नेमनाथ
लघु-चालीसा
=दोहा=
बिन भगवत् गुण गान के,
लगे न हाथ मुकाम ।
आ पल, दो पल ही सही,
लेते भगवत् नाम ।।
दूर अंधेरा होता है ।
तेरा दर्श अनोखा है ।।
दीपक तले तिमिर देखा ।
मावस कहाँ चन्द्र लेखा ।।१।।
सूरज राहु परेशाँ है ।
कौन आपके जैसा है ।।
सुमरण चिन्ता-मण लेता ।
याँचत कल्प-वृक्ष देता ।।२।।
रीत यही कुछ सुर-गैय्या ।
शरत रख रही हित छैय्या ।।
दिया आपने बिन याँचे ।
जग जाहिर किस्से साँचे ।।३।।
बदली शूल सिंहासन में ।
चीर बढ़ चला बातन में ।।
सरवर में बदली आगी ।
‘हो ! शियार’ निश-जल त्यागी ।।४।।
कुन्द-कुन्द भगवन् ग्वाला ।
अञ्जन रिद्ध-सिद्ध वाला ।।
मेंढ़क देव कल्पवासी ।
नागिन ‘नागन’ अधिशासी ।।५।।
खुला पाँव लग दरवाज़ा ।
सिंह पाया दुन्दुभ बाजा ।।
राज कुमार बना नन्दी ।
बाहर ‘भी’तर गृह-बन्दी ।।६।।
हार बना पन्नग काला ।
श्वान ‘देव-भोला-भाला’ ।।
उतरा विष कवि-छोरे का ।
स्वर्ण पंख पंछी एका ।।७।।
भील ‘सुगत’ तज ‘पल’ कागा ।
‘धी’वर झष तज बड़-भागा ।
कोढ़ कोट-भट छव न्यारी ।
माँ-शच इक भव-अवतारी ।।८।।
वैरागी दुखिया कुटिया ।
‘बडभागी’ बुड़िया लुटिया ।।
जीव-गिंजाई सद्ध्यानी ।
निरे मूर्ख, केवल-ज्ञानी ।।९।।
अर प्रशंस-पुल क्या बाँधूँ ।
‘सहज-निराकुल’ चुप साधूँ ।।
गणना गुण तुम माया है ।
पार न सुर-गुरु पाया है ।।१०।।
‘दोहा’
और नहीं कोई मिरा,
सिर्फ़ एक अरमान ।
कृपा दृष्टि रखिये बना,
जब-तक घट में प्राण ।।
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