सुपार्श्वनाथ
लघु चालीसा
=दोहा=
कलजुग प्रभु भक्ति सिवा,
और न मुक्ति जहाज ।
आ भगवत रँग में रँगें,
छोड़ भवद अर-काज ।।
आँखों में पानी रखते ।
तुम पीड़ा और समझते ।।
कोई, पूरण-मंशा तुम ।
जग दोई मत-हंसा तुम ।।१।।
बिन कारण मंगल कर्त्ता ।
तुम सर्व अमंगल हर्ता ।।
त्राता ! प्रद रिद्धी-सिद्धी ।
वर दाता सुख समृद्धी ।।२।।
आ जाते भक्त बुलाते ।
दिल-माँ से कुछ-कुछ नाते ।।
आँखों में पानी रखते ।
तुम पीड़ा और समझते ।।३।।
झिर अश्रु न सीता पाये ।
तुम दौड़े-दौड़े आये ।।
बदली सरवर में आगी ।
जय जय सत परणत जागी ।।४।।
झिर अश्रु न सोमा पाये ।
तुम दौड़े-दौड़े आये ।।
घट जोड़ा नागन काला ।
निकला लर-फूल, निकाला ।।५।।
झिर अश्रु न नीली पाये ।
तुम दौड़े-दौड़े आये ।।
लग पाँव खुला दरवाजा ।
जयकार शील सत गाजा ।।६।।
झिर अश्रु न द्रोपद पाये ।
तुम दौड़े-दौड़े आये ।।
चीर सती आखर ओढ़ा ।
माथे-दुठ पानी छोड़ा ।।७।।
झिर अश्रु न अञ्जन पाये ।
तुम दौड़े-दौड़े आये ।।
बिखरे शिल-टूक, जहाना ।
बजरंग बने हनुमाना ।।८।।
झिर अश्रु न चन्दन पाये ।
तुम दौड़े-दौड़े आये ।।
गंधोदक त्रिशलानंदन ।
‘रे टूकन-टूकन बन्धन ।।९।।
तुम सहज निरा’कुल के हो ।
तुमरी जय जय जय जै हो ।।
आ जाते भक्त बुलाते ।
दिल-माँ से कुछ-कुछ नाते ।।१०।।
=दोहा=
एक विनन्ति बस यही,
तुम चरणों में देव ।
सदा यूँहि करता रहूँ,
तुम चरणों की सेव ।।
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