कुन्थनाथ
लघु चालीसा
‘दोहा’
‘जयतु-कुन्थ-जिन’ जाप की,
महिमा अपरम्पार ।
शचि, शचि-पति छू कर जिसे,
भव ‘फिर-के’ उस-पार ।।
कुन्थ-कुन्थ-कुन्थ, जय-कुन्थ जपो मन ।
शील शिरोमण ! विघ्न विमोचन ।।१।।
बरसेगी, बरसी भी भगवत कृपा ।
सीता सती ने जाप यह जपा ।
पानी में बदले अंगार हैं ।
किस्से न यूँ सिर्फ दो चार हैं ।।२।।
कुन्थ-कुन्थ-कुन्थ, जय-कुन्थ जपो मन ।
शील शिरोमण ! विघ्न विमोचन ।।३।।
बरसेगी, बरसी भी भगवत कृपा ।
सोमा सती ने जाप यह जपा ।
निकले जगह नाग, घट-हार हैं ।
किस्से न यूँ सिर्फ दो चार हैं ।।४।।
कुन्थ-कुन्थ-कुन्थ, जय-कुन्थ जपो मन ।
शील शिरोमण ! विघ्न विमोचन ।।५।।
बरसेगी, बरसी भी भगवत कृपा ।
नीली सती ने जाप यह जपा ।
लगते ही पाँव, खुले किवाड़ हैं ।
किस्से न यूँ सिर्फ दो चार हैं ।।६।।
कुन्थ-कुन्थ-कुन्थ, जय-कुन्थ जपो मन ।
शील शिरोमण ! विघ्न विमोचन ।।७।।
बरसेगी, बरसी भी भगवत कृपा ।
सति द्रोपदी ने जाप यह जपा ।
पंक्ति-चीर धागे खड़े अपार हैं ।
किस्से न यूँ सिर्फ दो चार हैं ।।८।।
कुन्थ-कुन्थ-कुन्थ, जय-कुन्थ जपो मन ।
शील शिरोमण ! विघ्न विमोचन ।।९।।
तुम अन्तर्यामी, क्या तुमसे छुपा ।
नम दृग् हमारी, दो बरषा कृपा ।।
‘सहजो निरा’कुल’ नमस्कार हैं ।
किस्से न यूँ सिर्फ दो चार हैं ।।१०।।
‘दोहा’
बस इतना कर दीजिये,
कुन्थ नाथ जिन देव ।
‘श्रद्धा-सुमन’ चढ़ा सकूँ,
यूँ ही तुम्हें सदैव ।।
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