परम पूज्य १०८ मुनिश्री निराकुलसागर महाराजजी द्वारा रचित
पठारी वाले बड़े बाबा पूजन
बड़े बाबा पठारी वाले
पूजन-रवि
मंगलकर अमंगलहार ।
मंशा पूर्ण इक दरबार ।।
तिहु-जग एक रखवाले ।
बाबा पठारी वाले ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि नाथ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
कंचन झार, प्रासुक नीर ।
भेंटूॅं, हेत भव-जल तीर ।।
घन-जग बिजुरि उजियारे ।
बाबा पठारी वाले ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चन्दन सुगंधित मनहार ।
भेंटूॅं, हेत मन अविकार ।।
हरते कष्ट-दुख सारे ।
बाबा पठारी वाले ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
स्वर्ण पिटार, अक्षत धान ।
भेंटूॅं, हेत शाश्वत थान ।।
प्यासी धरा घन-काले ।
बाबा पठारी वाले ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुरभित पुष्प, नन्दन बाग ।
भेंटूॅं, हेत भीतर जाग ।।
चाबी इक, अनेक ताले ।
बाबा पठारी वाले ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
षट् रस घृत अमृत नैवेद ।
भेंटूॅं, क्षुधा मेटन हेत ।।
टकते चुनर शश-तारे ।
बाबा पठारी वाले ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गो घृत दीप ज्योत अखण्ड ।
भेंटूॅं, हेत सरसुत कण्ठ ।।
माँ सी फूँक भव छाले ।।
बाबा पठारी वाले ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अगर कपूर चन्दन चूर ।
भेंटूॅं, हेत संयम नूर ।।
सारे जहाँ से न्यारे ।।
बाबा पठारी वाले ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
फल रसदार फूटे गन्ध ।
भेंटूॅं, हेत सहजानन्द ।।
मीठे सिन्धु अर खारे ।।
बाबा पठारी वाले ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
युगपत् द्रव्य सबरे आठ ।
भेंटूॅं, हेत अन्त-समाध ।।
थारे भी, न बस म्हारे ।
बाबा पठारी वाले ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=कल्याणक-अर्घ=
पुरु-देव जय, पुरु-देव जय
वर्षण रतन ।
दर्शन सुपन ।।
माँ देवि मरु पुन सातिशय ।
पुरु-देव जय, पुरु-देव जय ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भ-कल्याणक-बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पुरु-देव जय, पुरु-देव जय
जलसा न्हवन ।
कलसा नयन ।।
सौधर्म-शचि पुन सातिशय ।
पुरु-देव जय, पुरु-देव जय ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पुरु-देव जय, पुरु-देव जय
वन आगमन ।
कच-लोंच धन ।।
भवि ! क्षीर-जल पुन सातिशय ।
पुरु-देव जय, पुरु-देव जय ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां दीक्षा-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पुरु-देव जय, पुरु-देव जय
निध समशरण ।
ढ़िग सिंह हिरण ।।
सभ द्वादशन पुन सातिशय ।
पुरु-देव जय, पुरु-देव जय ।।
ॐ ह्रीं फागुन-कृष्ण-एकादश्यां ज्ञान-कल्याणक बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पुरु-देव जय, पुरु-देव जय
ध्यानन अगन ।
कर्मन दहन ।।
शिव-राधिका पुन सातिशय ।
पुरु-देव जय, पुरु-देव जय ।।
ॐ ह्रीं माघ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्ष-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
…जयमाला…
दोहा=
संकट मोचन नाम से,
बाबा जग विख्यात ।
चलो पठारी ग्राम को,
पुरजन-परिजन साथ ।।
जय जय कारा जय जय कारा ।
बड़े-बाबा का साँचा द्वारा ।।
आगी पानी ।
सीता रानी ।।
शील पताका, किल्विष हारा ।
जय जय कारा जय जय कारा ।
बड़े-बाबा का साँचा द्वारा ।।
दूनी सारी ।
दुपद दुलारी ।।
शील पताका, किल्विष हारा ।
जय जय कारा जय जय कारा ।
बड़े-बाबा का साँचा द्वारा ।।
अहि गुल-माला ।
सोमा तारा ।।
शील पताका, किल्विष हारा ।
जय जय कारा जय जय कारा ।
बड़े-बाबा का साँचा द्वारा ।।
नीलि प्रहारा ।
खुले किवारा ।।
