रसिद्ध !, परिणत विशुद्ध ! ।
जय जयत सिद्ध, रह ‘जगत’ बुद्ध ॥
आगमन बाद, ना गमन आद ।
छा गगन नाद, हाँ ! नमन साध ॥
अविचल त्रिकाल, थित लोक भाल ।
सिध धोक माल, गत शोक-जाल ॥ ०९ ॥
ॐ नमः
अचला-यस्-स्वाहा ।
अगणन्त सिद्ध, दयवन्त बुद्ध ।
गत ग्रन्थ गृद्ध, प्रद पन्थ शुद्ध ॥
जर्जर न काय, निर्जर कषाय ।
निर्झर सहाय, नुति वर प्रदाय ॥
धन गणन पार, गुणक्रम उदार ।
जय जय उचार, सिध-तरण धार ॥ १० ॥
ॐ नमः
अजरा-यस्-स्वाहा ।
सिध सार्थ नाम, पुरुषार्थ ठाम ।
गत आर्त ! स्वाम !, मनसा प्रणाम ॥
जब जन्म नाह, कब मृत्यु राह ।
गत धूप छाह, चिद्रूप वाह ! ॥
बिन रोग-शोक, बिन रोक-टोक ।
बिन नोंक-झोंक, जय सिद्ध लोक ॥ ११ ॥
ॐ नमः
अमरा-यस्-स्वाहा ।
अद्भुत ललाम, श्री सिध प्रणाम ।
गिरि बुध अनाम, सुध बुध प्रयाम ॥
सध चला ध्येय, बढ़ तजा हेय ।
जग बना ज्ञेय, निध अप्-प्रमेय ॥
सिध आप जाप, गुण ले अमाप ।
निष्पाप छाप, भव ताप हाँप ॥ १२ ॥
ॐ नमः
अप्रमे-या-यस्-स्वाहा ।
जय सिध अनन्त, नय सिध भदन्त ।
तप सिध समन्त, वृत सिध जयन्त ॥
उत्सव अनूठ, विद् अक्ष झूठ ।
दीपक अंगूठ, सूरज विभूत ॥
जय ज्ञान गात, अशरीर ख्यात ।
क्षय मान साध !, गौरव विधात ! ॥ १३ ॥
ॐ नमः
अतीन्द्रिय-ज्ञान-
धा-रका-यस्-स्वाहा ।
जश द्युप् प्रतिष्ठ, वस भूम तिष्ठ ।
सिध परम इष्ट, वन्दन विशिष्ट ॥
गत वेद पुंस, तिरिया, नपुंस ॥
गुण दून वंश, नुति पून मंश ॥
जय जय अवेद, पढ़ चार वेद ॥
बढ़ पार भेद, उद्धार हेत ॥ १४ ॥
ॐ नमः
अवेदा-यस्-स्वाहा ।
सिध नमस्कार, निध प्राग-भार ।
बुध ‘जगत’ न्यार, विध क्षार क्षार ॥
गत भेद भाव, अपगत तनाव ।
सुमरत प्रभाव, रुखसत विभाव ॥
रग रक्त श्वेत, तन रिक्त श्वेद ।
कृतकृत्य हेत, धृत भक्ति केत ॥ १५ ॥
ॐ नमः
अभेदा-यस्-स्वाहा ।
गणना अतीत, श्रमणा विनीत ।
सिध शाम मीत, नुति साथ प्रीत ॥
रम त्याग गंग, गुम राग रंग ।
नम भाग-जंग, यम-भाग भंग ॥
भुवि तीन नाप, अविलीन आप ।
भवि क्षीण छाप, छवि पीन जाप ॥ १६ ॥
ॐ नमः
अविलीना-यस्-स्वाहा ।
महा अर्घ
अनगिन सिद्ध अर्चना में,
बीते घड़ी घड़ी मेरी ।
रही महती कृपा अब तक,
किरपा बनी रहे तेरी ॥
लिये दृग जल, गंध, अक्षत ।
पुष्प, ले चरु, धूप के घट ।
दीप घृत, फल लगा ढेरी ।
बीते घड़ी घड़ी मेरी ॥
अनगिन सिद्ध अर्चना में,
बीते घड़ी घड़ी मेरी ।
रही महती कृपा अब तक,
किरपा बनी रहे तेरी ॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अष्टम वलय के
दो सौ पचास अर्घ
अक्ष जीती ।
दक्ष नीति ।
जिनाय नमः,
लक्ष प्रीति ॥ १ ॥
ॐ नमः
जिनाय-यस्-स्वाहा ।
जाग-भेष तीते ।
राग-द्वेष जीते ।
जिनेन्द्राय नमः,
दाग क्लेश रीते ॥ २ ॥
ॐ नमः
जिनेन्द्रा-यस्-स्वाहा ।
हैं जीत चले चितवन ।
भव भीत अरे ! प्रति-क्षण ।
जिन-पूर्ण-ताय नमः,
संप्रीत पले त्रिभुवन ॥ ३ ॥
ॐ नमः
जिन-पूर्णता-यस्-स्वाहा ।
वन चन्दन द्रुम जैसे ।
जिन-जिन उत्तम वैसे ।
जिनोत्-तमाय नमः,
किनके दृग-नम ऐसे ॥ ४ ॥
ॐ नमः
जिनोत्-तमा-यस्-स्वाहा ।
चरण खड़ा इन्दर ।
छतर बना चन्दर ।
जिनप्-प्रष्ठाय नमः,
जपत भगा व्यन्तर ॥ ५ ॥
ॐ नमः
जिन-प्रष्ठा-यस्-स्वाहा ।
गण-धराद अधपत ।
निष्प्रमाद परणत ।
जिनाधिपाय नमः,
सुख अबाध संपत ॥ ६ ॥
ॐ नमः
जिना-धिपा-यस्-स्वाहा ।
भाव जिन अरिहन्ता ।
छाँव जिन निर्ग्रन्था ।
जिनाधीशाय नमः,
राव जिन सिध नन्ता ॥ ७ ॥
ॐ नमः
जिना-धीशा-यस्-स्वाहा ।
समव-शरणा रमा ।
निलय करुणा क्षमा ।
जिनस्-स्वामिने नमः,
मंत्र हरणा तमा ॥ ८ ॥
ॐ नमः
जिन-स्वामिने-स्वाहा ।
आखर ढ़ाई पढ़ के ।
क्षायिक श्रेणी मढ़ के ।
जिनेश्-वराय नमः,
ईश्वर ईश्वर बढ के ॥ ९ ॥
ॐ नमः
जिनेश्वरा-यस्-स्वाहा ।
क्षरण कषाय नमः ।
धन ! पर्याय नमः ॥
जिन-नाथाय नमः ।
शरण सहाय नमः ॥ १० ॥
ॐ नमः
जिन-नाथा-यस्-स्वाहा ।
रक्षक इक देश व्रती ।
संरक्षक महा व्रती ।
जिन-पतये नमो नमः,
अवतारक सरस्वती ॥ ११ ॥
ॐ नमः
जिन-पतये-स्वाहा ।
सामर्थवान् एका ।
करुणा निधान लेखा ।
श्री जिनप्-प्रभवे नमः,
अहि पाप हान केका ॥ १२ ॥
ॐ नमः
जिन-प्रभवे-स्वाहा ।
क्या भुवि, क्या दिवि, क्या पाताला ।
माने आज्ञा त्रिभुवन सारा ।
जिन-राजाधि-राजाय नमः,
जपा दिखा भव सिन्धु किनारा ॥ १३ ॥
ॐ नमः
जिन-राजाधि-राजा-यस्-स्वाहा ।
विभव अनूठा है ।
अर-नव झूठा है ।
जिन-विभवे नमः,
झिरना फूटा है ॥ १४ ॥
ॐ नमः
जिन-विभवे-स्वाहा ।
भव दुख हरते नमः ।
शिव सुख करते नमः ॥
श्री जिन-भर्त्रे नमः ।
पर-हित मरते नमः ॥ १५ ॥
ॐ नमः
जिन-भर्त्रे-स्वाहा ।
दिव्य धुन मिथ्यामत छीजे ।
भव्य सुन दीदा-दृग तीजे ।
नमः तत्त्वप्-प्रका-शाय,
नव्य गुण चिंता मण भींजे ॥ १६ ॥
ॐ नमः
तत्त्व-प्रका-शा-यस्-स्वाहा ।
अब ढाल हाथ थामी ।
सब टाल पाथ खामी ।
जय कर्म-जिताय नमः,
जगपाल ! नाथ ! स्वामी ! ॥ १७ ॥
ॐ नमः
जय कर्म-जिता-यस्-स्वाहा ।
पाप भाव जीत के ।
हाँप, दाँव रीत के ।
जिनेशाय नमः,
योग्य मोक्ष पीठ के ॥ १८ ॥
ॐ नमः
जिनेशा-यस्-स्वाहा ।
ज्ञायक ज्ञायक रट के ।
कारण बाधक झटके ।
जिन-नायकाय नमः,
चारित क्षायिक हटके ॥ १९ ॥
ॐ नमः
जिन-ना-यका-यस्-स्वाहा ।
कब सोये, जब से जागे ।
निज खोये, सबसे आगे ।
जिन-नेत्रे नमो नमः,
गुण गोये इक बढ़-भागे ॥ २० ॥
ॐ नमः
जिन-नेत्रे-स्वाहा ।
मनचाहा सुख भेंटे ।
यमराजा दुख मेंटे ।
श्री जिन-जेत्रे नमः,
भीतर कछु…आ पैंठे ॥ २१ ॥
ॐ नमः
जिन-जेत्रे-स्वाहा ।
दृढ़ता अपने जैसी ।
जड़ता न स्वप्न कैसी ? ।
जिन-परिदृढ़ाय नमः,
जप और न जग ऐसी ॥ २२ ॥
ॐ नमः
जिन-परि-दृढ़ा-यस्-स्वाहा ।
