भक्ता-मर-स्तोत्र ७१
नृप नाभि तारक नयन ।
मुझे ले अपना तू,
तेरा मैं अपना हूँ,
माँ देवि मरु नन्दन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।
आराध्य भक्त अमर ।
इक मिथ्यातम अपहर ।।
जुग आदि तारण तरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।१।।
जन जन त्रिभुवन मन-हर ।
विरचित थति तुम इन्दर ।।
जग इक अकारण शरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२।।
हित संस्तव-तव तत्पर ।
मैं लाज-पत गवा कर ।।
पकडूँ जल-शशि शिशु बन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३।।
शशि गुण तुमरे गाकर ।
सुर-गुरू थके आखिर ।।
कब तट-जल विकट पवन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।४।।
मम शक्ति रही दम भर ।
तुम भक्ति लगाये ‘पर’ ।।
हित शिशु हिरण सिंह रण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।५।।
तुमरी उर लगन अखर ।
मुझको कर रही मुखर ।।
चित्-चोर पिक आम्र-वन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।६।।
लें केवल तुम्हें सुमर ।
क्षय कल्मष क्षण अन्दर ।।
तम चूर सूरज किरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।७।।
प्रभु तुम प्रसाद पाकर ।
थुति यह होगी मन हर ।।
कमल मुक्ताफल जल कण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।८।।
त्रुटि-दूर, दूर थुति स्वर ।
तुम कथा व्यथा अपहर ।।
रवि-गगन कमल विकसन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।९।।
गुण कीर्तन तुम गाकर ।
तुम भाँत भक्त गुण धर ।।
बदले-दैव, सेव-धन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।१०।।
डग जिगर, पल दृग् डगर ।
तकें तुम्हें टिके नजर ।।
इतर हि क्षीर नीर कण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।११।।
उतने बस वसुधा पर ।
रज कण सत् शिव सुन्दर ।।
इक विरचे ‘कि आप तन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।१२।।
सुर-नर उरग दृग् विहर ।
तुम मुख, मुख-उपमा-धर ।।
भाँत ढ़ाक पात शशि दिन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।१३।।
नापें छलाँग भर कर ।
त्रिजग तुम गुण छवि चन्दर ।।
भय कैसा ? आप शरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।१४।।
नैन-नक्स दिखाकर ।
थकी मेनका आखिर ।।
अचल, मेरु प्रलय पवन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।१५।।
अनबुझ हा ! पवन कहर ।
न तेल, न तले अन्धर ।।
तुम दीप त्रिजग रोशन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।१६।।
अगम्य हा ! राहु नजर ।
कहाँ हत-प्रभ पयोधर ।।
तम-चूर सूर त्रिभुवन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।१७।।
अन्धर विमोह अपहर ।
ग्रास मुख राहु न डर ।।
शशि पूनम अगम्य घन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।१८।।
निशि शशि क्यों दिन दिनकर ।
शशि तुम मुख जब तमहर ।।
पका नाज, काज किस घन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।१९।।
भेद विज्ञान समन्दर ।
कहाँ और घट अन्दर ।।
काँच इतर, इतर रतन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२०।।
भटकन न वृथा दर-दर ।
आ टिकी नजर तुम पर ।।
चित्-चोर न बाद मिलन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२१।।
सुत इक से इक बढ़कर ।
तुम मात पुत्र इक, पर ।।
दिश् पूर्व सहस्र किरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२२।।
कर-तार अजरामर ।
हर-तार कज अन्धर ।।
शिव-मारग अमिट चरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२३।।
शिव, विष्णु, जिष्णु, हरि, हर ।
जगदीश्वर, जोगीश्वर ।।
अरिहन्त प्रसिद्ध श्रमण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२४।।
नर-नाहर अभयंकर ।
प्रशम-कर शम्भु शंकर ।।
परब्रह्म बुद्ध मोहन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२५।।
जय जयति जग-पीर-हर ।
जय जयति जगदीश्वर ।।
जय जयति भूमि-भूषण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२६।।
बैठे चुन दोष अपर ।
हिस्से गुण आप इतर ।।
नर्तन गुण शगुन सपन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२७।।
तमहर तन तुम मनहर ।
शोभित तरु अशोक तर ।।
दिन-प्रदीप समीप घन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२८।।
अर सिंहासन मनोहर ।
तन कंचन तुम तापर ।।
उदित उदयाचल तरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।२९।।
औ’ चारु चौंसठ चँवर ।
देह वर्ण स्वर्ण अवर ।।
तट मेर-धार जल-कण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३०।।
हत-प्रभ प्रभा प्रभाकर ।
छवि चन्दर, छतर अधर ।।
जगदीश झालर कथन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३१।।
ले मनहर गभीर स्वर ।
भेरी तुम जश अक्षर ।।
जयति सद्धर्म माहनन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३२।।
नामक-नमेरु-सुन्दर ।
झिर पुष्प सतत अम्बर ।।
गन्धोदक मन्द पवन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३३।।
जित भा उपमा परिकर ।
वलय प्रभा प्रभा-निकर ।।
रवि-रवि छवि शशि पूरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३४।।
मग मोक्ष मील-पत्थर ।
दिग्दर्शक तत्त्व-अमर ।।
नयन-दिव्य दिव्य-वयन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३५।।
पा तुम विहार अवसर ।
नव फुल्ल कमल पद तर ।।
कमल रचते देव गण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३६।।
विभव देशना जिनवर ।
कहाँ कहीं और नजर ।।
सिंह हिरण सम-शरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३७।।
कपोल मूल मद निर्झर ।
कुपित सुन गुन-गुन भ्रमर ।।
गज-भीति विहर सुमरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३८।।
नखन विदार कुम्भ थल ।
मणि श्रृंगारा भू-तल ।।
सिंह-भीति विहर सुमरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।३९।।
नभ, मारुत हाथ पकड़ ।
जग निगला चाहे बढ़ ।।
भय-अग्नि विहर सुमरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।४०।।
दृग-लाल, देह काजर ।
उगले फुंकार जहर ।।
भय-सर्प विहर सुमरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।४१।।
रव भीम अश्व कुंजर ।
ढ़ाये नृप-सैन्य कहर ।।
रण-भीति विहर सुमरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।४२।।
गज देह रक्त सरवर ।
पर चक्र तरे डग-भर ।।
भय-शत्रु विहर सुमरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।४३।।
तूफाँ, समन्दर मगर ।
बड़वानल जाल लहर ।।
भय-भँवर विहर सुमरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।४४।।
पीछे हाथ धोकर ।
जान लेवा जलोदर ।।
भय-रोग विहर सुमरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।४५।।
तन साँकल बाँध जकर ।
दिया ताला काराघर ।।
भय-बन्धन हर सुमरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।४६।।
गज, सिंह, रुज, दाव, समर ।
बाडव, बन्धन, विषधर ।।
भय-विघ्न विहर सुमरण ।
नृप नाभि तारक नयन ।।४७।।
गुन्थित चुन पुष्प अखर ।
गुणमाल यह कण्ठ धर ।।
मुक्ति ‘मान-तुंग’ गमन ।
नृप नाभि तारक नयन ।।४८।।
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