भक्ता-मर-स्तोत्र ६०
विश्व हितंकर ! पुरु ! प्रीतंकर !
आदिनाथ भगवान् ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।
भक्त अमर झुक झुके चरण में,
चमके मुकुट रतन हैं ।
पाप रूप अँधियार मेंटने,
रवि की प्रथम किरण हैं ।।
भव जल पतित हेत आद जुग,
नैय्या-मोक्ष समान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।१।।
द्वादशांग माँ जिनवाणी से,
जिसका गहरा नाता ।
मनहर छन्दों में शचि-पति वह,
गाथा आप रचाता ।।
देवि मातुश्री मरु नन्दन का,
करता मैं गुण-गान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२।।
पाद पीठ तुम विद्वानों ने,
माना ताज समाना ।
मैं मति मन्द आप गुण कीर्तन,
मानो लाज गवाना ।।
चला पकड़ने चाँद छाहरी,
जल बस शिशु अनजान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३।।
टेढ़ी खीर शगुन गुण सागर,
तुमरी गौरव गाथा ।
बैठे सुर-गुरु बृहस्पती भी,
पकड़े अपना माथा ।।
प्रलय पवन जल मगर पार उस,
भुजबल कौन पुमान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।४।।
थुति प्रस्तुति हित भक्ती तेरी,
मींचे आँख धकाये ।
करूँ नाथ ! क्या ? शक्ती मेरी,
पीछे हाथ बुलाये ।।
वशि शिशु नेह मृगी जा भिड़ती,
भले सींह बलवान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।५।।
पात्र बनूँगा बुध-जन आगे,
हा ! मैं सिर्फ हँसी का ।
भक्ति करे वाचाल आपकी,
वैसे मैं नौ-सीखा ।।
कोकिल कूक सुरीली कारण,
बौर आम्र बागान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।६।।
संचित सुचिर पाप चिर सिंचित,
जितने उतने सारे ।
तव संस्तव से पलक मात्र में,
होते यम को प्यारे ।।
छू-मन्तर अन्धर पल अन्दर,
छूकर के दिनमान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।७।।
तुम प्रसाद से जन सज्जन मन,
हर लेगी तुक-बन्दी ।
वैसे मैं माटी-माधो, गुल-
कागद गैर-सुगन्धी ।।
कमल-पत्र पर, पड़ जल कण मनु,
मोती आभावान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।८।।
रहे दूर निर्दोष आपका,
थवन भुवन मनहारी ।
नाथ आपकी पुण्य-कथा भी,
व्यथा मेंटती सारी ।।
सूर सुदूर गगन, सर पंकज,
सहज अलस अवसान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।९।।
भूत-नाथ ! भुवि-भूषण ! कब यह,
बात अचम्भे वाली ।
तुम सुमरत तुम भगत तुरत ही,
तुम सा वैभव शाली ।।
आगे एक कदम रस-पारस,
नाम-चीन धनवान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।१०।।
छव बिन झाँपे पलक झलक तुम,
‘हर बोलो’ बतलाते ।
तुझे देख फिर नैन जगत् के,
कहीं चैन ना पाते ।।
पानी क्षीर पिया छक, चाखे-
सागर कौन सुजान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।११।।
सत् शिव-सुन्दर, वसुन्धरा पर,
सार्थ नाम परमाणा ।
बुना जा सके सहज-निराकुल,
देह रूप तुम बाना ।।
रुप अनूप आपके जैसा,
तभी न और जहान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।१२।।
सुर, नर, नाग नयन मन-हारी,
कहाँ आपका मुखड़ा ।
जगत् जगत् जित उपमा-धारी,
दर्श विहर भव दुखड़ा ।।
कहाँ कलंकित मृग-लांछन मुख,
दिन पलाशवत् म्लान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।१३।।
गुण भा पूर्ण चंद्रमा दिश् दश,
जा विचरें मनमाने ।
लगता सा, हैं मचले सरहद,
तीन लोक की पाने ।।
रोके-टोके कौन उसे फिर,
जब तुमसे पहचान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।१४।।
स्वर्ग अप्सराएँ इक से इक,
बढ़ कर कदम बढ़ायें ।
पन्थ-आंख अवरुद्ध नाक तुम,
मन तक कैसे जायें ।।
भले ढ़ेर अर गिर सुमेर कब,
चले प्रलय पवमान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।१५।।
धूम ‘नदारद’, झूम शरारत,
तेल बिना, बिन बाती ।
चले भले पवमान प्रलय पर,
बुझा न जिसको पाती ।।
दीप अजब इक-साथ जगत् सब,
करते ज्योतिर्मान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।१६।।