आँख गंग-रेव ।
धन्य ! पुण्य जेब ।
जिन-देवाय नमः,
पार सिन्ध खेव ॥ २३ ॥
ॐ नमः
जिन-देवा-यस्-स्वाहा ।
जनयिता सुरभी-स्वर ।
अकेले जगदीश्वर ।
जिनेश्वराय नमः,
दिखे, देखे भीतर ॥ २४ ॥
ॐ नमः
जिनेश्वरा-यस्-स्वाहा ।
पाल बाँध विधि धारा बह ।
तट अबाध विधि कारा क्षय ।
जिन-पा-लकाय नमो नमः,
रट समाध निधि द्वारा जय ॥ २५ ॥
ॐ नमः
जिन-पा-लका-यस्-स्वाहा ।
इन्द्र शत खड़े हाथ जोड़े ।
मोह, मद, राग-द्वेष छोड़े ।
जिना-धि-राजाय नमः,
मन्त्र रट, रखे भाव कोरे ॥ २६ ॥
ॐ नमः
जिना-धि-राजा-यस्-स्वाहा ।
क्या धरती क्या अम्बर ।
क्या धरती के अन्दर ।
जिन-शा-सने-शाय नमः,
गूँजे यह सिध-मन्तर ॥ २७ ॥
ॐ नमः
जिन-शा-सने-शा-यस्-स्वाहा ।
देवों के भी देव कहाते ।
स्वर्ग देवता शीष झुकाते ।
जिन-देवाधि-देवाय नमः,
जपते जाप पाप कट जाते ॥ २८ ॥
ॐ नमः
जिन-देवाधि-देवा-यस्-स्वाहा ।
पाताल धरा नभ छाना ।
जिन आप-सिवा न दिखाना ।
जिन-अद्विती-याय नमः,
जपते प्रतिफल मनमाना ॥ २९ ॥
ॐ नमः
जिन-अद्विती-या-यस्-स्वाहा ।
जितने जिन अधिनायक उनके ।
निशि के रवि, ध्रुव तारक दिन के ।
श्री जिनाधि-नाथाय नमः,
मंतर बढ़ मण माणक मन के ॥ ३० ॥
ॐ नमः
जिनाधि-नाथा-यस्-स्वाहा ।
बंधन कर्म विलाये सारे ।
लाखन सभ सम-शरण उबारे ।
श्री जिनेन्द्र-वि-बंधाय नमः,
शरण सहारे ! तारणहारे ! ॥ ३१ ॥
ॐ नमः
जिनेन्द्र-वि-बंधा-यस्-स्वाहा ।
जन्मातप निरसन ।
धर्मामृत बरषण ।
जिन-चन्द्राय नमः,
जपा हाथ सुमरण ॥ ३२ ॥
ॐ नमः
जिन-चन्द्रा-यस्-स्वाहा ।
बादल झाँप न पाता है ।
राहु न आँख दिखाता है ।
ओम् जिना-दित्याय नमः,
मिथ्या-तम छट जाता है ॥ ३३ ॥
ॐ नमः
जिना-दित्या-यस्-स्वाहा ।
हत-प्रभ प्रभा सूर्य कोटी ।
सोम सौम्य आभा मोती ।
जिन-दीप्त-रूपाय नमः,
रटते खोती मत खोटी ॥ ३४ ॥
ॐ नमः
जिन-दीप्त-रूपा-यस्-स्वाहा ।
मृग-मृग यथा गजेन्द्रा ।
जगमग सभा जिनेन्द्रा ।
जिन-कुंजराय नमः,
डग-डग जपा सुरेन्द्रा ॥ ३५ ॥
ॐ नमः
जिन-कुंजरा-यस्-स्वाहा ।
पाप अंधेरा छू मन्तर ।
आप न मुख राहू-अन्दर ।
जिनार्-काय नमो नमः,
जप साधो मानस मंदर ॥ ३६ ॥
ॐ नमः
जिनार्-का-यस्-स्वाहा ।
पुरा कर्म खाली ।
धुरा धर्म धारी ।
जिन-धौर्याय नमः,
त्वरा शर्म आली ॥ ३७ ॥
ॐ नमः
जिन-धौर्या-यस्-स्वाहा ।
धूर्तता ‘कि नाम शेष ।
धूर्यता यानि विशेष ।
जिन-धूर्याय नमः,
तूर्य तान हित स्वदेश ॥ ३८ ॥
ॐ नमः
जिन-धूर्या-यस्-स्वाहा ।
उर्वशी फिर लौटाया ।
उरसि मण दीप जगाया ।
जिनोत्-तमाय नमः,
हरसि न किसने गाया ॥ ३९ ॥
ॐ नमः
जिनोत्-तमा-यस्-स्वाहा ।
आंखों में रखते हो पानी ।
सुन न सको, दुख भरी कहानी ।
त्रिलोक-दुख-निवा-रकाय नमः,
साध सुमरणी साधो प्राणी ॥ ४० ॥
ॐ नमः
त्रिलोक-दु:ख-
निवारका-यस्-स्वाहा ।
तप-समता धनी ।
गप ममता खनी ।
जिनवराय नमः,
जप चिन्तामणी ॥ ४१ ॥
ॐ नमः
जिन-वरा-यस्-स्वाहा ।
सप्त भंग माँ श्रुत हैं ।
मुक्त संग, मारूत हैं ।
जिन-निःसंगाय नमः,
दिव, शिव सुन्दर सत् हैं ॥ ४२ ॥
ॐ नमः
जिन-निःसंगा-यस्-स्वाहा ।
अवनत को उन्नत कीना ।
प्रशय न उर मन्मथ दीना ।
श्री जिनोद्-वाहाय नमः,
रट प्रद गुण सम्पद ‘जीना’ ॥ ४३ ॥
ॐ नमः
जिनोद्-वाहा-यस्-स्वाहा ।
पद परम पा लिया ।
वृष-धरम धारिया ।
जिन-वृ-षभाय नमः,
जप करम टारिया ॥ ४४ ॥
ॐ नमः
जिन-वृ-षभा-यस्-स्वाहा ।
धरम अहिंसा साधा ।
वृत-हंसा आराधा ।
श्री जिन-धर्माय नमः,
जप विध्वंसा बाधा ॥ ४५ ॥
ॐ नमः
जिन-धर्मा-यस्-स्वाहा ।
सार्थ नाम रत…ना ।
सुन साधा यत्ना ।
जिन-रत्नाय नमः,
रट बिन, भव तट ना ॥ ४६ ॥
ॐ नमः
जिन-रत्ना-यस्-स्वाहा ।
औरस यानी साँचा ।
ना ‘औ…रत तन काँचा ।
श्री जिनौ-रसे नमः,
हत-आरत जिन वाँचा ॥ ४७ ॥
ॐ नमः
जिनौ-रसे-स्वाहा ।
सिद्धम् नमः बिना ।
दीक्षा कहाँ जिना ।
नमः जिनेशाय,
रट भवि ! रात दिना ॥ ४८ ॥
ॐ नमः
जिनेशा-यस्-स्वाहा ।
पाँत जिन अग्रिम बैठे ।
उतर कुछ भीतर पैठे ।
नमः श्री जिना-ग्रायाय,
जाप दुख संकट मेंटे ॥ ४९ ॥
ॐ नमः
जिना-ग्राया-यस्-स्वाहा ।
सींह वृत्ति अपनाई है ।
वृत्ती श्वान विदाई है ।
जिन-शार्दूलाय नमः,
जाप दुर्-दिनन सहाई है ॥ ५० ॥
ॐ नमः
जिन-शार्दूला-यस्-स्वाहा ।
धन ! धन्य ! पा ‘पता-मग’ डग ।
पुन-पुण्य गावता जग-जग ।
श्री जिन-पुं-गवाय नमः,
गुन गुण्य साधुता रग-रग ॥ ५१ ॥
ॐ नमः
जिन-पुं-गवा-यस्-स्वाहा ।
क्रिया समझी फिर साधी ।
आधि व्याधी न उपाधी ।
नमः जिनप् प्र-वि-वेकाय,
साध लो साध-समाधी ॥ ५२ ॥
ॐ नमः
जिन-प्र-वेका-यस्-स्वाहा ।
दूध दूध, पानी पानी ।
टूक टूक आनी जानी ।
श्री जिन-हंसाय नमः,
सूत भूति दानी प्राणी ! ॥ ५३ ॥
ॐ नमः
जिन-हंसा-यस्-स्वाहा ।
सुख शक्री झाँके है बगलें ।
सुख चक्री लागे है भग लें ।
जिनोत्-तम-सुख-धराय नमः,
जप न साध किसको ठग लें ॥ ५४ ॥
ॐ नमः
जिनोत्-तम-
सुख-धरा-यस्-स्वाहा ।
मार्ग प्रणेता ! नेता भी ।
ऊरध रेता ! केता ‘भी’ ।
श्री जिन-ना-यकाय नमः,
जो रट लेता जेता ‘ही’ ॥ ५५ ॥
ॐ नमः
जिन-ना-यका-यस्-स्वाहा ।
उग्रता से दामन झटके ।
व्यग्रता के पास न भटके ।
श्री जिना-ग्रिमाय नमः,
अग्र-आगे सबसे रट के ॥ ५६ ॥
ॐ नमः
जिना-ग्रिमा-यस्-स्वाहा ।
गुण पीछे गुण लगी कतार ।
कौन गिन सका गगन सितार ।
श्री जिन-गुणे-ग्रामण्यै नमः,
जपत तुरत भव सागर पार ॥ ५७ ॥
ॐ नमः
जिन-गुणे-ग्रामण्यै-स्वाहा ।
केवल तुम जैसे तुम हो ।
लोचन नम विश्व कुटुम हो ।
जिन-सत्-तमाय नमः,
जप माथे जश कुमकुम हो ॥ ५८ ॥
ॐ नमः
जिन-सत्-तमा-यस्-स्वाहा ।
भव सार्थक कर लीना ।
सुन सार्थ नाम सीना ।
नमः जिनप्-प्र-भवाय,
