आदिनाथ
‘लघु चालीसा’
=दोहा=
जा कछु…आ मन भीतरी,
छोड़ी होगी छाप ।
जुबां-जुबां नर्तन करें,
तभी ‘आदि-जय’ जाप ।।
कहे खुद भक्तों का ताॅंता ।
एक थारा-द्वारा साॅंचा ।।
भक्त के होते हैं आँसू ।
भिंजोता अपनी आँखें तू ।।१।।
आग बदली है सरवर में ।
नाग बदले हैं गुल-लर में ।।
कृपा तेरी ही तो बरसी ।
‘जहाँ’ दे ढ़ोक तभी फरसी ।।२।।
कहे खुद भक्तों का ताॅंता ।
एक थारा-द्वारा साॅंचा ।।
भक्त के होते हैं आँसू ।
भिंजोता अपनी आँखें तू ।।३।।
चीर अक्षत कतार पाया ।
नीर अँखियन किनार आया ।।
शूल सिंहासन बन चाली ।
फूल श्रृद्धा लेकर खाली ।।४।।
कहे खुद भक्तों का ताॅंता ।
एक थारा-द्वारा साॅंचा ।।
भक्त के होते हैं आँसू ।
भिंजोता अपनी आँखें तू ।।५।।
बाल बजरंग टूक शिल्ला ।।
पावॅं लग, दरवाजा खुल्ला ।
शील जयकार गगन गूॅंजा ।
कौन बिन तुम सहाय दूजा ।।६।।
कहे खुद भक्तों का ताॅंता ।
एक थारा-द्वारा साॅंचा ।।
भक्त के होते हैं आँसू ।
भिंजोता अपनी आँखें तू ।।७।।
पाॅंखुड़ी मुँह दाबे आया ।
जन्म मेंढ़क विमान पाया ।।
ख्याल तुम रखते हो देखा ।
ग्वाल मुनि कुन्द-कुन्द लेखा ।।८।।
कहे खुद भक्तों का ताॅंता ।
एक थारा-द्वारा साॅंचा ।।
भक्त के होते हैं आँसू ।
भिंजोता अपनी आँखें तू ।।९।।
विरद चर्चित ही तुम जग में ।
नया क्या मन से दूॅं लिख में ।।
‘निराकुल’ कर लो अपने-सा ।
मैल हाथों का धन-पैसा ।।१०।।
=दोहा=
लोग बड़े, रख लें भले,
बड़े-बड़े अरमान ।
मरण-समाधी का मुझे,
दे दो बस वरदान ।।
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