भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
पहला श्लोक
एक शरण ।
सदैव… देव-देव,
आप चरण ।।१।।
रखना पास ।
सदैव… देव-देव,
ये तुच्छ दास ।।२।।
सुबहो शाम ।
सदैव… देव-देव,
डूब प्रणाम ।।३।।
रहे हमारी ।
सदैव… देव-देव,
कृपा तिहारी ।।४।।
सौभाग्य मेरा ।
सदैव… देव-देव,
सानिध्य तेरा ।।५।।
रखना हमें ।
सदैव… देव-देव,
छत-छाँह में ।।६।।
हो शीश मोर ।
सदैव… देव-देव,
आशीष तोर ।।७।।
रखना बना ।
सदैव… देव-देव,
आशीष घना ।।८।।
रखना साथ ।
सदैव… देव-देव,
थाम के हाथ ।।९।।
गिरूँ उठाना ।
सदैव… देव-देव,
मुझे धकाना ।।१०।।
एक प्रार्थना ।
सदैव… देव-देव,
दृष्टि राखना ।।११।।
तेरा सहारा ।
सदैव… देव-देव,
मैं भी तुम्हारा ।।१२।।
कृपा बरसे ।
सदैव… देव-देव,
तुम्हार दृग् से ।।१३।।
रखना गोदी ।
सदैव… देव-देव,
धी मेरी मोटी ।।१४।।
बढ़ता चालूॅं ।
सदैव… देव-देव,
मंजिल पा लूँ ।।१५।।
रखना ध्यान ।
सदैव… देव-देव,
हूॅं मैं नादान ।।१६।।
देना पनाह ।
सदैव… देव-देव,
दिखाना राह ।।१७।।
था हूॅं तेरा ही ।
सदैव… देव-देव,
मैं रहूॅंगा भी ।।१८।।
मुझे बचाना ।
सदैव… देव-देव,
नजर नाना ।।१९।।
रहना मेरे ।
सदैव… देव-देव,
घने अंधेरे ।।२०।।
राखना पत ।
सदैव… देव-देव,
भुलाना मत ।।२१।।
देना मुआफी ।
सदैव… देव-देव,
भुला गुस्ताखी ।।२२।।
राखना लाज ।
सदैव… देव-देव,
जो दूँ आवाज ।।२३।।
बढ़ाना आगे ।
सदैव… देव-देव,
थामना धागे ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
दूसरा श्लोक
सौधर्म पार ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं मँझधार ।।१।।
‘सौ’ धर्म पाया ।
दृष्टि दो इक उठा,
‘हा’ ! मैं ठगाया ।।२।।
इन्द्र निहाला ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं भी तुम्हारा ।।३।।
इन्द्र आसमॉं ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं निराश हा ! ।।४।।
सौ-धर्म चांदी ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं मलूॅं गादी ।।५।।
सौधर्म फाग ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं हतभाग ।।६।।
इन्द्र सफल ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं दृग् सजल ।।७।।
सौ धर्म साधो ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं माटी माधो ।।८।।
सौधर्म तट ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं मूढ़ मत ।।९।।
सौधर्म तीर ।
दृष्टि दो इक उठा,
दृग् मोर नीर ।।१०।।
सौधर्म नभ ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं हतप्रभ ।।११।।
इन्द्र दीवाली ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं हाथ खाली ।।१२।।
इन्द्र समोद ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं खेद गोद ।।१३।।
सौधर्म झूम ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं भार भूम ।।१४।।
सौधर्म जीते ।
दृष्टि दो इक उठा,
दृग् मम तीते ।।१५।।
सौधर्म दीया ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं बाल धिया ।।१६।।
इन्द्र चर्चा में ।
दृष्टि दो इक उठा,
रोऊॅं वर्षा मैं ।।१७।।
खम् सौधरम ।
दृष्टि दो इक उठा,
मम स्वप्न खम् ।।१८।।
इन्द्र सुर’भी ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं भी करीबी ।।१९।।
इन्द्र गगन ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं धूल कण ।।२०।।
सौधर्म पंख ।
दृष्टि दो इक उठा,
‘मैं’ तर पंक ।।२१।।
सौधर्म वक्त ।
दृष्टि दो इक उठा,
पीछे शिकस्त ।।२२।।
सौधर्म यश ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं कर्म वश ।।२३।।
इन्द्र पारखी ।
दृष्टि दो इक उठा,
मैं बाल अभी ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
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तीसरा श्लोक
धी हंस केल ।
आप गौरव गाथा,
हँसी न खेल ।।१।।
लाती दृग् नीर ।
आप गौरव गाथा,
है टेड़ी खीर ।।२।।
टिकें घुटने ।
आप गौरव गाथा,
लोहे के चने ।।३।।
चढ़ाई खड़ी ।
आप गौरव गाथा,
कठिन बड़ी ।।४।।
कदम रखा ।
आप गौरव गाथा,
धरण थका ।।५।।
अगम देश ।
आप गौरव गाथा,
केशरी केश ।।६।।
दुरुह बड़ी ।
आप गौरव गाथा,
नागन मणी ।।७।।
अमाप धन ! ।
आप गौरव गाथा,
नॉंप गगन ।।८।।
केल फिर के ।
आप गौरव गाथा,
मेल दिरके ।। ।।९।।
दौड़ हिरन ।
आप गौरव गाथा,
व्यूह भेदन ।।१०।।
साधना फल ।
आप गौरव गाथा,
बाँधना जल ।।११।।
कंचे पे कंचा ।
आप गौरव गाथा,
हांप विरंचा ।।१२।।
वज्जर भेद ।
आप गौरव गाथा,
कज्जर श्वेत ।।१३।।
उधेड़ बुन ।
आप गौरव गाथा,
बेजोड़ पुन ।।१४।।
मण्डूक तोल ।
आप गौरव गाथा,
घूमना कोल्ह ।।१५।।
शश चढ़ाव ।
आप गौरव गाथा,
पांव दो नाव ।।१६।।
भूल भुल्लैया ।
आप गौरव गाथा,
ध्रुव तरैया ।।१७।।
पत्थर नाज ।
आप गौरव गाथा,
अन्तर् आवाज ।।१८।।
छोटी न बात ।
आप गौरव गाथा,
ज्योति अज्ञात ।।१९।।
तारे तोड़ना ।
आप गौरव गाथा,
धार मोड़ना ।।२०।।
पुण्य प्रताप ।
आप गौरव गाथा,
संजोग आप ।।२१।।
भान बखान ।
आप गौरव गाथा,
दिवान्ध वाण ।।२२।।
मेर शिखर ।
आप गौरव गाथा,
पैर विगर ।।२३।।
मूक कहता ।
आप गौरव गाथा,
है कैसी सुधा ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
चौथा श्लोक
गाथा क्या गाते ।
आप श्री सुर-गुरु,
माथा झुकाते ।।१।।
गा गुण गाने ।
आप श्री सुर-गुरु,
चित् चारों खाने ।।२।।
गा-के विरद ।
आप श्री सुर-गुरु,
थके तुरत ।।३।।
गा के गजलें ।
आप श्री सुर-गुरु,
ताकें बगलें ।।४।।
गा-के नगमे ।
आप श्री सुर-गुरु,
बैठे मग में ।।५।।
गा गुण तुम ।
आप श्री सुर-गुरु,
लो गुमसुम ।।६।।
किया वर्णन ।
आप श्री सुर-गुरु,
कादे चरण ।।७।।
गुण गाकर ।
आप श्री सुर-गुरु,
थके आखर ।।८।।
गा जर्रा जश ।
आप श्री सुर-गुरु,
कहते बस ।।९।।
कीरत गाई ।
आप श्री सुर-गुरु,
रत जंभाई ।।१०।।
गुण विस्तार ।
आप श्री सुर-गुरु,
चुनते हार ।।११।।
बोल दो बोल ।
आप श्री सुर-गुरु,
लो डामाडोल ।।१२।।
छेड़ी क्या तान ।
आप श्री सुर-गुरु,
पकड़े कान ।।१३।।
जै माल गोते ।
आप श्री सुर-गुरु,
उड़ते तोते ।।१४।।
वर्णन कीना ।
आप श्री सुर-गुरु,
तर पसीना ।।१५।।
कहने बैठे ।
आप श्री सुर-गुरु,
घुटने टेके ।।१६।।
बता कौन थे ? ।
आप श्री सुर-गुरु,
मौन साधते ।।१७।।
जश मारग ।
आप श्री सुर-गुरु,
लौटाये पग ।।१८।।
ऊँचाई नाप ।
आप श्री सुर-गुरु,
आ भरी हाँप ।।१९।।
जश क्या जुड़े ।
आप श्री सुर-गुरु,
पाँव उखड़े ।।२०।।
सुना कहानी ।
आप श्री सुर-गुरु,
दृग् लाये पानी ।।२१।।
छू सरगम ।
आप श्री सुर-गुरु,
छुई शरम ।।२२।।
गुणों को जोड़ ।
आप श्री सुर-गुरु,
न पार पोर ।।२३।।
सुना के किस्से ।
आप श्री सुर-गुरु,
झेंपना हिस्से ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
पांचवां श्लोक
आप कीर्तन ।
न शक्ति…वश भक्ति,
नापूॅं गगन ।।१।।
गुण गणना ।
न शक्ति…वश भक्ति,
अंगद बना ।।२।।
आप विरद ।
न शक्ति…वश भक्ति,
लांघूॅं समुद ।।३।।
जश तुम्हार ।
न शक्ति…वश भक्ति,
ढ़ेलूँ पहाड़ ।।४।।
‘बड़’ नवाता ।
न शक्ति…वश भक्ति,
तुम जै गाथा ।।५।।
आप नगमे ।
न शक्ति…वश भक्ति,
मैदान जमे ।।६।।
आप गजल ।
न शक्ति…वश भक्ति,
जिह्वा चपल ।।७।।
आप महिमा ।
न शक्ति…वश भक्ति,
छुऊँ आसमां ।।८।।
आप बखान ।
न शक्ति…वश भक्ति,
दी छेड़ तान ।।९।।
माहात्म तुम ।
न शक्ति…वश भक्ति,
गूथूॅं कुसुम ।।१०।।
संस्तव तोर ।
न शक्ति…वश भक्ति,
शामिल होड़ ।।११।।
चित्रण आप ।
न शक्ति…वश भक्ति,
साधूॅं आलाप ।।१२।।
तिहार गीत ।
न शक्ति…वश भक्ति,
टक्कर भीत ।।१३।।
स्तुति तुमरी ।
न शक्ति…वश भक्ति,
सुर लहरी ।।१४।।
आप जै-माल ।
न शक्ति…वश भक्ति,
बजाऊँ गाल ।।१५।।
आप तराने ।
न शक्ति…वश भक्ति,
तत्पर गाने ।।१६।।
तुम संकथा ।
न शक्ति…वश भक्ति,
गा न छकता ।।१७।।
तुम कविता ।
न शक्ति…वश भक्ति,
डूब लिखता ।।१८।।
तुम कहानी ।
न शक्ति…वश भक्ति,
कहूँ क्या हानी ।।१९।।
तुम कीरत ।
न शक्ति…वश भक्ति,
मानूॅं तीरथ ।।२०।।
तुम श्री वार्ता ।
न शक्ति…वश भक्ति,
सिर धारता ।।२१।।
तिहार किस्सा ।
न शक्ति…वश भक्ति,
ले रखा हिस्सा ।।२२।।
आप आख्यान ।
न शक्ति…वश भक्ति,
फेरुँ विधान ।।२३।।
आप संकीर्ति ।
न शक्ति…वश भक्ति,
उमड़े प्रीति ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
छठवां श्लोक
जन्म भू भार ।
मुखर… भक्ति भर,
दो लगा पार ।।१।।
धी वैसे मोटी ।
मुखर… भक्ति भर,
दो बैठा गोटी ।।२।।
धी जोड़-तोड़ ।
मुखर… भक्ति भर,
दो थमा छोर ।।३।।
नौ सीखा हूँ मैं ।
मुखर… भक्ति भर,
लिखाना तुम्हें ।।४।।
भूलों से रिश्ता ।
मुखर… भक्ति भर,
दो दिखा रस्ता ।।५।।
कटी पतंग ।
मुखर… भक्ति भर,
भर दो रंग ।।६।।
सछिद्र नैय्या ।
मुखर… भक्ति भर,
आप खिवैय्या ।।७।।
रूठी धी हंसी ।
मुखर… भक्ति भर,
न होवे हॅंसी ।।८।।
बुद्धि का काचा ।
मुखर… भक्ति भर,
कहाऊॅं साँचा ।।९।।
काग आलाप ।
मुखर… भक्ति भर,
सारथी आप ।।१०।।
खिलौने हाथ ।
मुखर… भक्ति भर,
रहना साथ ।।११।।
नाम का बुद्ध ।
मुखर… भक्ति भर,
हो इष्ट सिद्ध ।।१२।।
हूँ मैं अबोध ।
मुखर… भक्ति भर,
दो दिव्य ज्योत ।।१३।।
हूँ भोला भाला ।
मुखर… भक्ति भर,
लूँ खोल ताला ।।१४।।
कुण्ठित मति ।
मुखर… भक्ति भर,
करो की’मती ।।१५।।
पर..ज्ञा प्रज्ञा ।
मुखर… भक्ति भर,
आप पे श्रद्धा ।।१६।।
हूँ माटी माधो ।
मुखर… भक्ति भर,
पगड़ी बाँधो ।।१७।।
निरा अजान ।
मुखर… भक्ति भर,
रखना ध्यान ।।१८।।
संजोग गुमाँ ।
मुखर… भक्ति भर,
दो रंग जमा ।।१९।।
हूँ अभी नादाँ ।
मुखर… भक्ति भर,
जाऊँ आराधा ।।२०।।
बाल कहाता ।
मुखर… भक्ति भर,
भाग लिखाता ।।२१।।
मेधा मैं-धावी ।
मुखर… भक्ति भर,
दो कामयाबी ।।२२।।
देवानां प्रिय ।
मुखर… भक्ति भर,
आश त्वदीय ।।२३।।
हूँ प्रज्ञा शून ।
मुखर… भक्ति भर,
हो मंशा पून ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
सातवां श्लोक
संचित चिर ।
पाप… ध्याते ही आप,
चलते झिर ।।१।।
जमे बड़ से,
पाप… ध्याते ही आप,
हिलें जड़ से ।।२।।
हा ! दुखदाई ।
पाप… ध्याते ही आप,
हों धरासाई ।।३।।
भाँत पहाड़ ।
पाप… ध्याते ही आप,
हों छार छार ।।४।।
भौ-भवान्तर ।
पाप… ध्याते ही आप,
लो छू मन्तर ।।५।।
जोड़े बरस ।
पाप… ध्याते ही आप,
जाते विहँस ।।६।।
हट, चिक्कट ।
पाप… ध्याते ही आप,
जाते विघट ।।७।।
नेक भौ कृतम् ।
पाप… ध्याते ही आप,
सभी खतम ।।८।।
माया समेत ।
पाप… ध्याते ही आप,
मटियामेट ।।९।।
भवद मूल ।
पाप… ध्याते ही आप,
धूमिल धूल ।।१०।।
दुखदा सारे ।
पाप… ध्याते ही आप,
यम को प्यारे ।।११।।
नाते अरिष्ट ।
पाप… ध्याते ही आप,
होते विनष्ट ।।१२।।
लौटती डाक ।
पाप… ध्याते ही आप,
ओझल आँख ।।१३।।
यम औतारा ।
पाप… ध्याते ही आप,
नव दो ग्यारा ।।१४।।
नाता कहर ।
पाप… ध्याते ही आप,
लगाता पर ।।१५।।
बदसलूक ।
पाप… ध्याते ही आप,
लो टूक-टूक ।।१६।।