रट साध साँझ तीना ॥ ५९ ॥
ॐ नमः
जिन-प्र-भवा-यस्-स्वाहा ।
‘बनें मरहम मर हम’ भाखा ।
बना सर…गम औरन राखा ।
परम-जिनाय नमो नम:,
मंत्र रट तट दृग नम लाखा ॥ ६० ॥
ॐ नमः
परम-जिना-यस्-स्वाहा ।
सद्-गति पंचम हिस्से आई ।
जगह न दुर्गति किस्से पाई ।
जिन चहुँ-गति-दुखान्-तकाय नमः,
गूँज न यह किस दिश् से आई ॥ ६१ ॥
ॐ नमः
जिन चहुँ-गति-
दुखान्-तका-यस्-स्वाहा ।
पथ श्रेयस धर लीना ।
नि:श्रेयस कर कीना ।
जिनश्-श्रेष्ठाय नमः,
रट तामस छवि क्षीणा ॥ ६२ ॥
ॐ नमः
जिन-श्रेष्ठा-यस्-स्वाहा ।
भाव कहाँ खोटे ।
और देव छोटे ।
जिन-ज्येष्ठाय नमः,
स्वर नभ फिर लौटे ॥ ६३ ॥
ॐ नमः
जिन-ज्येष्ठा-यस्-स्वाहा ।
मुख-प्रमुख देवा ।
सुदृग दृग रेवा ।
नमः जिन-मुखाय,
दुख विमुख सेवा ॥ ६४ ॥
ॐ नमः
जिन-मुखा-यस्-स्वाहा ।
अग्र सर्व प्रथम ।
मर्त्य, पताल, खम् ।
जिनाग्राय नमः,
सिध सर्वार्थ रम ॥ ६५ ॥
ॐ नमः
जिनाग्रा-यस्-स्वाहा ।
चतुष्टय अनन्त ।
श्री-लक्ष्मी वन्त ।
श्री-जिनाय नमः,
मनो-काम मन्त्र ॥ ६६ ॥
ॐ नमः
श्री-जिना-यस्-स्वाहा ।
वैभव समशरण अहा ।
ढिग ब्रम, हरिहरण कहाँ ।
श्री जिनोत्-तमाय नमः,
कल-जुग इक शरण रहा ॥ ६७ ॥
ॐ नमः
जिनोत्-तमा-यस्-स्वाहा ।
मुनि वृन्दा भजते संध्या ।
बिन संधा जपते संध्या ।
जिन-वृन्दा-रकाय नमः,
हित नन्दा, रटते संध्या ॥ ६८ ॥
ॐ नमः
जिन-वृन्दा-रका-यस्-स्वाहा ।
अरि एक न आठों क्षय ।
राखी आँखों में दय ।
श्री अरि-जिताय नमः,
रट तट हाथों में तय ॥ ६९ ॥
ॐ नमः
अरि-जिता-यस्-स्वाहा ।
कभी ना खोते आपा ।
विघ्न-संकट दल काँपा ।
नमः श्री निर्-विघ्नाय,
रटा दुख रस्ता नापा ॥ ७० ॥
ॐ नमः
निर्-विघ्ना-यस्-स्वाहा ।
राग, द्वेष तर-बतर न खींसा ।
छूटा द्रव्य कर्म-नो पीछा ।
नमो नमः श्री श्री वि-रजसे,
मन्तर सिद्ध जपो निशिदीसा ॥ ७१ ॥
ॐ नमः
वि-रजसे-स्वाहा ।
हुये तुरन्त निष्-कषाय ।
सुना-सुगंध नृ-पर्याय ।
नमः निरस्त-मत्-सराय,
रटा समस्त दुख विलाय ॥ ७२ ॥
ॐ नमः
निरस्त-मत्-सरा-यस्-स्वाहा ।
रज कर्म उड़ी ।
निधि नन्त जुड़ी ।
शुद्धाय नमः, शुद्धाय नमः,
रट लागी, बन चाली बिगड़ी ॥ ७३ ॥
ॐ नमः
शुद्धा-यस्-स्वाहा ।
केल सहेल न रंजन ।
तेल फुलेल न अंजन ।
श्री निरंजनाय नमः,
चेल झमेल विभंजन ॥ ७४ ॥
ॐ नमः
निरंजना-यस्-स्वाहा ।
अब न कभी कर्मों से जुड़ना ।
गुण धर्मों से अब न विछुड़ना ।
श्री कर्म-विना-शकाय नमः,
हित सुमरण, यह मंत्र सुमरना ॥ ७५ ॥
ॐ नमः
कर्म-विना-शका-यस्-स्वाहा ।
घात लगाना छोड़ी कब से ।
जगन्-नाथ बेजोड़ी सबसे ।
घाति-कर्मान्-तकाय नमः,
जप मन ! बचने पल अब तब से ॥ ७६ ॥
ॐ नमः
घाति-कर्मान्-तका-यस्-स्वाहा ।
बैठे न डाल काटा ।
चमचम चमके माथा ।
जिन-दीप-तये नमः,
रट दाता सुख साता ॥ ७७ ॥
ॐ नमः
जिन-दीप-तये-स्वाहा ।
माँग क्षमा किया क्षमा ।
रीझ चली ज्ञान रमा ।
कर्म-मर्म-भिदे नमः,
रटा धन्य पुण्य जमा ॥ ७८ ॥
ॐ नमः
कर्म-मर्म-भिदे-स्वाहा ।
छैय्या दे चाले घनी ।
ना देखा निर्धन धनी ।
श्री अनु-दयाय नमः,
जप मन ! लख नासा अणी ॥ ७९ ॥
ॐ नमः
अनु-दया-यस्-स्वाहा ।
दत्तक जान कषाय नशाया ।
औरस पुत्र धर्म अपनाया ।
श्री श्री वीतरागाय नमः,
मन्तर छू, छू-मन्तर माया ॥ ८० ॥
ॐ नमः
वीत-रागा-यस्-स्वाहा ।
झिर भीतर फूटी ।
वेदन क्षुध् झूठी ।
अक्षु-धाय नमः,
रटा स्वानु-भूती ॥ ८१ ॥
ॐ नमः
अक्षु-धा-यस्-स्वाहा ।
राग-द्वेष जीते ।
भाव क्लेश रीते ।
अद्वे-षाय नमः,
भा विशेष तीते ॥ ८२ ॥
ॐ नमः
अद्वे-षा-यस्-स्वाहा ।
हट मोहन मुखड़ा ।
भट मोहन उखड़ा ।
निर्मोहाय नमः,
रट मोचन दुखड़ा ॥ ८३ ॥
ॐ नमः
निर्मोहा-यस्-स्वाहा ।
कोश सु-‘भी’ जेते ।
दोष सभी मेंटे ।
निर्दोषाय नमः,
रट सुरभी भेंटे ॥ ८४ ॥
ॐ नमः
निर्दोषा-यस्-स्वाहा ।
टूक जन्म श्रृंखला ।
गुम कहीं मृत्यु जरा ।
अ-गदाय नमो नमः,
लग लगन निराकुला ॥ ८५ ॥
ॐ नमः
अ-गदा-यस्-स्वाहा ।
ममता चित कोने चार ।
समता-सत आखें चार ।
निर्-ममत्वाय नमः,
रमता रट बेढ़ा पार ॥ ८६ ॥
ॐ नमः
निर्-ममत्वा-यस्-स्वाहा ।
लाभ की गति अगली लोभा ।
बढ़ाई वन यौवन शोभा ।
वीत-तृष्णाय नमो नमः,
मंत्र जप, थमे मनस् क्षोभा ॥ ८७ ॥
ॐ नमः
वीत-तृष्णा-यस्-स्वाहा ।
राग रंग क्षीणा ।
त्याग संग कीना ।
असङ्-गाय नमः,
जाग संध्य तीना ॥ ८८ ॥
ॐ नमः
असङ्-गा-यस्-स्वाहा ।
डराये ना, ना डराया ।
लिया दीप, न तम भगाया ।
श्री श्री निर्-भयाय नम:,
‘ज़ुबाँ-राखा’ तीर आया ॥ ८९ ॥
ॐ नमः
निर्-भया-यस्-स्वाहा ।
स्वप्न थे जो पूर्ण करने ।
गोद निद्रा लगे तजने ।
नमः श्री श्री अस्वप्-नाय,
मंत्र साधो साध सपने ॥ ९० ॥
ॐ नमः
अस्वप्-ना-यस्-स्वाहा ।
श्रम कहाँ जरूरी ।
पाई कस्तूरी ।
निःश्रमाय नमः,
रट आशा पूरी ॥ ९१ ॥
ॐ नमः
निःश्रमा-यस्-स्वाहा ।
जान के ‘विष…मय’ छोड़ा ।
लोहु दौड़ा रग धौरा ।
वीत-विस्मयाय नम:,
मंत्र जप हटके थोड़ा ॥ ९२ ॥
ॐ नमः
वीत-विस्मया-यस्-स्वाहा ।
घी दूध ना पुनः ।
धी मूढ़ ना चुना ।
अजन्मने नमः,
मन साध साधना ॥ ९३ ॥
ॐ नमः
अजन्मने-स्वाहा ।
प्रशय संशय हित जरा ना ।
ज्ञान में झलके जहाना ।
नमः श्री श्री निःसं-शयाय,
जपो छू लो आसमाना ॥ ९४ ॥
ॐ नमः
निःसं-शया-यस्-स्वाहा ।
नाहीं जरा जरा भी ।
शाही गुण बढ़ भा भी ।
श्री निर्जराय नमः,
राही ! रीझी ‘माँ-भी’ ॥ ९५ ॥
ॐ नमः
निर्जरा-यस्-स्वाहा ।
अवतरण नहीं ।
अब मरण नहीं ।
अमराय नमः,
भवि ! शरण यही ॥ ९६ ॥
ॐ नमः
अमरा-यस्-स्वाहा ।
सुरत राधिका शिव लागी ।
अरति बाधिका-दिव भागी ।
अरत्य-तीताय नमः,
जपत सिया पानी आगी ॥ ९७ ॥
ॐ नमः
