मंगलाचरण
णमो अरिहंताणं,
णमो सिध्दाणं,
णमो आइरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्वसाहूणं.
एसो पंच णमोयारो सव्व पावप्पणा सणो ।
मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होइ मंगल ।।
विष से भरा विषय भोग को भोग रहा था मैं भोगी ।
जनम-मरण, भय रोग से, तडफ रहा था मैं वन योगी ॥
तीन रतन का त्रिफला पाकर, गुरू से मिला मुक्ति का वेग ।
ऐसे वैद्य गुरू, वैद्यराज को मेरा शत् शत् नमन हो स्वमेव ॥
“माता पिता से बढ़कर जग में कोई भगवान नहीं ।
माता पिता की सेवा से बढ़कर, जग में कोई काम नही ॥
माता पिता को जो दुख देता है, वो पाता सम्मान नहीं ।
माता पिता का जो करे अनादर, वो पापी है इन्सान नही ॥”
कहा जाता है दुनिया में तीन देव हैं ब्रह्मा, विष्णु महेश । लोग ब्रह्मा को जन्मदाता मानते हैं । इसलिए पूजते हैं, सृष्टि के रचयिता हैं । विष्णु को लोग पालक मानते हैं, वो पालन हारे है और महेश- संहारक हैं (दैत्योका संहारक) है । इसलिए लोग सिर झुकाते हैं । ब्रह्मा में विष्णु महेश, ब्रह्मा में विष्णु और विष्णु में महेश समा नहीं सकते हैं । लेकिन दुनिया में एक ऐसा तत्व है जिसमें ब्रह्मा भी है विष्णु भी है और महेश भी है, तीनो एकसाथ समाहित है – वो है माँ
माँ बच्चों को जन्म देती है जन्मदात्री है, इसलिए ब्रह्मा है ।
माँ संतान की पालक है, पालती है, पालनहार है इसलिए विष्णु है ।
माँ संतान को संस्कार देकर उद्धार करती है, कुसंस्कारों का संहारक है, नाश करने वाली है इसलिए महेश भी है इसलिए, माँ ब्रह्मा भी है, विष्णु भी है और महेश भी है ।
नौ माह नही सिर्फ, नौ घंटे तक ३ किलो का पत्थर बांधकर देखो तो पता चल जायेग कि माँ क्या होती है । माँ एक ऐसी बैद्य है जहाँ आप हर भावना और दुःख व्यक्त कर सकते हैं । और पिता एक ऐसा क्रेडिट कार्ड है जिसके पास बैलेन्स न होते हुये भी हमारे सपने पूरा करने की कोशिश करते हैं
“माँ बाप का दिल जीत लो कामयाब हो जाओगे ।
वरना सारी दुनिया को जीतकर भी हार जाओगे ॥
“गुरू का गौरव माँ का वैभव सबसे बड़ा अजूबा है ।
इस दुनिया में इन दोनो का रिश्ता बड़ा बडा अनूठा है ॥”
माँ का प्यार
“माँ हर तकलीफ और गम को, खुशियों से उठाती है ।
मरते दम तक बच्चों का, सदा वह साथ निभाती है ॥
बच्चे तो उसके जिगर के, टुकड़े होते हैं बन्धुओं ।
उसके लिए वह अपना सर्वस्व लुटाती है ॥”
माँ हर ………
खुद गीले में सोती है बच्चे को सूखें में सुलाती है ।
खुद भूखे रहकर भी बच्चे को खिलाती है ॥
माँ जैसा प्यार और कहाँ मिलता है बन्धुओं ।
उसके प्यार में भगवान की मोहब्बत झलक जाती है ॥
माँ हर………
तुम मानो या ना मानो हकीकत है यही बन्धूओं ।
माँ की खिदमत ही हमें जन्नत दिलाती है ॥
जो न माने इस बात को, वो नादान है बन्धुओ ।
नादानों की कश्ती तो हमेशा डूब जाती है ॥
माँ हर ………
भुला के नींद को अपनी, सुलाया सदा था हमको ।
गिरा के आँसुओ को अपने, हँसाया था हमको ॥
दर्द कभी न देना उन हस्तियों को बन्धुओ ।
खुदा (भगवान) ने माँ बाप बनाया था जिनको ॥
माँ हर ……..
