सवाल
आचार्य भगवन् !
अपनी आँखें खराब होने का डर नहीं लगता है
आपको, भगवन् ! पहले से कोई व्यवस्था
कर लेते हैं
ऐसा मन नहीं करता आपका
भगवन् !
ढ़लती उमर में, एक, भले साधारण सा हो,
चश्मा तो जरूरी है
लेकिन आप रखते ही नहीं,
गुरु जी ! क्या कोई विशेष राज छुपा है
न रखने में
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो,
चश्मे में,
आगे जो ‘च’ खड़ा है,
उसका पेट बहुत बड़ा है
न अकेल आता
‘केस’
साथ में लाता
और आता कहाँ केस अकेला
उसका और एक कोमल से कपड़े का मेला
है जो कुछ-कुछ गद्देदार
केस से बाहर आया नहीं
‘के दाग-धब्बेदार
और माँ से वादा है
इस बार ।
इस बार,
चुनर ज्यों की ज्यों उतारने का इरादा है
सो चश्मे
और ए ! चश्मे के यार
तुम्हें दूर से ही मेरा नमस्कार
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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