भक्ता-मर-स्तोत्र ७३
जैनियों की आन-बान वा शान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।
स्वर्ग उतर ।
पुरु अवतर ।।
किया जगत् कल्याण ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।१।।
पार अमर ।
‘अंगुलि पकड़’ ।।
छिड़ा दीजिये तान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२।।
अभि-नन्दित ।
बुध-वन्दित ।।
तुम शशि, मैं नादान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३।।
नत माथा ।
रत गाथा ।।
सुर-गुरु पलक प्रमाण ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।४।।
गुम शक्ती ।
तुम भक्ती ।।
मुखरी करे जुबान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।५।।
अनपढ़ मैं ।
कवि खेमें ।।
भक्ति आप श्रद्धान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।६।।
आप जपत ।
पाप भगत ।।
अंधकार लख भान |
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।७।।
रज चन्दन ।
भज चरणन ।।
रति थुति, विरद पिछान ।।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।८।।
दूर व्यथा ।
नूर कथा ।।
पद्म जाग नभ भान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।९।।
शगुन तुरत ।
गुण वरणत ।।
तुम किमिच्छ वरदान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।१०।।
लख जिनवर ।
रुचा न अर ।।
कर क्षीरोदक पान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।११।।
रच तन तुम ।
रज कण गुम ।।
तुम से तुम्हीं जहान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।१२।।
मनहारी ।
छव-थारी ।।
दिन शशि ढ़ाक समान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।१३।।
पार जगत् ।
गुण अगणत ।।
किरपा आप महान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।१४।।
दृग् नासा ।
निज वासा ।।
मद प्रमदा अवसान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।१५।।
विरले तुम ।
तले न तम ।।
दीप अगम पवमान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।१६।।
झांप न घन ।
ताप न धन ! ।।
सुर नूर अप्रमान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।१७।।
सदा उदित ।
जुदा अमृत ।।
न दूज बस मुस्कान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।१८।।
तेजो द्रुम ।
हो जो तुम ।।
क्यूँ शशि रवि सम्मान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।१९।।
गिर ज्ञाना ।
ज्यों भाना ।।
काँच न ज्योतिर्मान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२०।।
जा दर-दर ।
लगी खबर ।।
तुमसे तुम गुणखान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२१।।
पूरव माँ ।
सूर्य समां ।।
तुम तुम मात महान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२२।।
तुम तापस ।
गुम मावस ।।
मृत्युंजय वरदान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२३।।
हरि, ब्रह्मा ।
ईश महा ।।
और तोर पहचान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२४।।
पुरुषोत्तम ।
गुरु दृग् नम ।।
मारग ब्रह्म विधान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२५।।
पीरा-हर ।
तीरा-धर ।।
भू भूषण अम्लान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२६।।
दोष न घुन ।
कोष शगुन ।
विस्मय हेत न थान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२७।।
तर सुर तर ।
तन सुन्दर ।।
निकट मेघ दिनमान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२८।।
सिंहासन ।
तन कंचन ।।
प्रकट उदय गिर भान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।२९।।
चामर सुर ।
तन भासुर ।।
निर्झर मेर सुजान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३०।।
छतर तीन ।
अधर चीन ।।
अधपत तीन जहान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३१।।
आद तूर ।
नाद भूर ।।
दर यह सांच प्रधान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३२।।
दल ऊरध ।
डण्डल अध ।।
झिर गुल नन्द बगान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३३।।
रवि कोटि।
छबि मोती ।।
भा-वृत जन्म विधान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३४।।
पुन भारी ।
धुन न्यारी ।।
सुनते ही कल्याण ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३५।।
विहार पल ।
स्वर्ण कमल ।।
रचते देव विमान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३६।।
तुम महिमा ।
‘भान समां’ ।।
नखत न मिल द्युति-मान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३७।।
गज भागे ।
जप आगे ।।
जय तीर्थक गणमान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३८।।
सिंह भागे ।
जप आगे ।।
जय ध्वज दया गुमान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।३९।।
गुम आगी ।
लौं लागी ।।
जय पुरु पुरुष पुराण ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।४०।।
अहि भागे ।
जप आगे ।।
जय तीर्थेश प्रधान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।४१।।
रण हिस्से ।
जुड़ जप से ।।
जयतु ऋषभ भगवान् ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।४२।।
अरि भागे ।
जप आगे ।।
जय समता धनवान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।४३।।
तट खेवा ।
रट देवा ।।
एक मान अपमान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।४४।।
रोग शमन ।
योग भजन ।।
करुणा दया निधान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।४५।।
गत बन्धन ।
रत सुमरण ।।
गत रत द्वेष वितान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।४६।।
दुरन्त भय ।
तुरंत क्षय ।।
सार्थ नाम कल-यान ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।४७।।
माल गुणन ।
धार सुमन ।।
मान-तुंग निर्वाण ।
भक्तामर आदि-ब्रह्म गुणगान ।।४८।।
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