शील पताका, किल्विष हारा ।
जय जय कारा जय जय कारा ।
बड़े-बाबा का साँचा द्वारा ।।
चन्दन बाला ।
बाहिर कारा ।।
शील पताका, किल्विष हारा ।
जय जय कारा जय जय कारा ।
बड़े-बाबा का साँचा द्वारा ।।
भक्ती-अंधी ।
सुत बजरंगी ।।
शील पताका, किल्विष हारा ।
जय जय कारा जय जय कारा ।
बड़े-बाबा का साँचा द्वारा ।।
मती अनन्ता ।
पथ निष्कण्टा ।।
शील पताका, किल्विष हारा ।
जय जय कारा जय जय कारा ।
बड़े-बाबा का साँचा द्वारा ।।
सुलोचना ‘री ।
जै बलिहारी ।।
शील पताका, किल्विष हारा ।
जय जय कारा जय जय कारा ।
बड़े-बाबा का साँचा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दोहा=
दिखे नहीं बलजोर भी,
तब गुण-सागर घाट ।
‘सहज-निराकुल‘ लो बना,
बाबा अपने भाँत ।।
बड़े बाबा पठारी वाले
पूजन-सोम
सार्थ नाम है तुमने पाया ।
देवों ने भी शीश नवाया ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
ऋषि-मुनिंयों ने विरद रचाया ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि नाथ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
कमल भिन्न-जल भरत बनाया ।
तेरा ही मैं, नहीं पराया ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
चरणन मैं भी दृग् जल लाया ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जश-तापस पोदनपुर-राया ।
तेरा ही मैं, नहीं पराया ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
चरणन मैं भी चन्दन लाया ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अक्षर सत् शिव सुन्दरि पाया ।
तेरा ही मैं, नहीं पराया ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
चरणन मैं भी अक्षत लाया ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
लिपि गौरव ब्राह्मी ने पाया ।
तेरा ही मैं, नहीं पराया ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
चरणन मैं भी प्रसून लाया ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पिता नाभि जश ध्वज लहराया ।
तेरा ही मैं, नहीं पराया ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
चरणन मैं भी नैवज लाया ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सीझ पड़ा ‘मरू‘ महि…मा माया ।
तेरा ही मैं, नहीं पराया ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
चरणन मैं भी प्रदीप लाया ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पुन साकेत सातिशय पाया ।
तेरा ही मैं, नहीं पराया ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
चरणन मैं भी सुगंध लाया ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सोम श्रियांस न क्या क्या पाया ।
तेरा ही मैं, नहीं पराया ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
चरणन मैं भी श्री फल लाया ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जीव गिंजाई भाग जगाया ।
तेरा ही मैं, नहीं पराया ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
चरणन मैं भी सब कुछ लाया ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=कल्याणक-अर्घ=
गर्भ पूर्व बरसे नभ रतना ।
कहाँ और का वैभव इतना ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
रहा न माँ का सपना सपना ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भ-कल्याणक-बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
नाम नरक भी पलटी खाया ।
सुख बढ़-के स्वर्गों से पाया ॥
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
समय जन्म का ज्यों ही आया ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
तजा जान विष विषयन बीचा ।
चूँकि पूर्व कञ्चन बिच कीचा ॥
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
