सवाल
आचार्य भगवन् !
सुनते हैं,
माँ श्री मन्ती जी पूछे,
‘के पीलू को कौन सा खेल पसन्द था,
तो माँ कहती थी,
गिल्ली डण्डा खेलना
पूज्य पिता श्री मल्लप्पा जी, कहते थे,
साइकिल चलाना
श्रद्धेय बड़े भैय्या श्री महावीर जी ने बतलाया,
करम खेलना
भाई अनन्त जी बोलते हैं,
‘के गिन्नी भैय्या को शतरंज बढ़ा पसन्द था
बड़ी जीजी शान्ता ने कहा,
मरी भैय्या को कंचे खेलना पसन्द थे
जीजी, स्वर्णा का जवाब था,
तोता भैय्या को खो-खो खेलना पसन्द था
भगवन् सबसे छोटे भैय्या जो वतर्मान में,
मुनियों में सबसे बड़े महाराज श्री हैं,
उन्होंने कहा, विद्याधर जी को,
अन्ताक्षरी खेलना अच्छा लगता था
भगवन् इतने सारे खेल
क्या आपको सभी पसन्द थे, एक साथ
सबने अलग-अलग जो उत्तर दिये
भगवन् अब आप ही बतला दीजिये,
‘के आपका पसंदीदा खेल कौन सा था ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिये,
एक खेल पसन्द करना
अपेक्षाकृत अधिक कर्म-बन्ध करना
करते नादाँ पसन्द
कोई एक खेल ज्यादा पसन्द
मैं मध्यस्थ्य था
माँ जिन-बैन अभ्यस्त था
कारित और अनुमत से,
था दूर-दूर तक ना नाता मेरा
सिर्फ कृत आप-पास ही था मेरा बसेरा
जिसने बुलाया
खेल खेलने,
खेल खेलने
सो…भाग
समझकर सौभाग चला आया
मुझे कोई बुलाने न आता था
कई बार ।
कई बार,
मुझे अवसर मिल जाता था
महा-मंत्र नवकार,
आनुपूर्वी क्रम से पढ़ना मुझे खूब भाता था
चूँकि यही एक ऐसा खेल था
जो ‘जीवन’ न खेलता
काल जिनकी जान से खेलने आया
कई बारी ।
कई बारी,
अपनी जान पे खेल कर इसने उन्हें बचाया
सच ! अगर कोई
जगत दोई
काली छाया पे
स्याही माया पे भारी
तो यही मन्तर महा
‘रे करते मन…तर आ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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