“माता पिता से बढ़कर जग में कोई भगवान नहीं ।
चुका पाँऊ जो उनका ऋण इतना मैं धनवान नहीं ॥”
माँ जनक जननी का विशुद्ध वंश होने से सात स्थानों में, प्रथम स्थान सज्जाजित्व सम अंलकृत किया गया है ।
1) सज्जाजित्व २) सद्गृहित्व 3) परिवाज्रक पद ४) सुरेंद्र पद
5) साम्राज्यपद ६) अर्हतपद ७) निमार्ण
माँ बच्चों की प्रथम गुरू हुआ करती है, सच तो यह है कि माँ से जो शिक्षा मिलती है वह जीवन के अंत समय तक काम में आती है । माँ की शिक्षा से बडा ज्ञान किसी विश्वविद्यालय में भी प्राप्त नही हो सकता ।
“माँ के हृदय से बडा कोई आकाश नही होता ।
माँ की ममता से बड़ा कोई सागर नही होता ॥
कोई आये और ले ले माँ से शिक्षा क्यों कि ।
माँ से बड़ा दुनिया में कोई विद्यालय नही होता ॥
कहते हैं – भगवान न दिखाई देने वाले माता पिता होते है ।
किन्तु माता पिता तो दिखाई देने वाले भगवान होते हैं ॥
संस्कार का अर्थ होता है जिसके उत्पन्न होने पर पदार्थ किसी प्रयोजन के योग्य होता है । संस्कार वे क्रियायें है जो योग्यता प्रदान करती हैं । दुर्गुणों को दूर करके सदगुणों का रंग चढ़ाना ही संस्कार कहलाता है । याद रखे अच्छे देश की, समाज की सम्पति नैतिक, धार्मिक संस्कार है – न कि धन दौलत ।
बच्चों को धर्म के संस्कार पाठशाला भेजकर दिलायें ।
नारी का उत्कृष्ट रूप है, तो वो माँ, सबसे बड़ी दौलत है माँ ।
सबकुछ दुबारा मिल सकता है पर माँ एक बार ही मिलती है ।
भगवान नेमीनाथ के समवशरण में एक दिन नारायण श्रीकृष्णने भगवान नेमीनाथ
से पूछा- भगवन यह व्दारका जो कि देवों व्दारा रचित स्वर्णमयी ये ऐसी ही रहेगी या
इसका विनाश होगा । कृपया इसके बारे मे समाधान कर मेरी जिज्ञासा को शांत करने की दया करें ।
भगवान नेमीनाथ ने कहा- हे नारायण यह व्दारका आज से १२ वर्ष के पश्चात व्दीपायन मुनि के क्रोध के कारण जलकर राख हो जायेगी , उस क्रोध का कारण शराब (मदीरा) होगी जो कुछ यादवों व्दारा शराब के नशे में उपसर्ग करने से दीपायन मुनिकें तीव्र क्रोध से व्दारका जलकर राख हो जायेगी ।
तब नारायण श्रीकृष्ण ने कहा कि जिनको भी जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर अपना कल्याण करना हो वो जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण करें । यह सुनकर नारायण कृष्ण का पुत्र प्रद्युम्न कुमार दीक्षा की अनुमति लेने अपनी माँ रूकमणी के पास जाकर निवेदन किया – कि हे माँ, मैं संसार के दुःखो से मुक्त होने के लिए जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण करने जा रहा हूँ , कृपया मुझे आज्ञा दीजीये ।
रूकमणी ने कहाँ – नही बेटा नही, तुम मुझे कब तक रूलाओगे ? जन्म के बाद १६ वर्ष तक तुम्हारे विरह में रोती रही , अब फिर विरह से रूलाओगे ?
