सवाल
आचार्य भगवन् !
कीड़ों की डरावनी आवाजें,
रात्रि-जगरों का भूलना,
बिल्लियों का रोना,
जाने सार्थक नाम करती सी दोषाकर,
रात्रि इतनी लम्बी-लम्बी फिर भी आप
आधी रात गई लेटते हैं,
और
आधी रात रही उठ बढ़ते हैं
तो आप करते कब है सोना ?
लगता है,
सार्थक नाम करने में जुटे रहते हैं
सो…ना
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
कौन नहीं करता है
सभी तो यही करते हैं
यहाँ तक ‘कि हम भी
भवों-भवों से यही करते आये हैं
लेकिन इस बार
सोने-सुहाग करना है
सलीका क्या
तरीका क्या
खुदबखुद कहता है,
शब्द सो… ना
सुनो ना,
खा विरथा ही खोना
सुनो ना,
हुआ भव-भव
विरथा ही खोना
बार इस भी,
न लग हाथ जाये
बारिस में रोना
खूब सो लिये
इसलिये अब सोना
चुनो ना
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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