अरत्य-तीता-यस्-स्वाहा ।
चोरी ज्ञान न होती ।
झोरी केवल ज्योती ।
श्री निश्-चिन्ताय नमः,
बोधि समाधि बपौती ॥ ९८ ॥
ॐ नमः
निश्-चिन्ता-यस्-स्वाहा ।
आगे विष-विषयन क्या देखा ।
तज, साध एक पद शिव टेका ।
श्री श्री निर्-वि-षयाय नमः,
जप चीर बढ़ा सत अभिलेखा ॥ ९९ ॥
ॐ नमः
निर्-वि-षया-यस्-स्वाहा ।
त्रैसठ सब कर्म प्रकृति न्यारीं ।
ध्यानानल शेष प्रकृति जारीं ।
श्री स्वामि त्रि-षष्टि-जिते नमः,
जप मन्त्र शक्ति-कालीं हारीं ॥ १०० ॥
ॐ नमः
त्रि-षष्टि-जिते-स्वाहा ।
आतम ज्ञानी जग जाना ।
पाया, जो पाना ठाना ।
श्री श्री सर्वज्ञाय नमः,
सुमरण दे फल मनमाना ॥ १०१ ॥
ॐ नमः
सर्वज्ञा-यस्-स्वाहा ।
विद वेद विधाता तुम ।
गत श्वेद सजाता तुम ।
श्री सर्व-विदे नमः,
रत खेद-असाता गुम ॥ १०२ ॥
ॐ नमः
सर्व-विदे-स्वाहा ।
दिख चला जगत सभी ।
सुख झला तुरत अभी ।
सर्व-दर्-शिने नमः,
रुख धरा न रत कभी ॥ १०३ ॥
ॐ नमः
सर्व-दर्-शिने-स्वाहा ।
सब लोका-लोक दिखाया है ।
कब, क्रोध, लोभ, मद, माया है ।
श्री श्री सर्वा-वलोकाय नमः,
सुमरत मुँह माँगा पाया है ॥ १०४ ॥
ॐ नमः
सर्वा-वलोका-यस्-स्वाहा ।
मोहन अनन्त अबकी प्रहार ।
शोभन अनन्त गुण आँख चार ।
श्री अनन्त-विक्रमाय नमः,
रट मंत्र सजल अनगिनत पार ॥ १०५ ॥
ॐ नमः
अनन्त-विक्रमा-यस्-स्वाहा ।
सीपी मुक्ता फल पाई है ।
तप किया, न शक्ति छुपाई है ।
श्री श्री अनन्त-वीर्याय नमः
सुमरत खुशी चेहरे छाई है ॥ १०६ ॥
ॐ नमः
अनन्त-वीर्या-यस्-स्वाहा ।
सौख्य निराकुल नन्त ।
पतझड़ भले बसन्त ॥
नमः अनन्त-सुखाय ।
मन्त्र विभञ्ज कषाय ॥ १०७ ॥
ॐ नमः
अनन्त-सुखा-यस्-स्वाहा ।
सौख्य न पर में, मुख मोड़ा ।
मोख पलक में, सुख कोरा ।
जप अनन्त-सौख्याय नमः,
तोड़ पलक में दुख घोरा ॥ १०८ ॥
ॐ नमः
अनन्त-सौख्या-यस्-स्वाहा ।
ज्ञान कब हल्का है ।
चराचर झलका है ।
विश्व-ज्ञानाय नमः,
टूक भव फिरका है ॥ १०९ ॥
ॐ नमः
विश्व-ज्ञाना-यस्-स्वाहा ।
वि-विशेष श्व-कल देखा ।
छव बढ़ चढ़ के शशि लेखा ।
विश्व-दर्-शिने नमो नमः,
सिध सर्वार्थ मन्त्र एका ॥ ११० ॥
ॐ नमः
विश्व-दर्-शिने-स्वाहा ।
जेते अर्थ-पदार्थ जहाना ।
युगपत् झलकें केवल ज्ञाना ।
मंत्र नमः अखि-लार्थ-दर्शिने,
रटते मिटते विकल्प नाना ॥ १११ ॥
ॐ नमः
अखि-लार्थ-दर्शिने-स्वाहा ।
रोया हँसा न दर्पण है ।
दर्पण वत् चिति झलकन है ।
नमः निष्-पक्ष-दर्श-नाय,
चरणन सिद्ध समर्पण है ॥ ११२ ॥
ॐ नमः
निष्-पक्ष-दर्श-ना-यस्-स्वाहा ।
चक्षु यानी आँखें ।
विश्व भीतर राखें ।
विश्व-चक्षुषे नमः,
अमृत हटके चाखें ॥ ११३ ॥
ॐ नमः
विश्व-चक्षुषे-स्वाहा ।
अशेष यानी सब का सब ।
झलके आप ज्ञान में अब ।
श्री श्री अशेष-विदे नमः,
हित सुमरण सुमरूँ जब-तब ॥ ११४ ॥
ॐ नमः
अशेष-विदे-स्वाहा ।
आनन आप राज खोले ।
आन…न आनंदित बोले ।
‘रे मन, आनन्दाय नमः,
ले मनके पल पल गो ले ॥ ११५ ॥
ॐ नमः
आनन्दा-यस्-स्वाहा ।
जान छोड़े संयोग ।
जुड़े क्यों कर दुख जोग ।
सदा-नन्दाय नमः,
जपा भागे-भव रोग ॥ ११६ ॥
ॐ नमः
सदा-नन्दा-यस्-स्वाहा ।
चढ़ सूरज दिन, साँझ ढ़ले ।
उदित आप जश किसे खले ।
श्री श्री सदो-दयाय नमः,
धन ! मुख जिस यह जाप चले ॥ ११७ ॥
ॐ नमः
सदो-दया-यस्-स्वाहा ।
चन्द्र कला सम, कम-बढ़ ना ।
फूटा अविरल सुख झरना ।
श्री नित्या-नन्दाय नमः,
गूँज पताल धरा-गगना ॥ ११८ ॥
ॐ नमः
नित्या-नन्दा-यस्-स्वाहा ।
न सुख चक्री आगे ।
न सुख शक्री लागे ।
परा-नन्दाय नमः,
जपा फिक्री भागे ॥ ११९ ॥
ॐ नमः
परा-नन्दा-यस्-स्वाहा ।
छू रहे हद सुख की ।
बड़ा कुछ कद अबकी ।
महा-नन्दाय नमः,
जपा लागी डुबकी ॥ १२० ॥
ॐ नमः
महा-नन्दा-यस्-स्वाहा ।
है पर में आनन्द कहाँ ? ।
अन्दर है आनंद अहा ।
श्री परमा-नन्दाय नमः,
जप ‘रे मन आनन्द महा ॥ १२१ ॥
ॐ नमः
परमा-नन्दा-यस्-स्वाहा ।
उदय परा-उत्कृष्ट अहो ।
काल नन्त दुख कष्ट न हो ।
श्री श्री परो-दयाय नमः,
आस पास इस मन्त्र रहो ॥ १२२ ॥
ॐ नमः
परो-दया-यस्-स्वाहा ।
पौरुस अनदेखा ।
औजस धन ! लेखा ।
परमौ-जसे नमः,
चौदस जप एका ॥ १२३ ॥
ॐ नमः
परमौ-जसे-स्वाहा ।
दिव्य धुन, अनेक हो ।
तेज पुंज एक हो ।
परम-तेजसे नमः,
नित् नमोऽस्तु ते प्रभो ! ॥ १२४ ॥
ॐ नमः
परम-तेजसे-स्वाहा ।
लगा पता, लगे पते ।
परम धाम जिन मते ।
परम-धाम्ने नमः,
प्रभो ! नित् नमोऽस्तु ते ॥ १२५ ॥
ॐ नमः
परम-धाम्ने-स्वाहा ।
यादें शेष कषाय ।
धन ! मानस पर्याय ॥
नमः परम-हंसाय ।
जयतु जयतु जिनराय ॥ १२६ ॥
ॐ नमः
परम-हंसा-यस्-स्वाहा ।
अक्ष यानि आत्मा के द्वारा ।
साक्षात् देख रहे जग सारा ।
नमो नमः प्रत्याक्षग्-ज्ञात्रे,
जपा मंत्र टूकन भव कारा ॥ १२७ ॥
ॐ नमः
प्रत्याक्ष-ज्ञात्रे-स्वाहा ।
गुण नन्त राश ।
खुद का प्रकाश ।
ज्यो-तिषे नमः,
विश्वास आश ॥ १२८ ॥
ॐ नमः
ज्यो-तिषे-स्वाहा ।
छोड़ कर अनेक को ।
दौड़ साध एक को ।
परम-ब्रह्मणे नमः,
सुख अबाध लेख भो ! ॥ १२९ ॥
ॐ नमः
परम-ब्रह्मणे-स्वाहा ।
प्रकटा ‘दिया’ रहस ।
विघटा लिया तमस् ।
नमः परम-रहसे,
रटा ‘कि जिया हरष ॥ १३० ॥
ॐ नमः
परम-रहसे-स्वाहा ।
हस्त आमलक भाँती ।
दुनिया सहज दिखाती ।
प्रत्यक्षात्मने नमः,
जपो बने दिन राती ॥ १३१ ॥
ॐ नमः
प्रत्यक्षात्मने-स्वाहा ।
क्रोध से मुख मोड़ा ।
बोध जुड़ने दौड़ा ।
प्रबो-धात्मने नमः,
जपो भी मन ! थोड़ा ॥ १३२ ॥
ॐ नमः
प्रबो-धात्मने-स्वाहा ।
धार महा व्रत सखे ! ।
पार धार पद रखे ।
मंत्र नमः महात्मने,
आँख चार पथ दिखे ॥ १३३ ॥
ॐ नमः
महात्मने-स्वाहा ।
तन परमौदारिक भी घाता ।
दिव्य परम आतम अब नाता ।
