(६१)
उसने अपने हथियार डाल दिये हैं
इसने अपने हथियार डाल दिये हैं
मेरे भी बाजू जवाब दे चले हैं
ऐसी बुजदिली वाली बातें मत करना
‘रे सुन
अय ! मेरे साहसी मन
वह देख
किसी के हाथ में फर-फर करती
फतह वाली पताका दिखे है
सच
जिन्दादिली
स्वर्णिम इतिहास लिखे है
(६२)
किसी को देखते क्यूँ हो
क्या अर्जुन का गुरुकुल वाला
वाकया भुला दिया
देखो ना
उसे सिर्फ लक्ष्य दिखता था
और हमें इसी से मिलता जुलता शब्द
लक्ष
मतलब दिखती हैं चीजें लाख
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
बनती कोशिश राख
अपने बुजुर्गों की नाक
(६३)
सर्फ हाथों के नाम कहाँ
काम करना
दिमाग भी जानता है
और हाथों की तो सीमा है
पर बुद्धि से
आसमान के तारे भी तोड़े जा सकते हैं
रिश्ते समन्दर उस पार से भी जोड़े
जा सकते हैं
मानो भी
मानौ
(६४)
हर एक जुबान पर
लहर खाते रहते हैं यह शब्द
‘के
झण्डा ऊंचा रहे हमारा
पर
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
झण्डा तो लम्बा है, चौड़ा है
ऊँचा तो डण्डा रहता है
और लहर खिलाना हवा के नाम
सो सुनो
मिलजुलकर पा लो ना मुकाम
(६५)
लगाते रहना
तुक्के ही सही
पर लगाते रहना
‘रे सुन
अय ! मेरे साहसी मन
माँ के पेट से निकल कर
कोई अपने पैरों से चलने लगा हो
ऐसा कभी भूल से भी हुआ हो
न मेरे कानों ने सुना
न मेरी आँखों ने चुना
‘रे देख
फिर घुटने के बल चलना होता है
पहले छाती के बल सरकना होता है
हम अपने पैरों पे खड़े होते हैं तब
नेक काम-धन्धे से लग चलते है जब
(६६)
मन जब छोटे बच्चों के जैसा
इधर उधर भागे
तब उसे खेल खेल में पकड़ कर
अपने पास बिठाल करके
उससे अपने मन की बात करना चाहिये
‘के अपन को किसी भी चीज में
मीन-मेख निकालने की
आदत नहीं बनानी है
एक बिन्दु तक पहुँचने के
कई रास्ते जो होते हैं
और अपने ही हाथ की अंगुलियाँ सभी
एक जैसी जो नहीं
हाँ…
दूसरा कुछ कमी बतलाये अपन में
तो हम उसे जरूर दूर कर लेंगे
हां ! हां !!
सुनता है मन
यदि प्यार से
समझदारी की बात करते हैं अपन
तो सुनता है
जरूर सुनता है अपना मन
(६७)
रात सोते सोते
सपने में चलते रहने के वादे के साथ
जो उधेड़-बुन हम रोकते हैं
उठते ही
सुबह-सुबह उसी उधेड़-बुन में
पुनः लग जाते हैं
अब
सिर्फ अपने इस मन को इतना बतलाना है
‘के जिस गुन के साथ बुन की तुकबन्दी है
उन गुणों को बुनते चले चलो
और बुराईयों की उधेड़ में लगे रहो
तब जो चादर बुन कर के तैयार होगी
उसमें टकने आसमान के
चाँद-तारे भी मचलेंगे
(६८)
अय ! मेरे मन
अच्छा बतला तो ज़र्रा
बुन मुश्किल है या उधेड़
बुनने में नानी याद आती है
उधड़ेना तो
एक बच्चा भी कर सकता है
सो बुराइयों की उधेड़ में लग चालो
कठिन काम
जो अच्छाइयों की बुन है
वो भी हम सीख चालेंगे
कम थोड़े ही हैं हम
चढ़ायेंगे
हम ये आँसु रूप मोती भगवत्
चरणों में चढ़ायेंगे
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
इन्हें नाहक मत ढ़ोल
अपने घर की तरफ
जल्दी-जल्दी से चल
ऐसा अपने कदमों से बोल
(६९)
सार्थक नाम
पा…पा
बाजार से खरीदकर के
टोकनी भर आम लाते हैं
पर अपने लाड़के के लिए
आम नहीं देते हैं पापा
कुछ खास देते हैं
छाँटकर के
हां ! हां ! छाँटकर के
हरे कच्चे आम
अपने हिस्से में रख लेते हैं
और अपने बच्चे के हिस्से में
लिख देते है आम
गदराये,
पीले, बड़े मीठे-मीठे
सच
पापा होते ही हैं बड़े अनूठे
(७०)
किसी से कुछ मत कहा करो
यह बड़े बड़े दिख रहे कान तो
कठपुतली के जैसे हैं
न दिखाई देने वाला सूत्र-धार वह मन है
जिसे लोगबाग लिये लिये कहाँ घूमते हैं
यह मन ही घुमाता है इन्हें