नग्न हुये, दल-कुंतल खींचा ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां दीक्षा-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
सार्थक नाम सम-शरण लागा ।
बैठे वैर छोड़ सिंह, छागा ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
भाग सभावन बारह जागा ।।
ॐ ह्रीं फागुन-कृष्ण-एकादश्यां ज्ञान-कल्याणक बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
शुकल ध्यान फिर अगन प्रजारी ।
सेन कर्म वसु अबकी हारी ।।
देव-देव तुम, आदि-ब्रह्म तुम,
व्याही सुख निर्बाध दुलारी ।।
ॐ ह्रीं माघ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्ष-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा=
द्वार आदि भगवान का,
मंशा पूरण एक ।
अगर नहीं विश्वास तो,
आन पठारी देख ।।
दुखहारी है, सुखकारी है ।।
बाबा मिरा चमत्कारी है ।।
बस करना है चौखट गीली ।
मैं क्या कहता, कहती नीली ।
अर्गल पट कीलित भी ढ़ीली ।
बलिहारी है,
बाबा मिरा चमत्कारी है ।।
आना सिर्फ प्रफुल्लित रोमा ।
मैं क्या कहता, कहती सोमा ।
नाग फूल माला, देखो ना ।
बलिहारी है,
बाबा मिरा चमत्कारी है ।।
बस पखारना दृग् जल रो पद ।
मैं क्या कहता, कहती द्रोपद ।
चीर बढ़ चला उलांघ वो हद ।
बलिहारी है,
बाबा मिरा चमत्कारी है ।।
आना बस ले गद-गद वैना ।
मैं क्या कहता, कहती मैना ।
बीती कर्म निकाचित रैना ।
बलिहारी है,
बाबा मिरा चमत्कारी है ।।
पल गानी गुण-गौरव गीता ।
मैं क्या कहता, कहती सीता ।
आग बन चली धार-सरीता ।
बलिहारी है,
बाबा मिरा चमत्कारी है ।।
दुखहारी है, सुखकारी है ।।
बाबा मिरा चमत्कारी है ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दोहा=
बड़ी और कोई नहीं,
अंतिम, प्रथम मुराद ।
सहज-निराकुल लो बना
बाबा अपने भाँत ।।
बड़े बाबा पठारी वाले
पूजन-मंगल
भर श्रद्धा से तुम्हें पुकारा ।
सिवा तुम्हारे कौन हमारा ।।
ग्राम पठारी वाले बाबा,
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि नाथ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
छोड़ रहा जल गंगा धारा ।
सिवा तुम्हारे कौन हमारा ।।
ग्राम पठारी वाले बाबा,
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चर्चूं चन्दन मलय पहारा ।
सिवा तुम्हारे कौन हमारा ।।
ग्राम पठारी वाले बाबा,
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ अक्षत धान पिटारा ।
सिवा तुम्हारे कौन हमारा ।।
ग्राम पठारी वाले बाबा,
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ पुष्प सुकोमल न्यारा ।
सिवा तुम्हारे कौन हमारा ।।
ग्राम पठारी वाले बाबा,
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ व्यञ्जन विविध प्रकारा ।
सिवा तुम्हारे कौन हमारा ।।
ग्राम पठारी वाले बाबा,
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दीप जगाऊँ धुरुव सितारा ।
सिवा तुम्हारे कौन हमारा ।।
ग्राम पठारी वाले बाबा,
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खेॐ गंध सुगंध अपारा ।
सिवा तुम्हारे कौन हमारा ।।
ग्राम पठारी वाले बाबा,
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ फल बासन्त बहारा ।
सिवा तुम्हारे कौन हमारा ।।
ग्राम पठारी वाले बाबा,
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ द्रव्य दिव्य जुग चारा ।
सिवा तुम्हारे कौन हमारा ।।
ग्राम पठारी वाले बाबा,
साँचा एक तुम्हारा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=कल्याणक-अर्घ=
पुण्य कुमारी छप्पन न्यारा ।
माँ मरु शोधन गर्भ प्रभारा ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भ-कल्याणक-बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
बाल तीर्थकर प्रथम निहारा ।
धन शचि पुन इक भव अवतारा ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
