(८१)
न सिर्फ इसको ही
अपने साथ में ले लो
उसको भी
क्यूँ ? क्या सुनी नहीं है
दूसरी शाला की
दूसरी कक्षा की
एक कहानी है
जिसमें एक छोटा सा चूहा भी
शेर ही नहीं,
बब्बर-शेर के काम आया था
वो भी जिसे
शेर ने विश्वास के साथ नहीं
उसई उसई
अपनाया था
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
काम और छोड़
आ.. कछु जोड़े बेजोड़
(८२)
यह प्रकृति का अकाट्य नियम है
वही लौट कर वापिस आता है
जो दिया जाता है
यदि सामने से लगा के तार
लगातार नफरत आ रही है
मतलब कमी अपनी ही है
सच, अपनी आँखों का गीड़
जिसे कीचड़ कहते है
आँखों के इतने करीब होने के बाद भी
दिखलाई जो नहीं देता है
जरा टटोलों तो अपना जिया
कहीं हाथों की ओट के अन्दर
अपनी ही श्वास से
बुझ तो नहीं चला अपना दीया
(८३)
कोरा भी रहता है
किसी किसी का मन
तन गोरा नहीं कह रहा हूॅं
वह तो जिस किसी को
नसीब हो जाता है
हर गली नुक्कड़
जो बिकता रहता खूब हल्दी चन्दन
पर कोरा मन
मन के अक्षर पलटाते ही
बना नया शब्द कहता है
म…न
न…म
‘के नम आंखों की कोर वालों का होता है
कोरा मन
असमय में नहीं
वक्त रूपी पानी के थपेड़े खाकर के
“नर्मदा का हर कंकर, शंकर”
रूप हो चले सफेद-गौर बाल वालों का होता है
(८४)
जब मन हमसे बार बार कहे
भाई ! यदि हार गये तो
तब एक बार अपने मन से कह देना
यदि जीत गये तो
सच, बोलती बन्द हो जायेगी मन की
जाने क्यूँ बगैर ब्रेक के
दौड़ा रहता दिमाग
रे ! अरे !
वक्त रहते जाग
(८५)
किसी ने कुछ कह दिया
और हम दूसरों की बातों में आ गये
‘रे सुन
हमारा मन भी इन्हीं दूसरों में आता है
हम मन नहीं है,
हम आत्मा हैं
सो जब हमारा अपना मन
चले थाम कर के शैतान का दामन
तब फिर हाथ में अखबार लेना
पहले उसकी जम के खूब खबर लेना
(८६)
‘रे मनुआ
सरकार,
बनाती है फिर बाग-बागाना
बनाती है पहले पुलिस थाना
मतलब दुनिया सिर्फ एक नहीं
दो नहीं
तीन मानना है हमें
वह तीसरी है नरक निगोद
‘के पाप का फल देख करके
हम पाप करने से बचेंगे
और पुण्य का प्रतिफल
सुरग मोक्ष देखकर के
सत्-कार्य करने के लिये
कदम बढ़ायेंगे
वरना कोल्हू के बैल बनकर रह जायेंगे
क्या सुना नहीं है
‘के दुनिया गोल है
(८७)
उल्टी माला तो दिन रात फेरता रहता है
दूसरों के नाम की
अय मेरे मन !
यदि मेरी बात माने, तो कुछ कहूँ
सोने से पहले
और
जागने के तुरंत बाद
एक माला सीधी भी फेर लिया कर
‘रे अपनों के लिये कुछ तो किया कर
(८८)
किसी का भी बुरा मत सोचो
उसका बुरा भला होना
हमारे ऊपर नहीं
उसकी अपनी क़िस्मत पर निर्भर करता है
पर हाँ
हमारे मन पर ही नहीं
आत्मा पर भी
बुरा सोचने का संस्कार
और गहरा
और गहरा
और गहरा हो जाता है
हा !
