सवाल
आचार्य भगवन् !
इतने बड़े-बड़े पाण्डाल लगा कर रखते हैं,
आजकल कमेटी वाले लोग,
पंच कल्याणकों में,
और कम नहीं होतीं प्रतिष्ठाएँ,
आज यहाँ तो कल वहाँ,
तारीखे तिली जैसी अतराती रहती हैं
भगवन् !
आपको विश्वास रहता है ?
‘के इतने लोग आयेंगे,
मरने तक की फुर्सत नहीं जिन्हें,
वे अपना बेश-कीमती वक्त निकाल के ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
बताते हैं
लोग-‘बाग’ आते हैं
सौ-फीस दी
कहते हुये लो… ‘फीस…दी’
और तो और
भाग-भाग दौड़ के
सिर्फ एक ‘मैं’ छोड़ के
जुड़ के ‘मैं’ जोड़ के मिलना क्या ?
रख देता तोड़ के, बल, काया
मै…मय मतलब शराब
सर तक,
‘आब यानि, ‘कि पानी का आ जाना’
बहुत होता है, नाक तक
वैसे बरस ‘नाक’ यानि ‘कि स्वर्ग तक
पानी कभी न आया
हा ! सिर्फ एक इसी मैं ने कहर ढ़ाया
बचना
एक ‘मैं’ की अनिर्वचनीय माया
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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