सुचिर खले ।
पाप… ध्याते ही आप,
खिसक चले ।।१७।।
विपद प्रदा ।
पाप… ध्याते ही आप,
तुरत हवा ।।१८।।
क्रूर, ततूर ।
पाप… ध्याते ही आप,
दूर सुदूर ।।१९।।
प्रद आपद ।
पाप… ध्याते ही आप,
लो नदारद ।।२०।।
नये-पुराने ।
पाप… ध्याते ही आप,
चित् चार खाने ।।२१।।
तम अमाप ।
पाप… ध्याते ही आप,
उठते काँप ।।२२।।
रिश पालते ।
पाप… ध्याते ही आप,
रिस चालते ।।२३।।
नेक प्रकार ।
पाप… ध्याते ही आप,
एक किनार ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
आठवां श्लोक
नागों का हार ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
लाखों किनार ।।१।।
शूली स्यंदन ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
धूली चन्दन ।।२।।
आग का जल ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
दाग, काजल ।।३।।
भीतर ज्योती ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
ज्वार के मोती ।।४।।
आँगन गुरु ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
पाहन पुरु ।।५।।
निर्विष छोरा ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
जश बेजोड़ा ।।६।।
सार्थ धी..वर ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
पात्र भी’तर ।।७।।
‘नन्दन’ भील ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
बन्धन ढ़ील ।।८।।
श्वान विमान ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
स्व पहचान ।।९।।
स्वर्ग मेंढ़क ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
स्वर्ण महक ।।१०।।
द्वार दरार ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
सार दृग् चार ।।११।।
धागा कपड़ा ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
भागा दुखड़ा ।।१२।।
वजर अंग ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
चुनर रंग ।।१३।।
पंख पीछिका ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
पंक दीपिका ।।१४।।
काँच दर्पण ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
साँच दर्शन ।।१५।।
कांचन पंख ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
लाञ्छन शंख ।।१६।।
केशरी वीर ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
भौ तरी तीर ।।१७।।
शिखर पाँव ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
डगर छांव ।।१८।।
मिट्टी मटकी ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
मुट्टी लख की ।।१९।।
द्यु हो…शियार ।।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
फल्ली दी ग्वार ।।२०।।
‘पाई’ गिंजाई ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
‘माई’ सहाई ।।२१।।
ग्वाल निहाल ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
भाल गुलाल ।।२२।।
नागन पत ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
भाग सुमत ।।२३।।
नभ चरण ।
न्यारी… कृपा तुम्हारी,
शुभ पावन ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
नवमां श्लोक
मुक्ति सारथी ! ।
आप जाप मात्र से,
दृष्टि पारखी ।।१।।
दीन दयाल ! ।
आप जाप मात्र से,
प्रवीण बाल ।।२।।
पापों की ढ़ेर ।
आप जाप मात्र से,
आपों ही ढ़ेर ।।३।।
हाँप विराम ! ।
आप जाप मात्र से,
हाथ मुकाम ।।४।।
नम दृग् कोर ! ।
आप जाप मात्र से,
सुलझे डोर ।।५।।
माँ किरदार ! ।
आप जाप मात्र से,
नौका किनार ।।६।।
नाथ भुवन ! ।
आप जाप मात्र से,
हाथ गगन ।।७।।
सिद्ध समाध ! ।
आप जाप मात्र से,
विशुद्धि हाथ ।।८।।
दर-ए-साँचे ! ।
आप जाप मात्र से,
पलटें पाँसे ।।९।।
प्रीत धी हंसी ! ।
आप जाप मात्र से,
भीतर खुशी ।।१०।।
दया दुकूल ! ।
आप जाप मात्र से,
भय निर्मूल ।।११।।
पूरण मंश ! ।
आप जाप मात्र से,
विघ्न विध्वंश ।।१२।।
आलस शून ! ।
आप जाप मात्र से,
साहस दून ।।१३।।
अन्तः विराट ! ।
आप जाप मात्र से,
खुलती गाँठ ।।१४।।
अखीर आश ! ।
आप जाप मात्र से,
दो टूक पाश ।।१५।।
अबुझ ज्योती !
आप जाप मात्र से,
उदक मोती ।।१६।।
निस्कण्ठ पथ !
आप जाप मात्र से,
कण्ठ शारद ।।१७।।
अन…तरंग ! ।
आप जाप मात्र से,
नभ पतंग ।।१८।।
स्व निध धनी ! ।
आप जाप मात्र से
निध अपनी ।।१९।।
मुख मयंक !
आप जाप मात्र से,
लगते पंख ।।२०।।
सहाई ! ओट ! ।
आप जाप मात्र से,
विदाई खोट ।।२१।।
सम्यक् दरश ! ।
आप जाप मात्र से,
अश्रु हरष ।।२२।।
शिव जहाज ! ।
आप जाप मात्र से,
सीझते काज ।।२३।।
राग दो भाग ! ।
आप जाप मात्र से
भाग सौभाग ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
दशमां श्लोक
कागद गुल ।
अपना लो…बना लो,
शारद कुल ।।१।।
पैंना पाषाण ।
अपना लो…बना लो,
जैना भगवान् ।।२।।
माथे ‘मैं’ रेख ।
अपना लो…बना लो,
लाखों में एक ।।३।।
आँखन पाटी ।
अपना लो…बना लो,
पाँवन माटी ।।४।।
माटी का माधो ।
अपना लो…बना लो,
चोटी का साधो ।।५।।
हा ! खोटा सिक्का ।
अपना लो…बना लो,
आँखों का सच्चा ।।६।।
ठेठ बाँस मैं ।।
अपना लो…बना लो,
बांसुरी हमें ।।७।।
बगुला भक्त ।
अपना लो…बना लो,
बदला वक्त ।।८।।
बबाल मत ।
अपना लो…बना लो,
मन बाल वत् ।।९।।
काँच किराच ।
अपना लो…बना लो,
साँच उवॉंच ।।१०।।
तेली का नन्दी ।
अपना लो…बना लो,
‘भी’ माँ सम्बन्धी ।।११।।
प्रति स्वारथ ।
अपना लो…बना लो,
प्रतिभा रत ।।१२।।
माटी सियाही ।
अपना लो…बना लो,
मुझे सुराही ।।१३।।
वानर मुट्ठी ।
अपना लो…बना लो,
नाहर बुद्धि ।।१४।।
हा ! रागी द्वेषी ।
अपना लो…बना लो,
आत्मानवेशी ।।१५।।
क…पास नाम ।
अपना लो…बना लो,
क…पड़ा, स्वाम ! ।।१६।।
गहल सेन ।
अपना लो…बना लो,
सजल नैन ।।१७।।
बुध नाम का ।
अपना लो…बना लो,
कुछ काम का ।।१८।।
डरा सहमा ।
अपना लो…बना लो,
सहज धर्मा ।।१९।।
अज्ञान हावी ।
अपना लो…बना लो,
विज्ञ मेधावी ।।२०।।
बड़ा बिगड़ा ।
अपना लो…बना लो,
साफ सुथरा ।।२१।।
लकड़ी टेढ़ी,
अपना लो…बना लो,
तमूरा ए’जी ।।२२।।
न अजनबी ।
अपना लो…बना लो,
स्व अनुभवी ।।२३।।
मूरख नेता ।
अपना लो…बना लो,
ऊरध रेता ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
ग्यारहवां श्लोक
बेहद प्यारा ।
तोर ‘दर्शन’ और
उदक खारा ।।१।।
बेशकीमती ।
तोर ‘दर्शन’ और
भेष कीमती ।।२।।
दृग् वस जाता ।
तोर ‘दर्शन’ और
दृग् बस जाता ।।३।।
दस्तक हल ।
तोर ‘दर्शन’ और
मस्तक शल ।।४।।
आकाश गंगा ।
तोर ‘दर्शन’ और
वाताश अंधा ।।५।।
बागवॉं बाग ।
तोर ‘दर्शन’ और
बाग वा काग ।।६।।
कस्तूरी मृग ।
तोर ‘दर्शन’ और
ततूरी मग ।।७।।
मेर पावन ।
तोर ‘दर्शन’ और
ढ़ेर पाहन ।।८।।
झूमती झील ।
तोर ‘दर्शन’ और
घूमती चील ।।९।।
जुदा चिराग ।
तोर ‘दर्शन’ और
मृदा चिराग ।।१०।।
शीशमहल ।
तोर ‘दर्शन’ और
शीशम-हल ।।११।।
लेख वजर ।
तोर ‘दर्शन’ और
लेखन जल ।।१२।।
मठ कलशा ।
तोर ‘दर्शन’ और
मट, कलशा ।।१३।।
जल-बादल ।
तोर ‘दर्शन’ और
दल बादल ।।१४।।
झांझ, दीवाली ।
तोर ‘दर्शन’ और
साँझ की लाली ।।१५।।
नूर नयन ।
तोर ‘दर्शन’ और
दूर न… मन ।।१६।।
सर पयोज ।
तोर ‘दर्शन’ और
सर पे बोझ ।।१७।।
मयूर पंख ।
तोर ‘दर्शन’ और
डपोर शंख ।।१८।।
भाँत कामगो ।
तोर ‘दर्शन’ और
मात्र नाम…गो ।।१९।।
सुरग शमा ।
तोर ‘दर्शन’ और
सुरंग समाँ ।।२०।।
अपने जैसा ।
तोर ‘दर्शन’ और
सपने पैसा ।।२१।।
नैना सुकून ।
तोर ‘दर्शन’ और
रैना अ-पून ।।२२।।
खुशी दृग् धारा ।
तोर ‘दर्शन’ और
दृग् जल खारा ।।२३।।
जल परी सा ।
तोर ‘दर्शन’ और
नकल खींसा ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
बारहवां श्लोक
पाँखुरी नैन ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
बाँसुरी वैन ।।१।।
आँखें पनीली ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
बातें सुरीली ।।२।।
श्री वत्स चिन ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
श्री, हस्त चिन ।।३।।
नख चन्दर ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
अख अन्दर ।।४।।
दृग् जल जात ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
दृग् जल हाथ ।।५।।
सुमेरु माथा ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
नमेरु नाता ।।६।।
कूर्मोन्-नतांध्री ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
सामुद्रिकांगी ।।७।।
सुकर्ण लोल ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
गोल कपोल ।।८।।
चारु चिबुक ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
नासिक शुक ।।९।।
भ्रुएँ धनुष ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
भूप मनुष ।।१०।।
बाल घूँघर ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
‘लाल’ चुनर ।।११।।
कुन्द पलकें ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
श्याह अलकें ।।१२।।
दाहिये तिल ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
दरियादिल ।।१३।।
पाँव सरोज ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
नाक न बोझ ।।१४।।
हया दृगों में ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
दया रगों में ।।१५।।
गजाद रेखा ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
समाध एका ।।१६।।
दूधिया रक्त ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
दुनिया भक्त ।।१७।।
कान्त अनूप ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
प्रशान्त रूप ।।१८।।
कन्ध शिखर ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
बिम्ब अधर ।।१९।।
शशि वदन ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
जश भुवन ।।२०।।
दरद मन्द ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
ककुद कंध ।।२१।।
चरित्र तीर्थ ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
महित कीर्त ।।२२।।
दूजा न और ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
खुद सा गौर ।।२३।।
कर कॅंवल ।
तू जोड़ जुदा मृदा,
चॅंवर दल ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
तेरहवां श्लोक
गौर कहत ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
न और जगत् ।।१।।
रैनाभिराम ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
नैनाभिराम ।।२।।
‘जी मटमैला ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
हट…अकेला ।।३।।
बुत गुमान ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
खुद समान ।।४।।
गुम ऽमा पूरी ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
आसमाँ नूरी ।।५।।
ओझल अमा ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
कोंपल समां ।।६।।
गुम मावस ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
नम पावस ।।७।।
कड़ा अन्दर ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
बड़ा सुन्दर ।।८।।
