भक्ता-मर-स्तोत्र ७७
‘दुति’ ।।१।।
थुति ।।२।।
लघु ।।३।।
‘गुरु’ ।।४।।
रति ।।५।।
कृति ।।६।।
जय ।।७।।
दय ।।८।।
जश ।।९।।
रस ।।१०।।
सज ।।११।।
रज ।।१२।।
मुख ।।१३।।
इक ।।१४।।
शुचि ।।१५।।
रुचि ।।१६।।
रवि ।।१७।।
दिवि ।।१८।।
अरु ।।१९।।
पुरु ।।२०।।
जन ।।२१।।
धन ! ।।२२।।
प्रभु ।।२३।।
विभु ।।२४।।
श्रुति ।।२५।।
नुति ।।२६।।
वर ।।२७।।
तर ।।२८।।
नग ।।२९।।
जुग ।।३०।।
तिरि ।।३१।।
तुरि ।।३२।।
गुल ।।३३।।
‘कल’ ।।३४।।
स्वर ।।४५।।
‘सर’ ।।३६।।
सिरि ।।३७।।
करि ।।३८।।
सिंह ।।३९।।
दह ।।४०।।
फण ।।४१।।
रण ।।४२।।
खल ।।४३।।
जल ।।४४।।
गद ।।४५।।
बॅंध ।।४६।।
भय ।।४७।।
क्षय ।४८।।
*श्री भक्तामर वज्र पञ्जर कवच मंत्र*
‘दुति’, थुति… लघु, ‘गुरु’
रति, कृति…जय, दय
जश, रस…सज, रज
मुख, इक…शुचि, रुचि
रवि, दिवि…अरु, पुरु
जन, धन !…प्रभु, विभु
श्रुति, नुति…वर, तर
नग, जुग…तिरि, तुरि
गुल, ‘कल’…स्वर, ‘सर’
सिरि, करि…सिंह, दह
फण, रण…खल, जल
गद, बॅंध…भय, क्षय
वज्र पञ्जरम् भवतु मे
भवतु ते
भवतु ते मे वज्र पञ्जरम् ओम्ऽऽऽ ।।
*सहजो-निरा-कुल समझ*
‘दुति’ मतलब कान्ति, आभा, चमक
( बड़ जाती है )
थुति मतलब स्तुति
( आपकी स्तुति करने से )
लघु मतलब छोटा
( मैं अल्पबुद्धि हूॅं )
‘गुरु’ मतलब भारी, देव गुरु
( बृहस्पति भी आपकी संस्तुति नहीं कर सके )
रति मतलब स्नेह
( आपकी भक्ति ही एक वजह है )
कृति मतलब रचना
( इस श्री भक्तामर रूप संस्तवन में )
जय मतलब विजय श्री
( मैं अल्पबुद्धि हूॅं फिर भी जीत जाऊॅंगा )
दय मतलब दया
( आपकी दया दृष्टि से )
जश मतलब यश
( आपके बारे में चर्चित है
‘कि नागों का हार बनाया )
रस मतलब पारस रसायन
( उससे बढ़कर हैं आप
चूंकि अपने जैसा बना लेते हैं )
सज मतलब साज-सज्जा
( सत्य शिव सुन्दर हैं आप )
रज मतलब मिट्टी
( जिससे आप बनाये गये वह अनमोल है )
मुख मतलब चेहरा
( जो आपका मुख है )
इक मतलब एक
( वह प्रमुख है )
शुचि मतलब शुद्ध विशुद्ध अविकार
( आप अखण्ड ब्रह्मचर्य रखते हैं )
रुचि मतलब दीपक की लौं, शिखा
( अलौकिक प्रकाश है आपका
जिससे सभी लौं-लगन लगाये रखते हैं )
रवि मतलब सूर्य
( आप ताप विरहित प्रतापी हैं )
दिवि मतलब दिव्य
आप सूर्य से बड़े हैं
( चंद्रमा चूंकि इन्द्र और सूरज प्रति इन्द्र है )
अरु मतलब और
आप सूर्य चंद्रमा दोनों हैं
( जगत् प्रकाशित करने से )
पुरु मतलब प्रथम
( आदि तीर्थंकर होने से )
जन मतलब जन-जन
( दर दर भटक आप जिन से भेंट हुई हमारी )
धन ! मतलब धन्य
( आपकी माता आपको पाकर धन्य हो गईं )
प्रभु मतलब सबसे बड़े प्रभावशाली
( आप ही सिद्ध भगवन्त हैं )
विभु मतलब वैभवशाली
( आप ही विभूति सम्पन्न
अरिहन्त भगवान् हैं )
श्रुति मतलब श्रुत भक्ति
( आप ही जिनवाणी रूप
और विश्रुत सन्त स्वरूप हैं )
नुति मतलब नमन
( आपके लिए नमस्कार हो )
वर मतलब उत्कृष्ट, चुनना
( आपके लिए सद्गुणों ने वरण किया है )
तर मतलब तरु
( अशोक वृक्ष )
नग मतलब मणि माणिक
( इनसे जड़ा सिंहासन )
जुग मतलब दो
( जुगल रूप चंवर बत्तीस देव लिए सो चौंसठ )
तिरि मतलब तीन
( छत्र )
तुरि मतलब तुरही
( देव दुन्-दुभी )
गुल मतलब फूल
( पुष्प बर्षा )
‘कल’ मतलब भूत भविष्य
( भामण्डल जिसमें सात भव दिखते हैं )
स्वर मतलब ध्वनि
( दिव्य ध्वनि )
‘सर’ मतलब तालाब
( कमल रचना से धरती सरोवर जैसी शोभती है )
सिरि मतलब लक्ष्मी
( सम शरण रूप वैभव )
करि मतलब हाथी
सिंह मतलब शेर
दह मतलब अग्नि, दावानल
फण मतलब फण वाला सर्प
रण मतलब युद्ध, संग्राम
खल मतलब वैरी, शत्रु
जल मतलब समुद्र, बडवानल
गद मतलब रोग, बीमारी
बॅंध मतलब वध-बन्धन
भय मतलब भीति, डर
( और भी आदि आदि इन्हें लेकर के )
क्षय मतलब क्षीण हो जाना
( सो आपकी भक्ति से
निधत्ति-निकाचित भी कर्म,
नष्ट विनष्ट हो ही जाते हैं )
सच
आपकी जैसी महिमा
महि… ना
ओम्…
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