भक्ता-मर-स्तोत्र ९०
देवन देव ।
कर तुम सेव ।।१।।
सुरपति तीर ।
दृग् मम नीर ।।२।।
रखना लाज ।
बुध सरताज ।।३।।
सुर-गुरु हार ।
माप तुम्हार ।।४।।
करे मुखरी ।
भक्ति तुमरी ।।५।।
पिक चित् चोर ।
हेतिक बौंर ।।६।।
सुमरण आप ।
विघटन पाप ।।७।।
आप प्रसाद ।
हाथ मुराद ।।८।।
कथा थारी ।
व्यथा हारी ।।९।।
अपने भाँत ।
करते नाथ ।।१०।।
सुन्दर एक ।
पद गज-रेख ।।११।।
विरच तुम तन ।
खतम रज कण ।।१२।।
मनहर आप ।
मन निष्पाप ।।१३।।
लाँघें लोक ।
गुण बिन-रोक ।।१४।।
मन अविकार ।
हतप्रभ नार ।।१५।।
अगम्य पवन ।
दीप रतनन ।।१६।।
बिन आताप ।
दिनकर आप ।।१७।।
गुम मोह तम ।
चाँद अनुपम ।।१८।।
रवि, शशि भार ।
मुख तम हार ।।१९।।
केवल ज्ञान ।
स्वयं समान ।।२०।।
कृपा सराग ।
तुम से राग ।।२१।।
सूरज पूर्व ।
मात अपूर्व ।।२२।।
मृत्यु बसंत ।
पद शिव पन्थ ।।२३।।
तुमरे नाम ।
ब्रह्मा, राम ।।२४।।
शम्भु, विशुद्ध ।
इक तुम बुद्ध ।।२५।।
जग शृंगार ।
जय-जय कार ।।२६।।
गुण परिपून ।
औ-गुण शून ।।२७।।
तन आलोक ।
वृक्ष अशोक ।।२८।।
आसन सींह ।
आप निरीह ।।२९।।
चौंसठ चॅंवर ।
तीस-दु अमर ।।३०।।
जगत् ईश्वर ।
भाषत छतर ।।३१।।
भुवन फेरी ।
गहन भेरी ।।३२।।
वर्षा सुमन ।
सुगन्ध पवन ।।३३।।
इक भा-वलय ।
जग भा निलय ।।३४।।
भव्य प्राणी ।
दिव्य वाणी ।।३५।।
कमल पदतल ।
रचना कमल ।।३६।।
बारह सभा ।
अप्रतिम भा ।।३७।।
हाँप भय गज ।
आप जय भज ।।३८।।
हुआ सिंह वश ।
छुआ तुम जश ।।३९।।
जल थवन तव ।
दे बुझा दव ।।४०।।
ध्याया आप ।
भागा साँप ।।४१।।
आप सुमरण ।
दे जिता रण ।।४२।।
शत्रु हारे ।
तुम सहारे ।।४३।।
जलधि अपार ।
बल तुम पार ।।४४।।
तम रोग क्षय ।
तुम जोग दय ।।४५।।
ध्या तुम्हें लें ।
बन्धन खुलें ।।४६।।
भय और भय ।
क्षय, तोर जय ।।४७।।
आ तार दे ।
माँ शारदे ।।४८।।
भक्ता-मर-स्तोत्र ९१
आदि अवतार ।।१।।
विरद तुम्हार ।।२।।
दो दृष्टि डाल ।।३।।
सुर-गुरु निढ़ाल ।।४।।
आकाश माप ।।५।।
बल भक्ति आप ।।६।।
ढ़ेर गिर पाप ।।७।।
लर फूल, साँप ।।८।।
न्यार गुण गान ।।९।।
पारस समान ।।१०।।
दृग्-हर, महान ।।११।।
न और जहान ।।१२।।
मुख मनहार ।।१३।।
गुन भुवन पार ।।१४।।
इक अविकार ।।१५।।
दीप जग न्यार ।।१६।।
रवि जग प्रधान ।।१७।।
शशि कान्ति मान ।।१८।।
अर चन्द भान ।।१९।।
धर नन्त ज्ञान ।।२०।।
सत्-पात्र ! लेख ।।२१।।
सुत-मात एक ।।२२।।
अमर ! उल्लेख ।।२३।।
हरि-हर अनेक ।।२४।।
बुद्ध आलोक ।।२५।।
प्रद मार्ग मोख ।।२६।।
अर दोष सोख ।।२७।।
तर तरु अशोक ।।२८।।
पीठ अर नूर ।।२९।।
चँवर सुर शूर ।।३०।।