बड़ा दिठौना ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
बड़ा सलोना ।।९।।
संचित गुमाँ ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
जित उपमा ।।१०।।
झेंप आँखों में ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
एक लाखों में ।।११।।
दिन पलाश ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
शगुन खास ।।१२।।
विष कुटुम ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
दुष्कृत गुम ।।१३।।
निशा निछार ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
सदाबहार ।।१४।।
दागों से भरा ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
बागों सा हरा ।।१५।।
बगलें झाँके ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
जैसे ही ताँके ।।१६।।
नाम का गोल ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
सौम्य सुडोल ।।१७।।
वृत्त गौर है ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
चित्त चोर है ।।१८।।
सिन्ध उछाल ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
नन्द मराल ।।१९।।
निर्धन रोटी ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
वर्धन ज्योति ।।२०।।
गेरु सा पीला ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
मेरु छवीला ।।२१।।
जलधि कुल ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
छव मंजुल ।।२२।।
कुन्द पुष्प सा ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
कुन्दन जैसा ।।२३।।
खोर जोड़ है ।
चाँद ‘मुखड़ा’ आप
और गौर है ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
चौदहवां श्लोक
गुण विभूत ! ।
सहारा… एक थारा,
निध अभूत ।।१।।
शगुन ज्योति ! ।
सहारा… एक थारा,
स’गुण’ मोति ।।२।।
गुण मंजूष ! ।
सहारा… एक थारा,
दिन प्रत्यूष ।।३।।
गुण निलय ! ।
सहारा… एक थारा,
विघ्न विलय ।।४।।
गुण सागर ! ।
सहारा… एक थारा,
मण, पाथर ।।५।।
शगुन राश ! ।
सहारा… एक थारा,
बौना आकाश ।।६।।
गुण आधार ! ।
सहारा… एक थारा,
औ गुण हार ।।७।।
गुण श्रृंगार ! ।
सहारा… एक थारा,
पुण्य दृग् चार ।।८।।
गुण तिलक ! ।
सहारा… एक थारा,
आत्म झलक ।।९।।
गुण निकेत ! ।
सहारा… एक थारा,
ऊरध रेत ।।१०।।
गुण अनन्त ! ।
सहारा… एक थारा,
स्वर्ण सुगन्ध ।।११।।
गुण विशुद्ध !
सहारा… एक थारा,
सवार्थ-सिद्ध ।।१२।।
गुण सदन ! ।
सहारा… एक थारा,
मण रतन ।।१३।।
गुण समुद्र ! ।
सहारा… एक थारा,
समंत-भद्र ।।१४।।
गुण निधान ! ।
सहारा… एक थारा,
शून गुमान ।।१५।।
गुण अधिक ! ।
सहारा… एक थारा,
दूसरी शिख ।।१६।।
गुणित भाग ! ।
सहारा… एक थारा,
सहज जाग ।।१७।।
गुण गम्भीर !
सहारा… एक थारा,
धन ! अखीर ।।१८।।
गुण सुमेर ! ।
सहारा… एक थारा,
गुल नमेर ।।१९।।
सद्-गुण धाम ! ।
सहारा… एक थारा,
मन विराम ।।२०।।
गुण सप्तर्षि ! ।
सहारा… एक थारा,
भीतरी खुशी ।।२१।।
गुण सरोज ! ।
सहारा… एक थारा,
दीवाली रोज ।।२२।।
गुण अक्षर ! ।
सहारा… एक थारा,
पुन अक्षर ।।२३।।
गुण प्रशस्त ! ।
सहारा… एक थारा,
विघन अस्त ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
पन्द्रहवां श्लोक
रम…भा आई ।
दृष्टि नासाग्र आप,
भा धरासाई ।।१।।
‘मोहने’ आई ।
दृष्टि नासाग्र आप,
मुँह की खाई ।।२।।
प्रधान हूर ।
दृष्टि नासाग्र आप,
गुमान चूर ।।३।।
आ बाला साकी ।
दृष्टि नासाग्र आप,
बगलें झाँकी ।।४।।
नगर नार ।
दृष्टि नासाग्र आप,
चित् खाने चार ।।५।।
आ अप्सराएँ ।
दृष्टि नासाग्र आप,
पग लौटाएँ ।।६।।
मे’नका आई ।
दृष्टि नासाग्र आप,
पग लौटाई ।।७।।
कली तितली ।
दृष्टि नासाग्र आप,
एक न चली ।।८।।
उठी तरंग ।
दृष्टि नासाग्र आप,
कटी पतंग ।।९।।
बुन्दिया झूम ।
दृष्टि नासाग्र आप,
निन्दिया झूम ।।१०।।
गजगामिनी ।
दृष्टि नासाग्र आप,
रज नामिनी ।।११।।
मृग लोचने ।
दृष्टि नासाग्र आप,
लागी रोवने ।।१२।।
कण्ठ कोकिला ।
दृष्टि नासाग्र आप,
रुॅंधा लो गला ।।१३।।
शुक नासिके ।
दृष्टि नासाग्र आप,
घुटने टेके ।।१४।।
गन्ध कस्तूर ।
दृष्टि नासाग्र आप,
घमण्ड चूर ।।१५।।
सुर सुन्दरी ।
दृष्टि नासाग्र आप,
झेंप से भरी ।।१६।।
निश दूधिया ।
दृष्टि नासाग्र आप,
चाली ले दीया ।।१७।।
नयना झील ।
दृष्टि नासाग्र आप,
रयना नील ।।१८।।
आ भ्रु बंकिमा ।
दृष्टि नासाग्र आप,
लौटी ले क्षमा ।।१९।।
मिसरी बोल ।
दृष्टि नासाग्र आप,
निकली न्योर ।।२०।।
जल परियाँ ।
दृष्टि नासाग्र आप न,
लें बलईयाँ ।।२१।।
चन्द्र वदने ।
दृष्टि नासाग्र आप,
लगी कँपने ।।२२।।
गुल मुहर ।
दृष्टि नासाग्र आप,
गुल हुनर ।।२३।।
उवर्शी आके ।
दृष्टि नासाग्र आप,
बगलें झाँके ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
सोलहवां श्लोक
रचाये धूम ।
और ‘दीया’ तू और
मचाये धूम ।।१।।
बाती घी खाते ।
और ‘दीया’ तू और
साथी बताते ।।२।।
धुंआ के जोड़ ।
और ‘दीया’ तू और
दुआ बेजोड़ ।।३।।
फूॅंका ‘कि गुम ।
और ‘दीया’ तू और
फूॅंक अगम ।।४।।
छोड़े कज्जल ।
और ‘दीया’ तू और
छोड़े दृग् जल ।।५।।
माटी से, रिश्ता ।
और ‘दीया’ तू और
आदि फरिश्ता ।।६।।
कभी कभार ।
और ‘दीया’ तू और
सदाबहार ।।७।।
अँधेरा तले ।
और ‘दीया’ तू और
उजेला मिले ।।८।।
हा ! खाते झोल ।
और ‘दीया’ तू और-
ही अनमोल ।।९।।
ईंधन चाह ।
और ‘दीया’ तू और
‘भी’ अवगाह ।।१०।।
पीछे रवि से ।
और ‘दीया’ तू और
आगे कवि से ।।११।।
हवा परेशां ।
और ‘दीया’ तू और
जबां हमेशा ।।१२।।
गुल झिरता ।
और ‘दीया’ तू और
गुल खिलता ।।१३।।
लौं डगमग ।
और ‘दीया’ तू और
गौरव जग ।।१४।।
फिर के रीता ।
और ‘दीया’ तू और
‘फिरके’ रीता ।।१५।।
गिरा ‘कि फूटा ।
और ‘दीया’ तू और
निरा अनूठा ।।१६।।
‘जी तर तेल ।
और ‘दीया’ तू और
भीतर केल ।।१७।।
रोशन मग ।
और ‘दीया’ तू और
रोशन जग ।।१८।।
अब के तब ।
और ‘दीया’ तू और
अब न कब ।।१९।।
मृणमय हा ! ।
और ‘दीया’ तू और
चिन्मय अहा ।।२०।।
चिराग नाम ।
और ‘दीया’ तू और
विराग धाम ।।२१।।
जलाये जले ।
और ‘दीया’ तू और
जिलाये, चले ।।२२।।
क्रय विक्रय ।
और ‘दीया’ तू और
दय हृदय ।।२३।।
बुझ बढ़ता ।
और ‘दीया’ तू और
अबुझ छटा ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
सत्रहवां श्लोक
मुसाफिर हैं ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
छुआ घर हैं ।।१।।
ढ़लता साँझ ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
तबला, झाँझ ।।२।।
गर्मी अंगार ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
नर्मी श्रृंगार ।।३।।
बारिश गुम ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
माथ कुम्कुम ।।४।।
राहु कवल ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
साहू संवल ।।५।।
झाँपा आ घन ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
आपा आँगन ।।६।।
आताप जोड़ ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
आप बेजोड़ ।।७।।
‘हा’ गोला आग ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
जादू चिराग ।।८।।
दे तपा रस्ता ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
देव फरिश्ता ।।९।।
रश्मि सहस्र ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
रश्म सहस्र ।।१०।।
कंवल मीत ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
धवल प्रीत ।।११।।
बालक रूप ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
बाल स्वरूप ।।१२।।
फेरे काटता ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
फेर काटता ।।१३।।
देव विमान ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
देव गुमान ।।१४।।
विभोर बाद ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
चित् चोर आद ।।१५।।
‘हा’ अस्ताचल ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
आँख सजल ।।१६।।
आकाश पथ ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
अहिंसा सत ।।१७।।
स्व-प्रकाशित ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
स्वानुशासित ।।१८।।
ज्योतिषी देव ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
ज्योति सदैव ।।१९।।
दिवस-कर ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
शिव शंकर ।।२०।।
किरण जाला ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
करुणा वाला ।।२१।।
धूप तपन ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
भूप भुवन ।।२२।।
सुबह पूर्व ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
शुभ अपूर्व ।।२३।।
‘दा’ कहलाता ।
जगत् ‘सूर्य’ जगत
किमिच्छ-दाता ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
अठारहवां श्लोक
झिर अमृत ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
गिर् अमरित ।।१।।
बादल ढ़के ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
वादे न नटे ।।२।।
पूनम गोल ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
पूर्ण सुडोल ।।३।।
राहु पीड़ित ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
साहु ईडित ।।४।।
निकले छुप ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
जबां पहुप ।।५।।
कहा बंकिम ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
आश अंतिम ।।६।।
तारक पत ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
राखत पत ।।७।।
चकोर मीत ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
चित् चोर गीत ।।८।।
दिवस फीका ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
दिव्य व नीका ।।९।।
तारक घेरा ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
तारक बेड़ा ।।१०।।
पर्याय हास ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
कषाय ह्रास ।।११।।
चाँदी और क्या ? ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
और गौर क्या ? ।।१२।।
सुनु समुद्र ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
मुनि स’मुद्र ।।१३।।
ज्योतिष राज ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
ज्योति स्वराज ।।१४।।
सपरिवार ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
पद्म विहार ।।१५।।
डोलता फिरे ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
बोलता धीरे ।।१६।।
जलज रूठा ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
जगत् अनूठा ।।१७।।
हा ! प्रदर्शन ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
प्रद दर्शन ।।१८।।
दामन दाग ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
सावन फाग ।।१९।।
हिल मिल लो ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
घुल, मिल लो ।।२०।।
मावस गुम ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
मॉं बस तुम ।।२१।।
