सवाल
आचार्य भगवन् !
गुरुदेव ज्ञान सागर जी महाराज
आपको उतना ही चाहते थे,
जितना ‘कि आप उन्हें चाहते हैं,
सुबह हो, दोपहर हो, शाम हो,
बस एक यही गीत चरितार्थ होता है,
‘के “साँसों की माला सुमरूँ मैं, तेरा नाम” ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
माँ,
महात्मा,
परमात्मा,
किसी एक के कब होते हैं
नेक दिल होते हैं
चूँकि अनेक दिल जुड़े रहते हैं
और एक भी दिल का रुठना
यानि ‘कि अपने ही दिल का टूटना
क्योंकि जाने का तो रहता
किन्तु न रहता दिल से निकलने का रस्ता
और जमाने ने यूँ ही नहीं कहा नाम काँचा
तथा गुण है भी कच्चा
सो बच्चा
जैसा जितना चाहता
चाहते दिखते उतना
माँ,
महात्मा,
परमात्मा,
चूँकि आईना
सो दूर मत जाना
ज्यादा पास भी मत आना
दे दिखाई ना
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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