प्रद्युम्न ने कहा – कि हे माँ मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि तुम ही मेरी अंतिम माँ होगी । इसके बाद मैं किसी माँ को नही रूलाऊँगा । मैं दुबारा जन्म धारण नहीं करूंगा ।
नारी को ग्रन्थ भी कहा गया यदि उसे सही प्रकार से पढ़ा जाये तो जीवन सुधर जायेगा । जिस प्रकार ग्रन्थ में विश्व समाहित है, उसी प्रकार नारी में परिवार, देश, समाज, संतान का हित समाहित होता है ।
“नारी नारी न कहो नारी सुख की खान ।
नारी से तो उपजे हैं तीर्थंकर भगवान ॥”
नारी के तीन रूप बताये गये है १) लक्ष्मी, २) दुर्गा, ३) सरस्वती । नारी परिवार को सम्पन्न बनाने के लिए लक्ष्मी का रूप धारण कर संतान परिवार को उच्चस्तर तक पहुँचाती हैं। नारी परिवार को संतान को, सामाजिक कुरीतियों को ध्वस्त करने के लिए दुर्गा का रूप धारण कर परिवार को सुसंस्कारो से सुसंस्कारित करती है । नारी संतान को संस्कारित करने के लिए सरस्वती का रूप हो जाती है । प्रथम गुरू-माँ ही होती है, माँ प्रथम विद्यालय है ।
महात्मा गांधी जी शिक्षा के लिए विदेश जाना चाहते थे । गांधी जी माँ से अनुमति लेने के लिये माँ से कहा की मैं आगे की शिक्षा ग्रहन करने के लिए विदेश जाना चाहता हुँ । माँ को डर था की कहीं ये विदेश जाकर माँस, मदिरा, परस्त्री सेवन न करने लग जाये ।
इसलिये जैन मुनि वेचरजी के समक्ष ले जाकर (मांस, मदिरा, परस्त्री सेवन का त्याग) प्रतिज्ञा दिलाई , तब जाकर माँ ने गांधी जी को पढ़ाई के लिए विदेश की आज्ञा दी । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लडाई में जिन्होंने सत्य अहिंसा के बल पर भारत को सैकडों वर्षो की अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र कराया ।
माँ ही बच्चों को संस्कारित कराती है सदाचरण कर सच्चे पथ पर बढ़ाती है,
अपने बच्चों को बाँटल का नहीं, आँचल का दूध पिलाना चाहिये ।
अपने बच्चो को अंग्रेजी नहीं हिन्दी भाषा भी सिखाना चाहिये ।
दिन में तीन बार कोचिंग भले ही पढ़ाना बन्धुओं
लेकिन शाम को पाठशाला अवश्य भेजना चाहिये,
यदि आपका बच्चा संस्कारित हो जायेगा तो अंत समय में मंदिर लायेगा, गंदोधक लगायेगा, नमोकार मंत्र सुनायेगा । यदि अपना अंत अच्छा चाहते हो, कि हमें अंत समय मंदिर लायें, णमोकार मंत्र सुनायें तो पाठशाला भेजकर संस्कारित करायें ।
“तुम बच्चों को पाठशाला भेजकर, उनका उत्साह वर्धन करो ।
अभिषेक अष्टक सिखाकर , उसके जीवन का उत्थान करो ॥
ये बच्चे ही तुमको वृध्दावस्था में , मंदिर तक लेकर जायेंगे ।
ये आज के बच्चे ही भविष्य में जैन ध्वजा फहरायेंगे ” ॥
* माता तीन प्रकार की हुआ करती है । *
१) कुमाता २) सदसंस्कार विहीन माता ३) सदसंस्कारित माता
१) कुमाता – करोडो बच्चों की अपने बच्चियों/बच्चो की भ्रूण हत्या कर नारी को कंलकित करने वाली ‘कुमाता’ कहलाती है । ऐसी माँ नागिन से भी ज्यादा गिरी हुई है । कहा भी है मनुष्य की माँ से, यह सर्प की माँ, नागिन क्यों डर रही है ? प्रकृति की समरसता को नीरसता में बदलने का प्रश्न चिन्ह खडा कर रही है । ये लोग मुझे नागिन कहकर कुदृष्टि से देखते हैं और तो और मुझे घिनौनी दृष्टि से निर्लज्जता की श्रेणी में रखते हैं । पर इस मनुष्य की माँ के कुकृत्य पर कोई ठोस कदम नही उठाता है । अरे मैंने तो बच्चों को जन्म देने के बाद खाया पर इसने तो बच्चो को जन्म देने के पहले ही अपने बच्चों को खाया है । मेरे तो केवल दाँत ही जहरीले हैं पर इस मनुष्य की माँ के विचार तो विचार, कर्म भी जहरीले हैं । जो मातायें जन्म देने के पहले ही अपनी संतान को खा जाती है, ऐसी माताएं जघन्य कोटि की हैं, इन्हें माता कहना भी मातृत्व जैसे उत्तम पद को गाली देने जैसा हैं ।