हा ! उलाहना ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
सिद्धाराधना ।।२२।।
बढ़ घटता ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
मण मुकता ।।२३।।
सांझ के बाद ।
दूज ‘चाँद’ तू दूजा
आद, अनाद ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
उन्नीसवां श्लोक
राहत नूर ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
राहु सुदूर ।।१।।
रहित आँच ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
अमृत साँच ।।२।।
तेजो अनन्त ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
सहजो सन्त ।।३।।
ज्योतिष मान ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
स्व ज्योतिर्मान ।।४।।
चोंच न कौर ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
मृग न दौड़ ।।५।।
न गोला आग ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
न झोला, दाग ।।६।।
दृग् पथ गामी ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
सुदृग् आसामी ।।७।।
डूब गहन ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
दूर ग्रहण ।।८।।
न झाँप घन ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
आप मगन ।।९।।
तम न नाता ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
क्यूँ चला आता ।।१०।।
कोने न किस ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
कोन दश दिश् ।।११।।
फसल हाथ ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
क्यूँ मेघ-नाद ।।१२।।
आतप गुम ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
जय कुटुम ।।१३।।
धूल न झाँपे ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
त्रिशूल काँपे ।।१४।।
जग अनेक ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
जगत एक ।।१५।।
विरख निरे ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
वि-रख घिरे ।।१६।।
केवलज्ञान ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
देव प्रधान ।।१७।।
दृग् मनहारी ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
दृग् अविकारी ।।१८।।
हितौर जीते ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
दृग् कोर तीते ।।१९।।
नासा दृष्टिक ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
स-सामुद्रिक ।।२०।।
नामानुरूप ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
धाम त्रि भूप ।।२१।।
और तेजस्वी ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
गौर, मनस्वी ।।२२।।
सन्त बे-भव ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
नन्त वैभव ।।२३।।
पद्म भविक ।
सूर्य ‘आप’ चन्द्रमा
सद्य-शिविक ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
बीसवां श्लोक
घनेरा,
दीया तले अँधेरा ।
सिर्फ तुम से तुम ।।१।।
ना ‘री नकल,
हा ! ना’रियल ।।
सिर्फ तुम से तुम ।।२।।
पर-वत्,
काम तमाम पत ।
सिर्फ तुम से तुम ।।३।।
चाँद-ई,
कहे जमा…ना चाँदी ।
सिर्फ तुम से तुम ।।४।।
कड़वा,
नाम चन्दन बड़ा ।
सिर्फ तुम से तुम ।।५।।
बाँसुरी,
छिद्र छिद्र वास ‘री ।
सिर्फ तुम से तुम ।।६।।
मनवा भूखा,
ऐसी तन…खा ।
सिर्फ तुम से तुम ।।७।।
जबान,
क्रीड़ा बाल अजान ।
सिर्फ तुम से तुम ।।८।।
मृग-नैन,
दे…खो बाद शैन ।
सिर्फ तुम से तुम ।।९।।
पुकारा,
कह के ज… बाहरा ।
सिर्फ तुम से तुम ।।१०।।
माँग रख,
दे कल्प विरख ।
सिर्फ तुम से तुम ।।११।।
धरा,
जो मान…इक से भरा ।
सिर्फ तुम से तुम ।।१२।।
पूछे दें का…माँ..गो,
वो कामगो ।
सिर्फ तुम से तुम ।।१३।।
‘हा’ धीरे धीरे,
कोयले ही ‘रे ।।
सिर्फ तुम से तुम ।।१४।।
दिया आवाम,
नाम ही आम ।।
सिर्फ तुम से तुम ।।१५।।
रहा पढ़ना,
‘अ’ पहाड़ हा ! ।
सिर्फ तुम से तुम ।।१६।।
गुलाब,
साँझ साँझ दृग् आब ।
सिर्फ तुम से तुम ।।१७।।
घूमने अड़ी,
जादू… ई छड़ी ।
सिर्फ तुम से तुम ।।१८।।
बदले बाद पल,
बादल ।
सिर्फ तुम से तुम ।।१९।।
पा… र… स,
फेर वर्ण स…र… प ।
सिर्फ तुम से तुम ।।२०।।
पन्ना,
काग..ज, क्या नहीं सुन्ना ।
सिर्फ तुम से तुम ।।२१।।
रिश्ता,
पिसने से, कहे पिस्ता ।
सिर्फ तुम से तुम ।।२२।।
अरविन्द ‘ना’,
अल बन्धना ।
सिर्फ तुम से तुम ।।२३।।
पा शाम,
‘गुल’, सार्थक नाम ।
सिर्फ तुम से तुम ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
इक्कीसवां श्लोक
भली ही नाथ ।
और छाप… ‘के आप-,
का साथ हाथ ।।१।।
नैन भिंजाये ।
और छाप… ‘के आप,
दृग् टकराये ।।२।।
पुण्य हमार ।
और छाप… ‘के आप-,
से आँख चार ।।३।।
पुण्य पिछले ।
और छाप… ‘के आप,
सामने खड़े ।।४।।
फायदे-मन्द ।
और छाप… ‘के आप,
जुड़ा सम्बन्ध ।।५।।
हिरणा दाँया ।
और छाप… ‘के आप,
शरणा पाया ।।६।।
पुण्य प्रसंग ।
और छाप… ‘के आप,
उड़ी पतंग ।।७।।
मानूॅं शगुन ।
और छाप… ‘के आप,
हुआ मिलन ।।८।।
पुण्य उदय ।
और छाप… ‘के आप,
जुड़े दृग् द्वय ।।९।।
सौभाग धन ! ।
और छाप… ‘के आप,
आ वसे मन ।।१०।।
हमारा भाग ।
और छाप… ‘के आप-,
से अनुराग ।।११।।
पुण्य पुराना ।
और छाप… ‘के आप-,
को पहिचाना ।।१२।।
किस्मत मोर ।
और छाप… ‘के आप-,
से गठ जोड़ ।।१३।।
पुण्य अमोल ।
और छाप… ‘के आप-,
से मेल-जोल ।।१४।।
अच्छी ही बात ।
और छाप… ‘के आप,
‘अपने’ पॉंत ।।१५।।
पुण्य प्रकर्षा ।
और छाप… ‘के आप,
दया बरसा ।।१६।।
पुण्य पिछला ।
और छाप… ‘के आप-,
से जुड़ चला ।१७।।
पुण्य प्रसाद ।
और छाप… ‘के आप,
मुस्कान हाथ ।।१८।।
है पुण्य बड़ा ।
और छाप… ‘के आप-,
से रिश्ता जुड़ा ।।१९।।
अपूर्व पुन ।
और छाप… ‘के आप,
लागी लगन ।।२०।।
ढ़ोक पुन को ।
और छाप… ‘के आप,
भाये मन को ।।२१।।
न बात बुरी ।
और छाप… ‘के आप-,
से डोर जुड़ी ।।२२।।
बड़े काम की ।
और छाप… ‘के आप,
भक्ति नाम की ।।२३।।
नाहिं विरथा ।
और छाप… ‘के आप-,
का लगा पता ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
बाईसवां श्लोक
लालो मुहर ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
बालक भर ।।१।।
शशि मासूम ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
शिशु, मालूम ।।२।।
औ’ कोहनूर ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
लो मोह ‘तूर’ ।।३।।
मोति माणिक ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
ज्योति मानिक ।।४।।
जादु चिराग ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
खाऊ दिमाग ।।५।।
खुश्बू इतर ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
टूक जिगर ।।६।।
सोला सपने ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
तोला, सपने ।।७।।
जग माँ पद ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
जगदापद ।।८।।
गौरव माई ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
गोद भराई ।।९।।
होली दीवाली ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
बोली निराली ।।१०।।
औ’ किलकारी ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
कोकिल कारी ।।११।।
तोड़ संसार ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
होड़ संसार ।।१२।।
चौंसठ कला ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
औ’ सर बला ।।१३।।
आँसू इतर ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
आँसू मगर ।।१४।।
दृग् लागी झिर ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
तुतलाती गिर् ।।१५।।
लाल गुलाल ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
बाल-गुपाल ।।१६।।
हंस बेशक ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
वंश दीपक ।।१७।।
तारण हारा ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
आंखन तारा ।।१८।।
आद पुरुम ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
चाँद पूनम ।।१९।।
अहिंसा दूत ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
बस सपूत ।।२०।।
पल ‘कल्याण’ ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
गुल मुस्कान ।।२१।।
उन्नत माथ ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
मन्नत हाथ ।।२२।।
थाती ही आपा ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
लाठी बुढ़ापा ।।२३।।
लाज नजर ।
गोद तोर… ‘माँ’ और,
राज कुंवर ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
तेईसवां श्लोक
न अजेय ही ।
‘भगत… भगवत’
कालजेय भी ।।१।।
मति मराल ।
‘भगत… भगवत’
काल के काल ।।२।।
नम्र विनीत ।
‘भगत… भगवत’
यम अभीत ।।३।।
युत संयम ।
‘भगत… भगवत’
विजित यम ।।४।।
ध्रुव सितारे ।
‘भगत… भगवत’
जग से न्यारे ।।५।।
अभिजितांत ।
‘भगत… भगवत’
निर्भय दान्त ।।६।।
अन्तक अरि ।
‘भगत… भगवत’
चिन्तक अ’री ! ।।७।।
अन्त सजग ।
‘भगत… भगवत’
माहन्त रग ।।८।।
अबीरी फाग ।
‘भगत… भगवत’
अखीरी जाग ।।९।।
पार यम हैं ।
‘भगत… भगवत’
दृग् दो नम हैं ।।१०।।
डरते नहीं ।
‘भगत… भगवत’
मरते नहीं ।।११।।
एक अमर ।
‘भगत… भगवत’
नेक नजर ।।१२।।
उर सदय ।
‘भगत… भगवत’
विगत भय ।।१३।।
जित कृतान्त ।
‘भगत… भगवत’
चित प्रशान्त ।।१४।।
सत् चिरन्तन ।
‘भगत… भगवत’
चित् निरंजन ।।१५।।
क्या नहीं पाते ।
‘भगत… भगवत’
द्यु-शिव नाते ।।१६।।
नाश सुदूर ।
‘भगत… भगवत’
आसमाँ नूर ।।१७।।
अमिट ज्योति ।
‘भगत… भगवत’
अद्भुत मोती ।।१८।।
अम्बर पूज ।
‘भगत… भगवत’
चन्दर दूज ।।१९।।
अखर मूर्त ।
‘भगत… भगवत’
शुभ मुहूर्त ।।२०।।
अख शरम ।
‘भगत… भगवत’
जम अगम ।।२१।।
गभीर धन ! ।
‘भगत… भगवत’
वीर मरण ।।२२।।
चीर के चीर ।
‘भगत… भगवत’
तीर अखीर ।।२३।।
एक निश्चिन्त्य ।
‘भगत… भगवत’
शाश्वत नित्य ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
चौबीसवां श्लोक
कहे तुम्हें ही ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
देश विदेश ।।१।।
चारों ही धाम ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
थारों ही नाम ।।२।।
शामत पाप ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
सत् ! नाम आप ।।३।।
आदि सहारे ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
नाम तुम्हारे ।।४।।
गौर निष्पाप ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
और न आप ।।५।।
प्रमाद गुम ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
विख्यात तुम ।।६।।
तुम्हीं तो एक ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
न और लेख ।।७।।
एक निष्काम ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
थारे ही नाम ।।८।।
श्रद्धान मोर ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
संज्ञाएँ तोर ।।९।।
भक्त बुलाते ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
न, तुम आते ।।१०।।
