सवाल
आचार्य भगवन् !
आपका पूरा आहार हो जाता है
और रसोई,
ज्यों की त्यों रक्खी रहती है
आप कुछ लेते ही नहीं हैं
भगवन् ! बताइये,
आपको भोजन पसंद नहीं आता क्या
भगवान् आप क्या लेते है,
आपको क्या अच्छा लगता है ?
बताईए ना
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
माँ,
महात्मा,
परमात्मा,
ज्यादा कुछ कब लेते हैं
बस अपनों का दिल रख लेते हैं
दिल तो पीपल-पत्ता
रक्खा रहेगा कहीं भी,
रखते ही,
एकाध तो पोथी पत्रा
इतना लेने पर भी,
अब आप बोलो
और ले लो,
‘के और ले लो
तो संस्कृत में,
और को ‘च’ कहते हैं
और ‘च’ के बारे में सुनते-रहते हैं
लम्बा उदर
जितना चाहे, जो चाहे, वो रख ले
पर लम्बा उदर कहाँ अवगाहे,
सो…खले
सोख…ले सारा ‘पानी’
और झलका ज्ञान पून
बिन पानी सब शून
भले भिक्षा,
बिना नमक मिर्चा लगा करके कहें तो,
है भाई भीख ही
अच्छा है,
उतनी मँगानी,
जितने से कम में काम न चले
भो प्रभो ! ये नादि-नन्त कामना…गले
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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