२) सद्संस्कार विहीन माता – जो जननी सुत को जन्म देती है पर सुध (सद संस्कारों) को जन्म नही दे पाती अर्थात स्वयं धार्मिक नैतिक ज्ञान व संस्कारों से रहित पाश्चात्य कुसंस्करोंकी शिकार होने से जो अपना और अपने बच्चों का भी अधःपतन कर देती हैं वह संस्कार विहीन माता कहलाती है ।
मन का बोझ सहा नही जाता,
तन का बोझ भारी है ।
जो उम्र खेलने कुदने की थी,
उसकी क्या लाचारी है ।
जो पढ़ने लिखने की उम्र होती है वो बन्धुओं,
सामान बीनकर गुजारा किया, करते हैं बन्धुओं ।
आज उसकी ये लाचारी है, ये किस्मत की मारी है,
वाह रे मतलबी दुनिया तेरी ये कहानी है ।
ये दुनिया तो मानवता की प्यासी है,
वाह रे दुनिया तेरी यही कहानी है ।
३) सद् संस्कारित माता – जो जननी सुत को जन्म दे कर सद् सद्संस्कार को भी जन्म देती है वही माँ सद्संस्कार वान माता कहलाती है । जैसे – महावीर, राम, आचर्य कुन्द कुन्द, आचार्य शांतीसागर जी महाराज, आचर्य विद्यासागर जी महाराज जैसे महापुरूषोंकी मातायें । ऐसी नारियों में अनेक गुण होने से वह धरती पर भूषण स्वरूप सुशोभित होती हैं । नीतिकारों ने कहा है –
सतीत्वेन मतत्वेन, वृत्तेन विनयेनक ।
विवेकेन स्त्रिय: कश्चित दष्यति धरातलं ॥
अर्थात – नारी अपनी सतीत्व से अपने महत्व से, चरित्र से, विनय से इस वसुंधरा के लिये भूषण स्वरूप हैं । ऐसी नरियों को सरस्वती कहना उचित है । क्योंकि सरस्वती ग्रन्थ का अवतार है और ऐसी ग्रन्थ रूप सरस्वती अपनी सन्तान को ग्रन्थ से निर्ग्रंथ बनाती है । वे सारे सद्गुण जो इंसान को आम पुरूषों की भीड से निकालकर महापुरूष का दर्जा दिलाती है । वैदिक साहित्य में संस्कार की परिभाषा करते हुये कहा है –
संस्कारो नाम स भवति यस्मिन् जाते
पदार्थो भवति योग्यः कस्यचिदर्थस्य
अर्थात- संस्कार वह है जिसके होने से कोई पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य के लिए योग्य
होता है । तत्ववार्तिक के अनुसार -
योग्यतां पादधानाः किया: संस्कार:
अर्थात – संस्कार वह क्रिया है जो योग्यता प्रदान करती है।
शास्त्रों में – दोषं वयनं गुणाधानं च संस्कार
अर्थात- प्रकृतिगत दोषों को परिष्कृत करके व्यक्ति के आध्यात्मिक नैतिक गुणों का विकास एवं उसमें वृध्दि करना संस्कार है । संततिगत मैल धोना एंव सद्गुणों का नया रंग चढ़ाने का नाम संस्कार है – जिसके होने से पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य के लिए योग्य हो जाता है ।
संस्कारों के प्रकार – १) पूर्वगत संस्कार, २) जातिगत संस्कार,
३) माता पिता से प्राप्त संस्कार, ४) संगति
१) पूर्वगत संस्कार – पूर्व भव के संस्कार लेकर आता, वैसा ही संस्कार उस जीव पर
पडते हैं । आ. शांति सागर जी ने कहा पूर्वभव के मुनि संस्कारो के कारण मूलाचार पढे बिना चर्या की । कुणिक – राजा श्रोणिक, कुणिक का जीव श्रेणिक से पूर्व भव का बदला लिया ।
२) जातिगत संस्कार – निम्न जाति मांस मदिरा-हिंसादिक कार्य करता जातिगत
स्वभाव से वैसे संस्कार हो जाते हैं ।
पुरूखा भील, मृगसेन धीवर, सिंह – माँसभक्षण
३) माता पिता से प्राप्त संस्कार – एवं उनके अनुसार मीठा, कडवा, गाली गलौंच
आदि घर में जैसा देखा सुना वैसा संस्कार आना ।
आचार्य विद्यासागर , ज्ञानमति माताजी
४) संगति से प्राप्त संस्कार – इष्टोपदेश में आचार्य प्रवर पूज्यपादजी ने कहा है –
अज्ञानोपास्तिरज्ञानं, ज्ञानं ज्ञानि समाश्रयः ।
ददाति यत्तु यास्यास्ति, सुप्रसिद्धमिदं वचः ॥२३॥
वारिषेण, पुण्डाल – शराब की दुकान पर कोइ दूध पियेगा तो भी शराबी कहलायेगा । मुनि पायसागर – संगती कर लेने से कल्याण कर लिया ।