तीर्थ प्रथम ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
कीरत तुम ।।११।।
बढ़ पारस ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
तुमरा जश ।।१२।।
देव परम ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
केवल तुम ।।१३।।
वृषभ प्रभो ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
बस तुम्हीं हो ।।१४।।
पुरु तीर्थेश ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
नाम अशेष ।।१५।।
न मृग हॉंप ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
और न, आप ।।१६।।
‘जगत’ दोई ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
न और कोई ।।१७।।
भौ जल छोर ! ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
है नाम तोर ।।१८।।
आप विरले ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
पाँत पहले ।।१९।।
खो पाप धी ! ओ ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
हैं आप ही तो ।।२०।।
सिवा तिहार ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
कौन कतार ।।२१।।
और दृग् मोती ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
तोर बपौती ।।२२।।
तुम अलावा ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
है कौन बाबा ।।२३।।
हाथौर हॉंप ।
‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’
आदर्श आप ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
पच्चीसवां श्लोक
प्रशमकर ! ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन शंकर ।।१।।
विधि विज्ञाता ! ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन विधाता ।।२।।
मोह हनन ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन मोहन ।।३।।
दृग् भरी भरी ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन श्री हरी ।।४।।
सद्गुण राजी ।।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन ब्रह्मा जी ।।५।।
समशरण ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन किशन ।।६।।
वीत विद्वेष ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन महेश ।।७।।
भाव विशुद्ध ।
बाबा ! थारे अलावा,
न कोई बुद्ध ।।८।।
दीन दयाल ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन गुपाल ।।९।।
सार्थ सुर’भी’ ।
बाबा ! थारे अलावा,
को ? ठाकुर जी ।।१०।।
प्रद कल्याण ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन भगवान् ।।११।।
अनतरंग ।
बाबा ! थारे अलावा,
को ? बजरंग ।।१२।।
विभु ! स्वयंभू ! ।
बाबा ! थारे अलावा,
है कौन शम्भू ।।१३।।
शगुन कोष ! ।
बाबा ! थारे अलावा,
को ? आशुतोष ।।१४।।
मणी अचिन्त्य ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन गोविन्द ।।१५।।
चर्चित दिव ।
बाबा ! थारे अलावा,
को ? भोला शिव ।।१६।।
गत प्रपंच ! ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन विरंच ।।१७।।
नासा नजर ।
बाबा ! थारे अलावा,
है कौन हर ।।१८।।
ईश सबर ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन ईश्वर ।।१९।।
दया निस्सीम ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन रहीम ।।२०।।
जगत् माँ पिता ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन देवता ।।२१।।
धन ! सहिष्णु ! ।
बाबा ! थारे अलावा,
न कोई विष्णु ।।२२।।
मुनि निरीह ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन नृसींह ।।२३।।
प्रथम पुरु ।
बाबा ! थारे अलावा,
कौन सद्गुरु ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
छब्बीसवां श्लोक
मुख सरोज ।
‘नमः असिआ-उसा’
उतरा बोझ ।।१।।
निसरे बोल ।
‘नमः असिआ-उसा’
जश अमोल ।।२।।
प्रपूर मन ।
‘नमः असिआ-उसा’
चूर विघन ।।३।।
जपते जाप ।
‘नमः असिआ-उसा’
खपते पाप ।।४।।
पार मनका ।
‘नमः असिआ-उसा’
मनुआ हल्का ।।५।।
सुमरें शाम ।
‘नमः असिआ-उसा’
संवरें काम ।।६।।
सरकी पोर ।
‘नमः असिआ-उसा’
‘कि शिर-मौर ।।७।।
साँझ सकारे ।
‘नमः असिआ-उसा’
साॅंझ संवारे ।।८।।
लगाई रट ।
‘नमः असिआ-उसा’
सहाई झट ।।९।।
रक्खा अन्तर ।
‘नमः असिआ-उसा’
रक्षा मन्तर ।।१०।।
विचार भर ।
‘नमः असिआ-उसा’
वज्र पंजर ।।११।।
लगाया मन ।
‘नमः असिआ-उसा’
छुआ गगन ।।१२।।
रोज रटते ।
‘नमः असिआ-उसा’
वो सुलटते ।।१३।।
रक्खा ‘के जुबाँ ।
‘नमः असिआ-उसा’
दुख छू हुआ ।।१४।।
आ जपें मन ।
‘नमः असिआ-उसा’
मेंटे विघन ।।१५।।
सर्वार्थ सिद्ध ।
‘नमः असिआ-उसा’
जाप प्रसिद्ध ।।१६।।
लो रट लागी ।
‘नमः असिआ-उसा’
नौ तट लागी ।।१७।।
मोटा व्यापार ।
‘नमः असिआ-उसा’
छोटा नोकार ।।१८।।
एक शरण ।
‘नमः असिआ-उसा’
आश किरण ।।१९।।
जिसने सुना ।
‘नमः असिआ-उसा’
प्रभु ने चुना ।।२०।।
जिसने बोला ।
‘नमः असिआ-उसा’
भौ भौ न डोला ।।२१।।
सार्थ मन…त्र ।
‘नमः असिआ-उसा’
भद्र समन्त ।।२२।।
अन्त संभाले ।
‘नमः असिआ-उसा’
आ पल गा ले ।।२३।।
नम: असि-सा ।
‘नमः असिआ-उसा’
नम: आ-उसा ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
सत्ताईसवां श्लोक
और गुमान ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर संज्ञान ।।१।।
और राहित्य ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर साहित्य ।।२।।
और धूलिका ।।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर चूलिका ।।३।।
और दिलासा ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर अकाशा ।।४।।
और शिकस्त ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
आप शिख-स्थ ।।५।।
‘सुर’ पंचम ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
ते सरगम ।।६।।
और प्रपंच ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
आप विरंच ।।७।।
और रौरव ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर गौरव ।।८।।
और अंतक ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
‘तोर’ सार्थक ।।९।।
और धी बक ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
आप तीर्थक ।।१०।।
और घिरणा ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर करुणा ।।११।।
और फिकर ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर छतर ।।१२।।
और स्वारथी ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
आप सारथी ।।१३।।
और कानन ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर सावन ।।१४।।
औरन दूब ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तिहार डूब ।।१५।।
और भै-भीत ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
आप विनीत ।।१६।।
और अंश धी ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर हंस धी ।।१७।।
और छद्मस्थ ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
आप फरिश्त ।।१८।।
और फरेब ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर स’दैव ।।१९।।
और सांस वत् ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
आप शाश्वत् ।।२०।।
औ’ श्राप धार ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
आप भौ पार ।।२१।।
सृष्टि ही ओर ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
दृष्टि भी तोर ।।२२।।
और क्या ? मही ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
तोर क्या नहीं ।।२३।।
और भू भार ।
साँच को, क्या ? आँच ओ !
आप ऊ पार ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
अट्ठाईसवां श्लोक
आ बैठे तुम ।
तर अशोक ‘तर’
उड़ी कुंकुम ।।१।।
धर्माधिकारी ।
तर अशोक ‘तर’
पर्व दिवाली ।।२।।
तुम क्या आये ।
तर अशोक ‘तर’
सभी समाये ।।३।।
‘पाय’ भगवन् ।
तर अशोक ‘तर’
धूल चन्दन ।।४।।
गुपाल खड़े ।
तर अशोक ‘तर’
गुलाल उड़े ।।५।।
कामना पून ।
तर अशोक ‘तर’
निरा सुकून ।।६।।
माहन राया ।
तर अशोक ‘तर’
सावन छाया ।।७।।
हल प्रशन ।
तर अशोक ‘तर’
पल जशन ।।८।।
देव हुजूम ।
तर अशोक ‘तर’
है मची धूम ।।९।।
सांचा दुवार ।
तर अशोक ‘तर’
भक्त कतार ।।१०।।
श्री शिरोमणी ।
तर अशोक ‘तर’
फैली रोशनी ।।११।।
अर्णव ज्ञान ।
तर अशोक ‘तर’
उत्सव ध्यान ।।१२।।
हंस अकेला ।
तर अशोक ‘तर’
आहिंसा मेला ।।१३।।
नम नयन ।
तर अशोक ‘तर’
सम-शरण ।।१४।।
कौन न देव ।
तर अशोक ‘तर’
देवनदेव ।।१५।।
उड़ी पतंग ।
तर अशोक ‘तर’
जुड़ी उमंग ।।१६।।
नन्त विभूत ।
तर अशोक ‘तर’
डूब अनूठ ।।१७।।
मान विमान ।
तर अशोक ‘तर’
ज्ञान कल्याण ।।१८।।
शाहनशाह ।
तर अशोक ‘तर’
राह, पनाह ।।१९।।
दिव्य उजाला ।
तर अशोक ‘तर’
दूसरी शाला ।।२०।।
अमर पूज ।
तर अशोक ‘तर’
अखर गूँज ।।२१।।
शक्ति सकल ।
तर अशोक ‘तर’
भक्त वत्सल ।।२२।।
सार्थ दृग् नासा ।
तर अशोक ‘तर’
पूर्णाभिलाषा ।।२३।।
आदर्श साध ।
तर अशोक ‘तर’
स्पर्श समाध ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
उन्तीसवां श्लोक
दीवाली फाग ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
सोने सुहाग ।।१।।
मनाये पर्व ।
तुम्हें पा सिंहासन,
रिझाये स्वर्ग ।।२।।
दुआ खास माँ ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
छुआ आसमाँ ।।३।।
प्रद कल्याण ।
तुम्हें पा सिंहासन,
आप समान ।।४।।
खिली पाँखुरी ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
खुली लॉटरी ।।५।।
रत्न दियों में ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
लो सुर्ख़ियों में ।।६।।
जाग निराली ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
सौभाग-शाली ।।७।।
धुरुव-तारा ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
धु-शिव द्वारा ।।८।।
देवता आदि ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
काटता चाँदी ।।९।।
निर्ग्रन्थ धागे ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
सबसे आगे ।।१०।।
स्वारथे ह्रास ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
राहते-श्वास ।।११।।
कल्याण मित्र ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
ध्यान निमित्त ।।१२।।
रथ दिव का ।
तुम्हें पा सिंहासन,
पथ शिव का ।।१३।।
शाम निहाल ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
शामत काल ।।१४।।
विलग माया ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
जगमगाया ।।१५।।
धन्य औतार ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
पुण्य पिटार ।।१६।।
ऊरध-रेत ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
सम्यक्त्व हेत ।।१७।।
सत् पक्षधर ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
स्मृत अक्षर ।।१८।।
ज्योति अबुझ ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
हटके कुछ ।।१९।।
रे अन्तर्मना ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
चित्-चोर बना ।।२०।।
दूसरी साख !
