सवाल
आचार्य भगवन् !
जुबान से जो खुदबखुद कहती है
हाँ…’री
यानि ‘कि मुझे स्वीकार कर लीजिए,
ऐसी हरी को आप नाम मात्र भी नहीं लेते हैं
शरीर आपका अपना भले नहीं,
‘कल यहीं पर रह जायेगा,
माना,
लेकिन पड़ोसी का भी ध्यान रखने की बात,
आपके प्रवचनों में घनी-घनी सुनी है,
सो सुनवाई हो भगवन् !
कुछ इस भक्त की भी,
भले जरा सी हो, पर हो
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो तो,
नाम मात्र हरी में से
मात्र भर नहीं लेता हूँ
नाम हरी तो, लेता ही रहता हूँ
न सिर्फ सुबह-शाम
बल्कि आठों याम
और आप जिस हरी की कह रहे हो ना
उसके अक्षर थोड़ा से दूर-दूर पड़ते ही,
खुल पड़ता है राज
‘कि
ह…री
तो हारे हुए लोगों को, क्यूँ मुँह लगाना
चावल है ना, जो बल को पीछे लगाये हैं
खूब भर पेट लो, छक के
और गिन-गिन के
कर्मन् के छक्के छुड़ा दो
और बढ़ा दो
‘आत्मन् अपना’
कुछ और करीब परमात्मन् के
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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