धन विराग लौकान्त उचारा ।
पा… वन भेष दिगम्बर धारा ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां दीक्षा-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अतिशय पुण्य सभावन बारा ।
अंजुल कर्ण हृदय ‘भी‘ धारा ।।
ॐ ह्रीं फागुन-कृष्ण-एकादश्यां ज्ञान-कल्याणक बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
ध्यान खड्ग अरि कर्म पछारा ।
धन पुन शिव राधा श्रृंगारा ।।
ॐ ह्रीं माघ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्ष-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा=
थाम हाथ न छोड़ते,
हो लेते प्रभु साथ ।
मेले में माँ राखती,
कस के शिशु का हाथ ।।
ग्राम पठारी के बाबा बड़े
भक्तों के बन चले काम बिगड़े
पनीली आँखें लाना है ।
चौखट गीली कर जाना है ।।
आ चले छूने में आसमाँ,
जमीं पर ही खड़े-खड़े ।।
ग्राम पठारी के बाबा बड़े
भक्तों के बन चले काम बिगड़े
सुमन श्रद्धा के लाना है ।
समर्पण करते जाना है ।।
आ चले छूने में आसमाँ,
जमीं पर ही खड़े-खड़े ।।
ग्राम पठारी के बाबा बड़े
भक्तों के बन चले काम बिगड़े
लगन ऐसी लगाना है ।
उतरते गहरे जाना है ।।
आ चले छूने में आसमाँ,
जमीं पर ही खड़े-खड़े ।।
ग्राम पठारी के बाबा बड़े
भक्तों के बन चले काम बिगड़े
रोम पुलकन ले आना है ।
दृष्टि चरणन टिकाना है ।।
आ चले छूने में आसमाँ,
जमीं पर ही खड़े-खड़े ।।
ग्राम पठारी के बाबा बड़े
भक्तों के बन चले काम बिगड़े
हृदय गद-गद ले आना है ।
रटन ‘जय-आद‘ लगाना है ।।
आ चले छूने में आसमाँ,
जमीं पर ही खड़े-खड़े ।।
ग्राम पठारी के बाबा बड़े
भक्तों के बन चले काम बिगड़े
बस एक श्री फल लाना है ।
बुदबुदा कर रख जाना है ।।
आ चले छूने में आसमाँ,
जमीं पर ही खड़े-खड़े ।।
ग्राम पठारी के बाबा बड़े
भक्तों के बन चले काम बिगड़े
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दोहा=
मुँह-माँगा सो मिल रहा,
बिन मुँह माँगे लेख ।
गूंगे बाबा द्वार से,
चले छुपा कुछ देख ।।
बड़े बाबा पठारी वाले
पूजन-बुध
जिन शासन पहचान ।
हम भक्तों की जान ।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि नाथ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
भेंटूँ जल अम्लान ।
हित सम्यक् श्रद्धान ।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ मलय गुमान ।
हित इक महल-मशान ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ अक्षत धान ।
हित विभिन्न असि म्यान ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ पुष्प विमान ।
हित मन बाल समान ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ घृत पकवान ।
हित, मित, परिमित वान ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ दीपक भान ।
हित सरसुत आह्वान ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ धूप सुहान ।
हित चित् अनुसंधान ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ फल, बागान ।
हित सु…मरण वरदान ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भेंटूँ द्रव्य प्रधान ।
हित दिव-शिव सोपान ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=कल्याणक-अर्घ=
बरसा रतन विमान ।
धन्य गर्भ कल्याण ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भ-कल्याणक-बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
न्हवन सुमेर विधान ।
धन्य जन्म कल्याण ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां
जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जिन दीक्षा वन आन ।
धन्य त्याग कल्याण ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां दीक्षा-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
झलके तीन जहान ।