तुम्हें पा सिंहासन,
तीसरी आँख ।।२१।।
वैन माहन ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
नैन सावन ।।२२।।
जन्नत नूर ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
मन्नत पूर ।।२३।।
हन भरम ! ।
तुम्हें पा सिंहासन,
धन ! जनम ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
तीसवां श्लोक
देखते बने ।
‘चल, चा’मर दल’
भाँत अपने ।।१।।
पैसा, न वैसा ।
‘चल, चा’मर दल’
अपने जैसा ।।२।।
चाँदनी गौर ।
‘चल, चा’मर दल’
जहाँ न और ।।३।।
झिलमिलाता ।
‘चल, चा’मर दल’
दिल चुराता ।।४।।
भुवि अन्दर ।
‘चल, चा’मर दल’
शिव, सुन्दर ।।५।।
दिये अखर ।
‘चल, चा’मर दल’
लिये अमर ।।६।।
पुण्य प्रताप ।
‘चल, चा’मर दल’
धन्य ! अलाप ।।७।।
पुष्प कुन्द सा ।
‘चल, चा’मर दल’
दृश्य नन्दना ।।८।।
रत विरागी ।
‘चल, चा’मर दल’
किस्मत जागी ।।९।।
रागिनी जश ।
‘चल, चा’मर दल’
चाँदनी-शश ।।१०।।
‘रे ‘सिख’ लाता ।
‘चल, चा’मर दल’
ऊपर ‘नाता’ ।।११।।
मनु निर्झर ।
‘चल, चा’मर दल’
मेरु शिखर ।।१२।।
दृश्य अनोखा ।
‘चल, चा’मर दल’
पुण्य देवों का ।।१३।।
चन्दर-तारे ।
‘चल, चा’मर दल’
नन्द नजारे ।।१४।।
नदिया धारा ।
‘चल, चा’मर दल’
दिया उजाला ।।१५।।
पावन छटा ।
‘चल, चा’मर दल’
सावन घटा ।।१६।।
अदृश्य जाग ।
‘चल, चा’मर दल’
दृश्य सौभाग ।।१७।।
सुन्दर, सत्य ।
‘चल, चा’मर दल’
शिव प्रदत्त ।।१८।।
रश्ता-ए-मुक्ति ।
‘चल, चा’मर दल’
रिश्ता-ए-भुक्ति ।।१९।।
दधि गगरी ।
‘चल, चा’मर दल’
छव विरली ।।२०।।
फुल झड़ियाँ ।
‘चल, चा’मर दल’
पुन लड़ियाँ ।।२१।।
रजत मय ।
‘चल, चा’मर दल’
ध्वज विजय ।।२२।।
पंक्ति कपोत ।
‘चल, चा’मर दल’
प्रमुक्ति पोत ।।२३।।
हिम पहार ।
‘चल, चा’मर दल’
तम निवार ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
इकतीसवां श्लोक
न बने, कहूँ ।
‘अधर, त्रि-छतर’
चाँद हूबहू ।।१।।
झल्लर वाले ।
‘अधर, त्रि-छतर’
दिव्य निराले ।।२।।
रैना ए दिन ।
‘अधर, त्रि-छतर’
चैना ए चिन ।।३।।
गुम्बद भाँती ।
‘अधर, त्रि-छतर’
नम दृग् थाती ।।४।।
चित्-चोर सुना ।
‘अधर, त्रि-छतर’
दृग् देखें पुनः ।।५।।
मण झल्लरी ।
‘अधर, त्रि-छतर’
चल बल्लरी ।।६।।
हटके खास ।
‘अधर, त्रि-छतर’
विखेरें हास ।।७।।
तारक गण ।
‘अधर, त्रि-छतर’
माणक मण ।।८।।
सौम्य सुहाने ।
‘अधर, त्रि-छतर’
सोम दिवाने ।।९।।
महा-महिम ।।
‘अधर, त्रि-छतर’
पहाड़ हिम ।।१०।।
चल चपल ।
‘अधर, त्रि-छतर’
हल गहल ।।११।।
विस्फार दृग ।
‘अधर, त्रि-छतर’
निहारे जग ।।१२।।
अंगुली दावें ।
‘अधर, त्रि-छतर’
नृ झेंप खावें ।।१३।।
द्यु गज मोती ।
‘अधर, त्रि-छतर’
सहज ज्योति ।।१४।।
‘रे बलिहारी ।
‘अधर, त्रि-छतर’
करें दृग्-धारी ।।१५।।
मूक आवाज ।
‘अधर, त्रि-छतर’
छतेक राज ।।१६।।
भक्त गुमान ।
‘अधर, त्रि-छतर’
दृढ़ श्रद्धान ।।१७।।
चन्दर पून ।
‘अधर, त्रि-छतर’
हट सुकून ।।१८।।
लग कतार ।
‘अधर, त्रि-छतर’
जग जुहार ।।१९।।
वज्जर लेख ।
‘अधर, त्रि-छतर’
चमत्कारेक ।।२०।।
शोभा बढ़ाते ।
‘अधर, त्रि-छतर’
गंधर्व गाते ।।२१।।
जगत जयी ।
‘अधर, त्रि-छतर’
रजत-मयी ।।२२।।
रत्न-दीये से ।
‘अधर, त्रि-छतर’
अपने जैसे ।।२३।।
स्वर्ग विमान ।
‘अधर, त्रि-छतर’
ऽपवर्ग यान ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
बत्तीसवां श्लोक
बाजती कहे ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
बाबा ये रहे ।।१।।
दिश् दश गूंजे ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
हैं बाबा दूजे ।।२।।
छेड़ती तान ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
यहाँ भगवान् ।।३।।
बाजने लगी ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
यहाँ न ठगी ।।४।।
करती नाद ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
यहाँ समाध ।।५।।
किस न कोन ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
सुगन्ध सोन ।।६।।
चार तरफ ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
न्यार सिरफ ।।७।।
सार्थक ‘बाजी’ ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
यहाँ बाबा जी ।।८।।
मिसरी घोल ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
बड़ी अमोल ।।९।।
गुजांयमान ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
छू आसमान ।।१०।।
करण प्रिया ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
रतन दीया ।।११।।
देवोपुनीत ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
अहिंसा गीत ।।१२।।
आँसू खुशी दे ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
जी धसे सीधे ।।१३।।
‘मैं’ ना छू रही ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
कहती तू ही ।।१४।।
खुद माफिक ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
ख़ुद्दार इक ।।१५।।
न कहाँ कहाँ ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
अजेय जहां ।।१६।।
बाजे भुवन ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
यहाँ भगवन् ।।१७।।
बड़ी सरस ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
हेत दरश ।।१८।।
बोली सुभाष ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
यहाँ विश्वास ।।१९।।
सुरम बड़ी ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
जादुई छड़ी ।।२०।।
दूर तलक ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
यहाँ मालक ।।२१।।
जा लोक-लोक ।।
‘तेरी… गभीर भेरी’
करे आलोक ।।२२।।
कहे सुर ‘जी ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
यहाँ सुर’भी ।।२३।।
सरगम सी ।
‘तेरी… गभीर भेरी’
उर निवासी ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
तैंतीसवां श्लोक
मरुत मन्द ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
उदक गन्ध ।।१।।
आनन्द जाग ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
नन्दन बाग ।।२।।
मनमोहक ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
द्यु गन्धोदक ।।३।।
द्यु उपक्रम ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
वायु सुरम ।।४।।
बाँध के पॉंत ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
अपने भॉंत ।।५।।
स्वानन्द श्वास ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
मन्द वाताश ।।६।।
पांख ऊपर ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
नीचे डण्ठल ।।७।।
गन्ध अबीर ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
मन्द समीर ।।८।।
हवा मन्थर ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
जल इतर ।।९।।
बूंद सुगन्ध ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
डूब अमन्द ।।१०।।
आनन्द छाया ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
देवों की माया ।।११।।
फाग दीवाली ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
‘भी’ वाक्यावली ।।१२।।
मन-हारिणी ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
पवमाँ निरी ।।१३।।
मायूसी झूठ ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
झूम अनूठ ।।१४।।
लगा के झिर ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
जिन मन्दिर ।।१५।।
सम-शरण ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
मन-हरण ।।१६।।
स्याद्-वाद लेख ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
बादेक एक ।।१७।।
धन ! विरद ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
अनवरत ।।१८।।
देव महिमा ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
देव गरिमा ।।१९।।
बड़ी सुहानी ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
बुंदियाँ पानी ।।२०।।
सुगन्ध जल ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
सम्यक्त्व पल ।।२१।।
देखा ‘कि पार ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
रेखा उद्धार ।।२२।।
धुरुव गन्ध ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
मरुत मन्द ।।२३।।
पुण्य उदय ।
‘दिश्-दिश्, पुष्प बारिस’
समां अभय ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
चौंतीसवां श्लोक
भौ सात सात ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
हाथ समाध ।।१।।
दीखें सात भो ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
सीखें हाथ लो ।।२।।
झगझगाता ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
अघ गलाता ।।३।।
दूसरा सूर ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
सुसौम्य नूर ।।४।।
गाथा भौ सात ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
नाता सौगात ।।५।।
भव सातेक ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
नवाभिलेख ।।६।।
सूर प्रताप ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
सुदूर ताप ।।७।।
अमूल अ’रे ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
भूल सुधरे ।।८।।
दिश्-दिश् रोशन ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
दीवा रतन ।।९।।
टूट दो टूक ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
सुख माँ फूंक ।।१०।।
खुले दृग् तीजे ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
दुनिया रीझे ।।११।।
ज्ञात गलती ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
हाथ ‘गलती’ ।।१२।।
तेजस्व ज्योती ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
सुरम्य मोती ।।१३।।
दृग् गम खोर ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
नम दृग् कोर ।।१४।।
छव प्रभाव ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
भव अभाव ।।१५।।
द्यु तक गूंज ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
शिक्षक दूज ।।१६।।
भुवन पार ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
भा रतनार ।।१७।।
सम-कित…द ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
प्रशम मद ।।१८।।
नासा दृग् ढ़ोक ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
आसान मोख ।।१९।।
शिव साथिया ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
अबुझ दीया ।।२०।।
सार्थक नाम ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
सारथी धाम ।।२१।।
दर्प जो नहीं ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
न और कहीं ।।२२।।
स्वयं सरीखा ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
सूरज फीका ।।२३।।
भौ भौ झलक ।
‘दर्प…न भा-मण्डल’
लौं बेझिझक ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
पैंतीसवां श्लोक
विमुक्ति यान ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
मुक्ति सोपान ।।१।।
न ऐसी वैसी ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
अमृत जैसी ।।२।।
अरे विरली ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
खिरे छः घड़ी ।।३।।
घुरी मिसरी ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
‘रे ! अनक्षरी ।।४।।
ओंकार रूप ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
‘छू’ दौड़-धूप ।।५।।
सुख सारिणी ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
दुख हारिणी ।।६।।
भाँत भाष माँ ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
हाथ आसमाँ ।।७।।
कुछ अलग ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
मंजिल पग ।।८।।
शिव, सुन्दर ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
सत्य, अक्षर ।।९।।
स्वर्ग सौगात ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
ऽपवर्ग हाथ ।।१०।।
बड़ी आसान ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
लड़ी कल्याण ।।११।।
विद्भाष पून ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
प्रद सुकून ।।१२।।
शिव दर्शिका ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
दिव शिविका ।।१३।।
तत्व समेत ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
सम्यक्त्व केत ।।१४।।
मोक्ष भिंटाती ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
मोह मिटाती ।।१५।।
अंग द्वादश ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
निसंग वश ।।१६।।
भविक मोर ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
भाव विभोर ।।१७।।
‘देवा’ समझ ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
दीवा अबुझ ।।१८।।
न कौन झूमें ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
कोन-कोन में ।।१९।।
हतांधकारा ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
आनन्द धारा ।।२०।।
