अभिनन्दन नाथ
लघु चालीसा
=दोहा=
कही, भक्ति भगवान की,
समकित सुदृढ़ निमित्त ।
आ पल दो पल ही सही,
करते हृदय पवित्र ।।
कृपा तुम बरसाते ।
‘हरि-बोल’ बतलाते ।।
आँख तुम अंधन की ।
नाक तुम छन्दन की ।।१।।
कान तुम बहरों के ।
गान तुम लहरों के ।।
धूप बदली छाते ।
कृपा तुम बरसाते ।।२।।
नाग गुल जिनवाणी ।
आग बदली पानी ।।
‘भूति’ विभूति पाते ।
कृपा तुम बरसाते ।।३।।
कृपा तुम बरसाते ।
‘हरि-बोल’ बतलाते ।।
आँख तुम अंधन की ।
नाक तुम छन्दन की ।।४।।
कान तुम बहरों के ।
गान तुम लहरों के ।।
धूप बदली छाते ।
कृपा तुम बरसाते ।।५।।
खुल पड़ा दरवाजा ।
नीलि-सति नभ गाजा ।।
चौर चौंरन नाते ।
कृपा तुम बरसाते ।।६।।
कृपा तुम बरसाते ।
‘हरि-बोल’ बतलाते ।।
आँख तुम अंधन की ।
नाक तुम छन्दन की ।।७।।
कान तुम बहरों के ।
गान तुम लहरों के ।।
धूप बदली छाते ।
कृपा तुम बरसाते ।।८।।
वीर चन्दन द्वारे ।
चीर लंघन तारे ।।
निरा’कुल’ पा जाते ।
कृपा तुम बरसाते ।।९।।
कृपा तुम बरसाते ।
‘हरि-बोल’ बतलाते ।।
आँख तुम अंधन की ।
नाक तुम छन्दन की ।।
कान तुम बहरों के ।
गान तुम लहरों के ।।
धूप बदली छाते ।
कृपा तुम बरसाते ।।१०।।
=दोहा=
अब तक की ही आपने,
करुणा की बरसात ।
आगे भी रखिये सदा,
कृपा बनाये नाथ ।।
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