नमो नमः आत्म-महो-दयाय,
जाप सिवाय कौन जग त्राता ॥ १३४ ॥
ॐ नमः
आत्म-महो-दया-यस्-स्वाहा ।
पर परखा न रमे ।
हिल…ना सुना थमे ।
परमात्मने नमः,
ससूत्र सुई न गुमे ॥ १३५ ॥
ॐ नमः
परमात्मने-स्वाहा ।
छोड़ा प्रश्न उठाना ।
कोरा-पन दीवाना ।
प्रशांतात्मने नमः,
सुमरण प्रद वरदाना ॥ १३६ ॥
ॐ नमः
प्रशांतात्मने-स्वाहा ।
परा यानि दूजे ।
धरा व्योम पूजे ।
परात्मने नमः,
कहाँ न जप गूँजे ॥ १३७ ॥
ॐ नमः
परात्मने-स्वाहा ।
धन ! चुक चाली देह सराया ।
आत्म निवासस्-थान बनाया ।
नमो नमः आत्म-निके-तनाय,
समय निकाल जपो ‘रे भाया ॥ १३८ ॥
ॐ नमः
आत्म-निके-तना-यस्-स्वाहा ।
इष्ट परम पद में ।
सिद्ध कृपण मद में ।
परमेष्-ठिने नमः,
जप जागृत-निंद में ॥ १३९ ॥
ॐ नमः
परमेष्-ठिने-स्वाहा ।
पूजित शत इन्दर ।
छव सत्, शिव, सुन्दर ।
महि-तात्मने नमः,
जप अन्दर अन्दर ॥ १४० ॥
ॐ नमः
महि-तात्मने-स्वाहा ।
खेद-घृणा खोई ।
केल जहाँ-दोई ।
श्रेष्ठात्-मने नमः,
चेत न वन-रोई ॥ १४१ ॥
ॐ नमः
श्रेष्ठात्-मने-स्वाहा ।
उर विदेह नेह धार ।
नेह देह छोड़-छाड़ ।
नमः स्वात्म-निष्-ठिताय,
नेत्र मेह होड़ पार ॥ १४२ ॥
ॐ नमः
स्वात्म-निष्-ठिता-यस्-स्वाहा ।
हो अदम्य साहसी ।
रमण ब्रह्म धस वसी ।
ब्रह्म-निष्ठाय नमः,
जपो मन दिवा-निशी ॥ १४३ ॥
ॐ नमः
ब्रह्म-निष्ठा-यस्-स्वाहा ।
हाथ जोड़कर खड़े ।
इन्द्र सब बड़े बड़े ।
नमः महा-जेष्ठाय,
जपत, विपत डग भरे ॥ १४४ ॥
ॐ नमः
महा-जेष्ठा-यस्-स्वाहा ।
मूढ़ता बिछुड़ चले ।
दृग अमूढ़ जुड़ चले ।
नमः निरू-ढात्-मने,
जप विमूढ़ता टले ॥ १४५ ॥
ॐ नमः
निरू-ढात्-मने-स्वाहा ।
दृढ़ आत्म भावना ।
फल आत्म साधना ।
सु-दृढ़ात्-मने नमः,
रट, हट विराधना ॥ १४६ ॥
ॐ नमः
दृढ़ात्-मने-स्वाहा ।
एक आतम विज्ञा ।
कहे जग सर्वज्ञा ।
एक-विद्याय नमः,
जपो मन, हित प्रज्ञा ॥ १४७ ॥
ॐ नमः
एक-विद्या-यस्-स्वाहा ।
चरण खेलीं विद्या ।
तर अकेली अद्या ।
महा-विद्याय नमः,
क्षत अंधेरी सद्या ॥ १४८ ॥
ॐ नमः
महा-विद्या-यस्-स्वाहा ।
पद ईश्वर बढ़ पाया है ।
अरिहंतों ने ध्याया है ।
महा-पदेश्वराय नमः,
मन्तर अन्तर छाया है ॥ १४९ ॥
ॐ नमः
महा-पदेश्वरा-यस्-स्वाहा ।
अर्हत् सिद्ध साधु सारे ।
आत्म-ब्रह्म निध रखवाले ।
पंच-ब्रह्मणे नमो नमः,
जपो चुनर टकने तारे ॥ १५० ॥
ॐ नमः
पंच-ब्रह्मणे-स्वाहा ।
विधा मोखी पाते ।
तुम्हें जोगी ध्याते ।
सर्व-ध्यानाय नमः,
जपा बोधी नाते ॥ १५१ ॥
ॐ नमः
सर्व-ध्याना-यस्-स्वाहा ।
सर्व विद्या जितनी जगती ।
आन चरणन करतीं भगती ।
सर्व-विद्येश्-वराय नमः,
जाप जप हाथ सुगति लगती ॥ १५२ ॥
ॐ नमः
सर्व-विद्येश्-वरा-यस्-स्वाहा ।
रोक लोभा ।
लोक शोभा ।
शुचये नमः,
धोक दो, भा ॥ १५३ ॥
ॐ नमः
शुचये-स्वाहा ।
देव दिव नाम का शरीर ।
माल मुरझा कहे अखीर ।
नमः श्री अनन्त-दीप्तये,
जाप जप नाप व्योम चीर ॥ १५४ ॥
ॐ नमः
अनन्त-दीप्तये-स्वाहा ।
लग कतार गुण खड़े ।
लाँघने भु…वन बढ़े ।
अनन्-तात्मने नमः,
जपा कर्म रज उड़े ॥ १५५ ॥
ॐ नमः
अनन्-तात्मने-स्वाहा ।
भक्ति पन्थ अपनाकर ।
शक्ति वन्त सपना वर ।
नमः अनन्त-शक्तये,
मुक्ति कन्त जपना भर ॥ १५६ ॥
ॐ नमः
अनन्त-शक्तये-स्वाहा ।
मिथ्यात्व अनन्त ।
हन्त सुदृग वन्त ।
अनन्त-दृगे नमः,
सुख अबाध मन्त्र ॥ १५७ ॥
ॐ नमः
अनन्त-दृगे-स्वाहा ।
धी-धिया शक्ति तुम अपार अब ।
बल भुजा सिन्धु कहो पार कब ।
नमः श्री अनन्त-धी-शक्तये,
सुमर उतर चला सिर भार सब ॥ १५८ ॥
ॐ नमः
अनन्त-धी-शक्तये-स्वाहा ।
एक ईश ! चित्-चैतन्या ।
कब उनीस चारित धन्या ।
नमः अनन्त-चिदे-शाय,
विनत शीष पावत पुण्या ॥ १५९ ॥
ॐ नमः
अनन्त-चिदे-शा-यस्-स्वाहा ।
मुद-प्रमुदित एका ।
हत प्रभ शश-लेखा ।
नमः अनन्त-मुदे,
रट तट अभि-लेखा ॥ १६० ॥
ॐ नमः
अनन्त-मुदे-स्वाहा ।
सदा सर्वदा प्रकाश ।
स्वात्म रता कर्म नाश ।
नमः सदा-प्र-काशाय,
मुदा जपा पूर्ण आश ॥ १६१ ॥
ॐ नमः
सदा-प्र-काशा-यस्-स्वाहा ।
थी जितनी ऊंचाई पा ली ।
परिणत गोरी, तनिक न काली ।
श्री सर्वार्थ-सिद्धे-भ्यो नमः,
जपत सवाली तुरत दिवाली ॥ १६२ ॥
ॐ नमः
सर्वार्थ-सिद्धे-भ्यो-स्वाहा ।
अक्ष यानि आतम के द्वारा ।
साक्षात् देख चले जग सारा ।
नमो नमः साक्षात्-कारिणे,
मंत्र जपा दुख नौ दो ग्यारा ॥ १६३ ॥
ॐ नमः
साक्षात्-कारिणे-स्वाहा ।
समग्र जितनी भी हैं ऋद्धी ।
रींझीं सब सींझीं सब सिद्धी ।
श्री श्री समग्र-ऋद्धये नमः,
मन्तर जपत भगत सब गृद्धी ॥ १६४ ॥
ॐ नमः
समग्र-ऋद्धये-स्वाहा ।
कर्म आठ क्षीण सब ।
धर्म दश विहीन कब ।
कर्म-क्षीणाय नमः,
शर्म शिव लीन अब ॥ १६५ ॥
ॐ नमः
कर्म-क्षीणा-यस्-स्वाहा ।
जगत यानि ‘कि गतियाँ चार ।
कोने चारों चित् इस बार ।
नमो नमः जगत्-विध्वं-सिने,
मन्तर जपत खेव उस पार ॥ १६६ ॥
ॐ नमः
जगत्-विध्वं-सिने-स्वाहा ।
अलक्ष यानि अगम्य ।
व्यापार अक्ष जन्य ।
अलक्षात्-मने नमः,
रक्षक मंत्र अनन्य ॥ १६७ ॥
ॐ नमः
अलक्षात्-मने-स्वाहा ।
सिद्धालय से लौट न आते ।
देव-देव, गुरु, शास्त्र बताते ।
श्री श्री अचलस्-थानाय नमः,
सुमरत जिन गुण सम्पद नाते ॥ १६८ ॥
ॐ नमः
अचलस्-थाना-यस्-स्वाहा ।
एक अबकी साधा ।
टूक दो भव बाधा ।
निराबा-धाय नमः,
रट, निकट शिव राधा ॥ १६९ ॥
ॐ नमः
निराबा-धा-यस्-स्वाहा ।
तर्क शील सुरभी ‘रे वैना ।
फर्क झील न पनीले नैना ।
श्री श्री प्रतर्-क्यात्-मने नमः,
हित शिव स्वर्ग जपो दिन रैना ॥ १७० ॥
ॐ नमः
प्रतर्-क्यात्-मने-स्वाहा ।
धर्म दश चक्र-सेन ।
कर्म वश वक्र नैन ।
धर्म-चक्रिणे नमः,
शर्म शिव फक्र जैन ॥ १७१ ॥
ॐ नमः