एक बार परचम शैतान का
फिर से लहर खाता है
(८९)
शुआ मतलब मिट्ठू
मिट्ठू मतलब तोता राम
जाने आपके पापा ने
कहा या नहीं कहा
मुझे नहीं पता
लेकिन मेरे पापा ने तो
कई बार कहा बचपन में
‘के तुम्हें शुआ के जैसा
पढ़ा-लिखा के भेजा था
तुम फिर भी काम बिगाड़ के आ चले
सो सुनो तो
अपने मन को भी हमें शुआ के जैसे
रात-दिन नेकियों का पाठ पढ़ाना होगा
फिर भी वह बुराईयों पर
अपना मुँह मार ही आयेगा
लेकिन हमें उसे अच्छाइयों के बारे में
बार बार बतलाते रहना होगा
तब कहीं जाकर
जूँ रेंगेगी उसके कान पर
(९०)
क्यूँ
एक सहजो-मन्त्र बतलाऊँ
सुनते हैं
होते हैं बड़े ही अनमोल
माँ, महात्मा, परमात्मा
के मुख से निकले हुए बोल
सुनो,
कोई ज्यादा बार नहीं
सिर्फ ‘नव’ बार सहीं
पर जपना जरूर
मन्त्र है वह
मैं मुस्कान ले रहा हूँ
और गहरी
और गहरी
और गहरी मैं मुस्कान ले रहा हूँ
(९१)
सभी चाहते हैं
मेरे जीवन में सुख का समन्दर लहराये
पर नादानियों का कचड़ा
सहज परिणाम रूप लहरों के माध्यम से
किनारे तक भिजाने के लिये
कोई भी कमर नहीं कसता है
सच !
समन्दर हम पर हँसता है
(९२)
फसल बोने का वक्त
फिसल जाता है अपने हाथों से
जल्द ही
कमी माँ की नहीं
माँ ने तो खिला दिया मिसरी दही
सफल होने के लिए दुआ भी पढ़ दी
उतार दी हमारी नजर भी
अब हमें बढ़ाने हैं अपने कदम
और तो और साथ दमखम
(९३)
डरने से काम न बनेगा
डरने से तो
जो हमारे सोचने के अनुसार
सुनिश्चित है वह हार
उससे मिलने वाले
बड़े कीमती तजुरबातों से भी
हाथ धोना पड़ेगा
डरिये मत
लड़िये
शब्द ही कह रहा है
‘जीता’
और बाकी सब तो मुर्दे है
जीते जागते
(९४)
हर किसी की बात
अपने दिल पर मत लेना
सुनते है
दिल बड़ा ही नाजुक रहता है
जर्रा सा भी भार क्या बढ़ता है
दिल अपना सिसकी भरता है
और सुनो तो
अपना नाजुक दिल
कठोर करके बोली है
सामने वाले ने
ऐसी दिल दुखाने वाली बात
‘रे अय ! मेरे मन
अपना नाजुक दिल
उसका कठोर दिल
अपना उसका कैसा साथ
(९५)
यदि आप पूछते ही हैं
‘के दूसरी पाठशाला की
दूसरी कक्षा में क्या सिखाया जाता है
तो मैं आपको सबसे पहले बता दूं
के दूसरी कक्षा में
सब कुछ बनाना सिखलाया जाता है
बस
एक छोड़ करके
किसी को बनाने के
(९६)
किसी की हँसी मत उड़ाना
ओ ! सुनो तो
है ना
पतंग उड़ा लो ना
आसमान के छूने का अहसास होता है
किसी की हंसी उड़ाने के बाद में तो
सिर्फ और सिर्फ
अपने हाथ में
एक अफसोस होता है
सच,
यदि हम तिल भर भी मानव हैं
तो दिल हमारा
रह रह का रोता है
(९७)
किसी की मजबूरी का फायदा उठाना
फायदे का सौदा नहीं है
मजबूरी से अपनी भी दूरी
कुछ ज्यादा नहीं है
क्या सुना नहीं है
समय का पहिया घूमता रहता है
(९८)
मिलती है
सफलता मिलती है
सिर्फ आश ही नहीं
विश्वास भी रखना चाहिये हमें
जब चिटिया के लिये मिल चली है
फिर हम हो उस परमपिता परमात्मा के
ऐसे वैसे नहीं
सबसे प्रिय बेटे और बिटिया हैं
परन्तु
वही ‘सफल… लता’ के जैसा
जिसका इरादा अटल
(९९)
सच कड़वे रहते हैं
मत बोलना
मिश्री से मीठे रिश्तों में
कड़वाहट मत घोलना
सुनते हैं
किसी का दिल दुखाना
हिंसा है
अच्छा होगा चुप रहना
कछुये के जैसे अपने भीतर छुप रहना
न सिर्फ वचन गुप्ति ही बल पायेगी
वरन्
अहिंसा भी पल जायेगी
(१००)
‘रे अय ! मेरे मन
मत भूलना
पीठ पीछे भी लगते हैं तमगे
दरिया दिल लोग
आकर के आगे सीने में लगाते हैं
और
मिल दुनिया के लोग तमगे
पीठ पीछे चिपकाते है
‘के बड़े मुख फट है वे
ये शब्द यदि नहीं सुनना है
तो जब कभी उठाकर के अपनी जीभ
तलवे से मारना
हमें नहीं चुनना है
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