सवाल
आचार्य भगवन् !
बिनौली के समय,
नगर अजमेर की गलियों में,
हाथी पर सवार,
आपकी राजसी पोशाक वाली ‘फोटू’
मन को लुभा लेती है
तो भगवन् !
मेरी जिज्ञासा है,
जब आपने “सवारी का आज से त्याग गुरु-देव”
ऐसा पहले कह दिया था,
जब आचार्य ज्ञान सागर जी ने,
विद्याधर नाम सुन विद्या लेकर उड़ जाने का
कवि-कौतुक किया था,
तब आपका हाथी की सवारी करना ?
क्या किसी का विशेष आग्रह था
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जबाब…
लाजवाब
बड़ा प्यारा शब्द है अजमेर
अज यानि ‘कि अजन्मा बनने से पहले,
मेर यानि ‘कि
सुमेरु की यात्रा
जो बिना ऐरावत हाथी के हो,
तो हो कैसे
कौंधे मेरे अंतस् पटल पर,
कुछ विचार ऐसे,
और अजमेर आज,
अज यानि ‘कि बकरे का
मेध यानि ‘कि मरघट स्थान बना है
सो सखे ! एक रेखा चाहिये थी,
ताकि अजमेर
अज…मेरा बन सके
और मैंंने गुरु मुख से सुन रखा था,
“यदि चरण में गज रेखा,
तो आचरण में जादू देखा”
और मुझे आचरण का,
पहला चरण बढ़ाना था आज,
सो कारण को, कार्य मानकर,
और पूरे नगर अजमेर को,
अपना चरण जानकर
चलाकर खींच ली,
मैंने अपने हाथों से स्वयं,
एक लम्बी सी गज देखा
बस यही राज
पर पाकर पाद-मूल श्री गुरु महाराज
मैंने प्रायश्चित लिया,
दयालु परम कृपालु गुरुदेव ने मुझे दीया
थमा दिया
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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