सवाल
आचार्य भगवन् !
सुनते हैं,
आप दिन के बारह बजे ही नहीं,
रात के बारह बजे भी,
एक सैकेण्ड भी यहाँ वहाँ नहीं हो पाता है,
और सामायिक करने के लिये बैठ जाते हैं
भगवन् लेट-लतीफी डोरे नहीं डालती है क्या ?
या फिर आप ही,
लेट-लतीफी के लिये घास नहीं डालते हैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये,
दस बजकर दस मिनिट पर,
मुस्कान लेती है घड़ी
चूँकि अँजुलि में रहती है हलवा-पूड़ी
खाते जाते, खाते जाते
हम, खाते खाते, कहाँ लजाते
हमारे चेहरे पर बारह बज जाते
अब, एक सेकेण्ड भी बेकार ना करते हुये
अपना रीढ़ सीधी कर लो ।
पैर सीधे करने की नहीं कह रहा हूँ
हाँ कहेगा, हमारा मन कहेगा
कहे वगैर भी न रहेगा
यदि मानी कहलाना है,
तो कर होना मनमानी
या फिर ठीक,
बारह बजे सामाजिक पर बैठ जाना
परम गुरुदेव श्री ज्ञान सागर जी की सीख,
जो गहरे पैठ पाना
पता है,
अब सैकेण्ड का काँटा,
फिर बढ़ता हुआ मिनिट का काँटा
घण्टे के काँटे के साथ मिल करके
ध्यान से देखना घड़ी,
घड़ी-घड़ी,
सही का चिन्ह बनाते हैं
फिर ऐसा अवसर काँटे
जोग बैठाते बैठाते, कोल्हू बैल तो कहाते हैं,
परंतु बारह बजे से पहले खोज नहीं पाते हैं
और गुरुदेव ने कहा था,
मोक्ष-मार्ग में खुद ही शिक्षक,
खुद ही परीक्षक
और पेन देता है, पैन,
और कहाँ कम है, शिल सी पेंसिल है
सो जब से देखा है,
‘के घड़ी भी सही के ‘मार्क’ लगाती है
भगवान् झूठ न कहलवायें
बना रक्खी मैनें अपनी साथी है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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