नमिनाथ
लघु चालीसा
=दोहा=
इक सहाय कलि-काल में,
भगवन् अरहन नाम ।
करें नाम भगवान् के,
आओ सुबहो-शाम ।।
कुछ साधो ऐसा दिन ।
आ-‘दर्श’ स्वप्न दें जिन ।।
अर स्वर्ण-सुहाग नहीं ।
मण-काञ्चन जोग यही ।।१।।
जिन-दर्शन शिव-शिविका ।
जिन-दर्शन रथ-दिवि का ।।
‘पवि’ दर्शन-जिन-राई ।
‘गिर’-पाप धरा-साई ।।२।।
जिन दर्शन पवमाना ।
घन पापन अवसाना ।।
जिन दर्श मोर वाणी ।
गुम पाप-अहि कहानी ।।३।।
जिन दर्शन सूर समाँ ।
निरसन अज्ञान-अमा ।।
जग-जाहिर मंगल-कर ।
जिन-जाप अमंगल-हर ।।४।।
कर लेते आप सदृश ।
जिन महिमा बढ़-पारस ।।
देते वगैर याँचे ।
जिन कल्प-वृक्ष साँचे ।।५।।
लग पाँव खुला द्वारा ।
मुनि कुन्द-कुन्द ग्वाला ।।
बढ़ चला चीर देखा ।
सिंह महावीर लेखा ।।६।।
चित्-चोर चोर-अंजन ।
सिर-मौर दोर-चन्दन ।।
अगनी बदली जल में ।
अहि बदले लर-गुल में ।।७।।
सूली का सिंहासन ।
अधपति नागिन-नागन ।।
बुढ़िया लुटिया चमकी ।
कुटिया सुगन्ध गमकी ।।८।।
दिव व्याध काग ‘पल’ तज ।
शिव अहि, कपि, नकुल सहज ।।
मेंढ़क विमान वासी ।
शचि कल-शिव अधिशासी ।।९।।
महिमा अपार तेरी ।
तव थव शिशु-हट मेरी ।।
लोपूँ सो निज माया ।
रखना बनाय छाया ।।१०।।
‘दोहा’
बड़ी और कोई नहीं,
यही अखीर मुराद ।
जिह्वा पर नर्तन करें,
नाम आप दिन-रात ।।
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