बदली आँख तरेर न देखे,
राहु न ग्रस पाता है ।
त्रिभुवन भर देना प्रकाश से,
सिर्फ जिन्हें आता है ।।
बिन आताप प्रताप अपरिमित,
गगन अहिंसा भान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।१७।।
पहुँच सुदूर राहु मुख, शीतल,
झांप न बादल पाता ।
बन्दर बाँट बगैर, बांटना-
अमरित जिनको आता ।।
जग जग-मग जग-मग मुख चन्दर,
हर्ता मोह वितान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।१८।।
सारी रात चाँद फिरता क्यों,
फिरता रवि दिन सारा ।
शशि मुख आप देखते ही गुम,
भुवन-भुवन अँधियारा ।।
वृथा सजल घन गान, खड़ी जब,
पक खेतों में धान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।१९।।
स्व पर प्रकाशक भीतर तुम जो,
देता ज्ञान दिखाई ।
उसकी झलक पलक भी सुपनन,
औरों ने कब पाई ।।
भाँत रत्न कब किरणाकुल भी,
कांच-खण्ड द्युतिमान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२०।।
गया न विरथा, टेका मत्था,
दर दर जग इक स्वामी ।
देख तुम्हें यह हिवरा मेरा,
परम सौख्य आसामी ।।
कोई और न विहर पा रहा,
अब तुम दर्श गुमान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२१।।
पांत लगा कोई ना कोई,
नार बने माई है ।
हाथ बना गोदी कब तुम सा,
पुत्र झुला पाई है ।।
दिश्-दिश् तारा, तारा-दिन दिश्,
पूरब जन्मस्-थान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२२।।
साँझ साँझ तुमको ध्याते वह,
मृत्युंजय बन जाते ।
तुम्हीं दिखाते, दिव पथ शिव-पथ,
और लोग भटकाते ।।
इक पुनीत तुम पुण्यवान तुम,
तुम ही पुरुष पुरान ।।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२३।।
आद्य एक तुम, विभु अनेक तुम,
ब्रह्मा, विष्णु, महेशा ।
विदित योग, योगीश्वर, ईश्वर,
विगत राग, गत-द्वेषा ।।
तुम अचिन्त्य, तुम असंख्य, अव्यय,
अनन्त केवल ज्ञान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२४।।
अभ्यर्चित बुधजन सुबोध-धर,
ना ‘कि बुद्ध ही तुम हो ।
प्रद शिव सौख्य प्रशमकर शंकर,
शम्भु-रुद्र भी तुम हो ।।
पुरुषोत्तम तुम तुम्हीं विधाता,
शिव-पथ किया विधान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२५।।
तुम्हें नमन हे ! तीन लोक की,
पीर मिटाने वाले ।
तुम्हें नमन, हे ! भव सागर का,
तीर भिंटाने वाले ।।
तुम्हें नमन हे ! ईश्वर त्रिभुवन,
आन-बान वा शान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२६।।
विस्मय कहाँ ? अशेष गुणों ने,
सिर्फ तुम्हें चाहा हो ।
विविधाश्रय पा दोष गणों ने,
मद सर अवगाहा हो ।।
तभी न झाँकें, और और तो,
दोष स्वप्न भी आन ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२७।।
किरणोन्नत तरु अशोक माड़ा,
आ तुमने आसन है ।
और सुशोभित निर्विकार तुम,
कंचन जैसा तन है ।।
मेघ निकट तमहर तिमिरारी,
रवि स्फुरायमान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२८।।
मण विचित्र सिंहासन कंचन,
सारे जग से न्यारा ।
अर सोने सुहाग सोने सा,
तन तुम अतिशय प्यारा ।।
उदित दिवाकर, उदयाचल मनु,
किरण जाल अप्रमान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।२९।।
कुन्द पुष्प से ढुरते चॉंवर,
श्रुति चौंसठ गिनती है ।
शोभा तुम तन कनक सीखी,
लखते ही बनती है ।।
निर्झर झिरे चाँदनी उछले,
तट-गिर मेरु प्रधान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३०।।
भान प्रताप तिरोहित करते,
ऊपर अधर विराजे ।
चल मुक्ताफल झालर मण्डित,
लिये चाँदनी-भा जे ।।
छतर तीन जग तीन-तीन इक,
परमेश्वर परमाण ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३१।।
विदिश् दिश् लगा फेरी भेरी,
तेरी पीटे डंका ।
यहाँ विराजे धर्म राज सत्,
करें दूर सब शंका ।।
शब्द गहन गंभीर, भूति-शुभ-
संगम करें प्रदान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३२।।
