सवाल
आचार्य भगवन् !
यूँ ही आपको,
वर्तमान-वर्धमान नहीं कहते हैं
सच आज कलिजुग में भी,
आपका वर्धमान चारित्र है,
भगवन् !
पर… एक जिज्ञासा है
फूंक-फूंक कर भी,
कदम भले ही क्यों न रक्खे जायें,
काई तो फिसलाने में कहीं न कहीं से,
कामयाब हो ही जाती है,
सो, आप अपना प्रायश्चित कैसे करते हैं ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
हाँ…भूलें भले न हों,
पर भूल होना तो अवश्यंभावी है
सो मैंने ये प्रश्न रक्खा था,
उत्तर में परम गुरुदेव ने कहा था,
बस इतना याद रखना
बार-बार ‘भू…
…ल’ यानी ‘कि लाने वाली
यहीं
पुन: करना नहीं
जो प्रायश्चित शब्द
कह रहा खुदबखुद ही
‘के प्राय: पना चित्त कीजिये
तभी मेरी सार्थकता
और पता ?
एक अर्थ दूसरा भी
प्राय: यानी ‘कि हमेशा ही
चित्त कीजिये
चित्त खाने चार,
तभी तप प्रायश्चित्त
परिपालन होगा निरतिचार
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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