५) गर्भ के संस्कार – गर्भ में जीव जैसा सुनता है महसूस करता है ।
अभिमन्यु ने गर्भ में चक्रव्यूह में घुसना सीखा, निकलना नही सीख पाया ।
६) जन्म के संस्कार – जन्म के समय जैसे संस्कार मिलते हैं, वैसा बच्चा बन जाता है ।
७) बाल संस्कार – गुरूकुल में शिक्षा । मौजीबंधन । पाठशाला आदि से बच्चों को संस्कारित किया जाता है ।
८) गुरु से प्राप्त संस्कार – जीवन के ५ शून्य, गुरू के शिक्षा उपदेश से ऐसे संस्कार मिलते हैं कि जीव अपना कल्याण कर लेते हैं ।
माँ की ममता व माँ के प्रकार
स्पर्श तेरी ममता का, तन मन को झंकृत करता है ।
स्मरण तेरा मन भावन, माँ मन को पुलकित करता है ॥
माँ जीवन का पथ सदा अलोकित करते रहना ।
सदा सत्य पर चल सकूँ यह दुआँयें सदा देते रहना ॥
तेरी आँचल की छाया में ही, तेरी ममता का है साँया ।
सदा ही साँया साथ रहे ऐसा आशीष सदा है पाया ॥
तेरे दूध की कीमत ममता का कर्ज, मुझपर सदा है छाया ।
तेरे अरमानो को पूरा कर सकूँ, ऐसी लाज रखे यह काया ॥
१) माँ ने ४ बाते बेटे से कही
एक वृद्ध माँ थी, उसका बेटा अपने संस्कारों व जैनत्व से प्रभावित होकर गुरू द्वारा सन्मार्ग सुनकर उसको जैनेश्वरी दीक्षा के भाव हुये । उसने जाकर अपनी माँ से कहा माँ मैं अब संसार की असारता देखे चुका हूँ । अब मैं संयम धारण कर जैनश्वरी दीक्षा लेना चाहता हूँ । मुझे आज्ञा दिजीये । माँ ने कहा बेटा जाओ, मेरा परम आशीर्वाद है । मेरी वर्षो की कामना आज पूरी हो रही है । लेकिन दीक्षा लेने जा रहे हो अच्छी तरह सोच लो, एक बार फिर सोच लो । ये काँटो भरा मार्ग है, तलवार की धार पर चढ़ने के समान है । संसार मार्ग में फिसल जाओ तो कोई बात नही, पर मोक्ष मार्ग में फिसलन याने अधो गति का कारण, अनन्तो जन्मो की भटकन हैं । फिर भी जाना चाहते हो तो
जाओ, पर मेरी चार बाते ध्यान रखना ।
१) अपने घर को कभी न भूलना
२) यदि अपने घर अपने घर को भूल जाओ तो, अपने पड़ोसी को नहीं भूलना ।
३) खूब भूख लगने पर भोजन करना ।
४) खूब नींद आने पर सोना ।
बेटा कहता हैं माँ तुम क्या कहती हो, मैं घर छोड़ रहा हूँ तुम कहती हो घर को कभी न भूलना । तुम्हारी बातें मुझे समझ में नही आती, ये घर को नही भूलना, पड़ोसी को नहीं भूलना । तुम्हारी बातें समझ से परे है । क्यों पहेलियाँ बुझा रही हो, स्पष्ट कहो ।
माँ ने कहा सुनो बेटा – अपने घर को कभी न भूलना । याने अपना घर आत्मा का सच्चा घर । याने आत्मा का सच्चा घर है सिद्धालय, मोक्ष उसे कभी न भूलना । सदा ध्यान रखना मुझे आत्मा के निज घर में जाना है । दूसरा – अपने घर को भूल जाओ तो पड़ोसी का ध्यान रखना याने देह की स्थिति समझना । यदि आत्मा के घर को भूल जाओ तो पड़ोसी याने, देव, शास्त्र, गुरू का ध्यान रखना । ये आत्मा के सच्चे पड़ोसी है, जो तुम्हे अपने आत्मा के सच्चे घर तक पहुंचा देंगे ।
तीसरा खूब भूख लगने पर भोजन करना याने जब भूख लगेगी तब नीरस सूखा सूखा, बिना नमक, बिना मीठा, बिना मिर्च का मिलेगा तो खब जायेगा, कहते है-नींद न टूटी खाट, भूख न जूटी ताट ।
चौथा- खूब नींद लगने पर सोना-याने जब श्रमसाधना, स्वाध्याय, वैयावृति से थकावट आने से निद्रा आयेगी तो यह ध्यान ही नही रहेगा की ये पाट कैसा है , चटाई है कि जमीन । बिस्तर गादी की याद भी नहीं आयेगी । ठीक है बेटा तुम जाओ मेरा आशीष तेरे साथ है ।
२) देवकी का पडगाहन
