सवाल
आचार्य भगवन् !
नाम चरितार्थ करने ‘विपुल’
विपुलाचल पर्वत पर भगवान् महावीर स्वामी का
समवशरण अनायास, अकारण आया था,
मान लेते हैं भगवन्,
‘के तीर्थंकर भगवान् के कार्य अनिच्छ होते हैं
पर असमीक्ष नहीं ।
किन्तु परन्तु भगवन् !
आपका समोशरण भी घूम-फिरके
वहीं फिर वहीं आ जाता है
भगवन्,
ऐसा क्या सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर जी का जादू है,
जो आपको वरवश ही खींच ले आता है
यहाँ गर्मी कम नहीं पड़ती,
दिन में सूरज,
रात में भू रज खूब तपती है
यहाँ बरसा भी कम न ढ़ाती कहर,
और शीत लहर का तो,
कहना ही क्या भगवन्
को…हरा सार्थक नाम पाता है यहाँ,
सिर्फ हरी का नाम रहता है,
हरी तो, बिना अग्नि के ही जाती है झुलस
फिर भी आपको खूब रास आता है,
जाने ऐसा पुराने जन्मों का क्या रिश्ता नाता है
भगवन् थोड़ी सी जलन सी होती है
इस कुण्डलपुर के
आस-पास के गाँव वालों से,
इन्हें खूब जो मिलता है,
दर्शन
आपका प्रवचन
कभी कीजिये ना, मेरे भगवन्
नाम सार्थक सम-शरण
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
पुकारते लोग-बाग जिस तरह
तण्डुल को तन्दुल
कुण्डल वो कुन्दल, उसी तरह
सो चारित भगवन्त कुन्द-कुन्द का
‘ल’ यानि ‘कि लाने वाला
जो ‘पुर’ यानि ‘कि पुरु देव का द्वारा
मतलब
योग सोने सुहाग
सोने का ऐसा कहाँ सौभाग
कम न पाये ताव आने सोला’ पूरे,
फिर भी सुर’भी आँख-फूटी भी न हेरे
अय ! अपने मेरे !
बस यही सोचकर
और निर्वाण स्थली स्वामी श्रीधर
जहाँ की वन्दना छह घरिया से होती शुरु
जो उत्कृष्ट सामायिक काल की याद दिलाती है
सुना ही होगा, खरबूजे को देख कर,
खरबूजा रंग बदलता है
और मध्य मंगलाचरण के रूप में
चित्त चुराती
प्रद सम्यक्त्व थाती
प्रति…मा
बाबा बड़े देव पुरु
सचमुच यहाँ न केवल कुछ,
न सिर्फ कुछ-कुछ,
न बस बहुत कुछ,
बल्कि सब कुछ मिलता है
यही अरज ले सिर माथे
आप श्री चरण रज
‘के अंन्तिम मंगलाचरण
हो समाधि मरण
पाद मूल में तुम्हारे
अकारण शरण सहारे
अय ! अकेले तारण हारे
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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