धर्म-चक्रिणे-स्वाहा ।
विद यानी हैं जानन-हारे ।
जगत जगत इक राखन-बारे ।
जपो नमः श्री विदां-वराय,
साँझ सकारे क्या भुनसारे ॥ १७२ ॥
ॐ नमः
विदां-वरा-यस्-स्वाहा ।
भूत यानि चेतन ।
भले न शिव में तन ।
भूतात्-मने नमः,
जपत भगत मैं धन ! ॥ १७३ ॥
ॐ नमः
भूतात्-मने-स्वाहा ।
अगम वात ज्योति तुम ।
प्रथम पाँत मोति तुम ।
सहज-ज्योतिषे नमः,
महज प्राप्त कल्प द्रुम ॥ १७४ ॥
ॐ नमः
सहज-ज्योतिषे-स्वाहा ।
ज्योति ज्ञान केवली ।
चराचर धरा झली ।
विश्व-ज्योतिषे नमः,
जाप आप भाँ-‘त ‘री ॥ १७५ ॥
ॐ नमः
विश्व-ज्योतिषे-स्वाहा ।
अब न ज्ञान इन्द्रिय द्वारा ।
खुला नेत्र तीजा न्यारा ।
अतीन्-द्रियाय नमो नमः,
वश मन्तर जश ध्रुव तारा ॥ १७६ ॥
ॐ नमः
अतीन्-द्रिया-यस्-स्वाहा ।
सार्थ केवल ज्ञाना ।
आत्म के बल जाना ।
नमः श्री के-वलाय,
साध केवल ज्ञाना ॥ १७७ ॥
ॐ नमः
के-वला-यस्-स्वाहा ।
केवल ज्योत आप जग में ।
केवल पोत आप्त मग में ।
के-वला-वलो-काय नमः,
जाप बहे सा…धुन रग में ॥ १७८ ॥
ॐ नमः
के-वला-वलो-का-यस्-स्वाहा ।
साथ अलोक, लोक भी झलका ।
ज्ञान सार्थ केवल, दृग छलका ।
नमः लोका-लोका-वलो-काय,
धुन अन्तर्-मन हल्का फुल्का ॥ १७९ ॥
ॐ नमः
लोका-लोका-
वलो-का-यस्-स्वाहा ।
संवृत कुछ ना ।
विवृत सुलखना ।
नमः विवृताय,
‘इति-वृत’ लिखना ॥ १८० ॥
ॐ नमः
विवृता-यस्-स्वाहा ।
केवल एक आत्म ज्ञानी ।
सौख्य निराकुल लासानी ।
के-वल-अवबोधाय नमः,
जपत भगत सम-रस-सानी ॥ १८१ ॥
ॐ नमः
के-वल-अवबोधा-यस्-स्वाहा ।
व्यक्त न भाँत किसी ।
असक्त पाँत ऋषी ।
अव्यक्-ताय नम:,
जप उर साध वसी ॥ १८२ ॥
ॐ नमः
अव्यक्-ता-यस्-स्वाहा ।
शरण एक जग तीन ।
दृष्टि सम धनिक दीन ।
सर्व-शरणाय नमः,
जपत भगत निज लीन ॥ १८३ ॥
ॐ नमः
सर्व-शरणा-यस्-स्वाहा ।
आप विभव-वैभव न्यारा ।
अगम निकाय देव चारा ।
श्री अचिन्त्य-वि-भवाय नमः,
मंत्र एक तारण हारा ॥ १८४ ॥
ॐ नमः
अचिन्त्य-वि-भवा-यस्-स्वाहा ।
विश्व यानि त्रिभुवन ।
शरण भूत तुम धन ! ।
नमः विश्व-भूते,
बने जपो ‘रे मन ॥ १८५ ॥
ॐ नमः
विश्व-भूते-स्वाहा ।
विश्व कण कण दिख चाला ।
आपका ज्ञान निराला ।
विश्व-रूपात्-मने नमः,
जपो मन हित उद्धारा ॥ १८६ ॥
ॐ नमः
विश्व-रूपात्-मने-स्वाहा ।
तुम घट घट वासी ।
सिरपुर अधिशासी ।
विश्वात्-मने नमः,
जप कलि प्रभु आशी ॥ १८७ ॥
ॐ नमः
विश्वात्-मने-स्वाहा ।
देव सेव में खड़े ।
सर झुकाय, कर-जुड़े ॥
नमो विश्वतो-मुखाय ।
मंत्र, तंत्र इक सहाय ॥ १८८ ॥
ॐ नमः
विश्वतो-मुखा-यस्-स्वाहा ।
ज्ञान अश्व नापते ।
विश्व विश्व व्यापते ।
विश्व-व्यापिने नमः,
जाप पाप काँपते ॥ १८९ ॥
ॐ नमः
विश्व-व्यापिने-स्वाहा ।
स्वयं ज्योति पा रखी ।
आँख मोति पारखी ।
स्वयं-ज्योतिषे नमः,
साध हार ‘मार’ की ॥ १९० ॥
ॐ नमः
स्वयं-ज्योतिषे-स्वाहा ।
गुण अचिन्त्य आप के ।
फिरें विश्व नाप के ।
अचिन्-त्यात्-मने नम:,
धन्य ! भाव जाप के ॥ १९१ ॥
ॐ नमः
अचिन्-त्यात्-मने-स्वाहा ।
प्रभा वलय न्यारा ।
भान न शशि तारा ।
अमितप्-प्रभाय नमः,
रट, तट संसारा ॥ १९२ ॥
ॐ नमः
अमित-प्रभा-यस्-स्वाहा ।
धन्य ! बोध आपका ।
दिखा अन्त हाँप का ।
महा-बोधाय नमः,
मंत्र शत्रु पाप का ॥ १९३ ॥
ॐ नमः
महा-बोधा-यस्-स्वाहा ।
आठ कर्म घात के ।
पात्र मुक्ति घाट के ।
महा-वीर्याय नमः,
‘सिद्ध’ मन्त्र साध के ॥ १९४ ॥
ॐ नमः
महा-वीर्या-यस्-स्वाहा ।
लाभ लब्धि क्षायका ।
आभ सिद्धि ज्ञायका ।
महा-लाभाय नमः,
ध्या समृद्धि साधका ॥ १९५ ॥
ॐ नमः
महा-लाभा-यस्-स्वाहा ।
शिव पर्याय उदय ।
भाव कषाय विलय ।
महो-दयाय नमः,
मंत्र प्रदाय अभय ॥ १९६ ॥
ॐ नमः
महो-दया-यस्-स्वाहा ।
नित चित्-चेतन भोग समेता ।
यति पंचम गति अक्ष विजेता ।
श्री महा-भोग-सु-गतये नमः,
साधत साधक ऊरध रेता ॥ १९७ ॥
ॐ नमः
महा-भोग-सु-गतये-स्वाहा ।
सदा भोग आतमा ।
रोग शोक खातमा ।
महा-भोगाय नमः,
रट लगा भगा तमा ॥ १९८ ॥
ॐ नमः
महा-भोगा-यस्-स्वाहा ।
समय मात्र शिव लगे ।
अभय हाथ अरि भगे ।
अतुल-वीर्याय नमः,
साध भाग जगमगे ॥ १९९ ॥
ॐ नमः
अतुल-वीर्या-यस्-स्वाहा ।
यज्ञ संज्ञान दूज ।
अर्ह यानि संपूज ।
यज्ञार्-हाय नमः,
भू, पताल, खम् गूँज ॥ २०० ॥
ॐ नमः
यज्ञार्-हा-यस्-स्वाहा ।
भागत आते ।
भगत बुलाते ।
नमः भगवते,
आओ गाते ॥ २०१ ॥
ॐ नमः
भगवते-स्वाहा ।
अर यानि करम ।
भेजे दर-यम ।
अरहते नमः
ध्याओ दृग नम ॥ २०२ ॥
ॐ नमः
अरहते-स्वाहा ।
स्वातम आराधा ।
परमारथ साधा ।
नमः महार्-थाय,
रटन जगत्-त्राता ॥ २०३ ॥
ॐ नमः
महार्-था-यस्-स्वाहा ।
बना चकोरा मघवा-इन्दा ।
इक-टक तके आप मुख चन्दा ।
नमो नमः श्री मघवार्-चिताय,
जपत भगत हिस्से आनन्दा ॥ २०४ ॥
ॐ नमः
मघवार्-चिता-यस्-स्वाहा ।
सार्थ त्याग तप-याग सुना ज्यों ।
भागीरथ पुरुषार्थ चुना त्यों ।
नमः भूतार्थ यज्ञ-पुरुषाय,
सिद्ध मंत्र सुमरूँ न पुनः क्यों ॥ २०५ ॥
ॐ नमः
भूतार्थ यज्ञ-पुरुषा-यस्-स्वाहा ।
यज्ञ भूतार्थ रचा करुणा ।
सभा द्वादशी समव-शरणा ।
नमः श्री भूतार्थ-यज्ञाय,
मंत्र मेंटन जामन मरणा ॥ २०६ ॥
ॐ नमः
भूतार्थ-यज्ञा-यस्-स्वाहा ।
सत्य भूतार्थ साध लीना ।
तत्त्व परमार्थ हाथ कीना ।
नमः भूतार्थ-कृत-पुरुषाय,
साध सर्वार्थ रात दीना ॥ २०७ ॥
ॐ नमः
भूतार्थ-कृत-पुरुषा-यस्-स्वाहा ।
दुनिया पूजे ।
दरिया दूजे ।
नमः पूज्याय,
कुटिया गूँजे ॥ २०८ ॥
ॐ नमः
पूज्या-यस्-स्वाहा ।
भट्ट ! टिक सका न मोहा ।
लिया कर्मों से लोहा ।
नमः श्री भट्टा-रकाय,
जपो मन तज के द्रोहा ॥ २०९ ॥
ॐ नमः
भट्टा-रका-यस्-स्वाहा ।
वहाँ आप रहते ।
