धर्मनाथ
लघु चालीसा
=दोहा=
भक्तों का ताँता कहे,
साचाँ तेरा द्वार ।
बिठा मुझे भी लो प्रभो,
भक्त-अनन्य कतार ।।
यूँ ही भक्त न करते याद ।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।।
सति रानी इक सीता नाम ।
अग्नि परीक्षा लीनी राम ।
सरवर में बदले अंगार ।
हाथ जोड़ बस किया प्रणाम ।।१।।
आशुतोष तुम पूर्ण मुराद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।२।।
बहु-रानी इक सोमा नाम ।
शील परीक्षा लीनी स्वाम ।।
नागों के बन चाले हार ।
हाथ जोड़ बस किया प्रणाम ।।३।।
आशुतोष तुम पूर्ण मुराद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।४।।
सति रानी इक द्रोपद नाम ।
शील परीक्षा लीनी दाम ।।
चीर जा खड़ा अछत कतार ।
हाथ जोड़ बस किया प्रणाम ।।५।।
आशुतोष तुम पूर्ण मुराद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।६।।
बहु-रानी इक नीली नाम ।
शील परीक्षा लीनी ग्राम ।।
पाँव लगे खुल पड़े किवाड़ ।
हाथ जोड़ बस किया प्रणाम ।।७।।
आशुतोष तुम पूर्ण मुराद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।८।।
परछाई से रहते साथ ।
गया न खाली आशीर्वाद ।।
‘सहज-निराकुल’ हाथ समाध ।
करते करुणा की बरसात ।।९।।
बरसे छप्पर फाड़ प्रसाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।१०।।
=दोहा=
माँ धरती अवतार है,
खातिर बाल गोपाल ।
द्वारे तुम सविनय खड़ा,
रखना मेरा ख्याल ।।
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