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तीर्थंकर चालीसा

लघु-चालीसा -;अजितनाथ स्वामी

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

अजितनाथ
लघु चालीसा
=दोहा=
आ भक्ति के रंग में,
रँगते पल दो-चार ।
सुनते डूबा साध के,
शीघ्र वैतरण पार ।।

गुड घी मिसरी अमृत घोलो ।
‘साध’ मौन जैसे ही खोलो ।।
‘अजित-जयतु-जय’, ‘अजित जयतु- जय’
‘जय-जय अजित’ जयतु जय बोलो ।।१।।

दुखिंयों की सुन लेते जल्दी ।
चाहें रँगे न चावल हल्दी ।।
होली सुबहो, साँझ दिवाली ।
महिमा जप जय-अजित निराली ।।२।।

आग, सरोज सरोवर बदली ।
बदला भाग त्याग झष पहली ।।
मेंढ़क देव ऋद्धिंयों वाला ।
भगवन् कुन्द-कुन्द इक ग्वाला ।।३।।

दुखिंयों की सुन लेते जल्दी ।
चाहें रँगे न चावल हल्दी ।।
होली सुबहो, साँझ दिवाली ।
महिमा जप जय-अजित निराली ।।४।।

चन्दन बाला बारे न्यारे ।
भञ्जन अञ्जन बन्धन सारे ।।
चीर बढ़ चला ले गति वायू ।
भवि ! सुवर्ण बन चला जटायू ।।५।।

दुखिंयों की सुन लेते जल्दी ।
चाहें रँगे न चावल हल्दी ।।
होली सुबहो, साँझ दिवाली ।
महिमा जप जय-अजित निराली ।।६।।

नाग, नकुल, कपि किस्मत जागी ।
वीर तीर-भव सिंह बड़भागी ।।
निशि जल तज हो’शियार कोई ।
जप ‘जय अजित’ गूँज जग दोई ।।७।।

दुखिंयों की सुन लेते जल्दी ।
चाहें रँगे न चावल हल्दी ।।
होली सुबहो, साँझ दिवाली ।
महिमा जप जय-अजित निराली ।।८।।

प्रभु मैं भी किस्मत का मारा ।
छाया जीवन में अँधियारा ।।
छुपा कहाँ कुछ तुमसे स्वामी ।
जग जाहिर तुम अन्तर्यामी ।।९।।

बस रत्ती भर बोझ हमारा ।
सुनते बड़ा जहाज तुम्हारा ।।
देके एक जरा सा कोना ।
अपने भक्तों में रख लो ना ।।१०।।
=दोहा=
‘सहज-निराकुल’ बन सकूँ,
चाहूँ आशीर्वाद ।
पहली मेरी आखरी,
यही एक फरियाद ।।

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