एक बार श्रीकृष्ण नारायण की माँ देवकी नित्य क्रिया के अनुसार द्वार पर अतिथि संविभाग हेतु पडगाहन को खडी थी । देखा आकाश मार्ग से चारण ऋद्धिधारी मुनिराज आ रहे थे । देवकी ने पडगाहन कर आहार कराया । उसे ऐसा लगा कि उसके आँचल हिलोरे भर रहे है, मन ममतावश मचल रहा है । चारण ऋद्धिधारी मुनिराज आहार कराया । महाराज आहार के उपरांत चले गये । कुछ देर बाद पुनः दो महाराज को आकाश मार्ग से आते देखा । उसने आहार के लिए पड़गाहन किया और देखा कि ये तो अभी गये थे, फिर कैसे आ गये ? सोचा दिगम्बर मुनि एक बार ही आहार करते है । ये मेरे मन का भ्रम होगा । सोचा आहार कराऊं, लेकिन पुन: आँचल हिलोरे ले रहा था । ममता का सैलाब हृदय में उमडने लगा । आहार कराया, पुन: कुछ देर बाद दो मुनिराज आकाश मार्ग से आहार हेतु आ रहे थे । देवकी ने फिर पड़गाहन किया, और सोचा कि ये मेरे मन में कैसा भ्रम आ रहा है ? आँचल क्यों हिलोरे भर रहे है ? ममता का सैलाब क्यों उमड रहा है ? मुनिराज तो एक बार ही आहार करते है, खैर आहार कराओ । आहार हुआ मुनिराज आहार उपरांत आकाश मार्ग से विहार कर गये । देवकी ने भगवान नेमीनाथ के समवसरण में जाकर पूछा भगवान मेरे मन मे एक जिज्ञासा है कि आज मेरे घर पर दो-दो करके ६ मुनिराजो का आहार हुआ । मुझे ऐसा क्यों लगा कि ये युगल मुनिराज अभी आहार करके गये, पुनः कैसे आ गये ? और मेरे हृदय में ममता का सैलाब क्यों उमडा ? मेरे आँचल क्यों भर आये, समझ में नही आया ? कृपया मेरी जिज्ञासा का समाधान करने की कृपा करें । भगवान नेमीनाथ ने अपनी दिव्यध्वनि में कहा देवकी वो और कोई नही तुम्हारे ६ पुत्र थे ।
देवकी ने कहा – भगवन वो तो मरे पैदा हुये थे ।
भगवन ने कहा – वो युगल संताने देवताओं ने उन्हें सुरक्षित स्थानो पर रख दिया था, वो तदभव मोक्ष गामी है । उनके स्थान पर मरे बच्चे रख दिये थे । ये है माँ की ममता ।
३) भगवान महावीर ने गर्भ मे भूशयन बंद किया
भगवान महावीर स्वामी ने गर्भावस्था मे भू शयन, हलन चलन नही किया बल्कि शांत भाव से बैठ गये ताकि माता त्रिशला को पीड़ा न हो । लेकिन हलन चलन न होने से लोग घबड़ा गये, कि तीर्थंकर गर्भ मे आये और हलन चलन नही हो रही । भगवन ने सोचा उलटा हो गया । मैंने सोचा था माँ को तकलीफ न हो पर ये सब परेशान है ।
४) आचार्य कुन्दकुन्दाचार्य की माँ ने लोरी सुनाई – गर्भ व जन्म से संस्कारित किया
५) मदालसा ने गर्भावस्था में ही की धर्मचर्चा । सुनाई पालने झुलाते समय लोरी सुनाई
६) कुन्ती बनवास (पांडवों के साथ) बिताकर
पाडवों १२ वर्ष के अज्ञात वनवास और अज्ञात वास के बाद जब वापिस आये, कुन्ती ने विदुर से कहा- मैं दुर्योधन के पास जा रही हूँ ।
विदुर ने कहा क्यों जा रही है आप ? उसने तो आपको वनवास दिया, लाक्षा गृह मे आग लगायी, मारने का प्रयास किया ।
कुन्ती ने कहा वो हमारे कर्मो का उदय था । मैं उससे मिलने जा रही हूँ , उससे क्षमा माँगने, मेरे ५ नही १०५ बेटे है । उसके मन में कुछ भी हो, मैं अपने मन से उनके प्रति क्लेश मिटाने जा रही हूँ । मैं अपने मन को क्यों गंदा रखूँ । मेरे मन में उसके प्रति कोइ कषाय भाव न रहे । इसलिए मैं उनके पास जाना चाहती हूँ ।
७) द्रौपदी की क्षमा
महाभारत का युध्द चल रहा था, जो कि नीति व अनीति की सीमा को पार गया था । एक रात द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा ने रात को पाण्डवों के खेमें में जाकर द्रोपदी के पांचो पुत्रों की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी, मार डाला । सुबह जब पाण्डवों ने पांचों पुत्रो को मृत देखा हाहाकार मच गया । पता किया तो पता चला की अश्वत्थामा ने पांचो पुत्रों को मारा । पाण्डवों ने अश्वत्थामा को पकड़कर लाये । द्रोपदी के सामने खड़ा किया । कहा ये है तुम्हारे पुत्रों का हत्यारा, इसे क्या सजा दे ?