धन्य ज्ञान कल्याण ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं फागुन-कृष्ण-एकादश्यां ज्ञान-कल्याणक बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अष्टापद निर्वाण ।
धन्य मोक्ष कल्याण ।।
करुणा दया निधान ।
ग्राम पठारी के बड़े बाबा,
आदिनाथ भगवान् ।।
ॐ ह्रीं माघ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्ष-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा=
दर्श मात्र झर चालते,
कर्म निधत्त निकाच ।
बड़े बाबा आदीश का,
द्वार पठारी साँच ।।
महिमा अपरम्पार ।
ग्राम पठारी बड़े बाबा का,
इक साँचा दरबार ।।
जिसने यहाँ किया अभिषेक ।
सुख-समृद्धि उकेरी रेख ।
लेख अकेले ना दो चार ।
महिमा अपरम्पार ।
ग्राम पठारी बड़े बाबा का,
इक साँचा दरबार ।।
जिसने छतर चढ़ाया है ।
मुँँह-माँगा वर पाया है ।
रख श्रृद्धा आ लगा गुहार ।
महिमा अपरम्पार ।
ग्राम पठारी बड़े बाबा का,
इक साँचा दरबार ।।
दी प्रदक्षिणा आ के तीन ।
संकट विघन किये छवि-छीन ।
लगी न यूँ ही भक्त कतार ।
महिमा अपरम्पार ।
ग्राम पठारी बड़े बाबा का,
इक साँचा दरबार ।।
आ जिसने कीं आरतिंयाँ ।
मैंटीं अशुभ पाप गतिंयाँ ।।
सहज-निराकुल बेड़ा पार ।
महिमा अपरम्पार ।
ग्राम पठारी बड़े बाबा का,
इक साँचा दरबार ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दोहा=
मेले में कब छोड़ती,
माँ बच्चे का हाथ ।
आश मुझे विश्वास भी,
तुम हो मेरे साथ ।।
बड़े बाबा पठारी वाले
पूजन-गुरु
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी
शिशु बजरंगी,
पानी आगी
छुपा किससे
बड़े बाबा से, जिसकी लगन लागी
कृपा बरसे
छपा किस्से
छुपा किससे
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि नाथ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
क्यूँ न चढ़ाऊँ दृग्-जल
मैं तो चढ़ाऊँगा
रोजाना आऊँगा
यूँ ही चढ़ाने दृग्-जल
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी। ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ चन्दन
मैं तो चढ़ाऊँगा
रोजाना आऊँगा
यूँ ही चढ़ाने चन्दन
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ अक्षत
मैं तो चढ़ाऊँगा
रोजाना आऊँगा
यूँ ही चढ़ाने अक्षत
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ फुल्वा
मैं तो चढ़ाऊँगा
रोजाना आऊँगा
यूँ ही चढ़ाने फुल्वा
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ नेवज
मैं तो चढ़ाऊँगा
रोजाना आऊँगा
यूँ ही चढ़ाने नेवज
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ दीवा
मैं तो चढ़ाऊँगा
रोजाना आऊँगा
यूँ ही चढ़ाने दीवा
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ सुरभी
मैं तो चढ़ाऊँगा
रोजाना आऊँगा
यूँ ही चढ़ाने सुरभी
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ श्री फल
मैं तो चढ़ाऊँगा
रोजाना आऊँगा
यूँ ही चढ़ाने श्री फल
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्यूँ न चढ़ाऊँ सब कुछ
मैं तो चढ़ाऊँगा
रोजाना आऊँगा
यूँ ही चढ़ाने सब कुछ
लगन लागी
बड़े बाबा से, मेरी लगन लागी
मैं बड़भागी ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=कल्याणक-अर्घ=
कल्याणक जय-जय
जय-जय
कल्याणक जय-जय
सातिशय अनोखी ।
बरसा रत्नों की ।।
जन-जन पुण्योदय
कल्याणक जय-जय ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भ-कल्याणक-बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
क्षीर नीर कलशा ।
मेर न्हवन जलसा ।।
शचि अनेक भव क्षय
कल्याणक जय-जय ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
हित जित मन-अक्षा ।
दैगम्बर दीक्षा ।।
सिद्ध साक्ष सविनय
कल्याणक जय-जय ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां दीक्षा-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