और वह भी ऐसा वैसा नहीं
कोल्हू बैल वाली गैल
सच्ची
पूछे पूछे भी
सलाह दे आना
बात न अच्छी
(७१)
सच नहीं बोले जाते हैं
भाई
राज नहीं खोले जाते हैं
यदि हम पूछते ही हैं कब तलक
तो बस
राज शब्द के अक्षर पलटाके लो निरख
रा…ज
ज…रा
मतलब
जब तक बुढ़ापा न आये
और सुनो तो
तन का नहीं
मन का
सो अच्छा है राम नाम
मनका फेरो
खूब यहाँ वहाँ चकरी सी
घुमा ली आँखे
अब जर्रा
अपने ही भीतर हेरो
(७२)
खूब देखा होगा सभी ने
अपने ही बचपन का एक बाकया जो है
अपनी मम्मी स्वेटर बुनतीं थीं
पड़ोसन के सामने
और यदि गलत बुन चलती थी स्वेटर
तो उसे उधेड़तीं थीं
घर भीतर आकर
बैठकर के दर्पन के सामने
सो सुनो तो
चार दीवारी के अन्दर
झरा लो ना लच्छन अपने
लोगों की नजरें
आनन फानन में
हमारे बारे में
हमारा गोरा काला चित्र
अपने दिलो-दिमाग तक भिजा देतीं हैं
(७३)
बगैर कदम बढ़ाये
मंजिल ख्वाबों में लगती हाथ
लगे हाथ
ख्वाबों से लो झटक हाथ
और भर चलो डग
भले छोटे-छोटे कछु
कछुआ के जैसे
साथ भरोसे
मंजिल बुलायेगी स्वयम्
‘के अय ! रुक रुक
हैं यहाँ हम
(७४)
‘मैं हूँ ना’
जब कोई हमसे कहता है
तब कुछ हटके ही
एक दिली सुकून सा मिलता है
खिल चलता है मन प्रसून हमारा
झट से आसमान की तरफ देखते हुये
हाथ हमारे जुड़ जाते हैं
प्रार्थना के लिये
हाथ हमारे मिल जाते हैं
दुआ के लिये
‘के भगवान् तू है
ऐसा भरोसा पक्का सा होता है
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
चल चल
औरों का विश्वास भगवान् के प्रति
मजबूत करायें
हम भी किसी के कान के पास आकर के
मैं हूॅं ना बोल आयें
(७५)
जिसके पास
जो रहता है
वह वही तो देता है
यदि हमनें धोखा खा लिया
तो अच्छा ही किया
उसके सर से भार कम कर दिया
सुनते हैं
माँ
महात्मा
परमात्मा
विश्वास भरोसे वाले रहते हैं
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
आ हम तो इसी कतार में खड़े होते हैं
(७६)
अपने हाथों में हाथी के जैसा बल है
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
आ बढ़ तो आगे
हाथी के जैसे
समस्याओं के
बाधाओं के, मुश्किलों के
परेशानियों के पहाड़
ठेलने में हमें कोई देर न लगेगी
बस एक दफा दिल से जोर लगाना है
कितना
तो जितना,
फिर के न मिलने वाले
चांस में लगाते हैं वे लोग
जो इस बार
पहाड़ की चोटी पर दिखाई देते हैं
(७७)
खूब पंख फड़फड़ा लो
खूब अच्छे से हाथ-पैर मार लो
यदि
फिर भी न दिखता पार हो
तो आकुल-व्याकुल मत होना
सुनते हैं
कुली नं. 1 की कतार में
वक्त आगे ही बैठा मिलता है
उसके काँधे पर रख अपना भार दो
और बह चलो
मिलता है किनारा
बस बहती धार हो
(७८)
काम हमसे बिगड़ा हो
या हमारे साथी से
‘रे सुन
अय ! मेरे मन
बिग मतलब बड़ा बनना
बुरा भला कह करके
बनना ओछा नहीं
शब्द गिर जिसे पर्वत, पहाड़ कहते हैं
वह स्वयं ही कह रहा है
गिर फिर गिर
‘रे मनुआ उठ बैठ, हो जा खड़ा
वगैर गिरे गिरी के शिखर पर
कोई आज तक पहुॅंचा नहीं
(७९)
लोग यहाँ
अपने वश में कहॉं
अपनी आदतों के वश में जो हैं
यदि किसी ने समय से हमारा
काम न किया हो
तो उसे खरी-खोटी सुनाना मत
हैं, एक नहीं दो दो हैं,
कान हमारे
पर सुनते हैं
होती है जन्म से ही इन्हें
बहरे रहने की आदत
सो बनती कोशिश
किसी को भी खरी खोटी सुना मत
(८०)
औरों के भरोसे
काम समय पर नहीं होगा
मन भी और ही है
इसके भरोसे भी
काम समय पर नहीं होगा
जंग ने लोहे जैसे
फौलाद इरादे वालों की भी
नाक में दम कर रक्खी है
और किसने नहीं सुना
‘जिन्दगी एक जंग है’
जो सिर्फ और सिर्फ
अपने
बलबूते पर ही जीती जा सकती है
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