द्रोपदी ने जैसे ही अश्वत्थामा को देखा, देखते ही क्रोध से आग बबूला हो उठी । फिर उसे अपनी सुध आयी, फिर गुर्विणी (गुरू की पत्नि) की याद आयी । सोचा मैं आज पुत्र के वियोग में तडफ रही हूँ । यदि मेरे बदले की आग में इसका मरण हो गया तो इसके माता पिता की हालत मेरे जैसी हो जायेगी । मेरे प्रतिशोध से मेरे बेटे तो वापिस आने वाले नहीं है, अत: मै किसी माँ का दुख देख नहीं सकती । पुत्र वियोग का दुःख उसे नही दे सकती । अतः मन पर संयम धारण कर उसने कहा हे आर्य पुत्र आप अश्वत्थामा को क्षमा कर दे मैं उसे क्षमा करती हूँ ।
पांडवों ने कहा द्रोपदी ये तुम क्या कहती हो ? इसने तुम्हारे एक नही पांचो पुत्रों को मारा है, तुम इसे क्षमा करती हो ।
द्रोपदी कहा- हे आर्य मैं इसे क्षमा करती हूँ, ये आपके गुरू/गुराणी के बेटे है । जैसे मैं पुत्रों के वियोग मे तडफ रही हूँ , वैसे किसी की माँ को पुत्र वियोग में तड़फते नही देख सकती । मेरे बेटे वापिस आने वाले तो नही है , प्रतिशोध से तो किसी का बेटा क्यों छीनू ? उसे पुत्र का वियोग क्यों दूँ ? मै किसी के पुत्र वियोग का दुख नही सह सकती ।
ऐसा सुनते ही सारे पाण्डव चुप हो गये अश्वथामा सिर झुक गया, और द्रौपदी के चरणों में जाकर फूट फूटकर रो पड़ा, क्षमा माँगी । सारे कुरूक्षेत्र में द्रौपदी की क्षमा, द्रौपदी के हृदय की उदारता की चर्चा होने लगी । द्रौपदी की जय जयकार होने लगी । धन्य है वह माँ जिसका हृदय इतना विशाल था । ये था एक माँ का हृदय, जिसे अपने दुख से ज्यादा दूसरे के माँ के दुख की चिन्ता थी ।
मारना है गर किसी को, मार दो अहसान से ।
क्या मिलेगा गर किसी को मार दोगे जान से ॥
जान का मारा गया, वापिस कभी आता नही ।
अहसान का मारा गया, फिर सिर उठा सकता नही ॥
माताये १२ प्रकार की मुख्य रूप से होती है ।
१) जननी माँ – जो बेटों / बेटियों को जन्म देती है, पालन पोषण करती है ।
२) गौमाता- गाय माता – अपने दूध से जगत को अमृत पान कराती है, मुनिराज की गोचरी वृति – जिस प्रकार गाय के सामने चारा डालने पर नीचे सिर कर खाती है, स्वाद सुस्वाद का ध्यान नही रखती वैसे मुनिराज का आहार होता है । गाय के दूध से घी की प्राप्ति, जो शरीर में उर्जा शक्ति प्रदान करती हैं । गाय के गोबर से मुनि आर्यिका के केश लोंच के लिए बनती है राख / खाद बनता है, जो किसान के लिये उपयोगी होता है । वात्सल्य भाव का अनुपम उदाहरण है गौमाता ।
गोधूली बेला से गोधूली बेला तक गमन – वैसे साधु-संत भी गमन करना चलना होता है । गोधूली बेला के बाद रास्ता प्रासुन माना जाता है ।
३) धरती माँ – सहिष्णु सबकुछ सहती, प्रतिकार नही करती, मनुष्य अन्न का कीड़ा, धरती से अन्न प्राप्त करता है – सोचो यदि धरती माँ अन्न न देती तो मनुष्यों एवं अन्य जीवों का जीवन यापन कैसे होता ?