सुरभी सम शरणा ।
सुनते सिंह हिरणा ।।
कल…यान अरिंजय
कल्याणक जय-जय ।।
ॐ ह्रीं फागुन-कृष्ण-एकादश्यां ज्ञान-कल्याणक बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
शुक्ल ध्यान अगनी ।
दह करनी-भरणी ।।
शिव थान जनम क्षय
कल्याणक जय-जय ।।
ॐ ह्रीं माघ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्ष-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा=
बाबा ग्राम पठारि के,
करुणा के भण्डार ।
जल-धारा घट भर चले,
आ झुकते एक बार ।।
बड़े बाबा तुम, मेरे बड़े काम आते हो ।
बस देर बुलाने की, और तुम आ जाते हो ।।
चूर शिला, अम्बर बजरंगी गाजा ।
पाँव लगा नीली, खुल्ला दरवाजा ।।
आंसु भक्तों के, खुद आंख भिंजाते हो ।
बस देर बुलाने की, और तुम आ जाते हो ।।
चीर बढ़ चला है, हद उलांघ गगना ।
कमल सरोवर में, बदल चली अँगना ।।
देख बिछे काँटे, बढ़ गोद उठाते हो ।
बस देर बुलाने की, और तुम आ जाते हो ।।
विष उतार शिशु का, भक्त लाज रख ली ।
घड़े नाग काले, फूल माल निकली ।।
‘मैं हूँ ना, मत डरो‘ आ बुदबुदाते हो ।
बस देर बुलाने की, और तुम आ जाते हो ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दोहा=
लाज आज तक राख ली,
इतना करना और ।
आ धमके जम पूर्व ही,
थम चाले मृग दौड़ ।।
बड़े बाबा पठारी वाले
पूजन-शुक्र
रस्ता दिखाने वाले
बिगड़ी बनाने वाले
पठारी वाले बाबा
किरपा बरसाने वाले
कौन मेरा, तुम्हारे अलावा
बड़े बाबा, बड़े बाबा, बड़े बाबा ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि नाथ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
आये हम दौड़े-दौड़े ।
ले जल से भरे कटोरे ।।
हैं भले बुरे जैसे भी,
बड़े बाबा ! हैं हम तोरे ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आये हम दौड़े-दौड़े ।
ले प्याले चन्दन घोरे ।।
हैं भले बुरे जैसे भी,
बड़े बाबा ! हैं हम तोरे ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आये हम दौड़े-दौड़े ।
ले अक्षत धान परोरे ।।
हैं भले बुरे जैसे भी,
बड़े बाबा ! हैं हम तोरे ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
आये हम दौड़े-दौड़े ।
ले फुल्वा हटके थोड़े ।।
हैं भले बुरे जैसे भी,
बड़े बाबा ! हैं हम तोरे ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आये हम दौड़े-दौड़े ।
ले चरु निर्मित घृत गो ‘रे ।।
हैं भले बुरे जैसे भी,
बड़े बाबा ! हैं हम तोरे ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आये हम दौड़े-दौड़े ।
ले घृत वर्तिका भिंजो ‘रे ।।
हैं भले बुरे जैसे भी,
बड़े बाबा ! हैं हम तोरे ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आये हम दौड़े-दौड़े ।
ले धूप सुगंधी छोड़े ।।
हैं भले बुरे जैसे भी,
बड़े बाबा ! हैं हम तोरे ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आये हम दौड़े-दौड़े ।
ले फल वन नन्द बटोरे ।।
हैं भले बुरे जैसे भी,
बड़े बाबा ! हैं हम तोरे ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आये हम दौड़े-दौड़े ।
ले दिव्य द्रव्य मन कोरे ।।
हैं भले बुरे जैसे भी,
बड़े बाबा ! हैं हम तोरे ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=कल्याणक-अर्घ=
कल…यान कल…यान कल…यान
जय जयतु जयतु जय, आदि भगवान्
अम्बर से
रतन बरसे
गर्भ माँ तीर्थंकर पहचान
जय जयतु जयतु जय, आदि भगवान् ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भ-कल्याणक-बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
न्हवन जलसा
क्षीर कलशा
करें सौधर्म स्वर्ण से आन
जय जयतु जयतु जय आदि भगवान् ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
दूज कक्षा
नगन दीक्षा
भोग, फण-नाग नाम अर जान
