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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -84

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
आपके विहार के समय,
बड़-बड़े सन्त-महन्त,
आपकी चरण वन्दना के लिये,
फूल-पत्ती,
श्री फल, गंगाजल ला करके चढ़ाते रहते हैं
तब आपके मन में मान, गुमान, अहम्, अभिमान जैसा नहीं जागता क्या ।
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
‘मानी’
चरण वन्दना
उसे जागे, और जागना भी चाहिये
मान, गुमान, अहम्, अभिमान
स्वाभिमान, अर्हम् अटूट श्रद्धान
मुझे तो जागे, और जागना ही चाहिए
मैंने आचरण वन्दना जो जानी
भो ज्ञानी
कभी सुनो, छोड़ मनमानी
कहानी,
स्वयं जुबानी शब्द चरन
चर…न
चूँकि नाम ‘म…का… म’
संस्कृत में ‘म’ यानि ‘कि नहीं,
का यानि ‘कि कौन
अर्थात् मकाम, मंजिल नहीं कौन नहीं
और सुनते हैं
‘रे मन मृग
जितना भागना
उतनी भाग में न मंजिल
और पलटते ही अक्षर कहते
च…र…न
न… रच-पच संसार कीच में
तभी रचते देवता गण
‘धरा’ चरण बीच में
कमल,
सहस्र-दल
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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