वन नन्दन धन ! कल्प वृक्ष के,
पुष्प झिरें लग ताँता ।
पवन मन्द, दल-देव वृन्द गण,
जल सुगंध छिड़काता ।।
बिखरें लग कतार दिव-वचना,
मनु चिर साधी तान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३३।।
सुन्दर से सुन्दर भा-उपमा,
जिसके आगे फीकी ।
कोटि-कोटि सूरज प्रताप पै,
सोम सौम्य भा नीकी ।।
भा-वृत दर्पण सात-सात भव,
भवि ! विराग सोपान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३४।।
तुम धुन दिव्य स्वर्ग सुख अक्षर,
चरण चिन्ह जैसी है ।
विद् पदार्थ नव, सात सांच जे,
ऐसी ना वैसी है ।।
बदल चले ‘भाषा’ भाषा में,
साध जगत् कल्याण ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३५।।
दल सहस्र कमलों की आभा,
आगे जिनके ऊनी ।
पूर्ण चाँदनी भांत पांत नख,
कर चालें भा दूनी ।।
चरण आप रखते सुर रचते,
कमल अपूर्व अजान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३६।।
वैभव धर्म देशना जैसा,
आप करे अर्चा है ।
कहाँ और जग कहो हिरण-सिंह,
सम-शरणा चर्चा है ।।
नखत नखत छव मिलकर भी कब,
रवि सी महिमावान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३७।।
मूल कपोल झिरे बन निर्झर,
मद की अविरल धारा ।
कोप बढ़ाये गुनगुन करता,
भंवरों का दल काला ।।
बने सहज गज नाम आपका,
पड़ता ज्यों ही कान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३८।।
कुंजर कुम्भ विदारा जिसने,
तीक्ष्ण नखों के द्वारा ।
लथपथ खून मोतियों से फिर,
भू-मण्डल श्रृंगारा ।।
सिंह वह नाम, आपका सुनके,
करे गुफा प्रस्थान ।।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।३९।।
प्रलय पवन का हाथ थाम कर,
छूती नभ आँगन है ।
आगे निकलूॅं त्रिभुवन निगलूँ,
सिर्फ एक भावन है ।।
बुझे अनल वह आप नाम जल,
मन्त्र प्रभाव महान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।४०।।
भाँत कोकिला कण्ठ श्यामला,
लाल लाल दृग् वाला ।
फुंकारे विष उगल चले हा !
हहा ! फना विकराला ।।
भागे नाग नाग-दमनी तुम,
रखा ‘कि नाम जुबान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।४१।।
फटे गगन घोड़े हुंकारें,
चिंघाड़ें रद-हाथी ।
वायु वेग ले बढ़ी आ रही,
नृप सेना उत्पाती ।।
भक्ति भान तुम देख तिमिर सा,
घर-यम करे प्रयाण ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।४२।।
नोंकदार भाले गज तन से,
फूटा खूनी झरना ।
साथ वेग जोधा बन आतुर,
चाहें जिसको तरना ।।
रहते वक्त भक्त तुम चूरे,
शत्रु-पक्ष अभिमान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।४३।।
बडवानल है जल ही जल है,
भंवर लहर अनगिनती ।
जिसमें जलचर जन्तु प्रजाति,
नहीं कौन वह मिलती ।।।
जाप नाम तुम जपा तुरत ही,
सिन्धु पार जल-यान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।४४।।
वात-पित्त-कफ तीनों ने मिल,
दृग्-तरेर देखा है ।
ना जायेगा प्राण लिये बिन,
रोग जान-लेवा है ।।
नाम आप संजीवन करता,
संचारित नव प्राण ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।४५।।
पड़ी बेड़ियां पैरों में, हा ! तन
साँकल से जकड़ा ।
कंधे छिले, छिलीं जंघाएँ,
सुने न कोई दुखड़ा ।।
कारा वह बन्धन खुल पड़ते,
करते ही तुम ध्यान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।४६।।
गज मतवाला, पंचानन हा !,
दावानल अहि काला ।
समर कराला, बन्धन हा ! हा !
बड़वानल गृह-कारा ।।
तुम सिमरन इन आदि भयों का,
मेंटे नाम निशान ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।४७।।
गुण बागान आप चुन चुन बुन,
आखर पुष्प बनाई ।
यह गुण माल कण्ठ में अपने,
जिनने भी पहराई ।।
मान-तुंग वे ‘सहज निराकुल’
पाते पद निर्वाण ।
वन्दौं सर्व प्रथम तीर्थंकर,
आदिनाथ भगवान् ।।४८।।
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