आकाश-वाणी ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
विश्व कल्याणी ।।२१।।
भक्त चातक ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
अपलक दृग् ।।२२।।
करुणा मयी ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
करे विनयी ।।२३।।
द्वादश सभा ।
‘नाम सार्थ सुर…भी’
दिश् दश प्रभा ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
छत्तीसवां श्लोक
देव रचते ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
देव रसते ।।१।।
विहार पल ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
विमान दल ।।२।।
दो सौ पच्चीस ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
द्यु नत शीश ।।३।।
करुणा छॉंव ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
जन सैलाब ।।४।।
स्वर्ण निर्मित ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
स्वर्ग निमित्त ।।५।।
उन्निद्र हेम ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
स…मुद्र, क्षेम ।।६।।
खिले व खुले ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
दिव्य विरले ।।७।।
दल सहस ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
चल ‘दरश’ ।।८।।
सुवर्ण बने ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
भॉंत अपने ।।९।।
भवि प्रफुल ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
छवि मंजुल ।।१०।।
बद्ध कतार ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
वक्त विहार ।।११।।
देव निर्माण ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
दैव निर्वाण ।।१२।।
दर कदम ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
दृग् कोर नम ।।१३।।
दृश्य अमूल ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
सृष्टि भौ कूल ।।१४।।
दया मारण ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
सदा सजग ! ।।१५।।
भाग आसमॉं ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
बाग सा समां ।।१६।।
अहिंसा पथ ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
ध्वंस स्वारथ ।।१७।।
द्यु पुर नाज ! ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
ऊपर आज ।।१८।।
सफर नाशा ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
नजर नासा ।।१९।।
भूम-नन्दन ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
झूम वन्दन ।।२०।।
मन के चोर ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
पुण्य बेजोड़ ।।२१।।
सरोवर भू ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
मनोहर द्यु ।।२२।।
डग डग पे ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
अक्षर छपे ।।२३।।
कनक मयी ।
‘नवल… द्यु कॅंवल’
झलक नई ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
सैंतीसवां श्लोक
फाग अन्दर ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
दाग चन्दर ।।१।।
तम हारक ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
टूटे तारक ।।२।।
कछुआ मन ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
कटु चन्दन ।।३।।
शूर चिराग ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
सूरज आग ।।४।।
आश संपूर ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
आसमां दूर ।।५।।
कदम पद्य ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
कर्दम पद्य ।।६।।
अखर धाम ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
अमर नाम ।।७।।
वर पातर ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
गिर पाथर ।।८।।
भूल निर्मूल ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
फूल लो धूल ।।९।।
अमोल बोल ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
ढोलक पोल ।।१०।।
गौण तरंग ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
पौन निसंग ।।११।।
नासिका नेत्र ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
बांसुरी छेद ।।१२।।
सुसाधो जिह्व ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
सर्प दो जिह्व ।।१३।।
जन्मना पुन ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
निम्नगा धुन ।।१४।।
न नौ-नौ घेरा ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
वन अंधेरा ।।१५।।
मौन सुगन्ध ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
सोन निर्गन्ध ।।१६।।
विरख स्वर ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
विरख जर ।।१७।।
तारणहारा ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
सागर खारा ।।१८।।
विरले वेदी ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
घड़े बेपैंदी ।।१९।।
तुर्ही सरस ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
बावड़ी अधस् ।।२०।।
लक्ष्मी न औ’ दिश् ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
लक्ष्मी कौशिक ।।२१।।
पार जहाज ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
द्वार दराज ।।२२।।
‘मालिक’ रंक ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
तालाब पंक ।।२३।।
गहल टूक ! ।
‘बेजोड़… जश तोर’
म-हिल झूठ ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
अड़तीसवां श्लोक
आप जाप की ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
आप आप ही ।।१।।
पा आप कृपा ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
किससे छुपा ।।२।।
ध्याकर तुम्हें ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
पल भर में ।।३।।
कहा जै-आद ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
हाथ के हाथ ।।४।।
आप को भज ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
आप सहज ।।५।।
पा आप भक्त ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
लगा न वक्त ।।६।।
जै-आद जाप ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
सिहर-कॉंप ।।७।।
दे आद मान ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
झलाते कान ।।८।।
जै-आद छुआ ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
नाँचता हुआ ।।९।।
गा आद जश ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
बिना अंकुश ।।१०।।
आद दृग् पथ ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
ऐरावत वत् ।।११।।
जुड़ आप-से ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
पूर्ण रूप से ।।१२।।
जपा तुमको ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
पता सबको ।।१३।।
आद जै रट ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
झट तुरत ।।१४।।
जै-आद सुना ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
नखरे बिना ।।१५।।
आद पुकार ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
लग कतार ।।१६।।
दृग् आद लेख ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
घुटने टेक ।।१७।।
जप असिसा ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
खुद सहसा ।।१८।।
ले आद नाम ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
ठोंके सलाम ।।१९।।
गा गीत तेरे ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
दे गोल फेरे ।।२०।।
तुम्हें सुमर ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
झुका नजर ।।२१।।
ध्यां तुम्हें पल ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
सदल बल ।।२२।।
जै-आद पढ़ा ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
आश्चर्य बड़ा ।।२३।।
जै-आद बोली ।
‘हाथ… हाथी उत्पाती’
आंख जो खोली ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
उन्तालीसवां श्लोक
दाब के दुम ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
दया दृग् तुम ।।१।।
लौट न आता ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
आप जै गाथा ।।२।।
दाब के कान ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
तुम जै-गान ।।३।।
छोड़ संग्राम ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
तोर श्री नाम ।।४।।
बचा के जान ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
कृपा भगवान् ।।५।।
कॉंप सिहर ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
आप नजर ।।६।।
आपसे आप ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
आद जै जाप ।।७।।
टेक घुटने ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
एक अपने ।।८।।
लगा के पंख ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
आप माँ अंक ।।९।।
बचा नजर ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
आप मेहर ।।१०।।
न मुड़ पुना ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
तुम करुणा ।।११।।
लग किनार ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
दया तुम्हार ।।१२।।
ले गति मन ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
तुम कीर्तन ।।१३।।
दे गदबद ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
आप विरद ।।१४।।
भर के हॉंप ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
तिहार जाप ।।१५।।
सर के बल ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
तोर संबल ।।१६।।
हो भयभीत ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
तिहार गीत ।।१७।।
जुड़ रुदन ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
तोर लगन ।।१८।।
समेत माया ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
तुम्हार छाया ।।१९।।
खो कर आपा ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
आप किरपा ।।२०।।
जंगल ओर ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
मंगल तोर ।।२१।।
तुमरी कृपा ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
तरफी गुफा ।।२२।।
तुम्हार नाम ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
कह त्राहि-माम् ।।२३।।
मन को मार ।
‘भै सिंह भागे… आगे’
जश तिहार ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
चालीसवां श्लोक
तुम्हें पुकार ।
‘दावा… दाबे के साथ’
चित् खाने चार ।।१।।
गा थारा जश ।
‘दावा… दाबे के साथ’
जाती विहँस ।।२।।
ध्याते की तुम ।
‘दावा… दाबे के साथ’
कहीं पे गुम ।।३।।
तुम्हें बुलाया ।
‘दावा… दाबे के साथ’
समेटे माया ।।४।।
तेरा सहारा ।
‘दावा… दाबे के साथ’
नव दो ग्यारा ।।५।।
पा तुझ प्रीती ।
‘दावा… दाबे के साथ’
बुझ चली थी ।।६।।
जै आद रट ।
‘दावा… दाबे के साथ’
यम चौखट ।।७।।
ध्या तुम्हें पल ।
‘दावा… दाबे के साथ’
आप शीतल ।।८।।
तुम्हें जपत ।
‘दावा… दाबे के साथ’
ठण्डी तुरत ।।९।।
आद जै मिले ।
‘दावा… दाबे के साथ’
सिसक चले ।।१०।।
जै आद जुड़ ।
‘दावा… दाबे के साथ’
हो फुर्र, उड़ ।।११।।
जप जै आद ।
‘दावा… दाबे के साथ’
भू आत्मसात ।।१२।।
गा गीत तेरे ।
‘दावा… दाबे के साथ’
न दृग् तरेरे ।।१३।।
तुम अपने ।
‘दावा… दाबे के साथ’
चलती बने ।।१४।।
भक्ति विरली ।
‘दावा… दाबे के साथ’
पकड़े गली ।।१५।।
तुमसे वास्ता ।
‘दावा… दाबे के साथ’
नापती रास्ता ।।१६।।
भक्ति सम्मुख ।
‘दावा… दाबे के साथ’
छुपाती मुख ।।१७।।
भक्त क्या तॉंकें ।
‘दावा… दाबे के साथ’
झुकाती आंखें ।।१८।।
भक्त टक्कर ।
‘दावा… दाबे के साथ’
रफू चक्कर ।।१९।।
जै आद माँझी ।
‘दावा… दाबे के साथ’
हारती बाजी ।।२०।।
जप जै आदी ।
‘दावा… दाबे के साथ’
डगमगाती ।।२१।।
झूम जै आदी ।
‘दावा… दाबे के साथ’
भूम सिराती ।।२२।।
जै आद साथी ।
‘दावा… दाबे के साथ’
गुम हो जाती ।।२३।।
थाती जै आद ।
‘दावा… दाबे के साथ’
खाती है मात ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
इकतालीसवां श्लोक
याद तुम्हारी ।
‘मणी… नाग दमनी’
प्रमाद-हारी ! ।।१।।
आपकी सेवा ।
‘मणी… नाग दमनी’
देवनदेवा ! ।।२।।
नाम तिहार ।
‘मणी… नाग दमनी’
धाम उद्धार ! ।।३।।
नजर तुम ।
‘मणी… नाग दमनी’
धरा कुटुम ! ।।४।।
आप लगन ।
‘मणी… नाग दमनी’
नाप गगन ! ।।५।।
तव वन्दन ।
‘मणी… नाग दमनी’
शिव स्यंदन ! ।।६।।
जाप तुम्हारी ।
‘मणी… नाग दमनी’
आत्म विहारी ! ।।७।।
तुमरी कथा ।
‘मणी… नाग दमनी’
विरली छटा ! ।।८।।
मन्त्र जै आाद ।
‘मणी… नाग दमनी’
साध समाध ! ।।९।।
‘सुर’ अहिंसा ! ।
‘मणी… नाग दमनी’
पूरण मंशा ! ।।१०।।
कृपा तिहार ।
‘मणी… नाग दमनी’
पाछी बयार ! ।।११।।
रट तुम्हार ।
‘मणी… नाग दमनी’
तट भौ धार ! ।।१२।।
आप संप्रीत ।
‘मणी… नाग दमनी’
राग व्यतीत ! ।।१३।।
विराग नाता ।
‘मणी… नाग दमनी’
भाग विधाता ! ।।१४।।
तोर शरणा ।
‘मणी… नाग दमनी’
जोड़ करुणा ! ।।१५।।
भक्ति भगवन् ।
‘मणी… नाग दमनी’