यहाँ आप रहते ।
रहते न कहाँ तुम,
नमः तत्र-भवते ॥ २१० ॥
ॐ नमः
तत्र-भवते-स्वाहा ।
सिद्धालय वसते ।
भक्त हृदय लसते ।
फबते न कहाँ तुम,
नमः अत्र-भवते ॥ २११ ॥
ॐ नमः
अत्र-भवते-स्वाहा ।
जगत पूजा ।
जयत गूँजा ।
नमः महते,
जपत दूजा ॥ २१२ ॥
ॐ नमः
महते-स्वाहा ।
महा विरति भजते ।
सुत सरसुति जजते ।
महार्-याय नमः,
साध जपति जँचते ॥ २१३ ॥
ॐ नमः
महार्-या-यस्-स्वाहा ।
तत्र यानि शिव लोक ।
अक्षर आयुष धोक ।
तत्रा-युषे नमः,
जपे बिना कब मोख ॥ २१४ ॥
ॐ नमः
तत्रा-युषे-स्वाहा ।
मरण रहित शिव-थान ।
वसत काल अप्रमाण ।
दीर्घायुषे नमः,
जप मन हित निर्वाण ॥ २१५ ॥
ॐ नमः
दीर्घायुषे-स्वाहा ।
अर्थ-तत्व वेदी ।
औरन नौ खे दी ।
नमः अर्थ-वाचे,
जप दुख हर लेती ॥ २१६ ॥
ॐ नमः
अर्थ-वाचे-स्वाहा ।
आराधक एका ।
साधक अभि-लेखा ।
आराध्याय नमः,
जप जश शश-लेखा ॥ २१७ ॥
ॐ नमः
आराध्या-यस्-स्वाहा ।
देवों के देव कहाते हैं ।
निर्ग्रन्थ साँझ गुण गाते हैं ।
श्री श्री परमा-राध्याय नमः,
जपते ही पाप बिलाते हैं ॥ २१८ ॥
ॐ नमः
परमा-राध्या-यस्-स्वाहा ।
देव स्वर्गों से आते हैं ।
पञ्च कल्याण मनाते हैं ।
नमः कल्याण-पूजिताय,
जपत रस्ते खुल जाते हैं ॥ २१९ ॥
ॐ नमः
कल्याण-पूजिता-यस्-स्वाहा ।
दर्शन विशुद्धि भावन भाई ।
झोरी आई शिव ठकुराई ।
दर्शन-विशुद्धि-गुण-उदै नमः,
जप वैभव कल्याणक दाई ॥ २२० ॥
ॐ नमः
दर्शन-विशुद्धि-
गुण-उदै-स्वाहा ।
सिर झुका इन्द्र खड़े ।
न छोटे बड़े-बड़े ।
सुरार्चिताय नमः,
जपत मद सिर न चढ़े ॥२२१ ॥
ॐ नमः
सुरार्चिता-यस्-स्वाहा ।
सुखदा ! सौख्य प्रदाता हो ।
दुखहा ! दुक्ख विघाता हो ।
श्री श्री सुख-दात्-मने नमः,
मुखिया मोख विधाता हो ॥ २२२ ॥
ॐ नमः
सुख-दात्-मने-स्वाहा ।
दिव्य दिव प्रधान ।
ओज दीप्तवान ।
दिवौजसे नमः,
धन ! क्षमा निधान ॥ २२३ ॥
ॐ नमः
दिवौजसे-स्वाहा ।
सेवित मात कुमारी छप्पन ।
गर्व गर्भ कल्याणक धन ! धन ! ।
नमः शची-सेवित-मातृकाय,
जपत भगत निस्वारथ क्षण-क्षण ॥ २२४ ॥
ॐ नमः
शची-सेवित-
मातृका-यस्-स्वाहा ।
रत्न अम्बर बरसे ।
गर्भ चिन माँ हरषे ।
रत्न-गर्भाय नमः,
जाप जप सुख बरसे ॥ २२५ ॥
ॐ नमः
रत्न-गर्भा-यस्-स्वाहा ।
गर्भ शोधन किरिया ।
निरत आ स्वर्ग-तिया ।
पूत-गर्भाय नमः,
जपो दिन रात जिया ॥ २२६ ॥
ॐ नमः
पूत-गर्भा-यस्-स्वाहा ।
माँ दीखे पिछली रात सुपन ।
धनपति कुबेर बरसात रतन ।
श्री गर्भोत्-सव-सहिताय नमः,
फल स्वप्न कह चले तात कथन ॥ २२७ ॥
ॐ नमः
गर्भोत्-सव-
सहिता-यस्-स्वाहा ।
गर्भ जन्म पल भले न संयम ।
पूज्य किन्तु नय भावी नैगम ।
नितुप-चारोप-चरिताय नमः,
साधो माटी-माधो हर दम ॥ २२८ ॥
ॐ नमः
नित्योप-चारोप-
चरिता-यस्-स्वाहा ।
पद्म-पद ! दृग रेवा ! ।
पद्य रचना देवा ।
नमः पद्-मप् प्रभवे,
रटत तैरत खेवा ॥ २२९ ॥
ॐ नमः
पद्-मप् प्रभवे-स्वाहा ।
मल नो-कर्म, कर्म धोया ।
पाया स्वानुभवन खोया ।
निष्-कलंकाय नमो नमः,
जपिया एक न ‘बन’ सोया ॥ २३० ॥
ॐ नमः
निष्-कलंका-यस्-स्वाहा ।
छोड़ा प्रभाव पर…भाव जान ।
जोड़ा स्वभाव वरदान मान ।
श्री श्री स्वयं-स्व-भावाय नमः,
यह मन्त्र न करता क्या प्रदान ॥ २३१ ॥
ॐ नमः
स्वयं-स्व-भावा-यस्-स्वाहा ।
सर्व सबके हित जनमे ।
झिर अमृत समव-शरण में ।
नमः सर्वीय-जन्-मने,
मंत्र गूँजे त्रिभुवन में ॥ २३२ ॥
ॐ नमः
सर्वीय-जन्-मने-स्वाहा ।
पुण्य सातिशय-वान् ।
करुणा क्षमा निधान ।
पुण्याङ्-गाय नमः,
जपत भगत भगवान् ॥ २३३ ॥
ॐ नमः
पुण्याङ्-गा-यस्-स्वाहा ।
सूर कतारा ।
हूर पछाड़ा ।
भास्वते नमः,
नूर निराला ॥ २३४ ॥
ॐ नमः
भास्वते-स्वाहा ।
ढिग देव ऋद्धि-वस बस जोना ।
पा तुम्हें न चाहें सुर खोना ।
श्री श्री अद्भुत-देवाय नमः,
जपिया सिध, ज्यों पाहन सोना ॥ २३५ ॥
ॐ नमः
अद्भुत-देवा-यस्-स्वाहा ।
सम्भृत-सम्मानित जग सारे ।
झलका विश्व ज्ञान आहा ! ‘रे ।
श्री विश्व-ज्ञातृ-संभृते नमः,
मेंटत मंत्र भाव मन काले ॥ २३६ ॥
ॐ नमः
विश्व-ज्ञातृ-संभृते-स्वाहा ।
देवता इक जग में ।
रेव-गंगा दृग में ।
विश्व-देवाय नमः,
कलेवा शिव मग में ॥ २३७ ॥
ॐ नमः
विश्व-देवा-यस्-स्वाहा ।
सृष्टि यानि भव संसार ।
अब ना भ्रमण बेड़ा पार ।
नमः सृष्टि-निर्-वृत्ताय,
जाप स्वर्ग शिव दातार ॥ २३८ ॥
ॐ नमः
सृष्टि-निर्-वृत्ता-यस्-स्वाहा ।
देखे इन्द्र बना दृग सहसा ।
ताण्डव नृत्य करे चिर हरषा ।
नमः सहस्राक्ष-दृगुत्-सवाय,
सुमरूँ सिद्ध, धोक दे सिरसा ॥ २३९ ॥
ॐ नमः
सहस्राक्ष-दृगुत्-
सवा-यस्-स्वाहा ।
सर्व शक्ति मान तुम ।
गर्व-इति ! गुमान गुम ।
सर्व-शक्तये नमः,
जप भगत समान तुम ॥ २४० ॥
ॐ नमः
सर्व-शक्तये-स्वाहा ।
शच-पत बिठा इरावत हाथी ।
मेर न्हवन उत्सव खुद भाँती ।
नमः जिनै-रावता-सीनाय,
सुमरत शिव वधु भेजे पाती ॥ २४१ ॥
ॐ नमः
जिनै-रावता-
सीना-यस्-स्वाहा ।
चिरंजीवी देव सुरगण ।
खगाधिप यत ऋषि चारण ।
नमः हर्षा-कुलामर-खग-,
चा-रणार्षि-महोत्सवाय ।
विनत चरणन वाक्, मन, काय ॥ २४२ ॥
ॐ नमः
हर्षा-कुलामर-खग-
चा-रणार्षि-महोत्सवा-यस्-स्वाहा ।
व्यापक विष्णू ।
सार्थक जिष्णू ।
विष्णवे नमः,
साध सहिष्णू ॥ २४३ ॥
ॐ नमः
विष्णवे-स्वाहा ।
नमस्-नान-पीठ-,
यिता-दृश राजे ।
क्षीर सिन्ध धार ।
मेर-गिर पहाड़ ।
‘जनमत’ अभिषेक ।
भगवत जयकार ।
दिशा दश गाजे ।
नमस्-नान पीठ-,
यिता-दृश राजे ॥ २४४ ॥
ॐ नमः
स्नान पीठ-
यिता-दृश राजे-स्वाहा ।
घाट तीर्थ तुम तारत जन जन ।
धवल दुग्ध जल, स्वारथ बिन धन ! ।
सुतीर्थ वत् दुग्धाब्-धये नमः,
साधत साधत साधो सुमरण ॥ २४५ ॥
ॐ नमः
तीर्थ समान
