सवाल
आचार्य भगवन् !
आप क्या कोई जादू-टोना जानते हैं
पाई-पाई जोड़कर सेठ जी बने थे,
हमारे गाँव की ही थे,
एक सज्जन,
उन्होंने कभी, एक रुपया दान न दिया था,
लेकिन आप गाँव क्या आये,
पाद प्रक्षालन की बोली ले डाली उन्होंने,
सबकी आँखें फटी की फटी रह गईं
‘के यह चिक्कट, ‘रुपये की तीन अठन्नी’
क्या कहीं पागल हो नहीं हो गया है
सारे लोगों का एक ही मत था,
लेकिन जाने,
वो सेठ जी आज, सच्चा मानस का हंंस ही नहीं,
हंंस मत सन्मत था
सो भगवन् !
आपके सामने लोग-बाग पैसों की कोई कीमत न समझ के पानी जैसा बहा देते हैं,
आखिर क्यों स्वामिन् !
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
किसी ने अपने नाम के आगे,
शब्द ‘रूप’ लगा लिया,
तो क्या देखती रहेगी दुनिया
और देखेंगे तो ‘फ्रॉड-आई’ वाले
न ‘कि ‘थर्ड आई’ वाले
और आप जादू-टोने की बात करते हो
कोने-कोने को पता है
‘के रुपया-पैसा
खेल-तमाशा खत्म होने बाद,
सिर्फ एक कागज का टुकड़ा है
जिस पर लाख कोशिशों के बाद भी
दूसरा रंग न चढ़ा है
कह ही रहा है काग….ज
भले सुनाई दे रहा का…गज
जो जिये लाख का
मुये सवा-लाख का
हो भी सकता है
वैसे सौदा सस्ता है
आ लुटाते हैं
ये रुपया-पैसा
जिसका है,
उसे लौटाते हैं
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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