जय जयतु जयतु जय आदि भगवान् ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां दीक्षा-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
सम शरणा
सिंह हिरणा
सहज, कर जात वैर अवसान
जय जयतु जयतु जय आदि भगवान् ।।
ॐ ह्रीं फागुन-कृष्ण-एकादश्यां ज्ञान-कल्याणक बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
भीतर जा
पटा करजा
समय जा पहुँचे शिव रजधान
जय जयतु जयतु जय आदि भगवान् ।।
ॐ ह्रीं माघ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्ष-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा=
आप सरीखे आप हैं,
चाँद दाग, रवि ताप ।।
माटी ही कुछ दूसरी,
आप विरचना आप ।।
जग के अन्दर, सबसे सुन्दर
बाबा पठारी वाले हैं ।
दूज चन्दर से प्यारे हैं ।
पुष्प चंपक जैसी नासा ।
मेर मस्तक इक परिभाषा ।।
केश काले घुँघराले हैं ।।
दूज चन्दर से प्यारे हैं ।
जग के अन्दर, सबसे सुन्दर
बाबा पठारी वाले हैं ।
कर्ण काँधों से बतियाते ।
स्वर्ण गिर काँधे बतलाते ।।
नैन पंकज से न्यारे हैं ।।
दूज चन्दर से प्यारे हैं ।
जग के अन्दर, सबसे सुन्दर
बाबा पठारी वाले हैं ।
भाँत फल-बिम्ब होंठ नीके ।
सुण्ड गज बाहु युगल दीखे ।।
नखों से मोती हारे हैं । दूज चन्दर से प्यारे हैं ।
जग के अन्दर, सबसे सुन्दर
बाबा पठारी वाले हैं ।
धनुष भ्रू, उदर त्रिबल वाला ।
गला आवर्त शंख माला ।।
‘जि कुछ हटके ही ढ़ाले हैं ।
दूज चन्दर से प्यारे हैं ।
जग के अन्दर, सबसे सुन्दर
बाबा पठारी वाले हैं ।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दोहा=
सहज-निराकुल और ना,
धरा, गगन, पाताल ।
क्यों न हो ऊँचा, कहो,
आप भक्त का भाल ।।
बड़े बाबा पठारी वाले
पूजन-शनि
बाबा पठारि ओ ! सुुन लो ।
अपने भक्तों में चुन लो ।।
तारा तुमनें लाखों को ।
देखो मेरी आँखों को ।।
थम रहे न मेरे आँसू ।
क्यूँ मुझसे ही रूठा तू ।।
मन चली सोम दीवाली ।
झोली श्रियांस न खाली ।।
बाबा दे दो बस इतना ।
सन्मृत्यु रहे न सपना ।।
बाबा पठारि ओ ! सुुन लो ।
अपने भक्तों में चुन लो ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि नाथ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदिनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
आने तेरे अपनों में ।
लाया दृग् जल चरणों में ।।
बाबा दे दो बस इतना ।
सन्मृत्यु रहे न सपना ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भक्तों में आने आया ।
चन्दन घिस घोर चढ़ाया ।।
बाबा दे दो बस इतना ।
सन्मृत्यु रहे न सपना ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तेरे अपनों में आने ।
लाया अनटूटे दाने ।।
बाबा दे दो बस इतना ।
सन्मृत्यु रहे न सपना ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
पाने दृग् दया तुम्हारी ।
लाया नन्दन फुलवारी ।।
बाबा दे दो बस इतना ।
सन्मृत्यु रहे न सपना ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जुड़ चले भक्त तुम नाता ।
अरु अरु चरु चारु चढ़ाता ।।
बाबा दे दो बस इतना ।
सन्मृत्यु रहे न सपना ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुम भक्ति रंग रँग पाने ।
लाया दश गंध चढ़ाने ।।
बाबा दे दो बस इतना ।
सन्मृत्यु रहे न सपना ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुम भक्त पुण्य पा जाऊँ ।
अनबुुझ घृृत दीप चढ़ाऊँ ।।
बाबा दे दो बस इतना ।
सन्मृत्यु रहे न सपना ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुम भक्त कतार लुभाये ।
श्री फल पिटार ले आये ।।
बाबा दे दो बस इतना ।
सन्मृत्यु रहे न सपना ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुम अपने एक हमारे ।
ले आया सब कुछ द्वारे ।।
बाबा दे दो बस इतना ।
सन्मृत्यु रहे न सपना ।।