४) सौतेली माँ – पिता की दूसरी पत्नी होती है, उसे सौतेली माँ कहते हैं।
५) धाय माँ – पालन करने वाली धाय माँ – पन्ना धाय माँ, सुकौशल को पालने वाली माँ ।
6) गंगा-माँ – नर्मदा गंगा, जमना, कृष्णा, कावेरी लोगों की प्यास बुझाती, खेतों को पानी देती है ।
7) जगदम्बा – जगद, संसार अम्बा, माँ, भीम हिडम्मा – तीर्थंकर की माता । जगदम्बा कहलाती है ।
८) आर्यिका माँ – आर्यिका माँ से उपदेश सदगृहस्थ आदि का माता बहिनों का कल्याण होता है ।
९) जिनवाणी माँ – सरस्वती माँ, शारदे माँ- तीर्थंकर की वाणी द्वादशांग वाणी
ये जिनवाणी न होती तो हमें कौन मार्ग दिखाता ? पथदर्शन कौन करता ? सन्मार्ग कौन
बताता ?
१०) तीर्थंकर – या गुरु – तीर्थंकर-उत्कृष्ट माध्यम से उत्कृष्ट उपदेश जिससे जीव संसार सागर से पार हो जाता है । गुरू – वीतराग मुद्रा के जन्मदाता – बुरे संसार का नाश कराकर
नये संस्कार का जन्म, नाम, गोत्र, जाति सब बदल जाता है जीव का दो बार जन्म होता है एक माँ की कोख से / दूसरा गुरू के द्वारा दीक्षा संस्कार से ।
११) अष्ट प्रवचन मातृका – मुनियों के व्रतों की रक्षा, ५ समिति ३ गुप्ति । जैसे माँ बच्चे की रक्षा करती वैसे ही ये पाँच महाव्रत की रक्षा करती है ।
१२) भारत माता – भारत माता जिसमे जन्म लिया पालन पोषाण हुआ।
एक विदेशी राष्ट्र के नेता / राष्ट्रपति भारत आये, विमान से उतरते समय भारत के सुरक्षा कर्मी व मुख्य अधिकारीयों ने देख कर कहा, सर आपके जूते ? उन्होंने कुछ नही कहा । अधिकारी ने कहा सर आप इतने बड़े राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष, आप नंगे पैर भारत मे रहेंगे अच्छा नही लगता । उस विदेशी नेता ने पूछा आप मंदिर जाते हैं, तो क्या जूते पहन कर जाते है ? अधिकारी ने कहा नही सर । तो उन्होंने कहा देखो भारत एक मंदिर है, मैं मंदिर मे जूता पहनकर नही जाता । ये देश ऋषि मुनियों, तपस्वी तीर्थंकरों की जन्म भूमियाँ है । यहाँ वीरो ने अपनी जान की बाजियाँ लगाकर इसे सुरक्षित किया है । इसकी रक्षा में न जाने कितनो ने बलिदान दिया । ऐसी भूमि और इस भारत माता के मंदिर को मेरा शत शत प्रणाम । फिर उन्होने झुक कर इस भारत माता की भूमि को प्रणाम कर, माटी को माथे से लगाया ।
“माँ रक्षक पथ दर्शिका , गुर में ऊँचा काम ।
क्षमा वान निस्वार्थी मयी माँ है चारो धाम ॥
माँ ममता की खान है , माँ वीणा के तार ।
माँ मुरली की तान है, माँ अमृत की धार ॥
माँ ईश्वर का रूप है , हरती दिल की पीर ।
गंगा जमुना से अधिक , बहता ममता नीर ॥
प्रेम दया करूणा कृपा, बरसे सो आठों घाम ।
ज्ञान देय रक्षा करे , माता उसका नाम ॥”
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