=महावीर स्वामी=
लघु-चालीसा
‘दोहा’
किसे पुकारूँ कौन है,
तुम बिन मेरा और ।
माँ दिख जाये दूर से,
शिशु आ जाये दौड़ ।।
फबती हाथ अहिंसा केत ।
तुम दर्शन सम-दर्शन हेत ।।
फूट पड़ें भीतर सुख-स्रोत ।
तुम दर्शन प्रकटाये ज्योत ।।१।।
समझो पाप-मेघ अवसान ।
दर्शन आप प्रलय-पवमान ।।
आप धरासाई ‘गिर’ पाप ।
वज्र सरीखा दर्शन आप ।।२।।
भवि चकोर निरखे अनिमेष ।
शशि-तुम विहर-ताप-संक्लेश ।।
कम न ‘सूर’ तुम दर्श प्रभाव ।
पाप-तिमिर लौटाये पाँव ।।३।।
शीत-लहर तुम दर्श अनूप ।
पाप-फसल जल श्यामल रूप ।।
शोर-मोर तुम दर्श विराग ।
चन्दन चिग, भागें अघ-नाग ।।४।।
तुम दर्शन चिन्ता-मणि और ।
सुर-तरु, काम-धेन शिर-मौर ।।
आप बिना याँचे, बिन चिन्त्य ।
हाथ लगाते वस्तु अचिन्त्य ।।५।।
कान धन्य ! सुन तुम दो वैन ।
तुम्हें देखते ही धन ! नैन ।।
तुम रज-चरण लगा धन ! माथ ।
रँग तुम न्हवन रँगा धन ! हाथ ।।६।।
जुबाँ धन्य ! लेकर तुम नाम ।
धन ! मन करके तुम्हें प्रणाम ।।
कागज नाम तुम्हारा छाप ।
धन ! अँगुली देकर तुम जाप ।।७।।
अश्रु धन्य ! तुम पाँव पखार ।
धन्य ! पाँव, छू तुम दरबार ।।
हित-तुम रोम पुलक वो धन्य !
धन ! धड़कन तुम भक्त अनन्य ।।८।।
जो गुजरी तुम चरणन पास ।
बेशकीमती विरली श्वास ।।
सार्थ नाम तुम सुमरण एक ।
सम्प्रद वीर-मरण अभिलेख ।।९।।
‘सहज निराकुल’ साधो डूब ।
महिमा पाद-मूल तुम खूब ।।
बनें न कहते, तुम गुण नन्त ।
मौन शरण, ले देकर अन्त ।।१०।।
‘दोहा’
विबुध वन्द्य ! मति मन्द मैं,
सूर्य दिखाया दीप ।
भूल चूक करके क्षमा,
रख लो चरण समीप ।।
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