दुग्धाब्-धये-स्वाहा ।
उत्सव इन्द्र क्या न्हवन सँजोंया ।
अपने ही पापों को धोया ।
श्रीस्-ना-नाम्बूस्-वा-वा-सवाय-,
नमः जपा पाया, निज खोया ॥ २४६ ॥
ॐ नमः
स्ना-नाम्बूस्-वा-
वा-सवा-यस्-स्वाहा ।
तुम आगे फीकी कस्तूरी ।
गंध न लागे चन्दन चूरी ।
गंध पवित्रित-त्रिलोकाय नमः,
सुमरत दिव शिव अधिक न दूरी ॥ २४७ ॥
ॐ नमः
गंध पवित्रित-
त्रिलोका-यस्-स्वाहा ।
सूक्ष्म थूल भेदता ।
ज्ञान आप देवता ! ।
वज्र सूचये नमः,
मंत्र तंत्र छेदता ॥ २४८ ॥
ॐ नमः
वज्र सूचये-स्वाहा ।
झिरे अलोलुपता ।
निरे योग गुप्ता ।
नमः शुचिस्-स्रवसे,
‘फिरे’ जप कुटिलता ॥ २४९ ॥
ॐ नमः
शुचि-स्रवसे-स्वाहा ।
पार धर्मार्थ काम मोखा ।
काम चुक चला, ‘योग’ रोधा ।
कृतार्थ कृत हस्ताय नमः,
जपत, खोटा सोना चोखा ॥ २५० ॥
ॐ नमः
कृतार्थ कृत हस्ता-यस्-स्वाहा ।
महा अर्घ
वन्दे तद्-गुण लब्-धये ।
जल, गंधाक्षत, फुलझड़ी ।
थाली घृत व्यंजन भरी ।
दीवा, सुरभी, फल नये ।
भेंटूँ चरण सिद्ध भगवन् ।
वन्दे तद्-गुण लब्-धये ।
हेत अखीर समाध मरण ।
पूजूँ चरण सिद्ध भगवन् ।
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
*जाप*
असि आ उसा
नमः
(मंत्र का 108 जाप करें।)
जयमाल
निर्-अंजन होना, पामर ।
ज्यों कंचन सोना पाथर ॥
औगुण शून शगुन राशी ।
जय-जयन्त सिरपुर-वासी ॥१॥
जिय भोगे फल कर्म स्वयं ।
शिव पहुँचे पल, कर्म खतम ॥
सिमरण बढ़ काबा-काशी ।
जय-जयन्त सिरपुर-वासी ॥२॥
ले रत्नत्रय तलवारी ।
पाप चित्त खाने चारी ॥
गुण अष्टक इक अधिशासी ।
जय-जयन्त सिरपुर-वासी ॥३॥
जान रहे युगपत् जगती ।
देख रहे युगपत् जग त्री ॥
सिध ‘शश’ दृग चकोर प्यासी ।
जय-जयन्त सिरपुर-वासी ॥४॥
लगा समय जा शिव लागे ।
नन्त आठ गुण कर आगे ॥
कर्म अघात प्रकृति नाशी ।
जय-जयन्त सिरपुर-वासी ॥५॥
दिन जैसा, वैसा राती ।
सुख सिद्धों का खुद भाँती ॥
भूख, प्यास, न श्वास खाँसी ।
जय-जयन्त सिरपुर-वासी ॥६॥
इन्द्रिय विषय भोग रीता ।
वीत-बाध उपमा-तीता ॥
सुख सिद्धों का अविनाशी ।
जय-जयन्त सिरपुर-वासी ॥७॥
शैय्या व्यर्थ न अलसाते ।
औषध व्यर्थ न कुम्हलाते ॥
निर्भर-आत्म व्यर्थ दासी ।
जय-जयन्त सिरपुर-वासी ॥८॥
भावी, भूत, वर्तमाना ।
दृग, वृत, ज्ञान सिद्ध नाना ॥
भक्त, मुझे वे दें आशी ।
जय-जयन्त सिरपुर-वासी ॥९॥
रत्नत्रय निधि, सद्गति हो ।
दुख क्षय, जिनगुण सम्पति दो ॥
सु…मरण साधूँ इति…हासी ।
जय-जयन्त सिरपुर-वासी ॥१०॥
ॐ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्हं
अ सि आ उ सा
अप्-प्रति-चक्रे फट्
वि-चक्राय झ्रौं झ्रौं नमः
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
*श्री सरसुति-मंत्र*
ॐ ह्रीम्
अर्हन् मुख कमल-वासिनि
पापात्म क्षयंकरि
श्रुत-ज्ञान
ज्वाला सहस्र प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति !
मत् पापम् हन हन दह दह
क्षाम् क्षीम् क्षूम् क्षौम् क्षः
क्षीरवर-धवले
अ-मृत-संभवे
वम् वम् हूम् फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।। १ ।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।। २ ।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।। ३ ।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।। ४ ।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
=दोहा=
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
कृपा ‘निराकुल’ आपकी,
बनी रहे निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
आरती
आओ भक्ता आओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।
दीवा घृत भर लाओ ‘रे ।
सिद्ध चक्र मण्डल विधान की ।
सिद्ध यन्त्र करुणा निधान की ।।
आरति कर हरषाओ ‘रे ।
आओ भक्ता आओ ‘रे ।।
दुखियारिन रानी मैना ।
चैन-करार न दिन-रैना ।
देख-देख पति की पीड़ा,
बस ढोले पानी नैना ।।१।।
जा पहुंची जिन मन्दरिया ।
दिखे साधु जिन मन-दरिया ।
मिल चाला कोई अपना,
झल चाला नयनन दरिया ।।२।।
अपना पुण्य करो गाढ़ा ।
मुनि बोले अशीष म्हारा ।
धारा सिद्ध-यंत्र ढारो,
कार्तिक, फागुन, आसाढ़ा ।।३।।
आया पर्व अठाई है ।
पूजन सिद्ध रचाई है ।
गन्धोदक ले सिर माथे,
कर्म निकाच विदाई है ।।४।।
पापोदय पलटी खाया ।
काम-देव कंचन काया ।
गूँजा ‘सति मैना सुन्दर’,
धरती-अम्बर जयकारा ।।५।।
मोती नयन झिराओ ‘रे ।
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ‘रे ।
मिलकर कीरति गाओ ‘रे ।
सिद्ध चक्र मण्डल विधान की ।
सिद्ध यन्त्र करुणा निधान की ।।
आरति कर हरषाओ ‘रे ।
अपना भाग जगाओ ‘रे ।।६।।
सर्व-विघ्न-शान्ति मंत्र
नमोर्-ऽहते भग-वते
प्र(क्)-क्षी-णाशेष दोष कल्-मषाय
दिव्य तेजो मूर्-तये
श्री शान्ति-नाथाय शान्ति-कराय
सर्व विघ्न(प्) प्र-णा-शनाय
सर्व रोगाप मृत्यु वि-ना-शनाय
सर्व पर कृच्-छु(द्)-द्रो-प(द्)-द्रव वि-ना-शनाय
सर्वा-रिष्ट शान्ति-कराय
ॐ ह्राम् ह्रीम् ह्रूम् ह्रौम् ह्रः
अ, सि, आ, उ, सा नमः
मम सर्व विघ्न शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्व रोगाप-मृत्यु शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्व पर कृच्-
छु(द्)-द्रो-प(द्)-द्रव शान्तिम्
कुरु कुरु
मम सर्वा-रिष्ट-शान्तिम्
कुरु कुरु
मे तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु
ते तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु
ते मे तुष्टिम् पुष्टिम् च कुरु कुरु
स्वाहा, स्वाहा, स्वाहा
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