मुक्ति तरण ! ।।१६।।
आद महिमा ।
‘मणी… नाग दमनी’
निधान क्षमा ! ।।१७।।
जयतु आद ।
‘मणी… नाग दमनी’
श्री जगन्नाथ ! ।।१८।।
तुम लागी लौं ।
‘मणी… नाग दमनी’
नम आखी औ’ ! ।।१९।।
तोर सानिध ।
‘मणी… नाग दमनी’
बेजोड़ निध ! ।।२०।।
तोर चौखट ।
‘मणी… नाग दमनी’
चौंर चौंषठ ! ।।२१।।
पॉंवन जल ।
‘मणी… नाग दमनी’
आँख सजल ! ।।२२।।
ओंकार नाद ।
‘मणी… नाग दमनी’
औतार आद ! ।।२३।।
आद मनके ।
‘मणी… नाग दमनी’
साध बन के ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
ब्यालीसवां श्लोक
जप जै आद ।
‘संग्राम… शाम शाम’
लगता हाथ ।।१।।
तुम्हें पुकारा ।
‘संग्राम… शाम शाम’
यम को प्यारा ।।२।।
ले आद नाम ।
‘संग्राम… शाम शाम’
ले नाम राम ।।३।।
तुम्हें सुमर ।
‘संग्राम… शाम शाम’
झुकाता सर ।।४।।
जै आद रट ।
‘संग्राम… शाम शाम’
जाता निपट ।।५।।
जै आद स्वाम ।
‘संग्राम… शाम शाम’
कहे त्राहि माम् ।।६।।
जै आद पोर ।
‘संग्राम… शाम शाम’
शून की ओर ।।७।।
आद कुटुम ।
‘संग्राम… शाम शाम’
आप ही गुम ।।८।।
जै आद जुड़ ।
‘संग्राम… शाम शाम’
हो चाले फुर ।।९।।
जै आद सुनी ।
‘संग्राम… शाम शाम’
पाये मुखाग्नि ।।१०।।
जै आद भज ।
‘संग्राम… शाम शाम’
चाटता रज ।।११।।
जै आद रम ।
‘संग्राम… शाम शाम’
तोड़े कलम ।।१२।।
आद अंगुली ।
‘संग्राम… शाम शाम’
पकड़े गली ।।१३।।
जै आद रटा ।
‘संग्राम… शाम शाम’
आप लापता ।।१४।।
आद पनाह ।
‘संग्राम… शाम शाम’
नापता राह ।।१५।।
जै जै आलापी ।
‘संग्राम… शाम शाम’
ले दे मुआफी ।।१६।।
दृग् आप टिकी ।
‘संग्राम… शाम शाम’
खाये मुँह की ।।१७।।
नाभेय ध्याया ।
‘संग्राम… शाम शाम’
समेटे माया ।।१८।।
पा, आप कृपा ।
‘संग्राम… शाम शाम’
जा कहीं छिपा ।।१९।।
आद पुकार ।
‘संग्राम… शाम शाम’
चित् खाने चार ।।२०।।
ले आद नाम ।
‘संग्राम… शाम शाम’
राह विराम ।।२१।।
आसरा तुम ।
‘संग्राम… शाम शाम’
दाबता दुम ।।२२।।
आद भजत ।
‘संग्राम… शाम शाम’
इति श्री पथ ।।२३।।
जै आद रत ।
‘संग्राम… शाम शाम’
हो नदारद ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
तैंतालीसवां श्लोक
सुमर तुम्हें ।
‘वैरी…लगे न देरी’
होता वश में ।।१।।
जै आद सुने ।
‘वैरी…लगे न देरी’
टेके घुटने ।।२।।
ध्याये भगवान् ।
‘वैरी…लगे न देरी’
छोड़े मैदान ।।३।।
आप मेहर ।
‘वैरी…लगे न देरी’
धुनता सर ।।४।।
जे आद प्रीत ।
‘वैरी…लगे न देरी’
दिखाता पीठ ।।५।।
जै आद नाता ।
‘वैरी…लगे न देरी’
पग लौटाता ।।६।।
जै आद रम ।
‘वैरी…लगे न देरी’
भरता दम ।।७।।
जै आद भाई ।
‘वैरी…लगे न देरी’
‘रे धरासाई ।।८।।
जै आद झूम ।
‘वैरी…लगे न देरी’
कुदेरे भूम ।।९।।
पा, भक्त मग ।
‘वैरी…लगे न देरी’
लौटाता पग ।।१०।।
आद पुकार ।
‘वैरी…लगे न देरी’
मानता हार ।।११।।
श्री आद नमः ।
‘वैरी…लगे न देरी’
माँगता क्षमा ।।१२।।
आद पॉंवन ।
‘वैरी…लगे न देरी’
पॉंत रावन ।।१३।।
जै आद सुन ।
‘वैरी…लगे न देरी’
ले हार चुन ।।१४।।
आद जप की ।
‘वैरी…लगे न देरी’
खाये मुँह की ।।१५।।
आद सहाई ।
‘वैरी…लगे न देरी’
भरे जंभाई ।।१६।।
जै आद जुड़े ।
‘वैरी…लगे न देरी’
निकल चले ।।१७।।
जै आद सिद्ध ।
‘वैरी…लगे न देरी’
‘रे पाश बद्ध ।।१८।।
जपा जै आद ।
‘वैरी…लगे न देरी’
उठाता हाथ ।।१९।।
आद खिवैय्या ।
‘वैरी…लगे न देरी’
नाचे ता-थैय्या ।।२०।।
जै आद श्वास ।
‘वैरी…लगे न देरी’
दाबे मुः घास ।।२१।।
तुम्हें सुमर ।
‘वैरी…लगे न देरी’
बांधे बिस्तर ।।२२।।
जै आद ज्योत ।
‘वैरी…लगे न देरी’
करे दण्डौत ।।२३।।
आद पनाह ।
‘वैरी…लगे न देरी’
बैठता राह ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
चबालीसवां श्लोक
आद पुकार ।
‘अपार… जल धार’
अबाध पार ।।१।।
छू जय आद ।
‘अपार… जल धार’
चुलुक मात्र ।।२।।
जै आद रम ।
‘अपार… जल धार’
पाथ सुगम ।।३।।
जै आद रिश्ता ।
‘अपार… जल धार’
दे चाले रस्ता ।।४।।
आद जुड़ के ।
‘अपार… जल धार’
पार उड़ के ।।५।।
जै आद निरी ।
‘अपार… जल धार’
नामे विजै-श्री ।।६।।
जै आद रट ।
‘अपार… जल धार’
‘सहजो’ तट ।।७।।
सुमर आद ।
‘अपार… जल धार’
कूल निर्बाध ।।८।।
आद खिवैय्या ।
‘अपार… जल धार’
ऊ-पार नैय्या ।।९।।
मंत्र आद चित् ।
‘अपार… जल धार’
नौ सुरक्षित ।।१०।।
आद संज्योत ।
‘अपार… जल धार’
किनार पोत ।।११।।
आद आवाज ।
‘अपार… जल धार’
तट जहाज ।।१२।।
न्यार जै आद ।।
‘अपार… जल धार’
पार दृग् पाथ ।।१३।।
जै आद धुन ।
‘अपार… जल धार’
पार बाहुन ।।१४।।
थारी पनाह ।
‘अपार… जल धार’
रोके न राह ।।१५।।
जै आद संग ।
‘अपार… जल धार’
तीर तरंग ।।१६।।
जै आद चित्त ।
‘अपार… जल धार’
बनती मित्र ।।१७।।
आद बुलाया ।
‘अपार… जल धार’
समेटे माया ।।१८।।
आद संयोग ।
‘अपार… जल धार’
तैरने जोग ।।१९।।
आद शरण ।
‘अपार… जल धार’
घाट तरण ।।२०।।
जै आद गूँजी ।
‘अपार… जल धार’
न पन-‘डूबी’ ।।२१।।
जै आद देव ।
‘अपार… जल धार’
किनारे खेव ।।२२।।
साध जै आद ।
‘अपार… जल धार’
साहिल हाथ ।।२३।।
जै आद वर ।
‘अपार… जल धार’
छलाँग भर ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
पैंतालीसवां श्लोक
मुख जै आद ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
मुख प्रसाद ।।१।।
आद संगत ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
हाथ रंगत ।।२।।
आद सत्संग ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
जीवन रंग ।।३।।
आद संजोग ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
जॉं लेवा रोग ।।४।।
आद भजन ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
नीरोग तन ।।५।।
नाभेय सेवा ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
आरोग्य-देवा ।।६।।
आद सानिध ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
अगद निध ।।७।।
श्री आद भक्ति ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
रोग विमुक्ति ।।८।।
आद विनय ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
अक्ष विषय ।।९।।
आदांघ्रि रज ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
उपशान्त रुज् ।।१०।।
जै आद छॉंव ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
ताव-तनाव ।।११।।
आद कीर्तन ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
प्रशस्त मन ।।१२।।
नाभेय दर्श ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
रुज् अपकर्ष ।।१३।।
आदीश पूजा ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
आकाश गूॅंजा ।।१४।।
भक्ति निराली ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
मारी, बीमारी ।।१५।।
जै आद वीर ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
स्वस्थ शरीर ।।१६।।
जै आद ‘पाय’ ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
पाप कषाय ।।१७।।
आद श्रद्धान ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
श्री राम बाण ।।१८।।
श्रद्धा अटूट ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
‘आद’ अचूक ।।१९।।
आद लगन ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
जन्म मरण ।।२०।।
आद विरद ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
दुख दरद ।।२१।।
जयन्त आदि ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
अनन्त व्याधि ।।२२।।
आद चरणा ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
भव भ्रमणा ।।२३।।
जै-आद रत ।
‘ओ ! सुधी… है औषधि’
त्रिदोष गद ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
छियालीसवां श्लोक
भक्ति अनूठ ।
‘बन्धन… तन-मन’
आप दो टूक ।।१।।
जै आद डूबे ।
‘बन्धन… तन-मन’
निर्बाध टूटे ।।२।।
पुरु पढ़ते ।
‘बन्धन… तन-मन’
खुल पड़ते ।।३।।
भक्त दृग् गीले ।
‘बन्धन… तन-मन’
पड़ते ढ़ीले ।।४।।
जै आद रम ।
‘बन्धन… तन-मन’
शिथिल स्वयम् ।।५।।
जै आद गूँज ।
‘बन्धन… तन-मन’
सरक-फूँद ।।६।।
आद जिनेश ।
‘बन्धन… तन-मन’
नामाऽव-शेष ।।७।।
आद निर्दोष ।
‘बन्धन… तन-मन’
उड़ते होश ।।८।।
आद जै रत ।
‘बन्धन… तन-मन’
नापते पथ ।।९।।
जै आद नाते ।
‘बन्धन… तन-मन’
गुम हो जाते ।।१०।।
आद जै कहा ।
‘बन्धन… तन-मन’
हवाले हवा ।।११।।
जै हो तुमरी ।
‘बन्धन… तन-मन’
तन्तु मकरी ।।१२।।
जपत आद ।
‘बन्धन… तन-मन’
तड़तड़ाट ।।१३।।
आद नाम ले ।
‘बन्धन… तन-मन’
बस नाम के ।।१४।।
जै आद लिखें ।
‘बन्धन… तन-मन’
जा दूर दिखें ।।१५।।
पुरु जैकारे ।
‘बन्धन… तन-मन’
यम को प्यारे ।।१६।।
आद पुकार ।
‘बन्धन… तन-मन’
आप निःसार ।।१७।।
आप अपने ।
‘बन्धन… तन-मन’
लागें कँपने ।।१८।।
लौं ‘भी’ लगाई ।
‘बन्धन… तन-मन’
लो धराशाई ।।१९।।
ध्यां वृक्ष सींचा ।
‘बन्धन… तन-मन’
छोड़ते पीछा ।।२०।।
जप ‘अक्षर’ ।
‘बन्धन… तन-मन’
रफू चक्कर ।।२१।।
आद मंगल ।
‘बन्धन… तन-मन’
आप ओझल ।।२२।।
आदि कहो ‘रे ।
‘बन्धन… तन-मन’
बनें न रोड़े ।।२३।।
जै आद रट ।
‘बन्धन… तन-मन’
झरते झट ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
सैंतालीसवां श्लोक
शक्ति अपार ! ।
‘भय…करती क्षय’
भक्ति तिहार ।।१।।
दूज, अमोल ! ।
‘भय…करती क्षय’
पूजन तोर ।।२।।
आप विहारी ! ।
‘भय…करती क्षय’
जाप तिहारी ।।३।।
तव, विधाता ! ।
‘भय…करती क्षय’
गौरव गाथा ।।४।।
कंवल पंक्ति ! ।
‘भय…करती क्षय’
तव संगती ।।५।।
बेजोड़ ध्यानी ! ।
‘भय…करती क्षय’
तोर कहानी ।।६।।
शगुन जोड़ ! ।
‘भय…करती क्षय’
लगन तोर ।।७।।
व्यथा निवार ! ।
‘भय…करती क्षय’
कथा तिहार ।।८।।
शिव सारथी ! ।
‘भय…करती क्षय’
तव आरती ।।९।।
देवाधिदेव ! ।
‘भय…करती क्षय’
आपकी सेव ।।१०।।
ज्ञान अर्णव ! ।
‘भय…करती क्षय’
आपकी छव ।।११।।
निष्पाप मना ! ।
‘भय…करती क्षय’
आप शरणा ।।१२।।
तारणहारे ! ।
‘भय…करते क्षय’
तोर जै-कारे ।।१३।।
मेरे भगवन् ! ।
‘भय…करते क्षय’
तेरे भजन ।।१४।।
भोर सबेरे ! ।
‘भय…करते क्षय’
तराने तेरे ।।१५।।
सम-शरण ! ।
‘भय…करते क्षय’
तुम चरण ।।१६।।
पाप भै-भीत ! ।
‘भय…करते क्षय’
आपके गीत ।।१७।।
धरा कुटुम ! ।
‘भय…करता क्षय’
विरद तुम ।।१८।।
बढ़ पारस ! ।
‘भय…करता क्षय’
तुम्हारा जश ।।१९।।
और दर्पण ! ।
‘भय…करता क्षय’
तोर दर्शन ।।२०।।
नर्तन गुम ! ।
‘भय…करता क्षय’
अर्चन तुम ।।२१।।
एक निष्काम ! ।
‘भय…करता क्षय’
आपका नाम ।।२२।।
‘भी’ विवरण ! ।
‘भय…करता क्षय’
श्री सुमरण ।।२३।।
जोड़ कल्याण ! ।
‘भय…करता क्षय’
तोर जै-गान ।।२४।।
भक्ता-मर-स्तोत्र
हाई-को ?
१५६से१७९
अड़तालीसवां श्लोक
पढ़े जो पल ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
तरे भौ-जल ।।१।।
श्रद्धा से गाता ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
सिद्धि वो पाता ।।२।।
मन में लिखा ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
मनुआ हल्का ।।३।।
दृग्-नम पढ़ा ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
गुम दुखड़ा ।।४।।
करे जो पाठ ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
लगे भौ घाट ।।५।।
किसी से सुना ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
दे कई गुना ।।६।।
पढ़ दुखिया ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
बढ़ सुखिया ।।७।।
मन पटल ।।
स्तोत्र ये भक्तामर,
प्रशन हल ।।८।।
उतरा घट ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
भव्य निकट ।।९।।
पढ़ते खाली ।।
स्तोत्र ये भक्तामर,
मने दीवाली ।।१०।।
करते कान ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
करे कल्याण ।।११।।
रट्टु तोता भी ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
मोटी खोता धी ।।१२।।
कहा हमारा ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
दिखा किनारा ।।१३।।
पढ़ा सुबहो ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
बड़ा शुभ हो ।।१४।।
लागे लगन ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
भागे विघन ।।१५।।
जिसने गाया ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
जश कमाया ।।१६।।
छुये जुबान ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
चुये गुमान ।।१७।।
अंधे, दे नैन ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
गूँगे, दे वैन ।।१८।।
सखि ! आ गायें ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
खुशियाँ पायें ।।१९।।
कम न जादू ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
मनु…आ साधूॅं ।।२०।।
पढ़ते शाम ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
बनते काम ।।२१।।
दिल से प्रीत ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
दिलाये जीत ।।२२।।
निराला रिश्ता ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
निकाले रस्ता ।।२३।।
किया कण्ठस्थ ।
स्तोत्र ये भक्तामर,
‘सहजो’ स्वस्थ ।।२४।।
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