छतर द्युति भूर ।।३१।।
जयति जिन तूर ।।३२।।
नभ पुष्प धार ।।३३।।
वृत-भा अपार ।।३४।।
नाद ओंकार ।।३५।।
पंकज विहार ।।३६।।
दय जय जिनन्द ।।३७।।
क्षय भय गजेन्द्र ।।३८।।
क्षय भय मृगेन्द्र ।।३९।।
क्षय दव अमन्द ।।४०।।
क्षय भय भुजंग ।।४१।।
अभि जेय जंग ।।४२।।
क्षय भय तुरंग ।।४३।।
क्षय भय तरंग ।।४४।।
क्षय रोग घाम ।।४५।।
क्षय बन्ध दाम ।।४६।।
क्षय भय तमाम ।।४७।।
पद मोक्ष धाम ।।४८।।
भक्ता-मर-स्तोत्र ९२
भो ! आदि शरण ।
आ निवसो मन ॥१।।
सौधर्म सफल ।
दृग्-मोर सजल ।।२।।
मम रखना पत ।
तुम बुध वन्दित ।।३।।
सुर-गुरु हारे ।
गा गुण थारे ।।४।।
भक्ती तुमरी ।
करती मुखरी ॥५।।
मधु कूके पिक ।
मंजरि हेतिक ॥६।।
तेरा सुमरण ।
देता सु-मरण ।।७।।
तुम जपा नाम ।
बस हुआ काम ।।८।।
तुम हुई कथा ।
गुम हुई व्यथा ।।९।।
तुम दर्पण सा ।
करते निज-सा ॥१०।।
तुम दृग् रस्ते ।
हिवरा वसते ॥११।।
रच नख-शिख तुम ।
माटी वो गुम ।।१२।।
तुम मुख सुन्दर ।
हतप्रभ चन्दर ।।१३।।
विचरें तुम गुण ।
अनिरुद्ध भुवन ॥१४।।
पाईं न फाँस ।
तिय आप-पाश ॥१५।।
दीपक विरले ।
तम, न तुम तले ॥१६।।
तम त्रिभुवन गुम ।
पा सूरज तुम ।।१७।।
तम-मोह खतम ।
शशि तुम अनुपम ।।१८।।
रवि-शशि क्यों कर ।
तुम जो तमहर ।।१९।।
कब तुम समान ।
ऋत और ज्ञान ।।२०।।
औरन करुणा ।
ली, तुम शरणा ।।२१।।
तुम सुत अपूर्व ।
माँ सूर्य पूर्व ।।२२।।
तुम लगा लगन ।
लें जीत मरण ।।२३।।
ब्रह्मा, हरि-हर ।
तुम नाम अपर ।।२४।।
नरसींह, बुद्ध ।
तुम इक, विशुद्ध ।।२५।।
भव फेरी क्षय ।
हो तेरी जय ॥२६।।
गुण रोम-रोम ।
तुम भौम, सोम ।।२७।।
तरु अशोक तर ।
तन तुम मनहर ।।२८।।
सिंहा-सनस्थ ।
तुम तन प्रशस्त ॥२९।।
ढ़ोरें चामर ।
तुम भक्तामर ।।३०।।
जग-परमेश्वर ।
तुम कहें छतर ।।३१।।
बाजे भेरी ।
दिश् दश तेरी ॥३२।।
झिर-गन्ध सुमन ।
धन ! मन्द पवन ।।३३।।
दर्पण भव-भव ।
भा-मण्डल तव ।।३४।।
जग कल्याणी ।
भी तुम वाणी ।।३५।।
सुर रचें कमल ।
तुम तर-पद-तल ।।३६।।
देशना विभव ।
न, और बस तव ॥३७।।
लें तुमको भज ।
खोता भय गज ।।३८।।
सिंह वशीभूत ।
तुम जप वभूत ।।३९।।
वशि दावानल ।
लव जप-तव जल ।।४०।।
वशि-भूत साँप ।
जप आप नाम ।।४१।।
संग्राम वाम ।
वशि आप नाम ।।४२।।
दुश्मन भागे ।
तुम जप आगे ।।४३।।
दे दिखा गाँव |
तुम नाम नाव ।।४४।।
तुम नाम दवा ।
पा, रोग हवा ।।४५।।
खुलते बन्धन ।
तुम जाप मगन ॥४६।।
दुख-दरद कष्ट ।
जप तुम, विनष्ट ।।४७।।
यह गुण-गाथा ।
दे सुख साता ।।४८।।
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