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=कल्याणक-अर्घ=
कल…यान हाथ कर दो ।
सु…मरण समाध वर दो ।।
माँ का अपना सपना ।
झोली जन-जन रतना ।।
पूरण मुराद कर दो ।
सु…मरण समाध वर दो ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भ-कल्याणक-बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
शचि भव इक अवतरना ।
सौधरम सहस नयना ।।
दूधिया रात कर दो ।
सु…मरण समाध वर दो ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
नख केश क्षीर गहना ।
वन जीवन क्या कहना ।।
वसु मात साथ कर दो ।
सु…मरण समाध वर दो ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-कृष्ण-नवम्यां दीक्षा-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
गुण सारथ सम-शरणा ।।
सहजो केशर हिरणा ।।
वैतरण घाट धर दो ।
सु…मरण समाध वर दो ।।
ॐ ह्रीं फागुन-कृष्ण-एकादश्यां ज्ञान-कल्याणक बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
वधु मुक्ति नैन झरना ।
दीवाली शिव सदना ।।
‘कुल…निरा साध‘ कर दो ।।
सु…मरण समाध वर दो ।।
ॐ ह्रीं माघ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्ष-कल्याणक प्राप्ताय बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा=
चीर भीतरी बाहरी,
पा तुम किरपा चीर ।
सहज समाधी पा सकूँ,
भावन प्रथम अखीर ।।
अन्त समाधि मरण भावना भाता हूँ
इसीलिये दरबार तुम्हारे आता हूँ
नहीं भावना, नाम सुर्ख़िंयों में पाऊॅं ।
नहीं भावना, स्वाम सुर-तिंयों में आऊँ ।।
यही भावना, शाम स्व-रखिंयों में आऊँ ।
तुम्हीं हमारे दुखड़ा तभी सुनाता हूँ
इसीलिये दरबार तुम्हारे आता हूँ
नहीं भावना, खनखन पैसों की सुनना ।
नहीं भावना, सैर विदेशों की चुनना ।।
यही भावना जड़ संक्लेशों की हनना ।
तुम्हीं हमारे दुखड़ा तभी सुनाता हूँ
इसीलिये दरबार तुम्हारे आता हूँ
नहीं भावना, मुझपे जग मर मिट जावे ।
नहीं भावना, संकट-विघन विघट जावे ।।
यही भावना, स्वानुभवन प्रकट जावे ।।
तुम्हीं हमारे दुखड़ा तभी सुनाता हूँ
इसीलिये दरबार तुम्हारे आता हूँ
नहीं भावना, कवि होऊॅं सारस्वत मैं ।
नहीं भावना, रवि सा होऊॅं भास्वत मैं ।।
यही भावना, भुवि पा जाऊँ शाश्वत मैं ।।
तुम्हीं हमारे दुखड़ा तभी सुनाता हूँ
इसीलिये दरबार तुम्हारे आता हूँ
नहीं भावना, सौ इन्द्रों में हो गिनती है ।
नहीं भावना, साँसें पाऊँ अनगिनती ।।
यही भावना, मेंढ़क सी सुन लो विनती ।
तुम्हीं हमारे दुखड़ा तभी सुनाता हूँ
इसीलिये दरबार तुम्हारे आता हूँ
अन्त समाधि मरण भावना भाता हूँ
इसीलिये दरबार तुम्हारे आता हूँ
ॐ ह्रीं बड़े बाबा श्री आदि-नाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य-पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दोहा=
व्रत मंदिर कलशा चढ़े,
और न बस फरियाद ।
ग्राम पठारी के बड़े,
बाबा भगवन् आद ।।
*आरती*
आरती उतारें,
आओ आरती उतारें
ग्राम पठारी के बड़े बाबा, संकट निवारें ।।
पहली आरति गर्भ समय की ।
बरसा रतन, गगन जय-जय की ।
मन से पुकारें ।
आओ आरती उतारें
ग्राम पठारी के बड़े बाबा, संकट निवारें ।।
दूसरी आरति जन्म समय की ।
दर्श मात्र शचि पुन अक्षय की ।
मूरत निहारें ।
आओ आरती उतारें
ग्राम पठारी के बड़े बाबा, संकट निवारें ।।
तीसरी आरति त्याग समय की ।
दीक्षा नगन विराग विषय की ।
चरणा पखारें ।
आओ आरती उतारें
ग्राम पठारी के बड़े बाबा, संकट निवारें ।।
चौथी आरति ज्ञान समय की ।
सार्थ सम-शरण दान अभय की ।
भक्ति उर धारें ।
आओ आरती उतारें
ग्राम पठारी के बड़े बाबा, संकट निवारें ।।
पाँचवी आरति मोक्ष समय की ।
ऋजु-गत शिव-पत, कर्म विलय की ।
जीवन सॅंवारें ।
आओ आरती उतारें
ग्राम पठारी के बड़े बाबा, संकट निवारें ।।
नुति-प्रनुति…
माँ-सरसुति…√
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